Ravi ki duniya

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Sunday, December 22, 2024

व्यंग्य: बिना अपेंडिक्स किया ऑपरेशन

 

                                                        


 

 

           मेरे भारत महान के एक महान सूबे में जब एक बच्ची के पेट में भयंकर दर्द हुआ तो ज़ाहिर है उसके अभिभावक उसे लेकर अस्पताल दौड़े गए। हमारे डॉ. साहिबान तो सवेरे से तैयार बैठे ही थे कि आज अभी तक कोई चीरा-फाड़ी का मरीज नहीं नज़र आया। इस बच्ची को आता देख उनकी बाछें खिल गईं। उन्होने तुरंत डिक्लेयर कर दिया कि बच्ची के पेट में अपेंडिक्स है और उसका तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा, नहीं तो बच्ची की जान को खतरा है। घर वाले मरते क्या ना करते। तुरंत ऑपरेशन को राज़ी हो गए। डॉ. ने बिना वक़्त गँवाए ऑपरेशन कर दिया। मगर ये क्या ? उन्होने देखा कि अपेंडिक्स तो था ही नहीं। उन्होने आनन-फानन में जैसे पेट खोला था वैसे ही बंद कर दिया और थियेटर से बाहर निकल कर बताया कि खुशखबरी है अपेंडिक्स था ही नहीं। हमने पूरी तहक़ीक़ात की है। अब हम तसदीक करते हैं कि अपेंडिक्स है ही नहीं। चलिये इस बात की मिठाई खिलाओ।

 

         ये सुन बच्ची के अभिभावक बिलकुल भी मुतास्सर नहीं हुए उल्टे वो राशन-पानी लेकर चढ़ गए। अगर अपेंडिक्स था नहीं तो आप बच्ची को ऑपरेशन थियेटर में लेकर ही क्यूँ गए? आपने पेट खोला ही क्यूँ ?

इस बात का डॉ. के पास कोई जवाब नहीं था, तब तक सभी रिश्तेदारों ने जम कर उत्पात मचा दिया। अस्पताल के पास क्या जवाब होना था। उन्होंने ताबड़तोड़ एक इंक्वारी की घोषणा कर दी। हमारी आज़ादी के बाद की कोई एक उपलब्धि है तो वह है हम इंक्वारी घोषित करने में जरा देर नहीं लगाते। फौरन जैसे ही बात गर्मागर्मी तक पहुँचती है हम आनन-फानन में एक अदद इंक्वारी की घोषणा कर देते हैं। हमारे पास 'रेडी रिकनर' की भांति तरह-तरह के किस्म- किस्म की इंकवारी के लिए भद्र पुरुषों की लम्बी सूची सदैव तैयार रहती है। उनका ये शौक है, विशेषता है या कहिए कि उनकी 'लास्ट विश' यही होती है कि काश: ये संसार छोड़ने से पहले कोई हमसे भी एक ठौ इंक्वारी करा लेता तो हम भी अपनी सीट बैकुंठ में पक्की कर लेते। ऊपर वाले को नहीं तो क्या मुंह दिखाएंगे "अरे नालायक !  तुझे धरती पर भेजा था और तू बिना इंक्वारी के, बिना किसी कमेटी का मेम्बर बने लौट आया है।

 

 

        अस्पताल कह सकता है कि बिना पेट चीरे कैसे 100% पता लग सकता है कि अपेंडिक्स है या नहीं। अभिभावकों तो खुश होना चाहिए कि अपेंडिक्स नहीं है और ये बात हमने ईमानदारी से स्वीकार कर उन्हें बता भी दी है। वरना वो कौन से डॉ. हैं ? हम कहते अपेंडिक्स का ऑपरेशन कर दिया है। अब पेशेंट ठीक है। आप घर जा सकते हैं। मगर नहीं हमारा गहना ईमानदारी है हमने साफ बता दिया। बहुधा ऐसा होता है कि डॉ. को किसी बात की संभावना लगती है मगर वो मात्र डॉ है आखिर, कोई नजूमी तो नहीं। पक्का तो जब तक वह अपनी आँखों से ना देख ले कैसे कुछ कह सकता है? अब किसी के स्टोन है ये बात बिना चीर फाड़ तो एक कयास भर ही है। ऑपरेशन के बाद ही पता चलता है कि कहाँ कितना बड़ा-छोटा स्टोन था। अब दिल का कोई भी रोग हो बिना खोले कैसे कोई पता लगा सकता है। अतः यह बात ही गलत है कि अपेंडिक्स था ही नहीं और ऑपरेशन कर दिया अरे भाई ऑपरेशन के बाद अर्थात चीरा फाड़ी के बाद पता चला अपेंडिक्स नहीं है, हमने टांके लगा कर बंद कर दिया। बात खत्म। ज़िस्म के अंदर की बात डॉ. ही जान सकता है और उसके लिए उसे शरीर के अंदर झांकना पड़ता है। आपके कपड़े पारदर्शी हो सकते हैं, होते भी हैं मगर आपका शरीर पारदर्शी नहीं, उसके लिए तो काटा-पीटी करनी ही पड़ती है।

 

 

        तो आप खुश हो जाइए अपेंडिक्स नहीं था। भाई डॉ. और वकील के पेशे को इसीलिए प्रैक्टिस कहा जाता है। वो प्रैक्टिस करते ही रहते हैं। अब कोई वकील कह सकता है कि वह केस हारेगा? उसे लगता है कि वो ही जीतेगा। मगर हार-जीत अन्य कितने ही फैक्टर पर निर्भर करती है। अतः खुश होइये की आपको अपेंडिक्स नहीं है। रही बात टांकों की तो वो भर जाएँगे, पैसे आप फिर कमा लेंगे। ये डॉ. साब ही आपको टांके के दाग मिटाने की क्रीम भी बेच देंगे, खरीद लीजिये। अब आपको कभी डॉ. से या ऑपरेशन से डर नहीं लगेगा। आपको तजुर्बा हो गया। जीवन में तजुर्बा बहुत बड़ी चीज़ है।  आप चाहें तो औरों को इसे बता सकते हैं जो जरा जरा सी बात पर डर जाते हैं और ऑपरेशन को हव्वा समझते हैं।

   

         हैपी ऑपरेशन्स !!

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