Ravi ki duniya

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Tuesday, November 1, 2016

व्यंग्य : निंदा पर निबंध



  निंदा कई प्रकार की होती है। भारत में मुख्यतः तीन प्रकार की निंदा पाई जाती हैं। निंदा। कड़ी निंदा व बेहद कड़ी निंदा। निंदा की आमतौर पर कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है। अतः एक बार की गई निंदा लम्बे समय तक चल सकती है। किन्तु वही/वैसी ही घटना की पुनरावृति होने पर निंदा अथवा कड़ी निंदा स्वाद अनुसार की जा सकती है। 

निंदा का हमारे देश में ऐतहासिक महत्व है। हमारे ऋषि मुनि भी कह गये हैं "निंदक नियरे राखिये ......" पर-निंदा रस सभी रसों में सर्वोपरि है। आप कह सकते हैं कि निंदा रस सभी रसों का राजा है। निंदा ने यह पदवी श्रृंगार रस को पदच्युत कर के हासिल की है। निंदा से बड़ा आत्मिक संतोष मिलता है तथा मनो मस्तिष्क में स्फूर्ति सी छा जाती है दोनों यानि कि करने वाले व सुनने वाले दोनों के। वह भी बिना हींग फिटकरी के। दो निंदक जहां इकट्ठे हो जायें वहां तो समझो दीवाली जैसे पटाखे फूटने लगते हैं। 

प्राय: भारत में जिस प्रकार विश्व के सभी धर्मों के अनुयायी पाये जाते हैं उसी प्रकार सभी प्रकार के निन्दनीय से निन्दनीय निंदक प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं फिर भी प्रमुखतः पड़ोसी निंदक, रिश्तेदार निंदक, बाॅस निंदक आपको सभी मौसम तथा प्रदेशों में मिलेंगे। उत्तर भारत विशेषतः दिल्ली व आसपास के मैदानी क्षेत्र में निंदकों की खासी फसल लहलहाती है।
 
'जब तक सूरज चाँद रहेगा निंदा तेरा नाम रहेगा "

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