पहले मैं इस ग़लतफहमी में था कि अंतरात्मा
बिकाऊ नहीं होती। अंतरात्मा कोई नहीं खरीद सकता। मुझे कोई नौकरी नहीं मिली
और अग्निवीर क्या मुझे कोई सा भी वीर बनने का अवसर नहीं मिला। धीरे-धीरे जब मैं
ओवरएज हो गया तो मुझे पूरा पूरा यक़ीन हो चला कि अग्निवीर क्या मैं कैसा भी वीर
नहीं बन सकता तब मैंने हार कर पकोड़े बनाने का काम हाथ में लिया। दिक्कत ये थी कि
हर गली, हर चौराहे पर पहले ही पकौड़ेवाले इतनी बड़ी
तादाद में अपनी-अपनी थड़ी, टपरी, खोमचे
लगाए थे। मुझसे लोकल पुलिस 'टोल' बोले
तो हफ्ता मांगने लगी। वो भी इतनी दूर पकोड़ा बेचने की कह रहे थे जहां लोग-बाग भूले
भटके भी नहीं जाते थे।
इस पर मुझे एक विज़न बोले तो सपना आया कि क्यों न मैं पॉलिटिक्स में चला
जाऊं। देखता हूं बड़े-बड़े नेताओं के ड्राईवर, सहयोगी,
चमचे, निजी सचिव, बोले
तो हुक्का यानि चिलम भरने वाले भी बड़े आदमी बन गए हैं और लो जी मैं आ गया। ये
फील्ड बहुत रोचक है। हल्दी लगे न फिटकरी। बस लच्छेदार बात करना आना चाहिए। कभी नरम,
कभी गरम। लंबी-लंबी छोडना चाहिए। आम-जन को वो बहुत पसंद आता है।
ताबड़तोड़ फैन बन जाते हैं। आपको बस कुछ तकिया-कलाम रट लेने हैं देख लेंगे, मार दो, काट दो, विकास करना
है। नई ऊँचाइयाँ, चाल चरित्र चेहरा आदि आदि।
अब मैं इंतज़ार कर रहा हूं कि कब मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनूँ और इधर
ब्रीफकेस पकड़ूँ उधर अंतरात्मा कहे जा इसके साथ बैठ जा। ये शर्म, ये झिझक, ये असंजमस क्यूँ ? राम
जी का ब्रीफकेस, राम जी की अंतरात्मा। अपने आसपास देख रहा
हूं सब अपनी-अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन रहे हैं। एक फैशन सा चल निकला है।
अंतरात्मा इठलाती, बल खाती रैम्प वॉक कर रेली है। बस एक बार ब्रीफकेस बोले तो खोखे दिख जाएँ। जब
तक खोखे दिखते रहेंगे, मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनता
रहूँगा।
अब मैं अपनी इस अंतरात्मा को क्या कहूँ। यह भी देश-काल के अनुसार वेश भूषा
और भाषा बदल लेती है। आत्मा को इतनी सारी भाषाएँ नहीं सीखनी चाहिए थीं। सुबह कुछ
आवाज़ देती है शाम को किसी और आवाज़ पर रिस्पोंस देती है। ये खोखे मेरी अंतरात्मा पर
बड़ा बोझ डालते हैं। यूं तो अंतरात्मा अक्सर कुंभकर्णी नींद में गुल रहती है।
अंतरात्मा को सोने की बीमारी है। यह
यदा-कदा ही जागती है। मैंने मोटा-मोटा ये पाया है कि मेरी अंतरात्मा ब्रीफकेस का
आकार-प्रकार देख जाग जाती है। और:
जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आए...
अंतरात्मा, जो है सो, भेजे से
ज्यादा शोर करती है। गोली का इस पर असर नहीं पड़ता। यह तो खोखे की कायल है। बस यह
बताओ कितने खोखे में अंतरात्मा जाग उठेगी ताकि व्हिप पर भी व्हिप चल जाये। उसकी
अंतरात्मा का भी तो हमीं को ध्यान रखना है।
अंतरात्मा का बहुत ध्यान रखना होता है जब तब जाग जाये तो बहुत गड़बड़ कर देती
है। अपना नुकसान करा बैठती है। इधर चुनाव आए नहीं और ये जागी नहीं। वैसे ये सोती
रहती है। ऊँघती रहती है। जागती कम ही है।
बस पैसे वसूले
और पुनः निद्रामग्न !
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