Ravi ki duniya

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Monday, July 28, 2025

व्यंग्य : जाली का बोलबाला

 


                                                           

 

      सन 1960 में देव आनंद साब की एक फिल्म आई थी ‘जाली नोट’ इस फिल्म में नायक जाली नोट के भंवर जाल को भेदता है। तब यह फिल्म खूब चली थी नया सबजेक्ट था। यदि आज जाली को लेकर फिल्म बनानी हो तो अनेक थीम मौजूद हैं। कोई थीम आपको लगता है पुरानी पड़ रही है, तभी कुछ नया धमाका ‘जाली’ का आ जाता है। यूं कहने को जाल, जाल दी ट्रैप, जाली हस्बेंड आ चुकी हैं। पर यदि देव आनंद  साब को आज इस थीम पर फिल्म बनानी होती तो आपकी सूचना को बता दूँ बहुत सारी वस्तुएँ, नग, नगीने अपने आस-पास ही हैं।

 

शुरू करते हैं उल्हास नगर से, फिर आता है मुंबई का अपना ही धारावी। यह तो इलाके की बात हो रही है हालांकि यहाँ आपको और भी आइडियाज़ मिल सकते हैं। अब ‘ट्राइड एंड टेस्टड’ केस लेते हैं। जैसे कि:- 

 

1.जाली पुलिस: आपने अभी तक सुना होगा कि फलां ट्रैफिक सिपाही अथवा फलां कॉन्स्टेबल पकड़ा गया। मगर इसमें मशगूल लोगों के साहस खुलते गए और वो अब इंस्पेक्टर, एस.एच.ओ, और आई.पी.एस. बन कर जाली वर्दी पहन-पहन ऑन लाइन और ऑफ लाइन लोगों को डर दिखा पैसे ठगने लगे हैं। ये वाली जमात अभी भी खूब सक्रिय है और आज भी आए दिन डिजिटल अरेस्ट के केस सुनने में आते रहते हैं। यह करोड़ों अरबों के टर्न ओवर का उद्यम है। इनवेस्टमेंट क्या है ? बस एक अदद जाली वर्दी। याद है वो नॉवल ‘वर्दी वाला गुंडा’ दुनियाँ बेवकूफ बनती है बनाने वाला चाहिए।

 

2.         जाली थाना: अब ये रोज रोज़ पुलिस बन कर लूटने के बजाय साहसी लोगों ने पूरा का पूरा पुलिस थाना ही जाली खोल लिया जहां बाकायदा चालान होते, फाइन जमा किए जाते, एफ.आई.आर. लिखी जाने लगी। हवालात वगैरह सब थी। उस थाने में फाइल और पुलिसवाले भाई लोग ड्यूटी पर आते, गश्त लगाते।  यह उसी तरह था जैसे कि कोई इन सब खुराफ़ातों के लिए दफ्तर ही खोल ले।

 

3.         जाली बैंक यह आइडिया खूब चला। लोग खुश हुए कि उनके दूर-दराज इलाके में भी बैंक (वह भी स्टेट बैंक) की ब्रांच खुल गई है। बाकायदा पैसे जमा किए जाते, निकाले जाते। और तो और मैनेजर बने ठग ने घोषणा कर दी कि बैंक में लोकल लोगों को भर्ती किया जाएगा अतः उस नाम पर अलग काफी पैसा इकट्ठा कर लिया। जोक यह है कि किसी ने उन्हें इतनी मुस्तैदी से काम करते देख और टाइम पर आने से शक पड़ गया और वे सब के सब पकड़े गए।

 

4.         जाली एम्बेसी: आपने जाली सी.बी.आई. टीम सुनी ही है अब तो उस पर ‘स्पेशल 26’ फिल्म भी बन चुकी है जो कि एक सत्य घटना से ही प्रेरित है। जाली पासपोर्ट, जाली वीज़ा सब पुराने पड़ गए हैं। अब तो एक सज्जन ने जाली एम्बेसी ही खोल ली और लोगों को फर्जी देशों के वीज़ा, सिटीजनशिप देने लगा और सालों-साल वह ऑपरेट करता रहा।

 

5.         जाली रेलवे भर्ती बोर्ड तो यह है बानगी जाली की। मुल्क़ जाली, मुल्क़ की एम्बेसी जाली, मुल्क़ के लिए वीज़ा जाली। पीछे रेलवे का पूरा का पूरा रिक्रूटमेंट बोर्ड ही जाली पाया गया। वे बाकायदा विज्ञापन देते थे, फीस लेते थे, परीक्षा लेते और नियुक्ति पत्र भी जारी करते। सब कुछ अच्छी ख़ासी रकम ले कर।

 

         आप से अनुरोध है कि आप अपना कीमती टाइम ये चिंदी चोरी में न लगाएँ कुछ बड़ा करें।

         जाली वीर बनें।

Tuesday, July 22, 2025

व्यंग्य: भारत एक शर्म निरपेक्ष राज्य


 

हम लोग बचपन से सुन रहे हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। साथ ही साथ देख रहे हैं कि धर्म को लेकर खूब हाहाकार मचता है। आए दिन दंगे-फसाद आम बात है। लोग बाग, जब दिल करे, लड़ने मरने को तैयार रहते हैं। ये कैसा धर्म निरपेक्ष राज्य है ? समझ नहीं लगता ! शुरू में इस टर्म को लेकर ही विवाद था कहने वाले कहते हैं कि धर्म निरपेक्ष बोले तो सेकुलरिज़्म जैसा कोई शब्द ही नहीं होता इंग्लिश डिक्शनरी में। यह सब मनगढ़ंत्त। खुद का बनाया हुआ है, खुद की सहूलियत के लिए। धर्म निरपेक्ष के अनेकानेक अर्थ निकल कर आ रहे हैं। सभी धर्मों के लिए समान सम्मान, सभी धर्मों से समान दूरी। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं। वह सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखती है आदि आदि।

  

अब बात करते हैं असल में क्या चल रेला है। वास्तव में तो भारत एक शर्म निरपेक्ष राज्य है। हमें देश हो या विदेश डिपार्टमेंटल स्टोर से चोरी करने में जरा भी झिझक नहीं होती, शर्म नहीं आती। हमें एक दूसरे को मारने काटने, प्लास्टिक ड्रम में डालने या पहाड़ी से धक्का देने, पति को साँप से कटवाने या ज़हर देने में कोई शर्म नहीं आती। हमें जी भर के लूट खसोट मचाने में तनिक भी शर्म महसूस नहीं होती। बस एक बार पता भर चल जाये कि अमुक चीज फ्री है। फिर चाहे वो शराब हो, खाना हो, पार्टी हो, कार हो, मकान हो। हम बिना किसी शर्म ओ लिहाज के उधार मांगते हैं। वैसा उधार जो कभी देना ही न पड़े। अगला भले दे के न भूले, हम ले कर भूलने के चैम्पियन हैं। हमें तनिक भी शर्म नहीं लगती। दरअसल शर्म हमें छू कर भी नहीं गयी।

  

हम बिना शरमाये झूठ बोल सकते हैं। दिन रात सुबहो शाम झूठ बोल सकते हैं। क्या घर क्या बाहर। क्या दोस्त यार क्या बीवी बच्चे सभी से आखिर हम शर्म निरपेक्ष राज्य हैं। अब वक़्त आ गया है कि संविधान में संशोधन कर प्रस्तावना में यह शब्द डाल देना चाहिए कि भारत एक शर्म निरपेक्ष राज्य है। आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है बस जहां धर्म निरपेक्ष लिखा है वहाँ ‘ध’ को ‘श’ से रिप्लेस भर करना है। जानते आप भी हो यही ज्यादा प्रासंगिक है और सही है। दिल पर हाथ रख कर बताएं क्या  सही मायनों में हम धर्म निरपेक्ष हैं ? जब नहीं हैं तो उसका ढिंढोरा क्या पीटना। हम लोगों को इस बात पर दौड़ा-दौड़ा कर जान से मार देते हैं कि वो अमुक धर्म को मानता है। हम जब दिल करे बस्तियाँ जला देते हैं। सन 1947 से देखें तो हमने अपने रिकार्ड पर इतने धब्बे लगा लिए हैं कि अब ये काला-काला नज़र आता है। तो मान क्यूँ नहीं लेते कि हम धर्म निरपेक्ष हैं ही नहीं। दरअसल हम भारतीय ही नहीं हैं। हम हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन पारसी हैं। हम दलित हैं, सवर्ण हैं। हम नॉर्थ इंडियन हैं, हम साउथ इंडियन हैं। हम नॉन रेजीडेंट इंडियन हैं। कोई गंदे से गंदा काम, कोई किसी की भी सुपारी, कोई कैसी भी बेईमानी, कैसा भी भ्रष्टाचार, कैसी भी लूटपाट को हम सदैव तत्पर रहते हैं। बस चार पैसे का फायदा हो रहा हो। कई बार तो फायदा न भी हो रहा हो पड़ोसी का या उस नालायक रिश्तेदार का नुकसान हो रहा है उतना ही बहुत है। हम परिवार के अंदर- बाहर किसी का भी क़त्ल करने को तैयार हो जाते हैं। हमें ज्यादा उकसावे की ज़रूरत नहीं। एक अदद अवैध संबंध, एक अदद ज़मीन का टुकड़ा हमारे मोटीवेशन को पर्याप्त है।

 

             हम हर दृष्टि से एक शर्म निरपेक्ष देश हैं

 

Monday, July 21, 2025

व्यंग्य: सरज़मीं बीवी भुलाने वाली


                                                     


 

 एक अदद शेर पेश है:-

 

           जिनके ख्याल में हम दुनियाँ भुलाए बैठे हैं

            उनकी बेख्याली को क्या कहें वो हमीं को भुलाए बैठे हैं  

 

 

               नेता जी पिछले दिनों गुजरात के दौरे पर गए और वे वहाँ अकेले नहीं थे सपत्नीक और स-बाईस कार थे। नेता का काफिला है जरा धूम से निकले! नहीं तो वो बात नहीं आती। लोगबाग तरह तरह के कयास अनायास लगाने लग जाते हैं। क्या हाई कमांड नाराज़ चल रहा है ? क्या दबदबा कम हो रहा है? आदि आदि। सो नेता जी एक किसी अनुसंधान केंद्र के निरीक्षण पर थे धर्मपत्नी प्रतीक्षालय में प्रतीक्षा करती रह गईं और नेता जी अपनी पत्नी को छोड़ बोलो, भूल कर बोलो, आगे बढ़ गए। कई किलोमीटर दूर जाकर उन्हें ख्याल आया कि पत्नी को तो यहीं छोड़े जाते हैं। पहले उन्होने सोचा 22 कारों में से किसी न किसी कार में सवार होंगी। बाकी 22 कार वाले भी यही सोचते रहे मेरी नहीं तो किसी और कार में होंगी।

 

              अब कोई इसे बड़े बनने, उन्नति करने का टोटका बता रहा है तो कोई कह रहा है कि वहाँ की मिट्टी में ऐसी सिफ़त है। मैं कोटा में पदस्थ था। वहाँ चंबल नदी बहती है और उसके बारे में मशहूर है कि चंबल नदी का पानी पीने के बाद श्रवण कुमार ने भी अपने माता-पिता को आगे ले जाने से मना कर दिया था। कालान्तर में मुझे ज्ञात हुआ कि लगभग लगभग सभी नदियों और झीलों के बारे में यही कहा जाता है। यह श्रवण कुमार ने कौन सा रूट लिया था जी ? इनकी किवदंतिया जगह जगह पर हैं। कुछ कहावतें तो बस यूं ही बना दी हैं जैसे यह वीरों की धरती है भाई तो और धरती क्या कायरों की है शायद ये अपनी ऐतहासिक धरोहर के वाहक हैं। सबने अपनी-अपनी सूट करती कहावतें उठा ली हैं। केरल वाले कहते हैं हम 'गाॅड्स ओन लैंड' हैं अब बगल के तमिलनाडु ने सोचा होगा जब बगल में 'गाॅड्स ओन लैंड' है ही है, तो हमें क्या करना है। कुछ लोग कहते थे कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा आता है वह फिर मुख्यमंत्री नहीं रह पाता। यह डर इस कदर बैठ गया या बैठा दिया गया कि मुख्यमंत्री लोग नोएडा आने से बचने लगे थे। यही बात किसी मंदिर, किसी तीरथ के लिए फैला दी जाती है कि वहाँ जाकर आपकी मनौती हंड्रेड परसेंट पूरी हो जाती है। लोग इस चक्कर में न जाने कहाँ कहाँ दौड़े जाते हैं। पेड़ों के फेरे लगाते हैं, साँप की पूजा करते हैं। यह अपनी वनस्पति और समस्त चराचर जगत से प्रेम बढ़ाता है मगर समस्या यह है कि हम बाकी दिनों में विकास के नाम  पर अंधाधुंध पेड़ काटते हैं। साँप को मारते फिरते हैं।

 

     लब्बोलुआब यह है कि नेता जी ने पत्नी भुलाई तो भुलाई कैसे ? भला ऐसा भी कहीं होता है ? अगर टोटका था तो यह तो निष्प्रभावी हो गया क्यों कि बात खुल गयी और आनन-फानन में पत्नी से उनका मिलन भी करवा दिया गया।

 

                 कुछ और टोटका करना पड़ेगा नेता जी !

 

 

Sunday, July 20, 2025

व्यंग्य : पुलिस-जज-जिम और फूल


                                                         


 

हाल के दिनों में एक केस खबर बना था जिसमें एक महामहिम के घर से जलते हुए नोट बरामद हुए थे। उनका कहना था कि यह उनका घर है ही नहीं बल्कि आउट हाउस है। अब आउट हाउस में होने वाली किसी गतिविधि के लिए वे कैसे ज़िम्मेवार हो जाते हैं। बात सही भी है। वडोदरा में एक अधिकारी के घर के आउट हाउस से शराब की भट्टी पकड़ी गई थी। अधिकारी महोदय का कहना था कि पहला, तो वे शराब पीते नहीं है ये बात सारा शहर जानता है दूसरे, आउट हाउस में कौन क्या कर रहा है ? उनको कैसे पता चलेगा ? जब पता नहीं चलेगा तो जिम्मेवारी भी उनकी नहीं।

 

               इसी तर्ज़ पर अब पता चला है कि पुलिस ने कोर्ट में शिकायत ही कर दी है कि एक जज साब, जो है सो, अपने जिम जाने का खर्च हम पुलिस वालों से उठवाते हैं। जिम जाएँ वो और जिम का बिल भर भर के पतले हो रहे हैं पुलिस वाले। मुझे पता नहीं इस बात के लिए जज साब क्या बचाव देंगे। मसलन वह कह सकते हैं कि उनके कोर्ट में वादी, प्रतिवादी किसी न किसी हैसियत में लोकल पुलिस की इनवाॅलमेंट रहती है। अब एक स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य दिमाग रहता है। अतः पुलिस के लिए यह जरूरी है कि उनके केस के टाइम पर जज साब का माइंड स्वस्थ्य रहे। नहीं तो क्या नहीं हो सकता। पुलिस वाले भी यही सब सोच- सोच कर बिल भरते रहे। यह एक प्रकार कि रियायत थी जो कि जज साब अपने इगलास में पुलिस को देते होंगे। अन्यथा पुलिस को इंन्सल्ट करने के लिए जज साब के पास बहुत से उपकरण होते हैं। मैंने स्वयं एक केस में देखा कि केस की बात तो बाद में, जज साब ने पुलिस वाले भाई साब को इसी बात पर खींच दिया कि तुम्हारी यूनिफ़ाॅर्म कहाँ है ? पहन कर क्यों नहीं आए ? तब उस पुलिस भाईसाब ने बताया हम खुफिया पुलिस हैं और हमें यह छूट है। फिर उन्होने दूसरा गोला दागा ये एक लूज पेपर  लहराते हुए क्या घूम रहे हो ?  किसी फाइल कवर में  लाना चाहिए। ये कोई तरीका है ? ये क्या तरीका है ? आदि आदि। पुलिस ने कहा भी है कि जज साब अपने इगलास में पुलिस को अपमानित करने से बाज नहीं आते थे।

 

इतना ही नहीं पुलिस का यह भी कहना है कि जज साब के यहाँ रोज सुबह पुष्प (फूल) जाते हैं। पूजा जज साब के यहाँ होती है मगर फूलों का महीने के महीने बिल हम पुलिस वाले देते हैं। अब यह तो ज्यादती हो गई बेचारे पुलिस वालों को कोई पुन्य भी नहीं मिल रहा होगा, अब भगवान को क्या पता चल रहा होगा कि फूल निकटवर्ती थाने से आए हैं अतः इसका कुछ पुण्य तो एस. एच.ओ. महोदय और उनकी टीम को भी दिया जाये। आखिर महीने भर का अकेले फूलों का बिल तीन हज़ार आता है।

 

 

    अब जब जिम ने जज साब का ज़िस्म फिट कर दिया तो जज साब को और भी सूझने लगा। जैसे कि क्यों न क्रिकेट खेला जाये। फौरन से पेश्तर थाने में खबर करा दी गई कि जज साब अब से क्रिकेट भी खेला करेंगे अतः उनके लिए मेरठ से तुरंत क्रिकेट के बल्ले और ग्लव्ज का इंतज़ाम किया जाये। बिल था कोई 21 हज़ार रुपये का। बस यही एक पल था जब पुलिस ने बल्ले-बल्ले कहने से इन्कार कर दिया।

 

कोर्ट ने बात की नज़ाकत को समझते हुए सुना है  जज साब का ट्रांसफर कर दिया है दूसरे कोर्ट में। पता नहीं अब उनकी पूजा का क्या होगा ? क्या पूजा पुष्पविहीन हो जाएगी या वो जो एक भजन है "पूजा की मैं बिधि न जानू... प्रभु जी मेरे अवगुण चित्त न धरो" तर्ज़ पर चलती रहेगी। क्रिकेट का क्या होगा? उन ग्लव्ज का क्या? और तो और जिम की मेम्बरशिप का क्या होगा ? इन सबसे बढ़ कर एक सवाल जज साब की बॉडी का क्या होगा ?

Friday, July 4, 2025

चिर-युवा शतायु देव आनंद (26.9.1923--3.12.2011) (अपने फेवरिट नायक को एक ट्रिब्यूट)

 





 

           देव साब का जन्म 26 सितंबर 1923 को गुरदासपुर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता पिशोरीमल एक सफल वकील थे। वे चार भाई, पाँच बहन थे। उनके नॉन-फिल्मी भाई थे मनमोहन आनंद जो वकील थे। बहनें सावित्री, शील कांता, कान्ति, लता, ऊषा  हैं।  अभिनेता विशाल आनंद, (..चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना..) अरुणा (परीक्षित साहनी की पत्नी)  सावित्री की संतान हैं। ।  शेखर कपूर, सोहैला कपूर  और नीलम (नवीन निश्चल की पत्नी) शील कांता की संतान हैं।

   

            देव साब ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ मिल कर 1949 में फिल्म निर्माण संस्था नवकेतन की स्थापना की. केतन (आनंद) चेतन आनंद के बेटे का नाम है।

 

         देव साब की दो खासियत जो किसी का भी दिल मोह लेंगी। एक तो वह अपना फोन (लैंडलाइन) खुद उठाते थे दूसरा, अपने खत खुद अपने हाथ से लिखते थे। वो इतना आहिस्ता बोलते और सॉफ्ट स्पोकन थे कि आपको जरा भी एहसास नहीं होने देते थे आप कितनी बड़ी हस्ती से मुखातिब हैं। देव साब अंग्रेजों के जमाने के इंगलिश ऑनर्स स्नातक थे लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से। जब उनकी फिल्म ‘हम दोनों’ का रंगीन वर्जन तैयार हुआ तो उन्होने खुद पास भेजा और मेहमानों को रिसीव करने स्वयं गेट पर थे। अपने कार्य अर्थात फिल्मों के प्रति इस कदर दीवानगी और उनकी प्रतिबद्धता बेमिसाल थी। उनकी जैसी विशाल लाइब्रेरी विरले ही किसी फिल्म वाले के पास होती। हरदम चुस्त दुरुस्त तैयार रहते और दिखते थे। केज्युल दिखना-रहना क्या होता है उन्हें नहीं पता था न आपने कभी उनकी कोई फोटो केज्युल लिबास में देखी होगी। अगर मफ़लर राजकुमार ने लोकप्रिय बनाया तो स्कार्फ देव साब की खासियत थी यूं वो टाई और सूट में बहुत जँचते थे। फिल्मों में भी उनकी छवि सदैव एक ‘अर्बन-यूथ’ शहरी बाँके नौजवान की रही। आगामी 26 सितंबर 2023 को वे 100 बरस के हो जाते। उनके जन्म दिन पर लोगों का तांता लग जाता था। क्या कारोबारी, क्या फिल्म वाले,  होटल वाले, क्या मित्र लोग सब आ जुटते। एक बार मुझे याद है वे अपना जन्मदिन मनाने मुंबई के ‘सहारा सिटी’ जा रहे थे उनके मित्र सहाराश्री के आग्रह पर।

 

    ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ उनकी आत्मकथा है। जो 2007 में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जी ने रिलीज की थी देव साब और मनमोहन सिंह जी का जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है।

 

                   


           पदमभूषण (2001) देव साब कितने महान और प्रतिभाशाली आइकॉन थे इस बात का पता इससे लगता है कि जब 2013 में भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष होने पर भारत सरकार के डाक विभाग ने जो स्टांप जारी की उस पर देव साब का चित्र था। देव साब को दादासाहेब फाल्के (2002) पुरस्कार देने से, पुरस्कार की इज्ज़त अफजाई हुई। वे सात बार फिल्मफेयर एवार्ड के लिए नामित किए गए और तीन बार यह उन्हें मिला साथ ही लाइफ टाइम अचिवमेंट अवार्ड भी उन्हे मिला (1993)

 

         1946 मे रिलीज हुई पी एल संतोषी की ‘हम एक हैं’ से लेकर चार्जशीट (2011) तक 112 फिल्मों में काम किया। जिसमें से 33 फिल्मों का निर्माण/निर्देशन भी उन्होने स्वयं किया। अपनी 13 फिल्मों की कहानी भी उन्होने खुद लिखी। किशोर भानुशाली से पहले सेवआनंद देव साब के ‘लुक-एलाइक’ रहे हैं।

 

      देव साब का निधन 88 वर्ष की आयु में 3 दिसंबर 2011 को लंदन के ‘वाशिंगटन मेफेयर’ नामक होटल में हृदयगति रुक जाने से हुआ। देव साब ने सुरैया के साथ 7 फिल्में, वहीदा जी के साथ 7 फिल्में, हेमामालिनी के साथ 9 फिल्में और मधुबाला के साथ 8 फिल्मों में काम किया। 6-6 फिल्में ज़ीनत अमान और गीता बाली के साथ कीं। देव साब को संगीत की, गानों की बहुत समझ थी। रिकॉर्डिंग के समय खुद मौजूद रहते। उनकी फिल्मों का संगीत एकदम नायाब, गीत एक से बढ़ कर एक। कितनी ही नई प्रतिभाओं को उन्होने मौका दिया। उनका कैरियर संवारा।

                                           


        

       उनके स्विट्ज़रलैंड में जन्मे और अमेरिका से एम.बी.ए. शिक्षित बेटे सुनील आनंद (1956) अविवाहित हैं। वे अब नवकेतन स्टुडियो और आनंद रिकॉर्डिंग स्टुडियो का काम संभाल रहे हैं।  देव साब की एक बेटी है देविना। देविना की शादी बोनी नारंग से हुई। देविना की एक बेटी है जिना नारंग जिसका जन्म 1986 में हुआ और वह अपने पिता की तरह ही पाइलट बनी है। जिना एक फैशन फॉटोग्राफर भी है और शॉर्ट फिल्में बनाती हैं। उनका विवाह प्रयाग मेनन से हुआ है जो स्वयं भी फैशन इंडस्ट्री से हैं।

 

       देव साब की पत्नी कल्पना कार्तिक (मोना सिंह) अपना एकाकी जीवन मुंबई/ऊटी में बिताती हैं।

 

        नायक आएंगे जाएँगे.. देव आनन्द अपनी फिल्मों के माध्यम से सदैव हमारे बीच रहेंगे। जोश और हमेशा जवाँ दिल का दूसरा नाम देव आनंद था, है और रहेगा।