सन 1960 में देव आनंद साब की एक फिल्म आई थी ‘जाली
नोट’ इस फिल्म में नायक जाली नोट के भंवर जाल को भेदता है। तब यह फिल्म खूब चली थी
नया सबजेक्ट था। यदि आज जाली को लेकर फिल्म बनानी हो तो अनेक थीम मौजूद हैं। कोई
थीम आपको लगता है पुरानी पड़ रही है, तभी कुछ नया धमाका ‘जाली’ का आ जाता है। यूं
कहने को जाल, जाल
दी ट्रैप, जाली
हस्बेंड आ चुकी हैं। पर यदि देव आनंद साब
को आज इस थीम पर फिल्म बनानी होती तो आपकी सूचना को बता दूँ बहुत सारी वस्तुएँ, नग, नगीने अपने आस-पास ही हैं।
शुरू
करते हैं उल्हास नगर से, फिर आता है मुंबई का अपना ही धारावी। यह तो इलाके की बात हो रही है
हालांकि यहाँ आपको और भी आइडियाज़ मिल सकते हैं। अब ‘ट्राइड एंड टेस्टड’ केस लेते
हैं। जैसे कि:-
1.जाली
पुलिस:
आपने अभी तक सुना होगा कि फलां ट्रैफिक सिपाही अथवा फलां कॉन्स्टेबल पकड़ा गया। मगर
इसमें मशगूल लोगों के साहस खुलते गए और वो अब इंस्पेक्टर, एस.एच.ओ, और आई.पी.एस. बन कर जाली वर्दी पहन-पहन ऑन लाइन
और ऑफ लाइन लोगों को डर दिखा पैसे ठगने लगे हैं। ये वाली जमात अभी भी खूब सक्रिय
है और आज भी आए दिन डिजिटल अरेस्ट के केस सुनने में आते रहते हैं। यह करोड़ों अरबों
के टर्न ओवर का उद्यम है। इनवेस्टमेंट क्या है ? बस एक अदद जाली वर्दी। याद है वो नॉवल ‘वर्दी
वाला गुंडा’ दुनियाँ बेवकूफ बनती है बनाने वाला चाहिए।
2. जाली थाना: अब ये रोज रोज़ पुलिस बन कर लूटने के बजाय साहसी
लोगों ने पूरा का पूरा पुलिस थाना ही जाली खोल लिया जहां बाकायदा चालान होते, फाइन जमा किए जाते, एफ.आई.आर. लिखी जाने लगी। हवालात वगैरह
सब थी। उस थाने में फाइल और पुलिसवाले भाई लोग ड्यूटी पर आते, गश्त लगाते। यह उसी तरह था जैसे कि कोई इन सब खुराफ़ातों के
लिए दफ्तर ही खोल ले।
3. जाली बैंक यह आइडिया खूब चला। लोग खुश हुए कि उनके
दूर-दराज इलाके में भी बैंक (वह भी स्टेट बैंक) की ब्रांच खुल गई है। बाकायदा पैसे
जमा किए जाते, निकाले
जाते। और तो और मैनेजर बने ठग ने घोषणा कर दी कि बैंक में लोकल लोगों को भर्ती
किया जाएगा अतः उस नाम पर अलग काफी पैसा इकट्ठा कर लिया। जोक यह है कि किसी ने
उन्हें इतनी मुस्तैदी से काम करते देख और टाइम पर आने से शक पड़ गया और वे सब के सब
पकड़े गए।
4. जाली एम्बेसी: आपने जाली सी.बी.आई. टीम
सुनी ही है अब तो उस पर ‘स्पेशल 26’ फिल्म भी बन चुकी है जो कि एक सत्य घटना से ही प्रेरित है। जाली
पासपोर्ट, जाली
वीज़ा सब पुराने पड़ गए हैं। अब तो एक सज्जन ने जाली एम्बेसी ही खोल ली और लोगों को
फर्जी देशों के वीज़ा, सिटीजनशिप देने लगा और सालों-साल वह ऑपरेट करता रहा।
5. जाली रेलवे भर्ती बोर्ड तो यह है बानगी जाली की। मुल्क़ जाली, मुल्क़ की एम्बेसी जाली, मुल्क़ के लिए वीज़ा जाली। पीछे रेलवे
का पूरा का पूरा रिक्रूटमेंट बोर्ड ही जाली पाया गया। वे बाकायदा विज्ञापन देते थे, फीस लेते थे, परीक्षा लेते और नियुक्ति पत्र भी जारी
करते। सब कुछ अच्छी ख़ासी रकम ले कर।
आप से अनुरोध है कि आप अपना कीमती टाइम
ये चिंदी चोरी में न लगाएँ कुछ बड़ा करें।
जाली वीर बनें।
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