Ravi ki duniya

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Thursday, May 1, 2025

व्यंग्य: ऑपरेशन-ऑपरेशन


 

      बचपन में हम लोग डॉक्टर-डॉक्टर खेलते थे। जितने भी बच्चे डॉक्टर-डॉक्टर खेलते थे उनमें से कोई भी बड़े होकर डॉक्टर नहीं बन पाया। अलबत्ता मरीज हर एक बन गया। रामायण और महाभारत सीरियल में बात-बात में पात्रों का आशीर्वाद देने का चलन था। आशीर्वाद भी ऐसा-वैसा नहीं बल्कि सीधा आयुष्मान भव: वाला। इसी से प्रेरित होकर सरकार ने अपनी स्वास्थ्य योजना का नामकरण आयुष्मान भारत रख छोड़ा। अब जिसे देखो आयुष्मान भव: का कार्ड लिए लिए अस्पताल-अस्पताल चक्कर लगा रहा है। अस्पतालों ने इनके लिए अलग ही काउंटर बना दिया है ताकि सांभ्रांत मरीजों के इलाज में व्यवधान ना पहुंचे।

 

 

       इसी श्रंखला में अस्पताल वाले अब अपने विज्ञापनों में बड़े-बड़े अक्षारों में लिखने लग गए हैं कि हमारे यहाँ आयुष्मान योजना के अंतर्गत इलाज किया जाता है। ज़ाहिर है इसके लिए उन्हें सरकार से ग्रांट मिलती होगी। इसी सीरीज में वो आए दिन कैंप का आयोजन करते रहते हैं। कैंप में भावी मरीज पकड़ने में आसानी होती है। उन्हें समुचित तौर पर बीमारी के भयावह होने का डर दिखाया जा सकता है अथवा उनकी बीमारी के बारे में बढ़ चढ़ कर बताया का सकता है। ताकि आयुष्मान के साथ साथ कुछ धन लाभ भी हो सके। दूसरे शब्दों में आयुष्मान भव: यदि बिल पे भव:।

 

 

      एक कस्बे के अस्पताल में इस योजना के अंतर्गत आँखों की जांच के कैंप आयोजित किए गए। इस तरह के कैंपों में भी भावी पेमेंट वाले मरीज चिन्हित करने में मदद मिलती है। एक मरीज जो अपने मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए दाखिल हुआ तो उसे जब छुट्टी दी गई तो उसने देखा कि डॉक्टर साब ने मोतियाबिंद तो दायीं आँख में बताया था और उसने शिकायत भी दायीं आँख से कम दिखने की की थी मगर ये क्या पट्टी बाईं आँख में बंधी है। वह दौड़ा-दौड़ा अपने किसी पहचान वाले डॉक्टर के पास गया तो डॉक्टर ने आँख की जांच कर बताया कि उसकी आँख ठीक है और जिस आँख में पट्टी बंधी है अर्थात जिस आँख का ऑपरेशन होना बताया गया था उसमें भी केवल आई ड्रॉप डाली गई है। जाओ ऑपरेशन सफलता से सम्पन्न हुआ। ये दाया बायाँ वाला चक्कर नहीं होता तो मरीज को पता भी नहीं चलता कि आँख का कोई ऑपरेशन- वापरेशन नहीं हुआ है बस आई ड्रॉप और पट्टी का खर्चा ही किया है अस्पताल ने।

 

अब आपको समझ आया। कोई भी कैसी भी बेहतर से बेहतर योजना आप ले आयें, लागू होने के स्तर पर उसमें भाई लोग दायें-बाएँ कर ही लेते हैं। अब युवकों के पास रोजगार है नहीं, ऐसे में आखिर बेचारे उन लोगों को भी तो आयुष्मान रहना है।

 

 

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