आजकल जगह जगह
लोग-बाग अपने अपने समूह बना के रह रहे हैं, ये समूह ताकत और आम
चुनाव को मद्दे-नज़र रखते हुए जाति अथवा उपजाति के आधार पर बनाये जाते हैं. ऐसे मैं
अगर मच्छर पृथक-पृथक रहेंगे तो कैसे चलेगा ? उनका तो अस्तित्व
ही मिट जायेगा. एक तो पहले ही मच्छर उस पर ये अलगाववाद, ये छोटे-छोटे समूह में अपनी अनर्जी बरबाद करना
कहाँ की समझदारी है. अत: मच्छरों में से एक लीडरशिप उभरी और उन्होंने पार्क में एक
सभा करने की ठानी. सब मच्छर भाई बहनो को फेसबुक, ट्विटर, मैसेंजर और वाट्स अप के जरिये सूचित कर दिया गया
था कि ये ‘नॉव और नैवर’ जैसी स्थिति है वे
अब भी यूनाइट नहीं हुए तो हिट, बेगॉन स्प्रे, ऑल ऑउट जैसे दुश्मन की मिसाइल उन्हे नेस्तो
नाबूद कर देंगी. पहले ही उनके यहाँ एक तरह से भुखमरी की स्थिति आ गई है. अब तरह-तरह
के फैशन के चलते तमाम क्रीम और लोशन चल गये हैं जो महिलाओं को भले सूट करते हों मगर
मच्छरों को कतई नहीं करते फलस्वरूप मच्छर महामारी का शिकार हो तरह-तरह की रहस्यमयी
बीमारियों से जान गँवा रहे हैं.
आरंभिक फूल माला के
आदान-प्रदान के बाद मच्छरों के एक नेता ने माइक सम्भाला और लगभग ललकारते हुए
आव्हान किया:
“मेरे प्यारे भाइयो
और बहनों ! अब समय आ गया है कि हम इन मनुष्यों को बता दें कि हम कितने शक्तिशाली
हैं. ये हमें हल्के में न लें. एक के बाद एक हम पर अत्याचार करना बंद करें कभी
डी.डी.टी., कभी धुंआ, कभी
ये कभी वो. आखिर हमें भी जीने का हक़ है. जैसे तैसे कितनी पीढ़ियां खपा के हमनें डी.
डी. टी. से ‘इम्युनिटी’ हासिल की थी, हमी जानते हैं. भला हो भ्रष्ट निगमकर्मियों का कि कोई भी दवा आये वो
उसमें इतना पानी मिला देते है कि हम पर बेअसर साबित होती है,
चाहे मोहिनी हो या नुआन या फिर डाई ओरान.
प्रॉफिट ड्रिवन मार्किट के चलते सब के सब प्रोडक्ट बस मार्किटिंग भर हैं हमारा बाल
भी बाँका नहीं कर सकते.
मगर सवाल ये है कि
ये हमारी समस्त प्रजाति को नष्ट करने, ‘मॉस्क्विटोसाइड’ पर क्यूं तुले हैं. रोज नई नई आर.एंड
डी. हो रही है. भाईयो बहनो ! तुम मुझे आज़ादी दो मैं तुम्हें खून दूंगा. खाली-पीली भिन-भिन
करने से क़ौम का कुछ भला नहीं होगा. आज़ादी बलिदान माँगती है. आओ हम मिल कर कसम खाते
है कि अब कोई भी मच्छर भाई, मच्छरानी बहन या नवजात बेबी
मच्छर को खून की कमी से नहीं मरने देंगे. शपथ है हम को मरने से पहले मोहल्ले के
मोहल्ले को अपना दम दिखा देंगे. क्या तो डेंगू, क्या मलेरिया, क्या वाइरल, क्या चिकनगुनिया सब अस्त्र-शस्त्र हमने
इस्तेमाल करने हैं. प्यार और ज़ंग में सब ज़ायज है.
तभी मुखबिर ने खबर दी कि निगम
दफ्तर में किसी सरफिरे आदमी ने इतना झुंड देख, शिकायत कर दी है और वो ‘अश्रु
गैस’ की फॉगिंग गन लिये यहीं आ रहे हैं. सुनते ही सभा
आनन-फानन में समाप्त कर दी गई इस नारे के साथ
‘तुम मुझे आज़ादी दो मैं तुम्हें खून दूंगा’...’जो हमसे टकरायेगा बुखार में तप जायेगा’
और बिना धन्यवाद प्रस्ताव के सभा तितर-बितर हो गई.
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