Saturday, July 13, 2024

व्यंग्य : मैं ग्राहक....तू दुकानदार तू मेरा, मैं तेरा पालनहार

 


                  

 

                    बाज़ार में कुछ दुकानें मेरी पैट हैं जहां से मैं नियमित ख़रीदारी करता हूँ।  तीज-त्योहार पर और शादी समारोहों की सारी की सारी ख़रीदारी भी मैं उन्हीं दो-तीन दुकानों से करता हूँ। इसके बदले मैं जब भी बाज़ार से निकलता हूँ वो दुकानदार मुझे सलाम करते हैं। असल में मेरा संयुक्त परिवार बहुत बड़ा है अतः हर चीज़ की खपत भी अच्छी ख़ासी है। कपड़ा हो या किराना। दुकानदार भी कोई नई चीज़ उनकी दुकान पर आ जाये तो मुझे खबर भिजवा देते हैं। कई बार तो सेंपल बतौर एक आध पीस भिजवा भी देते हैं उसे क्या बोलते हैं कंप्लीमेंटरी। उनकी दुकान पर मैं जाता हूँ तो फट से मौसम अनुसार कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, लस्सी और नाश्ते का इंतज़ाम करने को बोलते हैं। ये सब आता भी है। मैं जानता हूँ इन सबका पैसा मेरी जेब से ही जाना है। फिर भी मुझे ये सम्मान अच्छा लगता है। बाकी ग्राहक तो मुड़ मुड़ के मुझे देखते ही हैं मेरे अपने परिवार के लोगों की नज़रों में भी मेरी हनक बढ़ती है यद्यपि उनमें जो समझदार हैं वो जानते हैं कि कोई भी वस्तु उस दुकान से इतनी मात्रा में खरीदी जाएगी कि दुकानदार अपना सारा मुनाफा हमारी डील से ही निकाल लेगा। इतनी मात्रा में ख़रीदारी होती ही रहती है। नियमित के अलावा अन्य कोई नई वस्तु के दुकान में आने पर दुकानदार उसके गुण बखान करता है वो जानता है कि जितनी हम खरीदेंगे उतना कोई नहीं क्यों कि हमारे घर की जनसंख्या ही इतनी है।

 

       अतः वह हमारे आगे बिछा ही रहता है। उसे यह डर भी रहता है कि कहीं मैं उसकी दुकान छोड़ दूसरी दुकानों में न चला जाऊँ। वह दुकान मे सबको बढ़ा-चढ़ा कर मेरे पद में दो और प्रोमोशन जोड़ कर बताता है मसलन मैं असिस्टेंट हूँ तो वह कहेगा सीनियर ऑफिसर साब हैं। जब मैं वाकई सीनियर ऑफिसर हो गया तब वह मुझे कमिश्नर ही बताने लग पड़ा था।  सबके मूल में है मार्केटिंग उसे अपनी दुकान की वस्तुएँ मुझे बेचनी हैं, बेचती रहनीं हैं और मैं दूसरी दुकान पर लेने न चला जाऊँ इसके लिए वो मुझे ठंडा / गरम / नाश्ता / पदवी / उपाधि सब सहर्ष ही देता है। मेरी खामखाँ ऊल-जुलूल तारीफ करते भी नहीं थकता। वह मोटा दुकानदार है और मैं मोटा ग्राहक। सिंपल !!   

 

 

No comments:

Post a Comment