अभी तक आप ऐसे बयानों को पाॅलिटिकल समझते
थे। जब नेता लोग आपको कहते थे कि पकोड़े बेचो, ट्रेन में गाने गा कर
पैसे कमाओ, भीख मांगो आदि को आप मज़ाक में लेते थे कि ये नेता लोग तो आए दिन ऐसे बयान देते
रहते हैं। पर अब ये ऑफीशियल हो गया है अर्थात अबकी बार ये बयान नेता का नहीं एक
भुक्तभोगी नौकरशाह का है। अब तो आपको यकीन करना ही पड़ेगा। इन महोदय का कहना है कि
पानीपूरी जिसे कहीं गोलगप्पे तो कहीं पुचका कहा जाता है, वो बेचना कहीं अधिक
लाभदायक है बजाय इसके कि आप सरकारी नौकरी करें। उन्होने तफसील से इसके कारण भी
दिये हैं। पहला, तो यह कि पानीपूरी में आप किसी दबाव में नहीं रहते, जबकि सरकारी नौकरी में
तरह तरह के दबाव होते हैं। ये फाइल आज ही क्लियर करनी है। ये टेंडर आज ही फाइनल
करना है। ये काम 'टाइम-बाउंड' है, मीटिंग की तैयारी करो, टूर पर जाना है, फील्ड में जाना है। ना जाने क्या क्या आपकी जान को रहता है। दूसरे, पानीपूरी बेचने के काम
में आप अपने बॉस खुद हैं। कोई आपके ऊपर बड़ा बाबू, सुपरिटेंडेंट, या बड़े साब नहीं हैं।
आप ही सबकुछ हो। इसकी कीमत उनसे पूछो जो बॉस से पीड़ित रहते हैं बॉस का दबाव रहता
है टार्गेट पूरे करने का। बॉस को आपको तंग करने में मज़ा आता है। छुट्टी के दिन
ऑफिस बुलाना भी उसकी इसी रण कौशल का हिसा होता है। आपकी ज़िंदगी तबाह करने को ही उसका
जन्म हुआ है।
इन तहसीलदार महोदय ने एक और बात बहुत पते की बताई है कि पानीपूरी के धंधे में
जब चाहें पूरे परिवार को लेकर छुट्टी बिताने जा सकते हैं। जबकि सरकारी नौकरी में
ऐसा संभव नहीं। बॉस दस सवाल पूछता है । बस जब आपको चाहिए तभी छुट्टी नहीं देनी है
अगले ने। पानीपूरी के व्यवसाय में ऐसा नहीं है। जब आपका दिल करे दुकान बढ़ाएं और
छुट्टी घोषित।
तहसीलदार साब ने एक और मिथक को ध्वस्त किया
है उनका कहना है कि ये जितनी भी टेक्नोलाॅजी है ये हमारा काम और बढ़ाते हैं और अधिक
स्ट्रेस देते हैं, जैसे अब बॉस वाट्स अप पर ही रिपोर्ट मांग लेता है। आप शाश्वत उसकी सरविलेन्स
में है। ऑफिस ने सेल फोन आपको नहीं दिया, अपने लिए आपको दिया है। अब तो उसी में वीडियो काॅल की सुविधा भी लगा दी है।
यकीन जानें ये सब उपकरण आप पर शिकंजा कसने को चलाये गए हैं। क्या एस.टी.डी. क्या
फैक्स, क्या फ़ोटोस्टेट, क्या ई-मेल सब आपके दासत्व को बढ़ाते हैं। आप खुश होते हैं कि ऑफिस की तरफ से मिला है।
ये जो आप विमान यात्रा करते हैं ये भी आपको जहाज का चड्डू खाने को नहीं बल्कि अपना
काम निकालने को चलाया गया है। बेटा ! जल्दी जाओ काम खत्म करो और शाम की फ्लाइट से
लौट के कल ऑफिस में रिपोर्ट करना। अब उठिए सुबह 3.30 बजे और पहुंचिए
एयरपोर्ट 6 बजे की फ्लाइट पकड़ने। ये साला कोट पेंट और टाई पहनने की बड़ी कीमत आप चुकाते
हैं। अपनी हेल्थ को दांव पर लगा कर। जबकि पानीपूरी के फील्ड में ऐसा कुछ नहीं। ना
कोई टारगेट। ना कोई ऑफिशियल टूर। मन करा दुकान खोली मन करा नहीं खोली। जब दिल करे
कीमत बढ़ा दो। कुछ फट्टेबाजी लिख दीजिये, हमारे यहाँ मिनरल वाटर यूज़ होता है। पाॅलिथिन के ग्लव्ज़ पहन लीजिये।
सरकारी नौकरी में आपको अपने
ट्रांसफर-प्रोमोशन की चिंता लगी रहती है। कहीं बाहर गाँव ट्रांसफर ना हो जाये।
बाल-बच्चों का क्या होगा? मकान मिलेगा या नहीं ? स्कूल दाखिले का क्या होगा ? आदि आदि। जबकि पानीपूरी के काम में ऐसी कोई टेंशन नहीं। ना कोई प्रोमोशन की
मशक्कत। ना कोई जी.एस.टी. ना कोई आयकर। तो भाईसाब ! आप कन्विंस हुए कि नहीं नेता जी आखिर उतना गलत भी नहीं
बोलते जब वो आपको पकोड़े बेचने को कहते है। अब तो तहसीलदार जैसे मौअज्जिज, रसूख वाले भी पानी
पूरी को ही बेहतर व्यवसाय मान रहे हैं।
मैं चाहता हूँ की आई.टी.आई. में इस का 6 महीने का शॉर्ट कोर्स
चलाया जाये जिसमें इस कोर्स के पहलुओं की और तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जाय।
कोर्स के अंत में डी.पी.पी. दिया जाये। डिप्लोमा इन पानी पूरी। इसमें तरह तरह के
पानी की तफसील से जानकारी दी जाया करेगी, पुदीना का पानी, खट्टा पानी, मीठा पानी, जीरे का पानी, सौंफ वाला पानी से लेकर सौंठ और दही चने आदि की पूरी जानकारी दी जाया करेगी।
आटे वाले, सूजी वाले, गोलगप्पे कैसे बनाए जाते हैं। इसमें और भी इनोवेशन का रास्ता साफ होगा। अभी तक
वही दो-तीन फ्लेवर के पानी पर अटके हैं। यूं कहने को कहीं कहीं 'जिन-वोदका' वाले गोलगप्पे भी चल
गए हैं। इसी प्रकार एन्ट्रोपेन्युर के लिए पूरा फील्ड खुला है। जरुरत है इसे
इंटेरनेशनल मान्यता दिलाई जाये। पेटेंट कराया जाये।
हैपी गोलगप्पे, पानीपूरी, पुचका ईटिंग
No comments:
Post a Comment