जी हाँ शत्रुघ्न सिन्हा अकेले नहीं जिन्हें मोदी और अमित शाह जी ने बिहार चुनाव के दौरान बुलाया नहीं. मुझे भी नहीं बुलाया. और अब रिजल्ट देख लो. पार्टी में वरिष्ठों (बूढ़े नहीं) की अनदेखी करोगे तो यही होना है. मैंने इत्तिला भी भिजवाई कई बार कि इन दिनों मैं खाली हूं, पार्टी चाहे तो चुनाव प्रचार के लिये, प्रचार सभाओं में मेरी ओज़मयी वाणी और लटकों झटकों का इस्तेमाल कर सकती है. मगर न जी ! वहाँ न रेंगनी थी, न रेंगी किसी के भी कान पर जूँ . अब भुगतो नतीज़ा. मैंने भतेरा कहा था कि मैं पिछली बार की तरह आप की शान में कवितायें सुनाऊंगा. प्रतिद्वंदी की हास्य रस की चुटकियों से ऐसी तैसी कर छोड़ूंगा, पर नहीं, पता नहीं क्यों किसी को भी इस बार ये आइडिया भाया ही नहीं और बात–बात में मेरा ही मखौल उड़ा दिया यह कह-कह कर कि “ वाट एन आइडिया ”.
मैंने कहा भी था कि मुझ जैसे इंसान पर भी नैतिकता के चलते प्रेशर आ रहा है कि मैं अपना पुरस्कार वापस कर दूं... वो तो भला हो व्यव्स्था कि मैंने कोई पुरस्कार कभी लिया ही नहीं (सच तो यह है मुझे कोई पुरस्कार मिला ही नहीं) कि जिसे लौटाने का कोई कैसा भी दबाव रहता
अमित अपने को अमिताभ बच्चन ही समझने लग पड़े हैं . अरे भैया फिल्मों में ठीक है. ऊ कहा कहते हैं “ हम जहाँ खड़े हो जाते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है ” यह पोलिंग बूथवा की लाइन है. यहाँ ऊ सब नहीं चलबे करता है. कितनौ ही बार इशारा तो दिये थे पर आप न जाने कौन दुनियाँ में थे. “ पीटर ! अब ये ताला मैं तुम्हारी जेब से चाबी निकाल कर ही खोलुंगा” यहाँ ये सब नहीं न चलता है. जब अपना ही ‘बिकास’ के लाले पड़े हों तब स्टेट के बिकास की बात समझ से परे है.
अच्छा हम तो यहाँ तक कह दिये थे कि आप को कविता कहानी का शौक़ नहीं कोऊ बात नहीं हम ‘बिरोधी’ खेमा में जा के सुना आते हैं अपने बोट नहीं पड़ेंगे तो ससुरा बिरोधियन के बोट तो काटबे का परि कि न परि. बो क्या कहते हैं कि ‘अटैक इझ धि भैस्ट डिफेंस’. जब हमें पक्का हो गया कि इस बार यहाँ दाल न गले तब हम ‘अंडर ग्राऊंड’ हो गये. कनसुआ लेते रहे थे कि कोई अब आये कि अब आये, हमें बूझता हुआ. मगर न जी ! अथि न कोई आना था ना आया. अब करो अपनी हार पर चिंतन. दाल से याद आया कि आपने दाल का किया क्या ये ? ‘....दाल को दाल ही रहने दो ड्राई फ्रूटका नाम न दो..... सिर्फ गरीब-गुरबा के पास है ये.... थालिया से न दूर करो, दाम बढ़ा कर ड्राईफ्रूट का नाम न दो...’
ये तंतर मंतर हमारे दैनिक जीवन का अंग है. हम छींक से घबरा जाते हैं. हम कुत्ता के कान फड़फड़ाने से लेकर बिल्ली के रास्ता काटने से भी अपने काम के प्रति आशंकित हो जाते हैं. हम मंगल को मीट नहीं खाते. कार में नींबू और मिर्च लटकाते हैं. हम ‘बिधी बिधान’ से टोना- टोटका सब करते हैं . हम दिन तिथी बाँच कर ही घर से बाहर कदम रखते हैं. और आप हमारी इसी संस्कृति का भरी सभा में मज़ाक बना दिये. तब क्या रही जब आप ही के फोटू बेजान दारूवाला और बापू आसाराम के साथ के उजागर हो गये.
आरक्षन पर कहना चाहिये थे कि 100% आरक्षन होगा, आप उल्टा बोल दिये कि इसकी समीक्षा करेंगे..अब कोनू बुड़बक हैं क्या मनई.... वो जानते हैं कि आप इतने भोले तो हैं नहीं. समीक्षा आप लोग बढ़ाने को तो करेंगे नहीं ज़रूर से ज़रूर घटाने को ही करेंगे. आप को कहना चाहिये था कि 100% का 100% भारतीयों के लिये आरक्षन रहेगा. और हर जात को आरक्षन मिलबे करि. भारत तो पूरा का पूरा गरीब, पिछड़ा हुआ है. इसमें सब ही तो पिछड़े, दलित और महादलित हैं. अत: ये अब कोई दलित रहेगा न महा दलित सब भारतीय हैं. पॉपुलेशन की गिनती दुबारा से कराए के पड़ि. तब तक न कोई क्रीमी लेयर न कोई नॉन क्रीमी लेयर. सब सपरेटा है.
और ये गाय-कुत्ता से ऊपर उठिये. ये गाय-बैल में कुछ नहीं रखा है सिवाय फज़ीहत के. कॉन्ग्रेस क्या पागल है जो अपना चुनाव चिन्ह गाय बछड़ा से बदल कर हाथ रखी है. जिसको गाय खाये के परि वो खाये और जिसे पालने का परि, माता मौसी बनाय का परि वो वैसी श्रद्धा रखे. ये स्टेट का टॉपिक ही नहीं. आप नॉन इशू को इशू बना दिये और इशू को नॉन इशू. आपके जितना नेता लोग लूज़ टॉक करते हैं सबको एक दिन बुलाकर कह दीजिये “ खामोश....जली को आग कहते हैं...बुझी को राख कहते हैं...” वगैरा वगैरा
आप सहयोगी दल भी तो ऐसे रखे कि लोग बाग हँसते थे. आप को क्या ज़रूरत आन पड़ी पासवान या मांझी जी की ?. आप वो गीत नहीं सुने हैं ? “मांझी जो नाव डुबोये.... तो कौन बचाये”. आप परधान मंतरी हैं आप को ये स्टेट के चुनाव में गली गली घूमना... पैकेज पर पैकेज एनाऊंस करना भाता नहीं है. तनिक इतिहास उठा कर देखिये तो सही, कोई और प्रधान मंत्री ऐसे किये रहा क्या कभी ?
अब कहा बताई. गलती तो आप कर दिये. एक ठौ बात तो आप गाँठ बांध लीजिये कि ये अमित शाह कोई सुपर स्टार नहीं हैं. ये इस सदी के महानायक भी नहीं हैं. महानायक का ? ये नायक भी नहीं. वो तो एक बार तुक्का लग गया... तो क्या बार बार लगी ?. इन्हें चलता कीजिये ! और कहिये अब आप ‘कुछ दिन तो गुजारिये गुजरात में’. अपने साथ कुछ पढ़े लिक्खे लोग रखिये. जानकार लोग रखिये, समझदार लोग रखिये. अब क्या हमारे मुँह से ही कहलवाई कि हमें रखिये
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