Friday, June 20, 2025

व्यंग्य: फर्श गंदा करने पर ससुर की पिटाई

 


                     



 

      पत्नी ने इतनी मेहनत से घर के फर्श को साफ किया, झाड़ू लगाई, पोंछा लगाया। एक ये ससुर महोदय हैं कि दनदनाते घर में घुसे आ रहे हैं। सारा फर्श गंदा कर दिया। अब इसे कौन साफ करेगा। इत्ती सी बात इनके समझ नहीं लगती।  दिख रहा है बहू फर्श पर पोंछा लगा रही है। पर नहीं जी ! अपने ससुरपने के नशे में ही रहते है। बहू ने आव देखा न ताव और तय किया कि आज नशा उतार ही दिया जाये। बहू ने सीधे मार-कुटाई नहीं शुरू कर दी होगी। इससे पहले वो प्यार से और सख्ती से समझा चुकी होगी। मगर वो कहावत है न भूत वाली... बस बहू को लग गया कि बिना फ़ौजदारी ये ससुर जी मानने वाले नहीं हैं।

 

 

वैसे यह भी हो सकता था कि ताजीराते हिन्द, ससुर जी को क़ैद-ए-बामशक्कत दी जाती भले महीने-दो महीने की ही सही। बच्चू जब खुद को झाड़ू-पोंछा लगाना पड़ता तो बहू की मेहनत का मूल्यांकन कर पाते। उसका दुख-दर्द समझ पाते। हमारे एक मास्साब थे वो  हमें डांटते वक़्त धमकी देते थे ‘एक चाँटे में ज़िंदगी बना दूंगा’ हम सोचते बेटा कितना न असरदायक और प्रभावशाली होगा गुरु जी का चांटा। अब बीवी ने ससुर साब को साझा दिया होगा कि फर्श साफ करने और साफ रहने देने की क्या महत्ता है।

वैसे उनकी अपनी सुरक्षा के लिए भी ये ज़रूरी है कि वे गीले फर्श पर ना चले, जरा सा फिसल जाते तो सब बहू को ही दोष देते। बहू तो है ही शुरू से बुरी। ससुर जी को ठीक  से समझाने के लिए एक बार ये हाथापाई ज़रूरी थी। बहू कह सकती है कि इनकी पिटाई इनके अपने हित में की गई है। आजकल कूल्हे की हड्डी टूटने में कोई देरी लगती है ! फिर  सेवा भी मुझे ही करनी पड़ती। ये तो बिस्तर पर पड़े-पड़े हुकुम चलाते रहते ( दोनों बाप-बेटे एक से हैं )

 

 

      मैं सोच रहा हूँ ससुर साब अब गीले क्या सूखे फर्श पर भी चलने में घबराएँगे कि अब हुई पिटाई कि अब हुई पिटाई। बहू कहीं से देख तो नहीं रही। अभी आकर दबोच ले और ले थप्पड़, लात-घूंसे चलने लगें।

 

        

  कनटाप पड़ने लगे, लात चलने लगी

  चेहरे - चेहरे पर सूजन उभरने लगी

   आँख लाल-लाल हुई,  आँख काली हुई

   गीले फर्श पे पहने जूते,जब ससुर आ गया

 

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