Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Tuesday, January 7, 2025

व्यंग्य: राजा भैय्या योजना

 


 

         आजकल पार्टियां जितनी भी योजनाओं की घोषणाएँ कर रही हैं सब बहनों या मईय्या से संबन्धित हैं, उनके लिए हैं। बेचारे ग़रीब भईय्या लोग को कोई पूछ ही नहीं रहा है। भाई है तो बहन है। मगर नहीं। जिसे देखो वही कहीं लाड़ली बहना, कहीं प्यारी बहना, कहीं मईय्या सम्मान निधि, कहीं बेटी की पढ़ाई लिखाई तो कहीं उसको साइकिल, कहीं स्कूटी। अब भईय्या लोग कहाँ जाएँ ?

 

         मेरा सभी राजनैतिक पार्टियों से अनुरोध है कि आपको असल में 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' सफल बनाना है और प्यारी बहना को सार्थक करना है तो राजा भाईयों का भी तो कुछ ख्याल करें। नहीं तो प्यारी बहना के सब पैसे लेकर इस लाड़ले भाऊ ने जुआ और शराब में लुटा देना है। क्या आप, क्या आई-वडिल क्या ताई, क्या लाड़ली बहन सब हाथ मलते देखते रह जाएंगे। ऐसा नहीं होना चाहिए। आप को समानता लानी चाहिए। ये क्या ? जो योजना आ रही है वो या तो मईय्या लोग के लिए है या फिर बहना लोग के लिए। अब ये पति, ये भाई लोग कहाँ जाएँ ? क्या वे किसी और देश में जाकर बस जायें। जहां उनके लिए भी कोई योजना चल रही हो।

 

                                  पहले ही इन बहनाओं ने, आई मीन पापा की परियों ने सारे शहर में धमाल मचा रखा है। मनमर्जी कर रही हैं। बोले तो मनमानी कर रही हैं। जिसे देखो उसे फंसा देती है। कभी दहेज के मामले में। कहीं मानसिक उत्पीड़न में। अब वो भी बेचारा किसी का भाई है। भाऊ है। अता काय कराय चा है ?

 

        अब आप ही हम को उनका ग़ुलाम बनाने को तुले हैं तो कोई क्या करे ? मईय्या अलग ताने मारती है "दिन भर घर में बैठा-बैठा रोटी तोड़ता रहता है कोई  काम-धंधा क्यूँ नहीं करता ?" अब उन्हें कौन समझाये देश पर कितना संकट चल रहा है। सेंट्रल विस्टा बन रहा है। भारत पुरानी ग्लोरी को पा रहा है। सनातन स्थापित हो रहा है। पाकिस्तान थर-थर कांप रहा है। मगर वो ये बातें नहीं समझती। वो कहती है मुझे कोई नौकरी करनी चाहिए। मैंने बताया उसको कि नेता जी ने कहा है 'नौकरी लेने वाले नहीं नौकरी देने वाले बनो'। इसी तर्ज़ पर मैं जल्द ही एक अपने 'लाइक माइंडड' फ्रेंड्स का गिरोह बोले तो ग्रुप बना रहा हूँ। अब कुछ छिनैती, कुछ डकैती, कुछ ऑन-लाइन स्कैम, कुछ डिजिटल अरेस्ट किया करेंगे। जो इसमे लगे हैं उनकी लाइफ स्टाइल बदल गई है। अब वो ना बीड़ी पीते हैं न देसी पीते हैं। सिगरेट और अंग्रेजी विस्की पीते हैं। कुछ- कुछ अंग्रेज़ी भी बोलने लग पड़े हैं। मैंने भी ये हैक करने वाला और ओ.टी.पी. वाला बिजनिस ही करना है। जब तक वो नहीं होता तब तक सरकार को कुछ तो अपने लाड़ले भाऊ के वास्ते भी करना चाहिए। सब ओर पापा की परियों, प्यारी बहनाओं के लिए होगा तो भाऊ लोग कहाँ जाएँगे ?

 

                            मेरा सभी पाॅलिटिकल पार्टीज़ से अनुरोध है कि हम भाईयों को न भूलें। हम ही आपके लिए मतदान के समय एक-एक भाई बीस-बीस वोट डालता है। झूठी सच्ची बातें बना-बना कर मतदाताओं को आपकी पार्टी को वोट देने के लिए बूथ तक लाता है। जो नेता जी रटा देते हैं, वही नारे हम लगाते हैं। आपके लिए लाठी खाते हैं, कहीं-कहीं तो जान पर खेल जाते हैं। आप जब कहते हो जौन सी यात्रा पर जाने को कहते हो उस पर जाते हैं। काँवड़ हो, कुम्भ हो। हम हाजिर मिलते हैं, बहना नहीं। अतः हमारे लिए भी कुछ जल्द से जल्द सोचा जाये।

आप ये ना सोचें कि नौकरी मिलने पर हम आपको छोड़ देंगे। कतई नहीं। हम आपके एक काॅल पर हाजिर मिलेंगे। आप हमको पन्ना प्रमुख से ज्यादा प्रमुखता से हर जगह पाएंगे। फौरन से पेश्तर 'प्यारे भाई' योजना की घोषणा करें प्लीज़ और कुछ नहीं तो गुटखे का खर्चा पानी तो निकले। ये हमारे शहर का 'यूथ' नाहक ही अधीर हो रहा है। हम लोग समुचित तौर पर ट्वीट कर रहे हैं और ट्रोल भी कर रहे हैं। आपके वाट्स-अप मैसेज भी हम खूब चारों ओर फैला रहे हैं। अतः अब हमारा टर्न है। हम भी आपकी ही संतान हैं आपकी ही इन प्यारी बहनाओं के नल्ले भाई हैं। आप नाम कुछ भी रखो कुछ भ्रातृवृति हमें मिलनी ही चाहिए। हम आपके 'फुट सोल्जर' हैं। हमारा भी कुछ ख्याल रखा जाये बस यही मन की बात आपसे करनी थी।

                                                        

                        भूल चूक माफ।

Monday, January 6, 2025

व्यंग्य: अब कुत्तों के पीछे भागेंगे टीचर

 


                                                           


 

                 देखिये टीचर, जो है सो, समाज को दिशा देता है। वह कितने सारे काम पढ़ाई के अलावा करता है, कोई हिसाब नहीं है। सोचो जनगणना करानी हो, इलेक्शन कराना हो, बच्चों को टीके लगवाने हों या पोलियो की दवा पिलानी हो। टीचर ही इन सब कामों को सम्पन्न कराते हैं। ये उन कामों से इतर हैं जो स्कूल उनको सौंपता है। स्कूल वाले  पढ़ाई के सिवाय भी दुनियाँ भर के काम इन्हीं टीचर से कराते हैं। लेकिन हद तो तब हो गई जब एक सूबे की सरकार ने अब इन टीचर को कुत्ते भगाने का काम भी दे दिया है। सोचा होगा बच्चू ! बच्चे तो बहुत भगा लिए अब कुत्ते भगाने के काम में लग जाओ।

 

            यूं देखा जाये तो टीचर को तजुर्बा होता है। ऐसा क्या कहा जाये कि सब 'डिस्पर्स' हो जाएँ। इस मामले में वो चाहें तो घंटी भी बजा सकते हैं जैसे कि पूरी छुट्टी हो गयी हो। क्या पता कुत्ते उसे सुन कर दौड़ जाएँ। प्रयोग के तौर पर वो टैडी बेयर की तरह शेर के रूई भरे पुतले लेकर निकलें। शेर की दहाड़ या तो अपने मुंह से खुद निकालें या फिर मोबाइल में रिकॉर्ड कर लें ज्योग्राफिक चैनल से। आप इसे मज़ाक ना समझें मैं तो आपका काम आसान कर रहा हूँ।  हो न हो सरकार ने सोचा होगा ये टीचर लोग शरारती आवारा बच्चों को लाइन पर ले आते हैं ये तो सीधे सादे कुत्ते हैं। भले थोड़े आवारा ही सही मगर अधिक दिक्कत पैदा नहीं करेंगे। टीचर चाहें तो उनमें से ही किसी को मॉनिटर बना सकते हैं। या फिर सब को कान पकड़ कर फुटपाथ पर खड़ा करने की सज़ा दे सकते हैं। अब वो पहले से ही बेचारे कुत्ते हैं सो उन्हें मुर्गा बनने की सज़ा तो दी नहीं जा सकती।

 

          सरकार भी ना जाने क्या सोचती है कि ये टीचर ही एक फालतू क़ौम है हिंदुस्तान में। अब उन्हें कौन समझाये कि सभी टीचर ट्यूशन की दुकान नहीं चलाते। बहुत हैं जो ईमानदारी से स्कूल में पढ़ाते हैं। अब आपका दिया ये काम भी वो पूरी ईमानदारी से करेंगे। मगर ये कोई वन टाइम काम तो है नहीं। नई-नई नस्ल नई- नई पीढ़ी आती रहेंगी। ये क्या परमानेंट काम उनके जिम्मे आ गया है। यदि ऐसा है तो उनको 'डॉग-एलाउंस' मिलना चाहिए। और एक लाठी भी एलाॅट करनी चाहिए। अब इसकी खरीद में कोई लाठी घोटाला मत कर देना। मेरे भारत की उर्वरा भूमि पर पहले ही क्या घोटालों की कमी है। एक घोटाला कुत्ते का नाम भी सही। यूं अभी तक उनके नाम कोई कायदे का घोटाला आया भी नहीं है। सिवाय उनकी नसबंदी के नाम पर मिलने वाली राशि में हेरफेर के। एक बात और है, इसका भी खुलासा अभी हो जाये तो ठीक है, देसी कुत्ते भगाने का काम जहां सरकारी स्कूल के टीचर को मिलेगा वहीं जो विदेशी नस्ल के कुत्ते आई मीन डाॅगीज़ हैं उनको पब्लिक स्कूल /इंग्लिश स्कूल के टीचर ही हटाएँगे। वे उनको इंग्लिश में अच्छे से समझा पाएंगे। "नो डाॅगी !  गुड डाॅगी ! डोंट डू दिस" टाइप। जहां तक देसी कुत्तों की बात है वो तो पिट कर ही भागेंगे। बैड मैनर्स वाले जो होते हैं। बातों से कहाँ मानने वाले हैं।

 

           कुत्ता इंसान का वफादार दोस्त है। वह ज़रूर इंसान की मजबूरी समझेगा और पूरा-पूरा सहयोग करेगा। चाहे तितर-बितर होना हो या फिर घोटाला करना हो।

 

             टीचर-टाॅमी एकता ज़िंदाबाद!

व्यंग्य : देर से मिली रोटी तो दूल्हा बारात समेत भाग गया

                                       


                  

 

 

       मेरे भारत महान के एक सूबे में निक़ाह में रोटी देर से आने से दूल्हा बारात समेत भाग गया। देखिये ! लोग निक़ाह के लिए बेसबरे होते सुने होंगे आपने। पता नहीं दूल्हे समेत पूरी बारात ना जाने कब से फाके कर रही होगी कि निक़ाह का दावतनामा है, खूब खातिरदारी होगी। मगर ये देर तो जानलेवा साबित हुई। सब्र दूल्हे का भी और पूरी बारात का भी जवाब दे गया। सब सीधे-सीधे भाग खड़े हुए। बेचारे लड़की वाले देखते रह गए। क्या ऐसा भी होता है? अभी तक दान दहेज के लिए बारातें लौटती सुनीं थीं ये तो महज़ रोटी के लिए बारात वापिस चली गई। दूल्हे को दूल्हे राजा शायद इसीलिए कहा जाता है कि उसके नाज़-नखरे राजाओं जैसे होते हैं। उस एक दिन के लिए तो होते ही होंगे। सब उसका नाज़ नखरे उठा रहे होते हैं। वो अलग इठलाता घूमता है। एक दिन का राजा जो है। ससुराल में तो वो एक्स्ट्रा केयर की उम्मीद कर रहा होगा कि उसे पलकों-पलकों उठाए रहेंगे। मगर ये क्या रोटी जैसी चीज़ के लिए भी इंतज़ार करवाया जा रहा है वो भी इतनी देर कि सब का सब्र जवाब दे जाये। यूं देखा जाये तो बेचारे लड़की वाले को और हज़ार काम होते हैं। कैसे तैसे वो रोटी का इंतज़ाम कर रहा होगा। पता नहीं बारात कितनी बड़ी थी। कुछ भी हो यह कुछ ज्यादा ही कर दिया दूल्हे राजा ने। ये राजाओं के चलन नहीं। ना जाने कहाँ से इतने कब के भुक्खड़ लोग जमा थे।

 

          दूल्हे ने हो ना हो ये सोचा होगा कि जब यहाँ ही रोटी के लिए इतना तरसाया जा रहा है तो ना जाने शादी के बाद उसे खाना मिलेगा भी या नहीं ? बीवी खाना बनाया भी करेगी या नहीं ?  बनाएगी तो क्या टाइम पर मिल पाया करेगा? मुझे लगता है सब भूख से बिलबिला रहे होंगे जो इतना संगीन कदम उठाया।

 

        यह बात पूरी की पूरी तब समझ आ गई जब पता चला कि दूल्हा और बारात अपने घर नहीं लौटे बल्कि अपने एक रिश्तेदार के यहां चले गए और वहाँ अपनी एक रिश्तेदार से निक़ाह कर लिया। मुझे तो लगता है वो रिश्तेदार को कह कर गया होगा कि मैं अभी आता हूँ। जरा वहाँ की रस्म कर आऊँ। लगता है यहाँ रोटी ठंडी हो रही थी। इसका मतलब सब प्री- प्लान था। वरना रिश्तेदार के यहाँ इतनी तादाद में रोटी कैसे तैयार थी ? इसका मतलब शादी के बाकी इंतज़ामात भी तैयार थे। ये लोग किसी न किसी बहाने की तलाश कर रहे होंगे और मौका मिलते ही सब निकल भागे। मैंने सुना था आदमी जीता है तो रोटी के लिए मरता है तो रोटी के लिए। अब तो निकाह भी रोटी से लिंक हो गया है जैसे आजकल आधार कार्ड सिवाय सुलभ शौचालय के अलावा सबसे लिंक हो गया है। जल्द ही सुलभ शौचालय वाला भी कार्ड देख कर ही जाने देगा।

 

         यूं मेरे भारत महान में ये रिवाज रहा है कि आदमी सीधे-सीधे यह नहीं कहते कि उनको शादी करनी है बल्कि ये कहते सुने जाते हैं कि रोटी-पानी की बड़ी दिक्कत है। होटल में खा-खा कर या नौकरों के हाथ की रोटी खा- खा कर सारी सेहत बिगाड़ ली है। भारत में दुल्हन मुख्य: दो कारणों से लायी जाती है उसमें पहला तो यही रोटी का है दूसरा लड़के लोग को सीधा करने, लाइन पर लाने, बोले तो लड़के को सुधारने वास्ते। अब सोचो जिसे माँ-बाप नहीं सुधार पाये उसे दुल्हन सुधारेगी। सच तो ये है उस बेचारी की ज़िंदगी भी इसी में खज्जल होती है। अगला तो कभी-कभी कोई विरला ही सुधरता है। हमारे यहाँ शादी एक सुधारगृह की तरह ट्रीट की जाती है।

 

Saturday, January 4, 2025

व्यंग्य: मेरे स्कूल के नीचे मन्दिर है

 

 

                 यूं तो स्कूल को अपने आप में एक मन्दिर कहा जाता है। बाल मन्दिर, विद्या मन्दिर, सरस्वती मन्दिर आदि। किन्तु इससे तो स्कूल की बस वो निर्धारित छुट्टियाँ ही मिल पातीं हैं। आजकल क्या टीचर, क्या विद्यार्थी दोनों ही पार्टी परेशान हैं। सिर्फ और सिर्फ एक ही पार्टी खुश है और वो हैं प्राइवेट स्कूल के संचालक/मालिकान।

 

                 अब देखो मुझे स्कूल की आधी छुट्टी और पूरी छुट्टी की घंटी, जो है सो किसी मन्दिर की घंटी से कम नहीं लगती। स्कूल की असेंबली में तो प्रार्थना होती ही है। प्रार्थना क्या अब तो पूरा-पूरा कीर्तन सा ही होता है। इससे मेरा विश्वास और गहराता जा रहा है कि हो न हो स्कूल के नीचे जरूर कोई ना कोई मन्दिर है। हमारे टीचर पढ़ाने से ज्यादा इस बात के उपदेश देते हैं कि हमें अपने माता-पिता का गुरुजन का आदर सम्मान करना चाहिए। उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए आदि आदि। यूं वो ये सब इसीलिए करते हैं कि हम उनसे ट्यूशन पढ़ने लग जाएँ। सबने किसी न किसी रूप में कोचिंग खोल रखी है। कोई प्रैक्टिकल में ज्यादा नम्बर दे सकता है तो कोई पिकनिक का मास्टर है। आजकल पढ़ने के अलावा और ना जाने क्या क्या सिलेबस में आ गया है। अब भगवान जाने सिलेबस में है या ये भी स्कूल वालों की कोई चाल है। कभी कूढ़ा बिनवाते हैं कहते हैं सफाई रखनी चाहिए, कभी ताल-तलैय्या, कभी यमुना के किनारे साफ कराने ले जाते हैं कि नदियां हमारी माता हैं उनको साफ रखना जरूरी है। भई ! तो उनसे साफ कराओ ना जो इसे दूषित करते हैं ले दे कर हम को ही पकड़ लेते हैं। इस सब में हमारे मास्टर लोग भी पीड़ित हैं जनगणना का काम हो, चुनाव का काम हो (जो आजकल आए दिन होते रहते हैं, कभी विधान सभा के, कभी लोक सभा के) या फिर पोलियो की दवा पिलानी हो हमारे मास्टर जी ही सब में जोत दिये जाते हैं।

 

               खैर ये विषय से भटकना होगा। आजकल जब जगह-जगह खुदाई हो रही है और खुदाई में कुछ ना कुछ निकल भी रहा है तो मुझे पक्का यक़ीन है कि हमारे स्कूल के नीचे भी प्राचीन मन्दिर है। हम लोग जितना भगवान को याद करते हैं खासकर परीक्षा के दिनों में उतना तो मन्दिर के श्रद्धालु भी भगवान कि सुधि नहीं लेते होंगे। दूसरे रिजल्ट वाले दिन हम भगवान को बहुत ही याद करते हैं। मेरा इस फील्ड में लगे लोगों से, पुरातत्व वालों से और एन.जी.ओ. से निवेदन है कि प्लीज आकर मेरे स्कूल का चप्पा-चप्पा खोद डालें। कुछ ना कुछ मन्दिर के अवशेष जरूर निकलेंगे। जब तक खुदाई चले दो-चार साल तब तक पढ़ाई मुल्तवी। पढ़ाई ज्यादा जरूरी है या अपनी राष्ट्रीय धरोहर का रखरखाव? यूनेस्को वालो ! सुन रहे हो ? जल्दी आओ और इस इलाके को अपने कब्जे में ले लो। उसके बाद इसमें अनाॅथराइज्ड लोगों जैसे मास्टर, प्रिंसिपल आदि की एंट्री पर फुल-फुल बैन लगा दिया जाये। खबरदार ! जो इस इलाके के आसपास भी फटके। जहां तक हमारी पढ़ाई का सवाल है आप टेंशन ना लें। हम घर पर ऑन लाइन पढ़-पढ़ा लेंगे और नहीं भी पढ़े तो हरकत नहीं। कौन सी नौकरी या नौकरी की परीक्षा हमारी वेट कर रही हैं। मैंने तो अपना आई.पी.ओ. खोल लेना है। नहीं समझे ? इंटरनेशनल पकौड़ा ऑर्गनाइजेशन।