Sunday, January 24, 2010

आपके लिए

अलील के क़दह में मुझे मौत पिला दे
मगर ए खुदा कमसकम मेरे दुश्मन को ज़िलादे

ये साकी ही ऐसा है

पैमाने में ज़हर मिला देता है

मैं लाख इंकार करूँ

ये तुम्हारी  कसम खिला देता है

मैं पहलू-ए-यार से उठ कर भागता हूँ
मगर वो हाथ थाम कर पिला देता है

कुछ भी कहो आज दो घूंट जरूर लूँगा

ज़िद करते हो तो कल से छोड़ दूँगा


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तमन्ना नहीं रांझा या मजनूँ बनूँ
तमन्ना नहीं किसी की रातों का जुगनू बनूँ
हसरत अगर थी तो सिर्फ एक

तमाम उम्र उसी का रहूँ मैं जिसका बनूँ


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पाजेब से उनकी फिर कोई बदली टकराई

नासमझ दुनियाँ बोली बारिश आई

आज फिर उनकी क़ातिल अदा ने

किसी परदेसी को लूटा है

आज फिर पूरब पे काली घटा छाई

खबर ये सुनने में आई थी

किसी दीवाने ने उनके लिए

खून की होली मचाई थी

हमने पूछा माजरा क्या है
वो नज़ाकत से बोले "कुछ नहीं
उस दिन जरा महावर रचाई थी "
















ये उलझे-उलझे से गेसू

ये दबी-दबी सी मुस्कराहट

ये झुकी-झुकी सी पलकें

यहीं कहीं देखो,इन्ही में कोई

मेरे दिल का चोर

निकल आएगा


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बदकिस्मत ही सही मेरी तक़दीर हो फिर भी

खूबसूरत ही सही मगर ज़ालिम हो फिर भी

बेवफ़ा ही सही मेरी महबूब हो फिर भी

हाथ में खंजर नहीं तो क्या मेरी क़ातिल हो फिर भी .

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साथ तू रहे तो बंजर भी हरियाली है
साथ तू रहे तो अमावस भी उषा की लाली है

साथ तू रहे तो मैं मर के भी जी लूँगा
साथ  तू रहे तो विषघट भी अमृत की प्याली है
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ढूँढ लूँगा निदान मैं,अपनी पीड़ा का तेरे गान में

ज्योति जो एक झोंके से बुझ गयी,वो नहीं मेरी प्रेरणा

मैं तो अब तक जीया,देख के वो दीया

जो जलता रहा तूफ़ान में



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