Ravi ki duniya

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Friday, November 1, 2019

व्यंग्य: मालिश


                                      बहुत ही संतोष की बात है की वह नादान गुमराह शातिर लड़की गिरफ्तार कर ली गई है और घसीटते हुए थाने ले जाई गई है। उसे अब पता लगेगा महान आत्माओं पर अंड बंड आरोप लगाने का नतीजा क्या होता है। अच्छा ही हुआ जो गिरफ्तारी के वक़्त उसे चप्पल भी नहीं पहनने दी। उसे भी पता लगाना चाहिए कानून के हाथ कितने लंबे होते हैं। ‘ऊपर वाले’ के यहाँ देर है अंधेर नहीं। अच्छा होता अगर इस लड़की के पूरे के पूरे खानदान को गिरफ्तार कर काल-कोठरी में डाल दिया जाता। क्या यही संस्कार दिये हैं अपनी बेटी को कि सूर्य के समान दीप्तिमय महान आत्मा संत पुरुष पर अंटशंट आरोप लगाती फिरे।
                                   अरे जड़मति ! आदरणीय गोपाल प्रसाद व्यास जी ने अपनी कविता ‘आराम करो’ में स्पष्ट व्याख्या की है “आराम शब्द में राम छिपा है आराम करो..आराम करो” उसी भांति मालिश में ईश छिपा है मालिश करो...मालिश करो। क्या हो गया जो इस नश्वर, बूढ़े जर्जर शरीर की तनिक मालिश कर दी तो ? मेरे भारत महान में चरण स्पर्श, चरण वंदन, चरणामृत, मस्तक स्पर्श, की दीर्घ सनातन परंपरा है। सिर पर हाथ रखना , पीठ पर हाथ रखना आदि कहावतें और मुहावरे अकारण ही नहीं बने हैं।

                                              वे कितनी ही शिक्षण संस्था चलाते हैं। ज्ञान के सागर हैं। करुणानिधान हैं। शाश्वत आनंद के स्रोत को जब-जब तनिक भी मलिन करने का प्रयास किया गया है उसका यही परिणाम रहा है। इतिहास उठा कर देख लें। अभी धर्म उठा नहीं है पृथ्वी से। अभी पृथ्वी रसातल में नहीं गई है।
                                             
                                             मुझे लगता है हो न हो ये लड़की किसी शत्रु देश की एजेंट होगी। इसे विशेष तौर पर प्लांट किया गया है ताकि वो पवित्र भारत के पावन संत समाज पर लांछन लगा सके। इसे ये नहीं पता कि आसमान का थूका अपने पर ही गिरता है। और वो ही बात निकली अब ले गई न पुलिस पकड़ के। जिस संत शिरोमणि ने भी कहा एकदम सच कहा कि ये ‘विषकन्या’ है। अरे भई ! नहीं करनी थी मालिश मना कर देती। ‘संतन को का मालिश से काम....’ और फिर संतन को क्या मालिश करने वालों की कमी थोड़े है। धरती मालिश करने वाले वीरांगनाओं से खाली हो ली क्या? नहीं ! कदापि नहीं ! लैन लग रही सै लैन। इत्ते सारे बाबा जेल में डाल दिये हैं उनके आश्रम में उनकी आश्रित बेचारी सब की सब निराश्ररित, बेरोजगार इत-उत हाँड़ रहीं सै। वो तो स्वामी जी की असीम कृपा थी। पर इस अभागिन के नसीब कहाँ ? इब सड़ेगी जेल में तब बेरा होगा कि पुण्यात्माओं पर ऐसे ओछे-गंदे आरोप लगाने का फल इसी जनम में तुरत-फुरत ही मिल जाये है।
                                                मुझे तो लगता है इसी ने स्वामी जी पर कोई वशीकरण सम्मोहिनी डाली होगी। भारत में पुराने समय से मेनका – उर्वशी – रंभा की परंपरा चली आ रही है संतों की तपस्या भंग कराने को। कुछ कुछ पुलिस खोज तो ली है कि मात्र तुच्छ सहस्र मुद्राओं के लिए इस बाला ने ऐसी घिनौनी मुद्रा अपनाई थी। कलियुग है जी सरासर कलियुग।
                                            मैं तो चाहूँगा कि इसके घर, गली, मोहल्ले और शहर में 27 नहीं बल्कि 72 – 72 नोटिस / सम्मन चस्पा कर दिये जाएँ। इसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाये इसने पूरे के पूरे संत समाज को बदनाम करने की चाल चली है। लगे हाथों इसका कोई विदेशी कनैक्शन भी ढूंढ निकाला जाये। विदेशी मुद्रा अथवा नोटबंदी के जमाने के नोट या फिर विस्फोटक सामग्री भी हॉस्टल के कमरे से बरामद कराई जा सकती है। एवरीथिंग इज़ फेयर इन लव एंड मालिश।
अब इससे कोई पूछे कानून की पढ़ाई क्या ये इस बात के लिए कर रही थी कि चश्मे में लगे कैमरे से ग़ैर कानूनी ढंग से परम आदरणीय प्रतापी स्वामी जी की वस्त्रविहीन छवि ऐसे प्रस्तुत कर उनकी सार्वजनिक रूप से छीछालेदर करे। यह समाज में विघटन उत्पन्न करने की साजिश है इस पर भी दो-चार दफाएं तो होंगीं ही उनको भी लगा छोड़ा जाये। मेरी भारतीय पुलिस में पूरी-पूरी आस्था है।
                                                    दरअसल हमें समाज के लिए आदर्श उपस्थित करना है ताकि इसके उपरांत कोई भी मुंह उठा कर संत समाज को बदनाम करने की नापाक कोशिश न कर सके।
                                            
                                             इस बीच स्वामी जी को पूरे गाजे-बाजे के साथ आदर-सत्कार पुष्प वर्षा के साथ जय घोष करते हुए उनके आश्रम में पहुंचाया जाये ताकि वे विद्या के प्रचार प्रसार में, नारी उत्थान के पुनीत कार्य में बिना अवरोध, अविलंब पुन: 3 टी के साथ संलग्न हो सकें। 3 टी नहीं समझे ? तन-तेल-तृप्ति

व्यंग्य: सफाई दिवस-- मेरे शहर में

                    

                                        ज़िंदगी में कूढ़े का बहुत महत्व है। प्राचीन समय से ही घूरे की पूजा का रिवाज है। कूढ़े से जैविक खाद बनती है। इधर देखता हूँ कूढ़े के चलते बहुतों की राजनीति चल निकली है। जगह-जगह बाल्टी भर-भर कर पहले कूढ़ा लाया जाता है। लंबे हैंडल वाली डिजायनर्स झाड़ू। आजकल इसके भी अनेक नाम हो गए हैं ब्रूम, वाईपर आदि। स्वच्छता दिवस के लिए देसी झाड़ू में अच्छा चिकना सा हैंडल (डंडा) लगा कर एक तरह की ‘हाइब्रिड’ झाड़ू तैयार की जाती है। अब क्यों कि झाड़ू सैलिब्रिटीज के हाथों तक पहुँचने से पहले न जाने कितने और कैसे कैसे ‘डर्टी’ हाथों से गुजरती होगी, इन्फेक्शन का खतरा रहेगा अतः सुंदर, सॉफ्ट महंगे मैचिंग ग्लव्स भी चाहिये होते हैं। सभी सैलीब्रीटीज़ डिज़ाइनर्स पोशाक में आए हैं। कलफ लगी लक-दक कड़क। महिला नेत्रियां तो भाग लेने सीधे ब्यूटी पार्लर से भागते-भागते आ रही हैं। वे सब महंगी महंगी एस॰यू॰वी॰ और लंबी लंबी ए॰सी॰ कारों से पृथ्वी पर एक-एक करके पल्लू संभालते, ड्रेस ठीक-ठाक करते अवतरित हो रही हैं। मंद-मंद सौम्य मुस्कान के साथ। पता नहीं कौन किस एंगल से फोटू खींच रहा हो।

                       सभी आकर मुख्य अतिथि को घेर कर उनके ओर-पास खड़े हो जाते हैं। तभी पहले से नामित एक सफारी सूट धारक सफाईकर्मी कूढे को इस तरह बिखेर देता है कि सबके हिस्से में दो-दो, तीन-तीन टुकड़े आ जाएँ। कूढ़ा क्या, पहले से फाड़े हुए सफ़ेद कागज के टुकड़े हैं। थोड़ा हास्यस्पद दृश्य बन रहा है। कारण कि उनका इतने लंबे-लंबे हैंडल (डंडे) वाले झाड़ू पकड़ने का ज़िंदगी में ये पहला मौका था। उनके कानों में गूंज रहा था “... (ऐ कुर्सी) मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना...” उन्हें पता ही नहीं चल रहा कि डंडे को कैसे कहाँ से पकड़ना है। कनफ्यूज से हैं। वातावरण में बहुत एकसाइटमेंट है। लाउड स्पीकर से देश भक्ति के गाने सुबह से ही बज रहे हैं। आखिर सोने वालों को जगाना भी है। नए नए भक्क सफ़ेद हैंड टॉवल रखे हुए हैं। खुशबू वाले लिक्विड साबुन के स्प्रे रखे हुए हैं। ‘सफाई’ के बाद लाइट रिफ्रेशमेंट का भी इंतजाम है। भुने हुए काजू, ढोकला, टी-कॉफी, महंगी क्रॉकरी से ले कर पेपर प्लेट, कप का इफ़रात में इंतजाम है।
                               जब सब एक पंक्ति में खड़े हो गए और मंद मंद मुस्कराने लगे तभी आवाज आई “लाइट...साउंड...एक्शन...कैमरा” कहते ही सभी अफरातफरी में झाड़ू घुमाने लगे। तभी चीख की आवाज आई, किसी का हैंडल किसी की नाक पर लग गया। शूटिंग रोक देनी पड़ी। वो तो अच्छा हुआ कि फर्स्ट-एड बॉक्स मौजूद था सो फौरन मरहम पट्टी कर दी। डॉक्टर ने जोश-जोश में टिटेनस का इंजेक्शन भी लगा छोड़ा। डॉक्टर साब का बस चलता तो ऑक्सिजन देने और खून चढ़ाने में भी देर न लगाते। दरअसल उनकी मनचाही जगह ट्रांसफर की फाइल मंत्रालय में पेंडिंग है।
                                पुनः एक बार फिर लाईट ... साउंड... एक्शन ...कैमरा और चमचमाती सड़क पर झाड़ू चलने लगी। हाय ! कितना मनमोहक दृश्य था। नेता, नेत्री, सिने तारिका जिस नज़ाकत से कभी फ्रंट पोज, कभी साइड पोज, कभी क्लोज-अप दे रहे थे देखते ही बनता था। दरअसल कागज कम थे और झाड़ू ज्यादा। वो तो अच्छा हुआ दो बाल्टी फाड़े हुए सफ़ेद कागज बैकअप के तौर पर पीछे रखे हुए थे एन मौके पर काम आ गए, उन्हे भी बिखरा दिया गया। कितने वी॰आई॰पी॰ आ जाएँ सोच कर दो दर्जन झाड़ू और चार रिम कागज (ए-4 बंडल) के लाकर रखे हुए थे।
                                     
                                          सबने इतने मोहक-मोहक चित्र खिंचाए। भले झाड़ू थोड़ी आड़ी-तिरछी पकड़ी हुई थी। मगर उस से क्या। नेता जी ने सफाई की महत्ता पर पहले से लिखा गया भाषण पढ़ा। सफाई को दिव्य और नेक्स्ट टू गॉडलीनेस बताया। यद्यपि इसका मतलब उन्हें भी नहीं मालूम था। मगर उस से क्या। जलपान ग्रहण कर पेपर प्लेट और नैपकिन के ढेर को लोकल सफाईकर्मी के लिए छोड़ सब अपनी-अपनी एस॰यू॰वी॰ और लक्जरी कारों में बैठ गए। कई को डस्ट-एलर्जी जो है। काफिला रवाना हो गया अगली शूटिंग के लिए। दोपहर तक सारी की सारी फोटो अखबार के दफ्तर पहुंचानी हैं ताकि कल के अखबार में सुर्खी बन सके। चुनाव नज़दीक है। हाई कमांड की नज़रों में तो रहें। नहीं तो उन्होने हमारा ही सफाया कर देना है।
                                       
                                          सफाई दिवस अत्यंत ही सफल गया। सभी प्रतिभागी खुश थे। सबको फ्री में टी-शर्ट और टोपी (कैप) मिली थी। यह संदेश था टोपी पहनो - पहनाओ। नहीं तो टोपी को उल्टा पढ़ने पर जो बनता है उसके लिए तैयार रहो।

Wednesday, March 20, 2019

व्यंग्य: खुला पत्र नीरव भाई के नाम

    
          नीरव भाई को मेरी यानि अपने सगे नानू भाई की जय श्री किशना ! मैं समझता हूं नीरव भाई ! ये लोग खाली-पीली शोर कर रहे हैं -- भाग गया ! भाग गया ! बैंको का तेरह हज़ार करोड़ रुपया ले कर भाग गया ! आप भाग गये ! आपको भगा दिया. ये गांडा हैं. जानते ही नहीं कि आपका तो नाम ही नीरव है, बोले तो शोर रहित. इसमें आपका क्या गुनाह ? जैसा नाम वैसा काम. ये मूरख क्या जानें ? बारीक़ बात है. इनके कूढ़ मगज़ में पड़ने वाली नहीं. फिर कह रहे हैं कि आपने बैंक से उधार लिया है. अरे तो बैंक होती काय के लिये है ? मैं सू बोलूं छू आपने तो उल्टे बैंकों की मदद की है. देखो ना कैसे चोर-उचक्के पूरा का पूरा ए.टी.एम का ए.टी.एम उखाड़ ले जाते हैं. अब आप पर बैंक का पैसा है ये आप जानते हैं, बैंक जानती है. आपस की बात है, इसमें लोचा क्या है ?  खाते-कमाते उधार भी चुकता हो जाना है. आप टेंशन न लें. ये कौव्वा लोग का तो काम ही काँव-काँव करना है.

          संत-महात्माओं की भूमि पर यह चार्वाक दर्शन के खिलाफ जाता है. आप से पहले भी भारत की पावन भूमि पर अनेक महापुरुष बहुराष्ट्रीय हुए हैं. यहां नाम लेना ठीक नहीं. किसी का छूट गया तो बुरा भी मान सकता है. मज़े की बात ये है उधार बैंक का लिया है, वो भी सरकारी बैंक का, न तो बैंक कुछ कह रही है, न सरकार. बस ये विपक्ष को ना जाने क्या पड़ी है, बावेला मचाये है. इन सब को नीरव कर दो आप तो. इन्हें आप पर गर्व होना चाहिये. आपके तौर-तरीके, बोले तो मॉडस ऑपरेंडाई इन्हें सिलेबस में डाल के प्राइमरी से लेकर बिजनस स्कूल तक पढ़ाई जानी चाहिये. आजकल वैसे भी चारों ओर सिलेबस रिवाइज़ करने की मुहिम चली हुई है. मैनेजरों की भावी पीढ़ी और उद्यमियों को बताया जाये कि हमारे एक हिंदू भाई ने कितनी तरक्की की है और कर सकता है. ऐसे कर सकता है कोई अन्य धर्मावलम्बी ? बस सैकुलर..सैकुलर का गीत गाते रहते हैं. इससे कुछ होना-जाना नहीं है. बैंक की तो टैग लाइन ही थी दि नेम यू कैन बैंक अपॉन अब आपने बैंक किया तो लगे हो-हल्ला करने. वैसे जेटली जी ने आपका काफी बचाव किया है, उन्होने जेठा भाई     माल्या का भी बहुत बचाव किया था. “न कॉन्ग्रेस अनाप-शनाप, अंधाधुंध लोन देती न नीरव को देश छोड़ कर जाता”. लोग कितने खराब होते हैं देखो ! आपके सारे उपकार, सारे कॉकटेल, सारे स्टेज शो भूल गये कहते फिर रहे हैं:
              “ (नी)रव ने बना दी जोड़ी “

          हमें पता है हीरा है सदा के लिये. आप हीरे के सौदागर हैं, सो आप भी सदा के लिये हैं. शाश्वत हैं, अमर हैं. आपको यह वरदान प्राप्त है. अब आप देखिये आपने लंदन में शुतुरमुर्ग के पंखों की एक जैकट पहन रखी थी. ये बेवकूफ उसी को रो रहे हैं कि 80 लाख की थी कि एक करोड़ की थी. अरे भाई ! तो क्या हुआ लंदन में मुम्बई के फैशन स्ट्रीट के या सरोजिनी नगर के  सस्ते कपड़े पहन कर देश की नाक कटवायें. इतनी छोटी सी बात के लिये मगज़मारी करते हैं. ये देश की इज़्ज़त, मान-सम्मान का सवाल है. जैसे शुतुरमुर्ग रेत में मुंह डाल कर निश्चित हो जाता है कि उसे कोई नहीं देख रहा हू ब हू वैसे ही आपकी भी प्लानिंग ये थी कि शुतुरमुर्ग के पंखों की जैकट पहन आपने भी छिप जाना है. बुरा हो इन खोजी पत्रकारों और मोबाइल में कैमरा डालने वालों का. इतनी दाढ़ी-मूंछ में भी आपको पहचान लिये और लगे आपको हरैस करने. आपने सही ही इनके मुंह पर तमाचा मारा ये कह कर कि नो कमेंट्स. सब हाथ मलते रह गये. नहीं ये तो सोचे थे दो-चार दिन टी.वी. पर टी.आर.पी. बढ़ाते रहते. कौन जाने कुछ प्रमोशन कुछ इनाम-इक़राम झटक लेने में क़ामयाब हो जाते.
दरअसल, हमारे देश में कोई किसी को खुश या सफल होते नहीं देख सकता. उसे सहन ही नहीं है कि अगला कैसे इतनी तरक्की कर गया. लग जाते हैं टाँग खींचने और मीन-मेख निकालने में. पर वांदा नहीं. ये गिरफ्तारी, ये रैड कॉर्नर नोटिस ये सब नटवर नागर की लीला है. भूल गये ? मैंने कहा न हीरा है सदा के लिये. आप तो हमारे कोहनूर हो. लंदन-फंदन क्या होता है जी, आदमी व्यापार की खातिर आदिकाल से देश-देश नये-नये तटों पर जाता रहा है. इसमें नया क्या है ?

          छोटे लोग, छोटी सोच. कहते फिर रहे हैं कि आप बड़े मँहगे होटल में रह रहे हैं अरे नहीं तो क्या स्लम में रहें. दरअसल ये खुद जब जाते हैं तो बजट होटल में रुकते हैं बैड एंड ब्रेकफास्ट वाले में और भुक्खड़ लोग ब्रेकफास्ट इतना ठूंस-ठूंस कर करते हैं कि लंच तो लंच इनकी कोशिश होती है कि डिनर भी न करना पड़े. तो मोठा भाई ! आप आना चाहो तो आ जाओ, कोई हरकत नहीं. अपने लोग यहाँ हैं जो सब एडजस्ट कर देंगे. बैंक के अंदर क्या, बाहर क्या. बस आप तो आकर जिसकी भी सरकार हो उसको समर्थन का ऐलान कर दीजिये कि आपसे जो भी बन पड़ेगा तन-मन-धन से देश निर्माण में लगा देंगे. इस सेन्टेंस के सहारे हमारे नेता लोग सन सैंतालीस से अपनी गाड़ी चला रहे हैं. आप चाहो तो राज्यसभा की मैम्बरी की बात चलाऊं ? आप बेफिक़र हो कर देश वापस आओ. कुछ दिन तो नहीं, अब सारे दिन गुजारो गुजरात में. भूल गये ? हीरा है सदा के लिये