Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Tuesday, April 29, 2025

व्यंग्य: पनीर और शादी का भोज

 


 

      खबर है कि वाराणसी में एक शादी के भोज में जब पनीर की सब्जी परोसी गई तो सब्ज़ी में पनीर न पाकर युवक को इतना क्रोध आया कि उसने शादी के शामियाने में अपनी मिनी वैन घुसा दी और छह लोगों को रौंद दिया। बेहतर रहता कि वह इन लोगों को पनीर की सब्ज़ी की रेसिपी बताता। यह तो वही बात हो गई कि कल को शिमला मिर्च की सब्ज़ी में शिमला न मिले तो कोई अपना ट्रक घरातियों पर चढ़ा दे। जिन पर मिनी वैन चढ़ी है वो तो मुझे लगता नहीं ज़िंदगी में कभी पनीर की सब्ज़ी खाएँगे।

 

शादी-ब्याह का यही रोना होता है। आप नॉन-वैज की टेबल पर देखो कैसे लोग चमचे को अंदर-अंदर डुबकियां लगवा कर देखते हैं कि कहीं कोई लैग पीस मिल जाये। वी दि नॉन वैज पीपुल ऑफ इंडिया लैग-पीस के दीवाने हैं। गोया कि अगर लैग पीस नहीं मिला तो ब्याह पक्ष की टांग उखाड़ देंगे। चलो! चिकन तो महंगा मिलता है। कितना ही फार्म का और नकली चिकन केमीकल वाला ले आओ, आता महंगा ही है। पनीर के साथ तो ऐसा नहीं होना चाहिए। कारण कि आजकल तो इतना नकली पनीर चल गया है। ऐसा पनीर ही तो शादी ब्याह में बहुत बड़ी मात्रा में खपता है। ऐसा पनीर बैंकेट हॉल और होटल में खूब चलता है। फिर भी कम पड़ गया? कमाल है !

 

एक बात है यह घटना एक तरह से उदाहरण के तौर पर लोग बताया करेंगे खासकर शादियों में “भैया ! पनीर की सब्ज़ी में पनीर जरा ठीक-ठाक लाना नहीं तो याद है ना वो बनारसै वाला हाल करेंगे।“ कई मनचले तो यह भी कहेंगे "बनारस वाली घटना फीकी पड़ जाएगी वो हाल करेंगे"। ऐसा कहते हैं शादी-ब्याह में रूठना-मनाना, छोटी-मोटी लड़ाई आम बात है। शायद यह एक तरह का शगुन होता हो। कारण कि लड़ाई, क्या युद्ध के सब उपकरण तो मौज़ूद ही रहते हैं, क्या घोड़ी, क्या सवार, क्या लूट का माल, क्या तलवार, क्या अस्सलाह, भले हर्ष फायरिंग के लिए सही।

 

सोचने वाली बात ये है कि शादी में सब ये ही क्यूँ चाहते हैं कि खातिरदारी ऐसी हो कि बस भूतो न भविष्यति। इस दिशा में लोगबाग कोई कसर भी नहीं छोड़ते। आजकल तो शादी एक, और भोज दस-दस। कभी लेडिस-संगीत के नाम पर, कभी कॉकटेल के नाम पर, कभी रिशेप्शन के नाम पर। अब कोई कहाँ तक पनीर लाये। गेस्ट लोगों ने तो पनीर में पनीर ढूँढना ही है। वो भी तो कोई न कोई बहाना ढूंढ रहे होते हैं। कहते होंगे अपने ड्राइवर, अपने क्लीनर को "तू गाड़ी, मिनी वैन स्टार्ट करके रखना मैं जरा पनीर की सब्जी देख कर आता हूँ, पनीर होगा तब तो ठीक है नहीं तो मैं इशारा करूंगा तू चढ़ा देना ऊपर"।

Sunday, April 27, 2025

व्यंग्य: रेल और घर



   

     रेल में नौकरी लग जाये तो लोगों के घर बस जाते हैं। मैं यहाँ उनकी शादी-ब्याह की बात नहीं कर रहा बल्कि उनके मकान की बात कर रहा हूँ। खबर आई है कि एक नागरिक के मकान में रेल की पटरी मिली है। पटरी भी दीवार में चिनवाई हुई है। बस इतना बहुत है, उसकी ज़िंदगी को पटरी से उतारने के लिए। वो बेचारा गुहार लगा रहा है कि ये पटरी मैंने एक नीलामी में 50 साल पहले खरीदी थी और घर की दीवार मजबूत बनाने की गरज से इसे दीवार में चिनवा दिया था। अब 50 साल पहले के कागज उस पर है नहीं।

बस फिर क्या था पुलिस की आवा-जाही शुरू हो गई उसके घर और उन्होने उसे सीधे-सीधे पुलिस की भाषा में समझा दिया कि अब उसके घर को ध्वस्त करना पड़ेगा और लगी हुई पटरी रेलवे को सौंप दी जाएगी। रेलवे को ये 'टैग लाइन' लिखनी ही नहीं थी कि रेलवे आपकी अपनी संपत्ति है। कुछ लोग इसे सच मान लेते हैं। पर एक बात बताइये हमने रेल की सीटें, स्पंज और सीट की रेक्सीन घरों में खूब देखे हैं। पता नहीं उनका क्या होगा। वो तो अच्छा है कि पंखा और बल्ब घर के करंट से चलते नहीं हैं। नहीं तो लोगों की बिजली और पंखे की कमी की पूर्ति भी होजाती।

 

 

       लोगबाग अक्सर रेलवे के दरवाजे के हेंडल, वाश बेसिन, मिरर और तौलिया आदि  के संग्रह का तो शौक रखते हैं मगर ये पटरी का केस तो पहली बार सुना है। अब कहीं से खबर ना आती हो कि कौन घर बनाए हम रेल का डिबा ही उठा लाये। सब खिड़की दरवाजे, पंखा, बिजली, बर्थ बाथरूम सभी तो है। भई वाह ! सरकार चाहे तो लोगों की घर की समस्या पर इस दृष्टि से देख सकती है। रेल तो अब वैसे भी चल-वल नहीं रही हैं।

 

 

अब रेलवे वाले क्या करेंगे ? वो उसके घर को तोड़ के अपनी पटरी ले जाएँगे ? उस पटरी का वो क्या करेंगे ? इस पर रेल तो चलने से रही। हो सकता है पुलिस ही केस रफा-दफा कर दे यह कह कर कि वो रेल की पटरी है ही नहीं। ग़लती से लोहे के टुकड़े को रेल की पटरी समझ लिया था। या फिर रेलवे वाले आकर अपनी केटरिंग वगैरा करा के सर्टिफ़ाई कर दें कि हाँ इस तरह की रेल सन 1976 में बड़े पैमाने पर नीलाम हुई थीं। बस बात खत्म। पर कुल मिला कर यह सौदा है खतरे का। मसलन आप रेलवे की सीट की रेक्सीन के बने झोले में बाज़ार से कुछ सौदा-सट्टा ला रहे हों और छापा पड़ जाये। आपका झोला ज़ब्त और आप गिरफ्तार। अब बताते रहो पुलिस वालों को और रेलवे वालों को कि ये रेक्सीन आपके पास कैसे पहुंची ? आपने खुद चोरी की या किसी चोर से चोरी का सामान खरीदा।

 

    

      रेलवे की ज़मीन पर झुग्गी-झोंपड़ी और दुकान बाज़ार आम मिल जाते हैं। नित्य-प्रति प्रातः निवृत्ति के लिए रेल की पटरी ज़िंदाबाद। रेल बड़ी ग़रीबपरवर है। ऐसे समझो ! अपनी 1853 से स्थापना से ही गरीबों का पालन-पोषण कर रही है। क्या नौकरी देकर क्या पटरी, रेक्सीन, सीट, वाश-बेसिन, मिरर, चादर, तकिये, हेंड टाॅवल, बोलो जी क्या क्या खरीदोगे ?  बोले तो क्या-क्या चुराओगे ?

Saturday, April 26, 2025

व्यंग्य: मूंछ, पुलिस और पुरस्कार

 

        

    कोई भी जब ये शीर्षक पढ़ेगा तो पहला ख्याल यह ही आयेगा कि यह पुरस्कार वीरता के लिए मिला होगा अथवा कोई महत्वपूर्ण केस सॉल्व करने पर मिला होगा। मेरा भी यही मानना था कि कोई जबरदस्त केस क्रैक कर लिया गया है। जब पूरी खबर पढ़ी तब पता चला यह ईनाम तो पुलिस ने अपने ही एक साथी को मूंछें रखने पर दिया है। मेरे भारत महान के एक महान सूबे के महान थाने की महान पुलिस ने अपने ही एक पुलिस कर्मी को यह ईनाम दिया है।

 

एक ज़माना था जब पुलिस को उसके शौर्य और बहादुरी के लिए पुरस्कार दिये जाते थे। बड़े-बड़े हाई प्रोफाइल केस सॉल्व करने और चोर डकैतों को पकड़ने पर दिये जाते थे। अब टाईम बदल गया है। वो एक शेर है ना:

 

      लोग हो गए हैं बेपरवाह, या मोहब्बत नहीं करते

      क्यों इश्क़ में अब कोई बदनाम नहीं होता

 

     सो अब बहादुरी-वादुरी के पुरस्कार के लिए कोई कब तक प्रतीक्षा करे। ना जाने कब का मारा कब बहादुरी दिखाने का मौका मिले। फिर वो बहादुरी डिपार्टमेन्ट की सीनयर्स की नज़र में भी आनी चाहिए। अब ऐसे तो नहीं ना कि आप खामख्वाह बहादुरी दिखाते फिरें और अगले उसे बहादुरी मानने से ही इन्कार कर दें। फिर आजकल जिस तरह का क्राइम हो रहा है उसमें ज्यादा स्कोप भी तो नहीं है बहादुरी दिखाने का, अब साइबर क्राइम में कोई क्या बहदुरी दिखाएगा या फिर स्कैम में आप बहादुर बन कर क्या उखाड़ लेंगे। वहाँ कोई लट्ठ नहीं बजाने हैं, ना कोई एन्काउंटर या फायरिंग के चांस हैं।

 

        ले दे कर बचे आप और आपकी थुल-थुल बॉडी। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। अतः यह तय पाया गया कि क्यों न कुछ और फील्ड्स ढूँढे जाएँ। आप अगर गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स देखें तो पाएंगे सारे ऊटपटाँग किस्म के रेकॉर्ड्स हमारे नाम हैं। (रेकाॅर्ड्स होल्डर्स से क्षमा याचना के साथ) जैसे कि दुनियाँ में सबसे लंबे नाखून, सबसे लंबी मूंछें आदि। अब दिक्कत ये है कि सबसे लंबी मूंछें रखने में टाइम और अनर्जी बहुत लगती है। लंबी मूंछ दो-चार महीने में नहीं हो जातीं। बरसों की मेहनत लगती है, घी-तेल अलग।

 

     कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक

 

जाने कब में ट्रान्सफर हो जाये।  अतः जो काम निपटा दिया जाये अच्छा। इसी तर्ज़ पर इंचार्ज महोदय ने अपने मातहत एक पुलिस कर्मी को उसकी शानदार मूंछों के लिए ईनाम दे डाला। उनका कहना है कि इस पुलिस कर्मी की मूंछें बहुत जबर्दस्त हैं। उनका क़हना है कि आखिर मूंछें भी तो मर्दानगी और बहदुरी का प्रतीक है। एक पूरी की पूरी कॉमेडी फिल्म इस पर बनी है। जहां उत्पल दत्त, अमोल पालेकर के पीछे पड़े रहते हैं कि मूंछ आदमी की आन, बान, शान का प्रतीक है और रखनी ही रखनी चाहिए वरना वो आदमी ही क्या जिसके मूंछ नहीं। एक फिल्म का यह संवाद भी खासा लोकप्रिय रहा था जिसमें कहा गया था मूछें हों तो नत्थू लाल जैसी नहीं तो ना हों।

 

       पुलिस दल का कहना है कि पहले उन्हें मूंछ भत्ता मिला करता था। कालांतर में यह बंद हो गया। मुझे लगता है तभी से मूंछों के पतन का युग शुरू हुआ होगा। जिस काम के लिए सरकारी भत्ता न मिले उसे करने से क्या फायदा ? यह तो ऐसे ही है कि पल्ले से पैसे खर्चो। मैंने सुना है तरह.तरह की मूंछों के कम्पटीशन विदेश में आयोजित किये जाते हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। लब्बोलुआब ये कि कुछ तो इन्सेन्टिव रहे मूंछ रखने का।

 

इस केस मे हैड कांस्टेबल महोदय ने हेंडल बार मूंछे रखी हैं। जो लोग क्लीन शेव होते हैं उन्हें ना तो दाढ़ी मूंछ का महत्व पता होता है और ना ही उनको ये ज्ञात होता है कि दाढ़ी मूंछ रखना कहीं ज्यादा मेहनत का काम है और ये कितनी अटेन्शन और मेंटीनेंस मांगता हैं। क्लीन शेव को क्या करना होता है ? बस रेज़र घुमाया और काम हो गया। हम दाढ़ी-मूंछ वालों से पूछो हर हफ्ते कैंची, कंघी लेकर शीशे के आगे दाढ़ी-मूंछ की सेवा करनी पड़ती है। कोई कितना भत्ता दे देगा। हम कोई भत्ते के लिए थोड़ी दाढ़ी-मूंछ रखते हैं। बहरहाल इस तरह से रिकाॅग्नाइज़ करने से और भी लोग मूंछ रखने की प्रेरणा लेंगे। पुराने समय में राजा-महाराजा सभी भांति भाति की मूंछ रखते थे और इसे अपनी शान मानते थे। कितने ही मुहावरे और कहावतें मूंछ को लेकर बने। 

        

सच तो ये है मूंछ है तो आपकी पूछ है।                      

 

 

Friday, April 25, 2025

व्यंग्य: अगले जनम मोहे मानुष ही कीजो


     

  एक सूबे में एक नेतानी जी ने घोषणा की है कि अगर इस जनम के मानुष लोग उनकी पार्टी को वोट नहीं देंगे तो अगले जनम उनका ऊंट, भेड़, बकरी, कुत्ता अथवा बिल्ली होना तय है। अतः अब आप दूसरी पार्टी को वोट देने से पहले अपने मन में सोच-समझ लें और फिक्स कर लें कि आप अगले जनम क्या बनना चाहते हैं ?  ऊंट अथवा भेड़-बकरी या फिर सीधे-सीधे कुत्ता-बिल्ली।  ये तो नेतानी जी का शुक्रिया अदा करो !  नहीं तो वो आपको इसी जनम मे कुत्ता बिल्ली कुछ भी बना सकती हैं। 'समरथ को नाहि कोई दोष गुसाईं' मैं तो इस बयान के बाद जब भी अपने कुत्ते को देखता हूँ या पड़ोसी की बिल्ली को देखता हूँ तो ख्याल आता है कि हो न हो इसने पिछले जनम में किसी और पार्टी को वोट दिया होगा तभी तो इस जनम में दर-दर की ठोकरें खाते मारे-मारे घूम रहे है। 


              देखिये !  हमारे भारत में पुनर्जनम में लोगों की भरपूर आस्था है। वो जानते हैं कि ये जो जनम मिला है, जैसा भी है, ये उनके पिछले जनम के कर्मों का फल है। इस जनम अच्छे कर्म करेंगे तो अगला जनम बेहतर होगा कौन जाने एम.पी., एम.एल.ए., बन जाएँ। कौन जाने बिना पेपर लीक हुए सरकारी नौकरी ही लग जाये। अब देखना है कि इस पर विरोधी दल का क्या कहना है? वो वोटर को, अगर वोट उन्हें ना दिया तो, क्या बनाने पर तुले हैं ? यह ऊंट, भेड़-बकरी और कुत्ता-बिल्ली किस आधार पर तय होगा ? यह नहीं बताया नेतानी जी ने। मुझे लगता है इसमें भी हो ना हो किसी प्रकार की वर्ण व्यवस्था का इंतज़ाम किया है नेतानी जी ने, ताकि वर्ण व्यवस्था बनी रहे। 


मैं तो कहूंगा:


     ‘जो ऊंट हों तो वही रसखान

     शेख के घर ड्राई-फ्रूट चरूँ दिन-रात

     जो कुत्ता हों तो वही रसखान 

     सुंदरी की गोद में मचलूँ सुबहोशाम

     जो बिल्ली हों तो वही रसखान 

     फिल्म एक्ट्रेस कहते न थके ‘मेरी जान’

     जो भेड़-बकरी बनूँ तो कहा बस मोरो

     बक़रीद तक खा काजू-किशमिश इतराऊँ’ 


       वैसे मेरे भारत महान की धर्मभीरू जनता के लिए ये मारक संदेश है।    बेटा ! शुकर मनाओ हम तुम्हें अगले जनम की ही चेतावनी दे रहे हैं। यूं हम चाहें तो तुम्हें इसी जनम में ऊंट, भेड़-बकरी या कुत्ता-बिल्ली बना के रख सकते हैं और तुमको पता भी नहीं चलेगा तुम कब में ऊंट बन गए या भेड़-बकरी बन गए। बहुतों को हमने इसी जनम में भेड़-बकरी बना दिया है। अब हम उन्हें जैसा हाँकें वो वही करते हैं। सो सौ बातों की एक बात, आप हमें वोट दे रहे हैं तब तक ठीक है। जिस दिन हमें पता चला आपके मन में खोट आ रहा है हमने आपको कुत्ता बिल्ली बना देना है। सोच लो! यह अकस्मात नहीं है कि मुल्क में भेड़-बकरी की तादाद बढ़ रही है। कुत्ते देखो कितने हो गए हैं, गली गली और कटखने अलग हैं। 


                अगली बार वोटिंग बूथ पर जाएँ तो सोच समझ कर ठप्पा लगाएँ अपने मन में तस्वीर ले आयें कि हमें वोट नहीं देंगे तो क्या आपने तय कर लिया है क्या बनेंगे ऊंट, कुत्ता बिल्ली या फिर भेड़-बकरी और हाँ इसी जनम में या अगले जनम में ? नेपथ्य से ये क्या आवाजें आ रहीं हैं  में...में...में... भौं...भौं...भौं... म्याऊँ ....म्याऊँ।

Tuesday, April 22, 2025

व्यंग्य: ट्रेन में ए.टी.एम.

 


     आपने अब तक ट्रेन में पैंट्री सुनी थी, लाइब्रेरी सुनी थी, डाक-सेवा सुनी थी यहाँ तक कि चोरी-डकैती सुनी थी। अब लेटैस्ट है ए.टी.एम.। यह सरकारी सेवा है आई मीन सरकार की तरफ से आपके, चोर के, डकैत के, बोले तो सबके आराम और सुविधा के लिए। देख लीजिये सरकार आपके लिए क्या-क्या नहीं कर रही। एक आप हैं आपके मुंह से रेलवे और रेल मंत्री की प्रशंसा में दो शब्द नहीं फूटते हैं। यहाँ तक कि उनको रेल मंत्री की जगह रील मंत्री कहने लग पड़े हैं। हद तो ये है कि ए.टी.एम. के ऐतहासिक कदम को भी रील मंत्री की रील से ही जोड़ के देख रहे हैं। 

   

    ए.टी.एम. की स्थापना के लिए जिस ट्रेन को चुना गया है उसका नाम है पंचवटी एक्सप्रेस। पंचवटी वही जहां राम रहते थे। अब राम ही इस ए.टी.एम. के भी रखवाले हैं। अब ए.टी.एम. के चोर ए.टी.एम. के आसपास ही मंडराया करेंगे। वो देखेंगे कि कौन यात्री ‘विदड्रा’ कर रहा है किसने कितना कैश निकाला है। कुछ तो क्लोन कराये हुए कार्ड और पलक झपकते ही कार्ड बदलने वाले, आपके कैश को निकालने में आपकी मदद करने वाले सब वहीं उपलब्ध रहा करेंगे। वो भी अपना सीज़न पास यानि एम.एस.टी. बनवा लेंगे। 


       यह इस बात का भी इशारा है कि अब इतनी महंगाई हो सकती है कि आपको रेल में कोई चीज़ खरीदने-खाने के लिए हो सकता है आपके पर्स का कैश कम पड़ जाये और आपको कैश निकालने की ज़रूरत आन पड़े। मसलन खाना-पीना,पानी की बोतल, आदि। मेरा सुझाव है कि चलती रेल में निम्नलिखित भी इन्सटाॅल किए जाएँ:


1. बार जिसमें सभी तरह की व्हिस्की, बीयर, जिन-ब्रांडी मिले। 

2. एक चलता फिरता गैम्बलिंग डैन हो बोले तो कैसिनो

3. एक डांस-बार अलग से हो 

4. एक डिस्को तो होना ही चाहिए 

5. एक मसाज सेंटर भी चाहिए ही चाहिए 

6. एक मोबाइल पुलिस स्टेशन भी इन सबके चलते होना चाहिए

7. एक डिस्पेन्सरी/कैमिस्ट और एक छोटा सा अस्पताल-यूनिट होनी चाहिए न केवल इमरजेंसी बल्कि कोई और प्राॅसीजर कराना चाहे तो उसे वो सुविधा मिलनी चाहिए जैसे कि कान, आँख का ऑपरेशन, प्लास्टिक सर्जरी, डेन्टिस्ट, बालों की ग्राफ्टिंग की सेवाएँ मिलें। साइकाॅलाॅजी वाले पकड़-पकड़ के काॅन्सलिंग करें। 

8. एक मिनी-माॅल होना चाहिए जहां ड्रेस से लेकर अन्य फालतू का सामान जिसे लेने लेडिस लोग हर हफ्ते अपने पति की कमाई को दियासलाई दिखाती हैं वो भी होना ही है। 

9. एक मल्टी-परपज़ बुकिंग सेंटर होना है जिससे यात्री अपने गंतव्य स्टेशन पर सुविधाएं बुक कर सकें मसलन होटल, खाना, कैब, वापसी की टिकट, या फिर एयरलाइंस की टिकट, सिनेमा-नाटक, क्रिकेट मैच की टिकट की एडवांस बुकिंग। 

10. अब जब ए.टी.एम. आ गया है तो बैंक क्या दूर है ? अतः एक अदद बैंक की ब्रांच बोले तो एक्सटेंशन ब्रांच होनी चाहिए। वहीं सब सम्पन्न हो जाये ड्राफ्ट, चैक और हाँ लोन की सुविधा मिले। 

11. इस सब में हमें अपने प्रॉपर्टी डीलर भाइयों को नहीं भूलना चाहिए। वे भी अपना काउंटर ट्रेन में खोलें और बताएं कि कैसे उन्होने यात्रियों के लिए ही सन फेसिंग, पार्क फेसिंग और सामने 40 फीट रोड वाली कॉलोनी बसाई है। जिसकी बुकिंग केवल आज करने भर से 10% छूट मिलेगी। इस तरह चारों ओर विकास ही विकास की सुनामी बह चलेगी। 

12. इस सब में हमें बीमे वालों को नही भूलना है। आजकल जिस तरह रेल एक दूसरे से भिड़ जाती हैं, पलट जाती है, चलते-चलते ट्रैक छोड़ देती हैं, बीमा बिजनिस खूब चलेगा।  अतः बीमा एजेंट सीट पर जा-जा कर यात्रियों को न केवल आकर्षक रंग बिरंगे ब्राॅशर देंगे बल्कि समझाएँगे कि कैसे एक हाथ कटने, एक आँख चले जाने  या एक टांग कटने पर कितना पैसा मिलेगा। 

13. अब आते हैं हमारे ज्योतिष भाई लोग। वो भी अपने-अपने पोथी-पत्रे, पांचांग और कुंडली लेकर बैठेंगे। आप उनसे पूछ सकते है आप जिस काम को जा रहे हैं वो होगा या नहीं और आपके राहू केतू क्या कह रहे हैं। हस्त रेखा वाले लेंस ले कर सीट पर जा-जा कर आपका शनि और मंगल बताएँगे। 


भाईयो! यह है रूपरेखा आने वाली रेलों की। आप कहेंगे ये तो 13 सुविधाएं हुईं। 13 का अंक अशुभ होता है अब आपसे क्या छुपाना रेल का आजकल कुछ ऐसा ही चल रहा है। थोड़े लिखे को ज्यादा समझना।

Thursday, April 17, 2025

Humor No bath since 2013

 


         Often man takes a vow that so and so work he will do only after so and so work (another) is successfully done. A neta ji has confided that during 2013 Kumbh P. M. of one country refused to take a holy dip and returned without the ceremonial bath because of sheer muck in the Ganges. 

 

       Basically, our Netaji disclosed this only to highlight that Ganga of 2025 i.e. of his times is different than the Ganga of 2013. In other words, lot of water has flown since then. Though the saying is a mother never changes and people in India consider Ganga as mother. Things are comparative in our world. May be Ganga of 2025 is cleaner than the Ganga of 2013. Now who can endorse it, only those devotees who bathed in the Kumbh of 2013 and again in Maha-kumbh of 2025.

  My worry is different. The P. M. of this foreign country who visited India in 2013 for holy bath, did he take bath ever after or seeing the garbage in Ganga, he developed a kind of dislike towards bathing. Who knows maybe he has developed a kind of phobia towards bathing. I looked in Thesaurus to find out what technical term these Psychiatry guys have given to persons who hate or fear bathing. They have not disappointed me; they too have dwelled upon it and must have made a ‘clean buck’ in their practice. They call it Ablutophobia. It is past several years now, please find out whether he returned to take a holy dip in 2025? more important than that whether he is still a P.M. in his country in 2025. Funny thing is, if Ganga is clean the credit goes to ‘we the people’ and in case, it is dirty and polluted without redemption then also it is all thanks to us.  Ever since, I could read and write I have read this news item- Govt is seriously concerned about the rising pollution in Ganga. Successive Govts became serious to more serious and then most serious. The grant in this respect multiplied manifold but Ganga remained most polluted and favorite subject of panel discussions across the mainstream media.  Different type of bodies, public-private sector companies are formed and forgotten, they make clean sweep of funds allocated to them.  There have been Ministers and peons Govt after Govt assigned to clean the Ganga but only the guys working in such ministry got to become clean, cleaner and cleanest.  

 

            

Neta after neta have risen in the Govt hierarchy in the name of Ganga cleaning. Ganga remains where it was and over a period of time has become more polluted. Ganga has inspired scores of films and songs. Ganga’s prime task entrusted by Indian devotees is to wash their sins and bless them to commit more and more sins without getting caught. It was in this light, prisoners were also facilitated to take a holy dip. Ganga water was transported to their prison where they took a mass holy dip. The jailor got the whole thing filmed so that he could use it as annexure to his APAR. Numberless people are waiting to be adopted by the Mother Ganga so that they too become someone and come to take holy dip of ganga with a Z+security convoy. No wonder the procedure of adoption is so complicated in India, to say the least. A lot has been written on rivers of India. Scholars have written dissertation after dissertation to obtain their PhD on rivers and seas. Time has come to write thesis on Ganga, how it has helped netas to fulfill ‘My ambition in life’. If a P. M. does not want to take bath, who can make him take a bath. In my childhood, I too used to hate bathing. I will go to bathroom and just turn the tap. With some water sprinkled on my face I would come out drying my body with the towel. I feel this P. M. who came from some foreign country, what did he tell to his countrymen, has he taken the holy dip? For the holy dip should not only be taken it should appear to have been taken (by way of numerous photographs taken from most appropriate angles n splashed in next day’s news) Truly speaking, my question is far more important; whether he has at all taken bath since 2013.   

 

Monday, April 14, 2025

Humor Mr. Negative

 


 

 

 You must have known persons, who remain hard core positive come what may. Similarly, as opposed to this, world is full of people who are fiercely negative. They are constantly talking about the end of the world. In my college, when the Professor asked us what career we want to choose when we grow up. I said “I want to become a teacher”. A classmate of mine came to me and declared ‘teacher’s life is useless to say the least’. I wondered why he said so. Upon inquiring he supplemented his statement with another heart-breaking statement “Whole life he is playing around with calcium carbonate (chalk)”. I remember his prediction word by word. When I met him recently in our college reunion, I came to know he had become a lawyer. I am certain if I would have said I wanted to become a lawyer he would have discouraged me with full force. However, I did a stint as a professor in the Academy of Indian Railways at Vadodara.

 

                   Such (negative) people always have the negative virus flowing in their veins. They can off hand offer you ten reasons to not to get your house painted in whatever month/season you intend to do it. When it comes to matrimonial alliances, they are the worst people to have around. For example, they can object how the bride-to-be would travel for her job daily. You try to convince them these days cabs are there; they would retort how can she travel alone in the cab. You do not know these cab drivers; they are nothing but full-time criminals and only part time drivers. So, it is not practical and safe. This alliance has no future whatsoever. When everything else fails they are sure of this deadly weapon in their arsenal, “the girl is a Leo while the boy is a Sagittarius. They are not meant to be together. Stars don’t favour such a matrimonial alliance and worst awaits both of them”. These people spread so much of negativity in their household that slowly people stop visiting and socializing with them. It suits them. Worst recipient of their negativity is their own family members. They have no option. An uncle of ours despite his son having secured very high marks was admitted to not-so-good college but nearest their home, that is just across the road. Distance being the only criterion. As if this was not enough, he would stand wait for his son at his side of the road like a worried and nervous prospective father outside the maternity ward.  When their college trip was going to Simla he came up with scores of risks in going to Simla such as Simla is not for we the plain dwellers of Delhi, the sheer winds of hills are so strong, Dillwalas are not used to, the climate is so unpredictable that you are bound to fall sick, it is so freezing cold that won’t suit we Dilliwalas last but not the least the terrain is so precarious and dangerous at every step that you will feel you are walking on Delhi road while it may suddenly have so many highs and lows that you are bound to slip again and again.

 

They are the type of people, even when offered the office of President can come up with reasons rendering Presidentship as not so good a preposition. Delhi has lot of pollution, the climate is miserable, there is lots of traffic in Delhi, you cannot enjoy Golgappas at roadside stall. You will always be surrounded by security men, not a private moment for yourself to go to Karol Bagh for shopping from sale. Imagine! is this a job worth taking up where you cannot eat or move around as per your heart. Last but not the least, President House is too mammoth a palace. Such buildings are the favourite haunting adda of evil spirits. Spirits of Abraham Lincoln and John Kennedy are often sighted night walking in White House. Even if you do not believe in spirits the House is so big that you will be living constantly under the shadow of fear. During night you will have company of witches and during the day security men will surround you. You never know you may get hit by a bullet mistakenly fired by some over enthusiastic security men. You know how these days actors are getting hit by their own guns. Today it is abhinetas tom it may well be netas”                                  

 

 

 

Sunday, April 13, 2025

Humor: House and Outhouse

 


         For the uninitiated, an outhouse is a smaller house, rather a room outside the main house generally at the back of the main house. It is also called servant quarters. Bungalows had these attached to them since British times. Bigger the bungalow more would be the number of outhouses to house butler, cooks, barber, tailor and washerman.

 

        

The readers who know about Tambola (Housie) would know that after ‘House’ comes ‘Outhouse’ and fetches lesser prize money than the House. The type of insane money being found these days ‘burning’ in outhouse, definitely makes outhouse a sought-after proposition. Just imagine huge amount of money lying scattered, unlocked, unaccounted and uncounted in outhouse. It is now calculated in terms of sacks…how many sacks equal to this much amount. So, sack is the new unit of measurement of money especially the ill gotten one.

          

By and by, builders will publicize not the actual house nor the accompanying garages/parking spaces but the spacious fire proof, burglar proof outhouses fitted with in-built fire resistant safes. Smarter builders will go to the extent of boasting as to how many crores their walk-in safe can accommodate comfortably.100 crores 1000 crores, just like the way refrigerators’ capacity is measured/flaunted. Prospective buyers will not go for actual house, first, they would like to inspect the outhouse and then decide whether to buy or otherwise.  

 

           Certain senior officer’s outhouse was raided for it was operating a hooch making small scale cottage industry, what you call MSME these days. The case was particularly interesting as the state was a dry state with total prohibition. Now who would suspect such a senior officer’s bungalow would have such a senior facility, the outhouse had a separate entry from backside. The business was going on uninterrupted.

There is another theory! why burn the currency? must have been some jealous or zealous guy, I have seen it in English films, this hero does not touch (the sin money) or report it to police, he just collects the wand of notes at one place and puts them on fire and without turning even once walks away to burn next heap of sin money.    

 

    One officer, I know who had earned enough number of enemies during one posting, so when he was transferred, a guy had put a small burning cloth in the wagon carrying his entire house hold kit. When the wagon reached its destination, it had nothing but ashes.

    

               So take it from me and be assured, for the sake of money or maid, the out house is more precious than the main house.

Thursday, April 10, 2025

व्यंग्य: दामाद सास संग फरार

 


                

       


एक मशहूर शेर है:

 

 अच्छी सूरत भी क्या बुरी शय है

 जिसने डाली बुरी नज़र  डाली

 

      अब देखो ये भी कोई बात हुई ? मगर ये बात हुई। अलीगढ़ जो अब तलक ताले, चाकू और मक्खी-मच्छरों के लिए ही फेमस था अब अन्य साहसिक कामों के लिए भी जाने जाना लगा है। एक शेर और जो तब से कौंध रहा है वह भी पेशे खिदमत है: 


 “खुशी की रात होगी जश्न जरा हट के होगा

दीदी की शादी में अंदाज़ जरा हट के होगा”


यह शेर शादी के निमंत्रण पत्र पर लिखा था। किसी लड्डू नामक बालक की तरफ से। दिल तो बच्चा है जी। अब बताओ ये अपने आप में एक संदेश था समझने वाले के लिए। यहाँ तो जश्न क्या पूरी शादी जरा नहीं, बहुत हट के हुई। दामाद श्री, राहुल जी अपनी दुल्हन यहीं छोड़, सास के साथ ही नौ दो ग्यारह हो गये। यही कलयुग है। एक युग वो था जब राहुल और अपनी पत्नी यशोधरा को सोता छोड़ गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्त करने आधी रात को चले गए थे। यहाँ ये राहुल जी दिन दहाड़े अपनी भावी पत्नी को छोड़ सास को ले, ये जा वो जा। सास को क्या हक़ है कि वो इतनी सुंदर दिखे ? और इतना ही नहीं नाम भी ‘अपना देवी’ रखे। यह नाम तो खुल्ला खुल्ला निमंत्रण सा लगता है। देवी को सही पुजारी मिल गया और उसने बाहें फैला कर अपना देवी को अपना लिया। पति महोदय जितेंद्र जी बंगलोर में ‘बिजनिस’ में ही बिज़ी रहे। और उन्होने अपनी इंद्रियों को तो जीत लिया (जितेंद्र) मगर अपना देवी को अपना  नहीं बना पाये। यूं यह तो क्लिशे बन ही गया है कि प्यार अंधा होता है मगर इस केस में प्यार इतना अंधा भी नहीं था जाते-जाते साढ़े तीन लाख नगद और पाँच लाख के जेवर लेकर अपना देवी गईं हैं। मुझे कुछ-कुछ यकीन हो चला है जैसा कि कई खप ने कहा है यह मोबाइल नई पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है। मैं तो कहता हूँ जी नई क्या पुरानी पीढ़ी का भी नाश कर कर रहा है ये मोबाइल। अब सोचो अपना देवी ने अपने होने वाले दामाद को सगाई वक़्त जो स्मार्ट मोबाइल फोन दिया था उसने दामाद श्री को कितना स्मार्ट बना दिया। होता भी क्यूँ नहीं सुनते हैं अपना देवी दामाद को 20-20 घंटे इसी फोन से ट्यूटोरियल दिया करती थीं। कोई अपना देवी अगर अपने दामाद को 20-20 घंटे के ट्यूटोरियल देगी तो उसने तो समझो स्मार्ट बनने का क्रेश कोर्स कर लिया। रिजल्ट -  अपना देवी को बिना देर किए अपना बना लिया। इसमें किम आश्चर्य ?

कार्ड में लिखा है "भीगी पलकें" 17 अप्रेल 2025 की प्रातः वेला मगर यहाँ तो अपना देवी 7 अप्रेल को भरी दोपहरिया में सबकी पलकें  भीगी नहीं बल्कि रो रो के सुजा गईं।    


आगे से उम्मीद है लड़की के मां-बाप दामाद की जांच पड़ताल ठीक से करेंगे और साथ ही मोबाइल फोन से दूरी बना कर रखेंगे।