Monday, June 9, 2025

व्यंग्य : आम मेरे नाम का


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                सब का आपको सम्मान करने का अपना अपना तरीका होता है। अब ये आम वाले अंकल जी को ही देख लो ! जिसे दिल से चाहते हैं या जिससे जरा इंप्रेस हो जाते हैं उसके नाम की आम की नई नस्ल पैदा कर देते हैं। पूरे ज़ोर-शोर से उस नई नस्ल का नामकरण अपने लेटेस्ट हीरो के नाम पर रखने की पब्लिक घोषणा भी कर देते हैं। इससे उनका आम, वो खुद और जिसके नाम से आम का नामकरण हुआ है तीनों एक झटके में प्रसिद्ध हो जाते हैं। उनका नाम अखबारों में छा जाता है।

 

 

        अब बड़े-बड़े आदमियों का तो ठीक है। पर फर्ज़ करो कभी ये आम वाले अंकल जी ने मेरे नाम से अपने किसी आम की नयी नस्ल का नाम रख दिया तो ? तो बड़ी फज़ीहत हो जाएगी। मेरा इस पर ध्यान गया तो एकदम सिहरन सी दौड़ गई। कैसे-कैसे फब्तियाँ और जुमले बाज़ार में चल निकलेंगे। देश में पहले ही क्या जुमलों की कमी है। मंडी में सुबह-सुबह लोग टेर टेर के कह रहे हों "ले जाओ बढ़िया रबीनदर! ठीक-ठीक लगा देंगे ! ले जाओ रबीनदर" ! लोग पूछेंगे: "ये रबीनदर किस भाव दिया है ? ठीक-ठीक लगा लो  हम दस किलो रबीनदर ले लेंगे। रबीनदर को काटो, थोड़ा चखाओ तो सही। जरा रबीनदर की एक फांक खिलाओ तब तो जानें रबिनदर का स्वाद। ऐसे बिना चखे कैसे ले लें रबीनदर को"।

 

 

       रबीनदर तोड़ताड़ कर पेटी में बिकने आया करेगा। रबीनदर की नीलामी हुआ करेगी अल-फाँसो स्टाइल में। रबीनदर कहीं दुकान पर, कहीं ठेले में, कहीं फुटपाथ पर बिका करेगा। लोगबाग आएंगे पिचका-पिचका कर देखेंगे। दुकानदार से पूछेंगे "भैया ये रबीनदर में गुठली बड़ी निकलती है या छोटी?"  ये रबीनदर पका हुआ है ? अभी तो कच्चा सा मालूम दे रहा है। ये हरा-हरा क्यूँ है ?

 

 

       खराब बात ये है कि फिर रबीनदर बाज़ार से, पेड़ से, बाग-बगीचों से गायब हो जाया करेगा। चुनाव में जमानत ज़ब्त हुए उम्मीदवार की तरह। लोग पूछेंगे तो दुकानदार बताएगा "ये रबीनदर का मौसम नहीं है। रबीनदर तो अब अगले साल ही आयेगा"। रबीनदर को चूसने से पहले चेंप अलग निकालना पड़ा करेगा। रबीनदर शेक चलेगा मार्किट में। लोग रबीनदर का जूस बना कर पिया करेंगे। रेस्तरां में रबीनदर का पल्प अलग बिका करेगा। गजब ये है कि न बिका हुआ रबीनदर किसी कोल्ड स्टोर में ठिठुर-ठिठुर कर अगले साल का इंतज़ार करेगा या फिर कहीं अंधेरी कोठरी में रबीनदर को सड़ने को छोड़ दिया जाएगा। क्या फजीहत है। अभी अचार और मुरब्बे की बात तो मैंने छेड़ी ही नहीं है। वो यातना का एक और दौर है।

 

 

       अतः आम वाले अंकल जी आपको मेरी कसम है मेरे नाम से अपने किसी आम की नस्ल का नाम मत रखना रबीनदर नाम है हमारा।

 

 

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