Thursday, September 29, 2011

मेरा भारत महान




अमेरिकन एयरलाईन्स में प्रति विमान 128 कर्मचारी हैं और मेरे भारत महान की महान एयरलाईन्स में प्रति विमान कुल 588 कर्मचारी. एक से बढ़ कर एक महान भारतीय कर्मचारी. मंत्री महोदय ने यह खुलासा किया है. इस खुलासे को अखबारों ने चटखारे ले लेकर मुख पृष्ठ पर छापा. इसमें ताज़्ज़ुब कैसा. अमरीका में तो बंदे हैं ही नहीं और मेरा भारत महान इस मामले में हीरो नम्बर वन है. भला अमरीका क्या खा के हम सवा सौ करोड़ का मुक़ाबला करेगा. अमरीका में सब काम ऑटोमेटिक है. हमारे देश में ऑटोमेटिक चीजें चलाने, बंद करने, और उनकी रख-रखाव, निगरानी को भी ढेर सारे लोग रखने पड़ते हैं. 

सरकारी मकान में बल्ब बदलने को भी तीन आदमी जाते हैं. एक रौब-दाब वाला सुपरवाइजर. एक बल्ब का झोला पकड़े और तीसरा सीढ़ी उठाये उठाये चलता है. तो ये ठाठ हैं. अब क्या अमरीका वाले ऐसे ठाठ कर सकते हैं. वो तो ये एफोर्ड ही नहीं कर सकते. कहते हैं वहाँ के डिपार्टमेंटल स्टोर्स में भी सैल्फ सर्विस है. हमारे यहाँ सरकारी सुपर बज़ार में भी सैल्फ सर्विस रखी थी. मगर हिंदुस्तानियों ने उसका ग़लत मतलब निकाल लिया. उसके चलते इतने सैल्फ सर्विस की कि तमाम सुपर बाज़ार को अपने घर ही ले गये. सुपर बाज़ार वाले नारा ही ऐसा देते थे सुपर बाज़ार—अपना बाज़ार सुपर बाज़ार नुकसान में जाते जाते तबाह हो गये. अब सरकार उनका निजीकरण करेगी. सुपर बाज़ार वाले जो न जाने कब से उसका निजीकरण करे बैठे थे इसका विरोध कर रहे हैं. विरोध तो पर्यटन विकास निगम वाले भी कर रहे हैं कि निजीकरण करना ठीक नहीं.फिर उनके विकासका क्या होगा. उनके एक होटल में सरकारी अमला है पाँच सौ का और गैस्ट हैं पाँच. यानि कि पर गैस्ट सौ कर्मचारी अतिथि की सेवा में रहते हैं. हो भी क्योंन. भारतमें अतिथि सेवा की एक दीर्घ परम्परा जो है. अतिथि देवो भव. ये बात अमरीकावाले सौ जन्म में भी नहीं कर सकते. वो तो बस पीठ पर अपना सामान ढोये ढोये भिखारियों की तरह दुनियां घूमते-फिरते हैं.

136 तरह के तेल शैम्पू और 256 तरह के साबुन बापरने के बाद जो मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड निखर कर आ रही हैं उनसे जो मार्किट चलनी थी सो चल ली. अब किसी दिन लेटेस्ट एड आयेगा कि मैं पेप्सी से नहाती हूं या फिर कोकाकोला से सिर धोती हूं. इससे न केवल बाल रेशमी, घने मुलायम रहते हैं बल्कि ताज़गी भी पहुँचती है. ठन्डा यानि कोकाकोला.

बहुराष्ट्रीय कम्पन्यां जल्द ही हवा और पानी पर अपना क़ब्ज़ा कर लेंगी. पानी पर तो एक तरह से कर ही लिया है. छोटी बोतल, मीडियम बोतल, बड़ा जार अब छोटी छोटी दो घूंट पानी वाले सेशै भी मार्किट में उतरेंगे ताकि झोंपड़-पट्टी वाले भी आठ आने में ये मिनरल वाटर पी सकें. साफ पानी पर उनका भी तो कुछ हक़ है. जिस तरह पानी के बड़े बड़े जार की सप्लाई दफ्तरों में होती है उसी तरह ऑक्सीजन के सिलेन्डर घर-घर जाया करेंगे. कुकिंग गैस के  सिलेंडर के साथ हरे रंग के बायो-फ्रेंडली क्यूट से ब्रीदिंग सिलेंडर. घर भर के लिये महीने भर का ऑक्सीजन का कोटा. पड़ोसनें एक दूसरे से कहेंगी “ बहन ! एक सिलेंडर स्पेयर में पड़ा है क्या?” बच्चों के लिये छोटे छोटे स्वीट से मिनी सिलेंडर चलेंगे जिसे वो वॉकमैन की तरह लटकाये लटकाये फिरेंगे.

इन दिनों स्वदेशी नारे का क्या हुआ ? अब सुनाई नहीं पड़ता. दरअसल स्वदेशी की आड़ में इतनी विदेशी कम्पनियां आगईं हैं कि बस कुछ मत पूछो. कौनसा क्षेत्र है जिसमें वो नहीं घुसी हुईं. पैन-पेंसिल, कच्छा-बनियान, जूते-चप्पल, साबुन-तेल. जल्द ही अब वो कुल्हड़,पत्तल, छप्पर, भूसा, गन्ने का रस, गुड़ सब का उत्पादन करने लगेंगी. लोग शान से बताया करेंगे कि फलाँ की शादी में स्वीडन के कुल्हड़ में चाय मिली थी. हमनें अपनी बिटिया की शादी में जापान से पत्तलें मँगवाई थीं. हमारी गाय, भूसा सिर्फ मेड इन जर्मनी ही खाती है. ऐसा दूध देती है कि एक लोटा पीते ही हम लोग फर्राटेदार जर्मन बोलने लगते हैं. दुनियां इसी का नाम है. पहले देश का मंडलीकरण हो रहा था. फिर कमंडलीकरण और अब भूमंडलीकरण हो रहा है. आप पानी गंगा का नहीं वोल्गा का पियें. वो भी 120/- फी गिलास. गुड़ आप यू.पी. का नहीं यू.के. का खायें और इतरायें “हाऊ स्वीट” 

अब तो भिखारी भी ट्रेफिक सिग्नल पर एक-दूसरे से मोबाइल पर बात करते हैं.
” ये जो नीले रंग की गाड़ी आयेली है उसे जाने दे भिडू उससे माँगने का नहीं, अपुन लियेला है ” पहले फिल्मों में एक-आध रील भी विदेश की होती थी तो जोर-शोर से प्रचार किया जाता था  एराउंड दि वर्ल्ड का विज्ञापन मुझे याद है “ राजकपूर ने 8 डॉलर में दुनियां देखी आप सवा रुपये में देखिये”. अब विज्ञापन और सीरियलों की शूटिंग भी विदेश में होती है. अब सीरियलों की भली चलाई. सभी सीरियल्स के नाम कहानी, पात्र, घर सब एक से. और वही एक से लिपे-पुते चेहरे, रोना-धोना. आने वाले कुछ सीरियल्स के नाम ये भी हो सकते हैं.

ननद भी कभी भाभी बनेगी

भांजी भी किसी की मामी है

मैंने प्यार किया मिस यूनिवर्स से

हम आपकी सोसायटी में रहते हैं

देश में गई होगी बिजली सप्लाई

हाय दैया, हाय राम

राम से याद पड़ते हैं गाँधी, गाँधीवाद और राम जन्म भूमि विवाद. पर वो किस्सा फिर कभी.