Ravi ki duniya

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Wednesday, July 6, 2016

व्यंग्य किस्सा-ए-साला ज़ीजा

साला कोई गाली नहीं ये तो यूँ ही प्यार दुलार में कहा जाता है जब किसी को बहुत सम्मान देना हो तो इस संबोधन का प्रयोग किया जाता है। साला पूरणतः स्वदेशी है । संस्कारी है। समस्त ब्रहमांड में प्रत्येक किसी न किसी का साला है। यह संबोधन हमें विश्व से जोड़ता है। आप तो जानते ही हैं आज समस्त संसार में भारत का जो साल्सा हो रहा है। यह जीभ का योगासन है। साला कहने में जीभ पहले तालू से लगती है फिर वापस आती है। यह एक प्रकार का जीभ से किया गया सूर्य नमस्कार है।साला रिश्तों की सरगम का पहला सुर है। सा ...... ज़िन्दगी की रागिनी यहीं से शुरू होती है। महाभारत काल से ले कर मुगल काल तक और मुगल काल से ले कर वर्तमान तक तारीख गवाह है सालों ने बहुत ही महत्ती भूमिका निभाई है। फिर चाहे वह परिवार में हो। दरबार में हो। या फिर सियासत के दाँवपेच में हो। जो सत्ता में हैं जीजा तो बस वे ही हैं बाकी सब खासकर विपक्षी तो सब साले ही हैं। अब चाहे ये संबध पाँच साला ही क्यों न हों। पब्लिक चुनाव में फिर चुनती है कौन कौन जीजा बनेगा। कौन कौन साला। भाईयो और बहनों ! ये तो बस पाँच साले यानि कि पँच वर्षीय संबध हैं।
 
आदरणीय गृह मंत्री जी ने यह भी कहा है कि उनकी तो आदत है ऐसे कहने की। इसमें बुरा मानने की क्या बात हो गई। दरअसल ऐसा कह कर उन्होंने पूर्व प्रधान मंत्री की इज्जत बढ़ाई है। वे कह सकते हैं कि उनके जीजा श्री सूबे के होम मिनिस्टर हैं। साथ ही अपनी इज्जत अफजाई की है वे कह सकते हैं कि मेरा एक साला सालों तक हिन्दुस्तान का पी एम रहा है।
 
श्री श्री गुलाब चंद जी चंद दिनों की बात है फिर पब्लिक ने डिसाइड कर देना है कौन साला बनेगा कौन जीजा। ताज्जुब इस बात पर भी है कि किसी ने अभी तक ये बयान नहीं दिया कि तुमने भी तो साठ साल में कितनी बार हमें साला कहा था या साले से भी भारी भरकम डिगरियों से नवाजा था। 

जहां तक बात गुलाब की है तो मित्रो !

" गुम हो गये शख्स ईमान ओ आबरू वाले
अब गुलाब कहाँ मिलते हैं खुशबू वाले "

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