हम लोग 20 वीं सदी में पैदा हुए और 21वीं सदी के एक चौथाई भाग में आ पहुंचे हैं। ज़िंदगी कितनी बदली है और पल-पल बदल रही है। आइये एक नज़र डालते हैं। कल तलक होटलों और रेस्तराओं में व्यक्ति भोजन केवल दो ही सूरत में करता था मजबूरीवश या बतौर विलासिता। आजकल क्या हाल है ? आप से छुपा नहीं है।
2..........हमारे पूर्वज कहते थे इंसान भूखे सो रहे मगर उधार न ले। आज देखिये क्रेडिट कार्ड, ई.एम.आई. की बहार है। उधार देने वाले फोन कर-कर के गुहार लगा रहे हैं और न लें तो धिक्कार लगा रहे हैं। बाजारवाद आपको-हमको हमारे बच्चों को निगल गया है। समाचार पत्र में समाचार कम, बाज़ार ज्यादा है। आप एक दिन विज्ञापन काट दें फिर देखें समाचारपत्र में क्या बच रह जाता है।
3..........पहले ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों को कोई अच्छी दृष्टि से नहीं देखता था। वे फिसड्डी माने जाते थे और छुपते - छुपाते ट्यूशन जाते थे। पास पड़ोस में बताते नहीं थे। माँ-बाप झिझकते थे। आज कोचिंग आवश्यकता है। स्टेटस सिंबल बन गया है।
4........हमारे माता-पिता के समय और हमारे समय पैसे की बहुत वैल्यू थी। गुल्लक में पैसे रखे जाते थे। आज पैसे की न वेल्यू है न दर्द। एक पिता ने जब रोज रोज पैसे की मांग से तंग आ कर अपने बच्चे को डांटते हुए पूछा “तुम्हें पता भी है पैसे कहाँ से आते हैं ?” पुत्र का मासूम सा जवाब था “हाँ पता है ! ए.टी.एम. से”
5........पहले गर्व से कहा जाता था ये मेरे दादा जी के जमाने की घड़ी है आज इस बात का दिखावा किया जाता है कि ये ‘नैक्स्ट जनरेशन’ की ‘लिमिटेड एडीशन’ घड़ी है। क्या वस्तुएँ, क्या रिश्ते, ‘यूज एंड थ्रो’ एक जीवन दर्शन बन गया है। आप भी वक़्त के बहाव का मुज़रा लीजिये। ज़माने का रोना हमारे बाप-दादे भी किया करते थे। पर वक़्त कहाँ रुकता है।
..........मर्जी आपकी कारवां के साथ चलें या पीछे छूट जायें।
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