Ravi ki duniya

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Tuesday, September 16, 2025

व्यंग्य : टॉमी उर्फ मोती हाजिर हो !


                                                          


               नेताजी  ने घोषणा की है कि उनके सूबे में कुत्तों के कुत्तियाना बिहेव और रवैये के कारण आम जनता को बहुत परेशानी हो रही है। सूबे में लोगों के साथ कुत्ते तमीज़ से पेश आयें। ये उनकी जिम्मेवारी ही नहीं प्राथमिकता है। अतः सभी खास-ओ-आम कुत्ते को ताकीद की जाती है कि आज से कड़े कुत्ता कानून लागू किए जाएँगे। ताज़ीरात-ए-कुत्ता के तहत कोई भी कुत्ता अगर कुत्तागिरि करता पाया गया तो उसे इस कुत्तेपने की सज़ा मिलेगी, बरोबर मिलेगी।  हमारे सूबे में कोई कुत्ता किसी की 'मैन टीजिंग' करता पाया गया तो उसकी खैर नहीं।

 

अब यह मुनादी सुन कर कुत्तों में असंतोष व्याप्त होना लाजिमी था। उन्होने तुरत-फुरत इमरजेंसी मीटिंग बुलाई जिसमें कुत्तान लोगों के बड़े बड़े लीडरान आये। इस नए ‘थ्रेट’ से कैसे निपटा जाये इस पर बहुत सारी भों भों की गयी।  कानूनी पेचीदगियों से कुत्ता बिरादरी ज्यादा वाकिफ न थी हालांकि उनकी बिरादरी के बड़े बड़े कुत्ते वकील हुए हैं। आज भी शायद ही कोई ऐसा कोर्ट हो जिसमें उनकी बिरादरी का कुत्ता नामी वकील न हो। लेकिन फिर भी सावधानी जरूरी है। यह सोच कर सभा आयोजित की गयी।

 

अब सोचिए काटा किसे ? आदमी को, आदमी का वकील कौन आदमी, कोर्ट में जज कौन ? आदमी। गोया कि वकील आप, जूरी आप, मुंसिफ़ आप, हमें पता था हमारी खता निकलेगी। हम अपनी भों भों किसे सुनाएँ ? आदमी का बरताव नहीं दिखता। पूरी रात ड्यूटी देकर हम सुस्ता रहे होते हैं। ये आदमी है कि हमें जरूर छेड़ता है, कंकड़ मारेगा, पास आकर लात घुमायेगा। हमारे साथ छेड़छाड़ करेगा। टैडी बेयर टाइप शेर हमारे पास रख कर हमें डराता है। सच्ची ! कई बार तो हार्ट अटैक जैसी हालत हो जाती है और वो खिलखिला कर रील बना रहा होता है। हमारे लिए भी कोई कोर्ट है या नहीं ? उसके इस मिसबिहेव की शिकायत किससे करें ?

 

कोर्ट में खूब मनोरंजक सीन हुआ करेंगे। टॉमी उर्फ मोती हाजिर हो। आप पूंछ हिला कर जज का अभिवादन करते हैं।  वह बिना कुछ सोचे समझे बस आदमी की साइड सुन फैसला दे देता है। वो भी सीधे उम्र क़ैद। न कोई तारीख, न कोई जमानत, न कोई परोल। बस एक फैसला और आप उम्र भर को अंदर। कुत्ता काटना न हुआ लव मैरिज हो गयी। यह कुत्ता न्याय संहिता के सरासर खिलाफ है। बोले तो 'बैड इन लॉ'। भई ! कोई चीज़ रिफाॅरमेट्री भी होती है। हमारा पक्ष सुने बिना आप कैसे हर केस 'एक्स-पारटेकर सकते हैं। अब क्या हम जा जा कर अपनी बस्ती के निकटतम कोर्ट में 'केवियट' ही डालते फिरें। या बी.ए.एल.एल.बी. करते फिरें। हमारी उम्र ही कितनी होती है आधी उम्र तो बी.ए.एल.एल. बी. करने में ही गुजर जानी है। प्रेक्टिस कब करेंगेसज़ा के कुछ माप दंड निर्धारित करें। ये नहीं कि मक्खी मारने को रोड रोलर चला दें। आदमी को भी समझायें। हम सदियों से उसके साथ है, उसके साथी हैं उसके काम ही आते हैं। न कोई खाना, न कोई बिस्कुट-दूध, न कोई नॉन वेज बस सज़ा पर सज़ा, सज़ा पर सज़ा। इतना सुनना था कि जज महोदय ने हथौड़ा ज़ोर ज़ोर से मारना शुरू कर दिया "ऑर्डर ऑर्डर"। टाॅमी भों भों करता ही रह गया। वह भों भों आज भी जारी है। इंसाफ इतना आसान कहाँ ऐ दोस्त ! पीढ़ियाँ खप जाती हैं।

  

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