Thursday, January 7, 2010
कुछ शेर सुनाता हूँ मैं...
तेरे हर ग़म को दूर कर सके
अपनी दुआ में वो तासीर चाहता है.
तेरी पलकों पे सजे हर सपने की
तामीर चाहता है .
अजब सौदागर है हीरे-मोती का
तेरा हर आंसू, तेरी हर पीर चाहता है .
..........
वादा है आँखें तुम्हारी
खुशियों से रोशन होंगी
मैं चिराग जलाता हूँ
तुम नज़र मिलाओ तो सही
तुम्हारी राह के तमाम काँटे
समेट लाये हैं
लो फ़ैल गयीं मेरी बाहें
तुम एक कदम आओ तो सही
तुम्हारे दामन में बहार के फूल ही फूल होंगे
मैं दुआ में
हाथ उठाता हूँ
तुम एक बार मुस्कराओ तो सही .
.........
खुदा ये दिन भी
दिखाए मुझको
मैं रूठा रहूँ
वो मनाये मुझको .
इतना आसान कहाँ हुनर
बदले का
हसरत ही रह गयी
मेरी तरह वो सताए मुझको .
सब कुछ तो कहा
बाकी क्या रहा
अरमां अगर है तो
आज वो भी सुनाये मुझको .
बस एक तेरी चाहत में
उम्र भर गाते रहे
में क्या करूँ
दुनियां ने जो हार पहनाये मुझको .
सुना है मेरा नाम न लेने का
अहद उठाया है
ये कैसी कसम है शामो सहर
वो गुनगुनाये मुझको .
दिल के खेल में सनम
अब माहिर हो चले
ग़ैर की महफ़िल में
बेवफा बताये मुझको .
ऐ खुदा दिल के हाथों
इस क़दर मजबूर कर दे
भले बात न करे
एक बार तो बुलाये मुझको .
मुझ में खामियां हज़ार
मुझे कब इनकार
काश वो मिटा के
फिर से बनाये मुझको .
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