Friday, June 2, 2023

व्यंग्य: ज़रूरत है एक नेता की

 


(आधा दर्जन रेलवे स्टेशन उरण लाइन पर उदघाटन का इंतजार कर रहे हैं। नेता कोई खाली नहीं है --एक समाचार)


                 बहुत कोफ्त हो रही है जबसे पता चला है कि देश में अनेक योजनाएँ, पुल, वंदेभारत रेलें, स्मारक, मंदिर, बांध, रेलवे स्टेशन सिर्फ इसलिए पेंडिंग हैं कि उनका उदघाटन, शिलान्यास करने को नेता उपलब्ध नहीं हैं। सभी अपने-अपने ज़रूरी कामों, गैर जरूरी कामों मे बिज़ी रहते हैं या उसमें बिज़ी होने का स्वांग भरते हैं। अब लो सुनो ! ये क्या बात हुई कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में भी टोटा पड़ेला है। जहां क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या छुटभैये-नेता, क्या नेता के चमचे, रिज़ॉर्ट के मालिक, विलेन, डॉन सभी तो इफ़रात में मौजूद हैं। वो क्या बोलते हैं:


एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं

दूर ढूंढो पास मिलते हैं

 

            मेरे को तो त्रास हो गया। खरच सांगतो। हे काय साहेब ? आधा दर्जन तो रेलवे स्टेशन ही उदघाटन को तरस रेले हैं। क्या धरती वीरों से खाली हो गई। आई मीन !  क्या अपने सूबे में नेताओं का अकाल आ गया है। हम तो सुनते थे अकाल लाटूर में आता है। आप मेरे को बोलो साहेब ! येतो मी। हरकत नहीं। ताबड़तोड़ सभी स्टेशनों का करुन टाकतो। करायचा काय हे ? फक़त झंडी हिलानी है। काय साहेब जहां पूरी की पूरी सरकार को हिलाया जा सकता है वहां झंडी की क्या बिसात। मुझे याद पड़ता है जब बान्द्रा सी-लिंक का उदघाटन था तो मंच पर कितनी गरदी थी। क्या नेता, क्या अभिनेता, सभी तो मंच उभय बसले होते। फोटो गिराने के वास्ते। काम के वक़्त एक नज़र नहीं आयेगा। यह तो वही बात हो गई कि इतनी मेहनत लगा कर हीरो बने अब उनसे ही नजरें चुरा रहे हैं। मोठे-मोठे गागल लगा के।

                 

                आप हुकुम करो। मैं अगले दिन ही पहुंच जाऊंगा। लौटती डाक से सूचित करना। नवीन कुरता - पायजामा सिलने को देना है। गले के दो-चार पटकों का आप इंतजाम करके रखना। पता नहीं मेरे पहुंचते-पहुंचते कौन से रंग/ढंग का पटका पहनना पड़ जाये।


     घाबरु नका। मी लवकर येतो साहेब।

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