Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Friday, May 30, 2025

नीला ड्रम प्लास्टिक का

   


क्या ससुराल मिली तुझे ऐ दोस्त ! 

दहेज में दिया है

नीला ड्रम प्लास्टिक का

 

नींद उड़ गई जब से लाई है

 बीवी घर में 

नीला ड्रम प्लास्टिक का


मैं खाता नहीं ! फिर क्यूं ले आई वो चिकन-चाकू औ 

नीला ड्रम प्लास्टिक का


ससुराल लगने लगी मुझे दुश्मन सी

बेटी को कहे हैं "डरना नहीं तेरे साथ है 

नीला ड्रम प्लास्टिक का" 


पुरानी हो गई तालीमें लकीरें पढ़ने की

नया है हथेली काटने का हुनर!

साथ आया है 

नीला ड्रम प्लास्टिक का


अजब चलन देखा तेरे शहर में तिजारत का 

सीमेंट फ्री मिल रहा ग़र खरीदो 

नीला ड्रम प्लास्टिक का


कैसा पानी, कितना अनाज रखेगी इसमें

मुझे हरदम घूरता सा लगे है 

नीला ड्रम प्लास्टिक का


मुझे डर था वही हो गया 

अब बात-बात पर धमकाती है 

"मुझे पता है किस काम आता है

नीला ड्रम प्लास्टिक का"


ख्वाब में भी चीख के उठ बैठता हूँ आजकल 

रात-रात घर में ढूँढता हूँ

नीला ड्रम प्लास्टिक का


सरकार ज़ाहिर करे वो मज़लूमों की हिफाजत को है

जल्द से जल्द कानूनन बैन करे 

नीला ड्रम प्लास्टिक का

व्यंग्य: फायर भी फ्लॉवर भी

 

 

 

    पत्नी को पति से प्यार के लिये कोई कारण नहीं चाहिये। ना ही फायर करने को। विडम्बना ये है कि एक ही कारण से पत्नी आप पर मेहरबान हो जाती है उसी कारण से आपको 'फायर' करती है। उसे वह  प्यार कहती है। प्यार की उसकी अपनी परिभाषा है। अतः पत्नी अगर फ्लाॅवर है तो वही फायर भी है, बस उसके मूड के ऊपर है। अगर उसने डिसाइड कर लिया फायर करना है तो करना है। कुछ दिनों से मेरे नाश्ते को लेकर काफी रौड़ा मचा हुआ था। क्या खाना चाहिए क्या नहीं। मैंने दरअसल अंडे के लिए मना कर दिया था। कोई शाकाहारी-मांसाहारी का सवाल नहीं था बस मैंने देखा कि अंडा पचाने में मुझे बहुत टाइम लगने लगा है। सुबह नाश्ते में अंडा खा लो, चाहे ऑमलेट या उबला हुआ, चाहे हाफ फ्राई या अंडे की बुर्जी। मैंने पाया कि यह बहुत भारी हो जाता है। शाम चार बजे तक भूख ही नहीं लगती। दूसरे शब्दों में लंच चौपट हो जाता है।

 

          अतः घर में डिक्लेयर कर दिया कि मैं अंडा नहीं खाऊँगा। अब विकल्प ढूँढे जाने लगे। कोई कितने पोहे खा लेगा। कोई कितनी उपमा खा लेगा। कोई कितना ढोकला, कितने इडली-वडा रोज़ रोज़ खा सकता है। फिर कायदे का बनाना भी आना चाहिए। आप हर आइटम के साथ या यूं कहिए अपनी बॉडी के साथ रोज़ रोज़ एक्सपेरिमेंट तो नहीं कर सकते। अतः ये फाइनल हुआ कि दो-तीन तरह के मौसमी फल काट दिये जाया करेंगे। आप उन्हीं में से कुछ कुछ खा लें और स्प्राउट खा लिया करें। मैं राज़ी हो गया।

 

             अब रोज़ मुझ पर नज़र रखी जाने लगी या बाई चांस मुझे खाता देख पत्नी जी ने कहा "फल ज़रूर खाने चाहिए। खासकर मौसमी फल"। पत्नी को तो आपको उपदेश देना है। जबकि मैं फल ही खा रहा था। एक दिन फिर उन्होने मुझे खाते  देख लिया उनके अंदर की साध्वी प्रज्ञा फिर जागृत हो गई। फल धीरे-धीरे चबा-चबा कर खाने चाहिए। हड़बड़ी में नहीं खाने चाहिए। अभी ये फल-पुराण खत्म नहीं हुआ था उन्होने फिर एक दिन देख लिया और ज़ोर दिया “इंसान को एक केला तो कमसेकम रोज़ खाना चाहिए, इससे आयरन की कमी नहीं रहती"। मैं सोच रहा था अब रिटायर होने के बाद आयरन की कमी कहाँ से होगी। उल्टे ज्यादा हो गया तो दवा खाते फिरो या और भाग-दौड़ करो।

 

               मैंने अपने नाश्ते का टाइम चेंज कर लिया और उनके उठने से पहले ही शांति से नाश्ता करने लगा। मगर एक दिन वो खुद ही जल्द ही उठ गईं। मैं अपने जाने तो बहुत सावधानी से फल खा रहा था कारण कि मुझे पता था मैं सीसीटीवी की तरह उनकी निगरानी में हूं। और लो जी इस सब के बावजूद उन्होने एक ख़ामी पकड़ ही ली। “इंसान को फल एक-एक करके खाने चाहिए यानि पहले चीकू खत्म करो, फिर थोड़ा गैप दो। फिर खरबूज खत्म करो, फिर थोड़ा गैप दो। फिर पपीता खाओ, खत्म करो और फिर तरबूज खाओ खत्म करो। ये नहीं कि कोई क्रम ही नहीं। कभी कांटे से तरबूज उठा रहे हो, कभी चीकू तो कभी पपीता।

 

           मुझे इस बात की उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि ये मेरी आखिरी ख़ामी नहीं।

Thursday, May 29, 2025

संस्मरण : कबाड़ी बाज़ार उर्फ चोर बाज़ार

 

      

 

       दिल्ली में हमारे बचपन में ये बाज़ार एडवर्ड पार्क (अब नेताजी सुभाष चंद बोस पार्क)  के पीछे वाली रोड पर हर रविवार को लगता था। यह उस रोड पर लगता था जो दरियागंज से कट के आगे जगत सिनेमा (मछली थियेटर) तक जाती थी। यह बाज़ार सड़क के दोनों ओर फुटपाथ पर लगता था। यह मिक्स बाज़ार होता था, अर्थात उसी में गरम कोट, ओवर कोट बिकते थे तो उसी में किताबें, नाॅवल्स और काॅमिक्स बिका करते थे। इन सबसे बढ़ कर एक और आकर्षण की चीज होती थी। हैड फोन और फिल्म के बच्चों वाले मेनुअल प्रोजेक्टर तथा फिल्मी रील के रोल। मुम्बई का चोर बाज़ार, शुरु से चोर बाज़ार ही कहलाता है। हांलाकि ऐसा कहा जाता है कि वहां से उठने वाले कोलाहल की वजह से अंग्रेज उसे शोर बाज़ार कह संबोधित करते थे जो धीरे धीरे चोर बाज़ार कहलाया जाने लगा।

 

 

                संडे के संडे अपना प्रोग्राम होता था वहाँ जाकर विंडो (?) शॉपिंग करना। जो अपनी खरीदने की वस्तुएँ होती थीं और जो हम अपनी 'ग़रीबी रेखा' के नीचे वाली पॉकेट मनी से एफोर्ड कर सकते थे वो होते थे फेंटम (वेताल) के काॅमिक्स। तब ये काॅमिक्स केवल टाइम्स ऑफ इंडिया ही पब्लिश करता था। उन पर एक सीरियल नंबर अंकित रहता था। हम इस बात पर गर्व करते और सबको बताते फिरते थे कि हमारे पास पूरी सीरीज है सिवाय फलां फलां नंबरों के। इतवार के इतवार उन खोये हुए नंबरों के 'वेताल' की तलाश में ऐसे जाते थे जैसे एडवेंचर नॉवल में लोग खजाने की खोज में निकलते। कभी जब कोई काॅमिक्स मिल जाता तो बहुत खुशी से ऑन दि स्पॉट खरीद लेते। एक बार ऐसे ही जब एक काॅमिक्स दिख गया तो उसे उलटते-पुलटते मैंने दुकानदार से कीमत पूछी वो बिना मेरे तरफ देखे, बोला 'जिन में कवर लगा है अर्थात कवर इनटेक्ट है वो 15 पैसे (ढाई आने) के हैं और बिना कवर वाले दो आने (12 पैसे ) के हैं'। मेरे पास पैसे शायद तब तक दो आने ही बचे थे मैंने दुकानदार को ऑफर दी कि वह चाहे तो कवर उतार ले पर मुझे दो आने में दे दे। उसने मुझे विनोद से देखा और साथ के दुकानदारों को हँसते हुए बताने लगा “देखो ! देखो ! ये लड़का क्या कह रहा है” मेरे समझ में ही नहीं आया कि इसमें दूसरे दूकानदारों को बताने वाली क्या बात हुई। अब यह याद नहीं वो काॅमिक्स फाईनली खरीद पाया या नहीं। इन सब काॅमिक्स को रखने के लिए पिताजी का एक पुराना लैदर बैग जो उन्होने रिटायर कर दिया था उसी में सीरियल से सजा कर रखता था। कोई आता तो उस खजाने को खोलता। या फिर आपस में क्लास के बच्चों के साथ अदला-बदली करते थे।

 

 

           एक दूसरी दुकानों का ग्रुप जो अपनी ओर खींचता था वह था फिल्मों के काले-काले मिनी प्रोजेक्टर और फिल्मों की रीलों के रोल। शायद प्रोजेक्टर 20 या 25 रुपये का होता था। एक बार पैसे जोड़ कर और हिम्मत बटोर कर प्रोजेक्टर खरीद ही लिया। फिल्म का एक छोटा सा रोल (कप-प्लेट) की प्लेट जितना बड़ा रील का रोल फ्री मिला था। उसी शाम हम भाई बहन कमरे में अंधेरा करके बैठ गए। लगे कभी फोकस ठीक करने, कभी हेंडल चलाने। मगर ना तो कायदे का फोकस ही बन पाया न हेंडल कायदे से चला पाये। फलस्वरूप कुछ भी समझ नहीं लगा। आवाज तो थी ही नहीं। कई सालों बाद जब जॉय मुखर्जी-सायराबानो की जिद्दी देखी तो याद आया कि वो रील इसी फिल्म के एक प्रकरण की थी, जो फिल्म में मुश्किल से 5 मिनट का था, और हम प्रोजेक्टर का हेंडल घुमा घुमा के पसीने में नहा गए थे।

 

 

         हाँ इलेक्ट्रोनिक की दुकान से हैडफोन ज़रूर खरीदा था। वह एक कान का 5 रुपये का मिलता था जबकि दोनों कानों का दस रुपये का। ले दे कर 5 रुपये वाला खरीद लाये। उसमें मीडियम वेव रेडियो हरदम बजता रहता था। आप ऐसे नहीं सुन सकते थे। उस को कान पर लगा, हाथ से पकड़े रहना होता था। उसमें से एक तार एंटीना का काम करने को छत से लटकाना पड़ता था।

 

 

        फिर जीवन की दो ट्रेजिडी साथ-साथ हुईं। बाज़ार वहाँ से लाल किले के पीछे शिफ्ट हो गया। दूसरे हम थोड़े और बड़े हो गए। वेताल-मेंड्रेक पीछे छूट गए। अब ना वेताल था, न कोई जादूगर। न कोई रील थी ना ही कोई प्रोजेक्टर था। जो बच रह गया वह था ‘अब ज़िंदगी आपकी रील बना रही थी’।  

  

 

 

      जीवन की वो छीटी छोटी खुशियाँ न जाने कहाँ लुढ़क गईं।

 

 

(नोट: कालांतर में बुक बाज़ार दरियागंज मेन रोड के फुटपाथ पर बरसों लगता रहा। बाद में सुप्रीम कोर्ट से हारने के बाद यह बुक बाज़ार अब सिमट के आसफ अली रोड, डिलाइट सिनेमा के अपोजिट लगने लगा है)

Wednesday, May 28, 2025

व्यंग्य: मुझे मेरे दामाद से बचाओ

 

  

 

                शादी से पहले शादी के लिए लड़की देखने-दिखाने का प्रोग्राम चलता है। ऐसे प्रोग्राम सामान्यतः अरेंज शादी में होते है। जहां बड़े-बूढ़े बैठ कर शादी की अन्य औपचारिकताएं डिस्कस करते हैं। क्या मेन्यू ? क्या दहेज की डिटेल्स?  कितने चाचा, कितनी चाचियाँ, कितने साले कितनी सालियां उनके लिए क्या-क्या दरकार है आदि आदि। सास को क्या देना है? बाकी रिश्तेदारों को क्या-क्या लेना-देना है?

 

           अमूमन शादी के लिए देखने दिखाने की इस एक्जिबिशन में सयानी मां, दीदी वगैरह एक बात का और ख्याल रखते हैं। ऐसे मौकों पर अन्य लड़कियों को दूर रखा जाता है। खासकर सुंदर शादी के लायक उम्र की लड़कियों को। क्यों कि ऐसा होने पर कुछ नाटकीय भी हो सकता है जैसे- ये नहीं मुझे वो पसंद है। अतः ऐसे अवसरों पर वुड बी सालियों, कुंवारी सहेलियों को दूर ही रखा जाता है। जब तक कि बात फाइनल ना हो जाये।

 

             अब लड़कियों, चाहे सालियाँ हों या सहेलियाँ को दूर रखना समझ आता है कि वो शादी में कोई भाँजी ना मार दें। या चंचल लड़के का मन  फिर ना जाये।  पर एक बात बताइये ऐसे में मां को कहाँ ले जाया जाएगा? भाई मां ने तो साथ रहना ही है। अब गोंडा, बस्ती में ऐसा कांड हो जाएगा किसे उम्मीद होगी? किसी कारण से इस शादी की 23 वर्षीय भावी दूल्हे को मना कर दिया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 23 वर्षीय भावी दूल्हे महाराज और 44 वर्षीय सासु मां के बीच मीठी-मीठी बातें चालू हो चुकी थीं। ना केवल चालू हो चुकी थीं बल्कि बहुत दूर तक चली गईं थीं। वो कहते हैं ना दोनों में गाढ़ी छनने लगी थी। अब जब भावी दूल्हे की शादी की मना हो गई तो और निर्बाध रूप से घंटों बातें होने लगीं। क्या कहते हैं 'स्वीट नथिंग' का खूब आदान-प्रदान होने लगा। जिसका डर था वही बात हो गई। सास को लेकर भावी दामाद साब फुर्र हो गए या कहिए:

 

    दुनियां वालों से दूर जलने वालों से दूर

 

        भावी सास अपने भावी दामाद को लेकर ये जा वो जा। ससुर साब सोच रहे होंगे बेटी के हाथ तो पीले हो न सके। अपनी पत्नी से और हाथ धोने पड़ गए। आगे से ऐसे अवसरों पर न केवल सालियों, सहेलियों को दूर रखना है बल्कि दुल्हन की माँ को भी जहां तक हो सके पर्दे में रखिए। ज़माना खराब है।

 

     मां को दिखा नहीं देना जी दिखा नहीं देना

    ज़माना खराब है, मां को दिखा न देना

 

 उधर दूल्हे महाराज अलग काॅमेडियन महमूद साहब का 'आँखें' फिल्म का वो गाना गा रहे होंगे: 

   

         दीनार नहीं तो डॉलर चलेगा

       कमीज़ नहीं तो कमीज़ का काॅलर चलेगा 

      डाॅटर नहीं तो डाॅटर का मदर चलेगा

Tuesday, May 27, 2025

Humour : Sindoor Dip-Low-Messy


India, in her hour of need, has responded in a befitting manner. Generally, on the face of such a scenario the nations of the world come together as a moral support to the ‘victim’ nation. Alas! no nation came to our support despite our telling them like Hollywood films - “We have a situation”. No less than 72 countries our own Vishwaguru Hon’ble Prime Minister has visited.  In fact, after each such visit, we were told, in no uncertain terms that India has become Vishwaguru under his divine leadership. Each time we celebrated and cherished the heart stealing photographs, where the Heads of Govt would visibly appear grateful embracing our P.M. and won’t let go the bear-hug. When India needed most, then the support came from none except Taliban


What else could we do? What option we were left with? That was the moment we decided we will despatch our own delegation to various countries/continents. We are determined to expose the enemy to the world. Names of the members of the delegation were actively being thought of. Our own lot is of no use. They could neither communicate in English, nor articulate their utterances and don’t sound convincing at all

 

Therefore, we decided to send an All-Party Delegation. Easy to include in the name of integrity of the nation. If it is on state exchequer, who would hesitate to be in 'Team India' 


 The bigger question begging answer is wherever the delegation visits, whom will they address? Whom will they convince? Would they deliver only speech or the speech would be followed by Power point presentation? Would they show video clips of the aggression? In short, what would be the modus operandi? Would they be busy doing road-show? Are road-shows permitted abroad? Watch out please !. We don’t want our delegation to land in trouble with the civic authorities there. I fail to understand, whether Public Meetings would be organized a la Hyde Park? Would delegates visit different cities of the countries? I am wondering whether citizens would be invited to public park or some auditorium? Are people there as ‘idlers’ as in India? Or like here, daily wage unemployed guys there will find a day’s work? I am sure unlike India; these guys will not get attracted by screening of some Bollywood film. I feel they may come for free lunch and cocktail. But they would go in opponent’s banquet also with the same ease and dedication. 


        Of the nations in the itinerary, quite a few are so tiny (geographically speaking) that in half a day entire country can be covered in a jeep or tempo fitted with a PA system. We may play latest hit Bollywood film songs punctuated with our claim as to what all we have done as the ‘Savior of the universe’. I don’t think our delegation would be so strong as to cause summoning of special session of parliament.   If I were you, I would utilize sea-beaches. There we can use loud speaker and address the sun-bathers


        Please do not forget to pack your 3 Bs. Bermuda, Beach-wear and Beer

Monday, May 26, 2025

व्यंग्य: सिंदूर डिप-लो-मैसी

                       


                   भारत ने मुसीबत की घड़ी में मुंहतोड़ करारा जवाब दिया है। इस तरह के 'सिनोरियो' में एक एक करके दुनियाँ के तमाम देश ‘विक्टिम’ देश की ‘मॉरल’ सपोर्ट में आ जाते हैं। पर अफसोस ! हमारे दुनियाँ को ये बताने के बाद भी कि ‘वी हैव ए सिचुएशन’ कोई नहीं आया। भारत विश्वगुरु हो गएला है। हमने खुशियां मनाईं थीं। इतने सुंदर, मन-लुभावन फोटो हमे देखने को मिलते थे।  दुनियाँ के देशों के बड़े-बड़े नेता हमसे  मिल कर अपने को धन्य धन्य महसूस करते। फोटो पर फोटो खिंचाते अघाते नहीं थे। आज जब ज़रूरत आन पड़ी तो सिवाय तालिबान के कोई आगे नहीं आया। ये भी न हुआ कि हमारे हक़ में दो मीठे बोल ही बोल देते।

 

निकला था सफर पर मैं

पा के हमसफर इतने सारे

एक मोड़ पर देखा जो पीछे मुड़ कर

साथ मेरे गुबार-ए-कारवाँ भी न था

 

तब ऐसे में हम क्या करते हमारे पास विकल्प ही क्या छोड़ा था? अतः हमने ये ठान लिया कि हम अपने ही चन्द  शिष्ट मण्डल कंट्री-कंट्री काॅन्टीनेंट-काॅन्टीनेंट भेजेंगे। हम दुश्मन को दुनियाँ के सामने एक्सपोज़ कर देंगे। । अतः आनन-फानन में शिष्टमंडल के कंपोज़ीशन बनाये जाने लगे। ये अपने वाले तो किसी काम के हैं नहीं। ना अंग्रेज़ी बोल सकते हैं ना आर्टीकुलेट कर सकते हैं और कन्विन्सिंग तो लगते ही नहीं हैं। अतः यह तय पाया गया कि क्यों ना  ऑल पार्टी कंपोज़ीशन का गठन किया जाये। देश की एकता के नाम पर, टीम इंडिया के नाम पर कौन मना करेगा ? सब आ जाएँगे। आखिर सरकारी खर्चे पर विदेश यात्रा को कौन मना करेगा?

 

 

अब बड़ा सवाल ये है कि ये लोग जिन-जिन देशों में जाएँगे वहाँ बात किससे करेंगे ? किसको कन्विन्स करेंगे? क्या वे सिर्फ भाषण देंगे या पाॅवर पॉइंट प्रेजेंटेशन देंगे? या कि फिर कुछ घटना स्थल की फिल्में दिखाएंगे? माॅडस ऑपरेंडी अभी तय नहीं पाई गई है। अब इतना हाई पाॅवर डेलीगेशन है कोई वहाँ जाकर नुक्कड़ नाटक या नुक्कड़ सभा तो करेंगे नहीं। पता नहीं वहाँ एलाऊ भी है या नहीं ? कहीं शिष्ट मण्डल के ही लेने के देने ना पड़ जाएँ। बहरहाल अभी तक मुझे समझ नहीं लग रहा है कि ये कोई आम सभा रखेंगे या फिर उन देशों के शहर-शहर जाएँगे वहाँ के लोगों को कहीं पार्क में या ऑडिटोरियम में 'इनवाइट' करेंगे? क्या वहां भी लोग इतने 'वेले' हैं कि आप बुलाएँगे और वे आ जाएँगे। क्या वहाँ भी बेरोजगारी है अतः डेली-वेजेज़ टाइप लोग का आना तो पक्का है ? वहाँ तो ऐसा भी नहीं होगा कि आप कोई लेटेस्ट फिल्म दिखाने के बहाने लोगों को इकट्ठा कर लें या फिर फ्री डिनर-काॅकटेल के लालच में आ जाएँ। कहीं आ भी गए तो मान कर चलें कि वे दूसरे के प्रोग्राम में भी उतनी ही निष्ठा से जाएँगे।

 

हम यार किसके ?

दारू-डिनर दे उसके

 

कुछ देश तो इतने छोटे-छोटे हैं कि आप एक जीप या टेम्पो में लाउड स्पीकर लगा कर हाफ डे में पूरा चक्कर लगा सकते हैं कोई फिल्मी गीत चलता रहे बीच बीच में आप एडवरटाइज़मेंट की तरह बताते रहें कि हमने मानवता बचाने को क्या-क्या नहीं किया? एक दुश्मन देश है जो मानवता का दुश्मन है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ ? अब ये देश हमारी गुहार पर अपनी संसद का विशेष अधिवेशन तो बुलाने से रहे। हाँ एक और प्लेटफॉर्म मिल सकता है- आप सी-बीच पर चले जाएँ और वहाँ लाउड स्पीकर पर बताते रहें। उसके बाद अपनी थकान मिटाने शिष्टमंडल के सदस्य वहीं 'सन बाथ' ले लें, फोटो खिंचाएं।

 

हाँ अपने बरमूडा और अन्य बीच-वेयर ले जाना ना भूलना।

                 

Saturday, May 24, 2025

व्यंग्य: बालों की जानलेवा ग्राफ्टिंग


 

महिलाओं के बालों को लेकर शायरों ने दीवान के दीवान लिखे हैं। बड़े बालों, ज़ुल्फ के अपने जलवे रहे हैं। ज़ुल्फ का लहराना, ज़ुल्फ में चेहरा छुपा लेना, ज़ुल्फ में खुशबू का तेल महिलाओं के शृंगार का अभिन्न अंग रहा है। पूरी की पूरी इंडस्ट्री ज़ुल्फ के दम पर चल रही हैं। क्या गजरा, क्या परिंदा, क्या चुटीले, क्या जूड़े की जाली, क्या हेयर पिन, क्या हेयर बेंड क्या हेयर ड्रायर, क्या बालों को सीधा करने वाले चिमटे, क्या शेंपू, क्या हेयर टॉनिक। क्या हेयर डाई, क्या मेंहदी।

 

कहने का अर्थ ये है कि महिलाओं की चोटी ने ना जाने कितने उद्योग-धन्धों को चोटी पर पहुंचाया है। उनकी देखा देखी न जाने कब में पुरुषों के बालों की महत्ता भी पुरुषों के समझ में आने लग पड़ी। ऊपर दिये बहुत आइटम मे से अनेक आइटम पुरुषों पर भी एप्लाई करते हैं। उन्हें भी हेयर डाई, शेंपू, तेल-फुलेल दरकार होती है। वहाँ तक तो ठीक था मगर ना जाने कब मे पुरुषों में गंजापन बढ़ने लगा। वो शेर है ना:

 

मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की

 

बाल जितने झड़ते जाते उतने ही प्रसाधन बाज़ार में आते जाते। विज्ञापन पर विज्ञापन दिये जाने लगे। प्रसाधनों की आवश्यकता 'क्रिएट' करने लगे। कोई कहता हमारा तेल लगाओ, कोई कहता हमारा साबुन लगाओ। हमारी हेयर डाई लगाओ। हमारी डाई अमोनिया फ्री है आदि आदि।

 

यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक था। फिर विग की मार्किट के पेरेलल ग्राफ्टिंग मार्किट में आ गई। एक डॉ नुमा आदमी आपको इंगलिश में समझाने लगता है और आपको एक-एक बाल को रोपने का रेट बताता है। कुछ फर्ज़ी फोटो ‘बिफोर’ और 'आफ्टर' टाइप दीवाल पर लगा लेते हैं। जैसे पहले सिगरेट के एड आते थे  फलां ब्रांड की सिगरेट पीने से कैसे लड़कियां आपकी परसनल्टी से इंप्रेस हो आपको घेर लेंगी। सोचिए मात्र एक ब्रांड विशेष की सिगरेट पीने से आपका व्यक्तित्व कितना लुभावना और चुम्बकीय हो जाता है। बस कुछ उसी तरह आपकी ज़ुल्फ से आप हेंडसम फिल्म स्टार दिखने लग पड़ते हैं। आप सफल व्यवसायी, सफल बिजनिस, सफल पड़ोसी न जाने क्या क्या बन जाते हैं। बाल नहीं तो आप कुछ भी नहीं। "ना झटको ज़ुल्फ़ से पानी ..." अब जब ज़ुल्फ ही नहीं रहेगी तो कैसे गीतों की इंडस्ट्री चलेगी। आप कैसे सफल मर्द बन पाएंगे। परिणामतः लोग ज़ुल्फ पाने को ग्राफ्टिंग की क्यू में खड़े हो गए। बालों को इतना महत्व शायद ही किसी और युग में दिया गया हो। कुछ सेलेब्रिटी किस्म के लोग तारीफ करते नहीं थकते। अमुक कंपनी से मन लुभावनी ग्राफ्टिंग करवाएँ।  क्या आप सफल क्रिकेटर, सफल कमेंटेटर, सफल एडिटर, सफल सेल्समैन, सफल एक्टर, सफल दूल्हा मैटिरियल नहीं बनना चाहते ? यदि हाँ, तो देर किस बात की है। हमारे इस लेख की प्रति लाने पर दस प्रतिशत की छूट पायें। दो दिन के अंदर अंदर आने पर दस परसेंट की एक्स्ट्रा छूट पाएँ। गो कि आप कैसे तो हमारे इस क्लीनिकनुमा मक़तल पर पधारें। हम कब से छुरी लिए तैयार बैठे हैं। बुरा हो ऐसी ज़ुल्फ का जिसके लिए अगले को जान से हाथ धोना पड़े। ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं जो ज़ुल्फ की चाहत में अपनी जान को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं। वे ज़ुल्फ के इस भँवर जाल मे फंस के रह गए और जान से हाथ धो बैठे। अतः

 

जा विधि राखे गंजी चाँद ता विधि रहिए

 

अपनी आंतरिक वर्थ पहचानिए। दिल को देखो ज़ुल्फ को नहीं। फिर भाग्यवान, विद्वान और पैसे वाले होने का पहला लक्षण ज़ुल्फ का न होना है। क्या आप भाग्यवान, विद्वान और पैसेवाला नहीं दिखना चाहते ? यदि हाँ, तो आज ही ये नकली ज़ुल्फ के कारोबारवालों से बचें। सच मानिए ! आप ऐसे ही बहुत हैन्सम लगते हैं।

 

 

Thursday, May 22, 2025

व्यंग्य: एम.ए. इन पूजा सामग्री


 

हमारे स्कूल के जमाने में 'धर्म' नामक एक विषय होता थाl इसमें हमें विश्व के प्रमुख धर्मों, उनके संस्थापक, पवित्र पुस्तक और टीचिंग्स का मोटा-मोटा विवरण पढ़ाया जाता था। एक तरह से बेसिक नाॅलिज दी जाती थी। बिना किसी 'बायस' के। तब से गंगा में बहुत पानी (कैमिकल युक्त और गंदे नालों का) बह गया। लेटेस्ट है एक यूनिवर्सिटी ने अपना ही एक 'सेंटर फॉर हिन्दू स्टडीज़' खोल मारा है। और तो और इसमें प्रवेश की औपचारिकताए पूरी कर ली गई है। बहुत सारे पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा कोर्स चलाये जाने की खबर है। हमें तो अभी तक यही पढ़ाया जाता था की हिन्दू कोई धर्म नहीं। ये तो महज़ एक जीने का ढंग (वे ऑफ लाइफ) है। यदि ऐसा है तो ये कोर्स पर कोर्स क्यूँ ? ये बात समझ से परे है।

 

अब इस हिन्दू अध्ययन केंद्र के कोर्स की बानगी देखिये।

एम.ए. इन हिन्दू स्टडीज़, पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा इन टेंपल मेनेजमेंट, (ज़ाहिर बात है अब जबकि गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ छोटे बड़े इतने मंदिर देश भर में खुल गए हैं तो उनका प्रबंधन भी तो प्रोफेशनल ढंग से पढे-लिखे लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। एक कोर्स एम.ए. इन कीर्तन शास्त्र भी खोला है। सोचिए कितना कुछ ज्ञान आपकी प्रतीक्षा में हैं। आप तो ले दे कर एक गायत्री मंत्र और एक गणेश पूजा को ही हिन्दू धर्म माने बैठे थे। अब पता लगेगा कितना विस्तृत सागर है ये हिन्दू धर्म। अब उतना विस्तृत या गहरा ना भी हो तो जैसे नाविक आपको डूबी हुई द्वारका की कहानियाँ सुनाता ले जाता है। कभी भयावह कभी कौतुहल से सागर की गहराई और विस्तार बताता जाता है। उसी तरह पुजारी जी, जो मंदिर के महंत हैं उनका अधिकृत काम आपको क्लिष्ट बातें आसान शब्दों में एक्सप्लेन करना होता हैं।

 

सोचो ! जब आप डिप्लोमा इन कीर्तन शास्त्र कर लेंगे तो कितने भजन और उनके अर्थ आपको जुबानी याद हो आएंगे। इसको सरल और रुचिकर बनाने को इन पर आधारित अंताक्षरी खिलाई जाया करेगी। बोले तो प्रैक्टिकल के पीरियड में। शुकर है मुंबई में गाला-गाला, घर-घर, छोटे बड़े मंदिरों की भरमार है अतः इन तालिब-ए-इल्म को इंडस्ट्रियल अटेचमेंट में कोई परेशानी नहीं आएगी। सोच रहा हूँ क्या इनका कोई ड्रेस कोड भी तया होगा ? क्या ये कोर्स सभी वर्णों के लिए खुले होंगे ? लोग योगा सीखते हैं, ज्योतिष सीखते हैं ताकि वे विदेश जा सकें। खा-कमा सकें। सरकार चाहे तो हर एम्बेसी में एक अतैशे ये वाला रख दे। आखिर अशोक ने संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये भेजा ही था।  क्या ये कोर्स विदेशियों के लिए भी खुले रहेंगे ? लोगबाग अपने घरेलू/ ट्रस्ट मंदिरों के लिए बड़ी-बड़ी कैपिटेशन फी दे दे कर एडमिशन करा सकेंगे ? कोई एडमिशन टेस्ट हुआ करेगा, सी.यू.ई.टी. की तरह?  दक्षिणा आई मीन फीस कितनी होगी?  स्टूडेंट लोग तिलक और चोटी रखा करेंगे या उस्तरा फिरवाना पड़ेगा? क्या इसमें पोथी-पत्रा बांचना भी सिखाएँगे ?  हमारे देश में लोग मंदिर जा कर कुछ ना कुछ ज़रूर मांगते हैं। अतः उन पर क्या संकट आने वाला है या उन संकटों का क्या उपाय हैं ये सब सरल भाषा में सिखाया जाया करेगा? टेंपल मेनेजमेंट कोर्स में क्या ये सिखाया जाया करेगा कि कैसे मंदिर में थाली में सामाग्री ले जानी है अथवा बास्केट में ? फूल कौन सा होना चाहिए? मैंने कहीं सुना था हरेक देवता का फूल भी अलग होता है। अतः ये मैच भी बताया जाएगा। उसके साथ ही बताया जाये कि अभीष्ट फूल न मिले तो अन्य कौन सा फूल विकल्प हो सकता है ?

 

एक बात मेरे मन में ये है कि क्या इन कोर्सों में कुछ तुलनात्मक भी पढ़ाया जाया करेगा ? जैसे इस विषय पर जैन धर्म ये कहता है, बुद्धिस्ट त्रिपिटिक ये कहते हैं ? पारसियों का ये मत है और इस्लाम ये कहता है। अथवा लब्बोलुआब ये निकाला जाये कि ये बात और कट्टर तरीके से बिताई जाएगी कि हिन्दू धर्म सबसे श्रेष्ठ है। बाकी धर्म इसी से निकले हैं अथवा इससे कमतर हैं। म्लेक्ष हैं।

 

 

लगे हाथों जो कोर्स मेरे मन में आ रहे हैं:

डिप्लोमा इन पूजा सामाग्री, डिप्लोमा इन मैनेजमेंट ऑफ कमर्शियल एक्टिविटीज (शाॅप्स) एराउंड मंदिर, एम.ए. इन वरशिप, डिप्लोमा इन व्रत, सर्टिफिकेट कोर्स इन नौरात्रे, डिप्लोमा इन पिल्ग्रिमेज, क्राउड मैनेजमेंट ऑफ टेम्पल्स विद स्पेशलाइजेशन ऑन फ़ेस्टिवल्स। सर्टिफिकेट कोर्स इन अपशकुन, डिप्लोमा इन स्वप्न-फल, एक बात और जो मेरे मन में आ रही है इन स्टूडेंट्स का नौकरी के प्लेसमेंट के लिए कैम्पस सलेक्शन हुआ करेगा या इन्हें भी अन्य एम.ए. और पी.एच.डी. की तरह धक्के खाने पड़ेंगे। आई मीन खड़ाऊं फटकारनी होगी  अथवा सरकार इनके लिए कोई अग्निवीर टाइप योजना लाएगी ?