Ravi ki duniya

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Saturday, March 22, 2025

व्यंग्य: हाउस और आउट हाउस


         

                       जिन्हें नामालूम हो उनकी मालूमात के लिए बता दूँ आउट हाउस घर के बाहर, सामान्यतः पिछले हिस्से में सर्वेंट क्वाटर को कहते हैं। बड़े-बड़े बंगलों खासकर अंग्रेजों के ज़माने के विशाल बंगलों में आउट हाउस आम पाये जाते हैं। बल्कि एक से अधिक आउट हाउस होते हैं। जिनमें मुख्य हाउस में रहने वालों के बैरा, खानसामा, कपड़े धोने/प्रेस करने वाले रहते आए हैं।

 

                    जिन पाठकों को तम्बोला (हाऊसी) का पता है वो जानते हैं कि हाउस के बाद तम्बोला में आउट हाउस अथवा सेकंड हाउस होता है। जो कि हाउस में निर्धारित ईनाम की राशि से कम का होता है। आजकल जिस प्रकार की राशि आउट हाउस में पाई जा रही है। आउट हाउस की ईनाम राशि कहीं ज्यादा होनी चाहिये। बशर्ते आग- वाग ना लगे या लगाई जाये। सोचो ! लोगबाग कहने लग पड़ेंगे अपुन के तो आउट हाउस में भी करोड़ों यूं ही पड़े रहते हैं किसे फुर्सत है जो बैठ कर गिने कि कितने हैं?


         पता लगे धीरे-धीरे बिल्डर अब कार पार्किंग और गैरेज की जगह आउट हाउस के भी विज्ञापन देने लग पड़ेंगे। हमारे आउट हाउस में 'बिल्ट- इन' फायर रजिस्टेंट अलमीरा हैं। आउट हाउस में सेफ (तिज़ोरी) के विज्ञापन दिये जाया करेंगे। कोई-कोई स्मार्ट बिल्डर तो कहने भी लग पड़ेंगे 'हमारे आउट हाउस की तिज़ोरी की कैपेसिटी सौ करोड़ है। जैसे फ्रिज का 'स्पेस' नापते और विज्ञापित करते हैं। क्या समां रहेगा लोग बाग वीकेंड पर निकल पड़ा करेंगे घर बाद में देखेंगे, पहले आउट हाउस दिखाएं ! कितना बड़ा है? आग से बचने के क्या-क्या उपकरण आपने लगाए हैं? 

 

          एक शहर के बड़े अधिकारी की बंगले में जब आउट हाउस में कच्ची शराब की भट्टी पकड़ाई गई तो उस अधिकारी ने साफ कह दिया इस आउट हाऊस से मेरा क्या लेना देना। इसमें जो नौकर रहता है उसे पकड़ो। दर असल उस सूबे में शराबबन्दी थी। अब इतने बड़े अधिकारी के बंगले पर किसका शक जाएगा। सामान्यतः आउट हाउसों की एक एंट्री पीछे से भी होती है बस भाई का कारोबार उसी एंट्री से फल-फूल रहा था। 


जिस केस का मैंने ऊपर ज़िक्र किया उसमें एक थ्यौरी यह भी चल रही है कि किसी दिलजले ने बदला लेने अथवा बदनाम करने की गरज से रुपयों में आग लगा दी। इससे पहले ऐसा मैंने इंगलिश फिल्मों में देखा है। नायक क्यों कि धीरोदात्त और भीषण उच्च श्रेणी का चरित्रवान होता है अतः वह यह ‘पाप’ की कमाई छूना भी नहीं चाहता उसके लिए इनका कोई मोल नहीं। उसका जनम तो इस ‘पापी’ विलैन  को सबक सिखाने और समाज से बुराई जलाने को हुआ है अतः वह आव देखता है ना ताव और रुपयों के ढेर में आग लगा देता है। बिना पीछे मुड़े चल देता है। किसी और के ढेर में आग लगाने। 


  एक अधिकारी ने सबकी नाक में बहुत दम कर रखा था। जब अगले का ट्रांसफर हुआ तो इसी तरह के किसी दिलजले ने उसके रेल के वैगन जिसमें उस अधिकारी का घर का समस्त सामान, फर्नीचर बोले तो ‘पाप’ की कमाई जा रही थी, में एक पलीता नज़र बचा कर छोड़ दिया। जब तक अगले का सामान गंतव्य स्टेशन तक पहुंचा अंदर केवल  राख़ ही राख़ मिली। 

  

                           राख़ के ढेर में शोला है ना चिंगारी है 

     

            आज से गांठ बांध लीजिये। हाउस से कहीं बढ़कर है आउट हाउस सुने नहीं हैं:  


                    “स्वामी से सेवक बड़ा चारों जुग प्रमान

                     सेतु बांध राम गए लांघ गए हनुमान”


अतः गौर कीजिये चहुं ओर यश ही यश है। (तुम्हारे) आँचल ही ना समाये तो क्या कीजे।

Saturday, March 15, 2025

व्यंग्य: मिस्टर नेगेटिव


आपने देखा होगा जैसे लोग कुछ भी हो जाये पॉज़िटिव बने रहते हैं उसी तरह ठीक उसके उलट ऐसे लोगों की संख्या कहीं ज्यादा है और आप भी बहुतों को जानते होगे जो कूट-कूट कर भयंकर रूप से नेगेटिव होते हैं। उन्हें हरदम लगता रहता है बस अब पृथ्वी का अंत होने ही वाला है। मेरे कॉलेज में एक सहपाठी था, जब टीचर ने सबसे पूछा कौन क्या बनना चाहता है तो मैंने कहा मैं टीचर बनना चाहता हूँ। पीरियड के बाद यह लड़का मेरे पास आया और बोला “टीचर की नौकरी बेकार है एकदम फिजूल है। मुझे ताज्जुब हुआ वह ऐसा क्यों कह रहा है जब पूछा तो बोला “ये भी क्या ज़िंदगी है टीचर सारी उम्र खड़िया (चाॅक) से खेलता रहता है।“ उसका ये संवाद मुझे आज भी हू ब हू याद है। 50 साल बाद पता चला वह एक एडवोकेट है। मुझे पक्का यकीन है अगर तब किसी ने वकील बनने की कहा होता तो उसने अपने पूरे ज़ोर शोर से उसे निरुत्साहित करना था। 


            ऐसे लोगों के दिमाग में निगेटिविटी के कीटाणु हर वक़्त तैरते रहते हैं। घर की वाईट वाशिंग ना कराने के वो दस कारण बता सकते हैं। इसी तरह जब रिश्ते की बात चले तो कैसे रिश्ता तुड़वाना है वो भलीभांति जानते हैं।  मसलन वो कह सकते हैं कि लड़की इतनी दूर नौकरी से कैसे आया-जाया करेगी। आप कहें कैब है, तो वे कहेंगे रात-बिरात बहुत दिक्कत होती है ये कैब ड्राइवर आजकल सब क्रिमिनल है। आप कहें आप ले आया करोगे तो उन्होने कहना है ये प्रेक्टिकल नहीं है। कब तक ये लाना ले जाना चलता रहेगा, यह ज्यादा नहीं चलता अतः इस रिश्ते में कोई भविष्य नहीं है। आप इसका भी कोई तोड़ निकाल लें तो उनके पास एक ब्रह्मास्त्र रहता है अरे ये लड़की तो ‘लियो’ है जबकि लड़का ‘सेगीटेरियस’ है। ये तो शादी चलनी ही नहीं है। ये निभेगी नही। 


ये लोग घर में इतनी निगेटिविटी फैलाते हैं कि धीरे धीरे लोग इनके घर आना ही छोड़ देते हैं। ये बात इनको सूट भी करती है। इनके बीवी बच्चे तो इनसे पहले से ही त्रस्त होते हैं।  अब बेचारे कहें तो किससे, करें तो क्या करें। हमारे एक चचा थे उन्होने अपने बच्चे का एडमिशन बहुत अच्छे मार्क्स के बावजूद किसी बेहतर कॉलेज में ना कराके अपने घर के सबसे नज़दीक के थके हुए कॉलेज में  कराया जो सड़क पार करके ही था। उसमें भी वो उसे छोड़ने जाते थे और अगर शाम को वह आने में जरा भी लेट हो जाता था तो वे सड़क के इस पार खड़े होकर उसका इंतज़ार करते रहते थे। जब उनके कॉलेज का ट्रिप शिमला गया तो उन्होने अपने बेटे को शिमला के बीसियों नुकसान और जोखिम गिना दिये थे। जैसे कि ये पहाड़-वहाड़ हम दिल्ली वालों के लिए नहीं है। वहाँ की तेज हवाएँ तुम्हें उड़ा कर ले जा सकती हैं। वहाँ की आबोहवा में तुम बीमार पड़ जाओगे, वहाँ इतनी ठंड पड़ती है कि तुम सहन नहीं कर पाओगे। पहाड़ पर चलने की तुम्हें प्रेक्टिस नहीं है। तुम सोचोगे सड़कें दिल्ली की तरह हैं जबकि कहीं भी तुम्हारा पैर फिसल सकता है और मीलों नीचे खाई में। 


                ऐसे लोग से अगर आप कहें कि आप को मुल्क का राष्ट्रपति बना देते हैं तो इस पर भी वे दस ऐसे कारण बता सकते हैं कि क्यों राष्ट्रपति बनना कोई बहुत अच्छा प्रस्ताव नहीं है। मसलन वो कह सकते हैं दिल्ली का मौसम बेकार है, ट्रैफिक बहुत है, पाॅलुशन बहुत है, आप हरदम सिक्यूरिटी गार्ड्स से घिरे रहोगे आप चाह कर भी करोल बाग जाकर गोलगप्पे नहीं खा सकते। सोचो ये भी कोई नौकरी हुई कि इंसान अपने मन का खा भी ना सके। राष्ट्रपति भवन बहुत बड़ा है ऐसी जगह भूतों का वास रहता है। भूत ना भी हों तो आपको वैसे ही इतने बड़े भवन में डर लगता रहेगा। ये भी क्या नौकरी है हरदम डर के साये में जियो, रात को चुड़ैल और भूतों का आतंक दिन में इतने पुलिस वाले आपके आगे पीछे घूमेंगे पता नहीं कब किस से भूलवश गोली चल जाये ? आजकल अभिनेताओं के घर में अपने आप पिस्टल से गोली चल जाती है और उनके पाँव में गोली लग जाती है। आज अभिनेता के लगी है, कल नेता भी हो सकता है।

Tuesday, March 11, 2025

व्यंग्य 2013 से बिन नहाये

 

                                                              


       कई बार यह देखने में आता है कि इंसान कोई फैसला कर लेता है, कोई प्रतिज्ञा कर लेता है कि फलां काम वो तभी करेगा जब यह हो जाएगा या वो हो जाएगा या ढिकाना काम हो जाएगा।  इसी श्रंखला में एक सूबे के नेताजी  ने रहस्य उदघाटन किया है कि किसी एक देश के पी.एम. 2013 में भारत आए थे गंगा स्नान करने, किन्तु गंगा में तब की गंदगी देख कर उन्होने फैसला ले लिया और वे बिन नहाये ही चले गए। 


     यह बात नेता जी ने मूलतः यह बताने को करी है कि 2013 की तब की गंगा और आज की 2025 की गंगा में बहुत अंतर आ गया है। बोले तो गंगा में बहुत पानी बह गया है। यूं कहने को तो कहा जाता है कि माँ कभी बदलती नहीं है।  चूँकि गंगा को लोगबाग माँ कहते हैं और कहना चाहिए कि माँ कहते थकते नहीं है फिर बदलने वाली बात समझ नहीं आई। खैर ! बड़े लोगों की बड़ी बातें। दुनियाँ में सब कुछ कम्परेटिव (तुलनात्मक ) होता है अतः हो सकता है 2013 की तुलना में 2025 की गंगा साफ, बोले तो स्वच्छतर हो गयी हो। कोई भुक्त भोगी जिसने गंगा स्नान 2013 और 2025 दोनों में किया हो, वही इंसान इस बात की तसदीक कर सकता है। 


             मेरी चिंता दूसरे किस्म की है। क्या जो बाहर के मुल्क के पी. एम. आए थे उन्होने 2013 के बाद स्नान किया कि नहीं। बोले तो अपने घर, अपने देश लौट कर भी स्नान किया अथवा नहाने से उनका मन ही फिर गया । अब उनकी तबीयत स्नान करने की होती ही नहीं। 2013 से तो बहुत साल हो गए वो पी.एम. साब इस बार, बोले तो 2025 में तो गंगा स्नान करने आए ही नहीं। अरे कोई देख कर बताओ वो अब पी.एम. हैं भी या नहीं। मज़े की बात ये है कि गंगा यदि गंदी हो गई है, प्रदूषित हो गई है तो इसकी जवाबदारी भी हमारी ही है। अर्थात गंदी हो या साफ दोनों हम इन्सानों ने ही करना है। मैंने तो जब से होश संभाला है यही सुना है कि गंगा को साफ करना है। तरह तरह की स्कीमें, तरह की योजनाएँ। स्थायी अस्थायी निकाय बनाए गए हैं। बोले तो मंत्री-संतरी सब ही हैं। माँ गंगा के पुण्य प्रताप से गंगा के नाम पर फंड की कोई कमी नहीं। पर फिर भी गंगा है कि सम्पट में नहीं आ रही है। 


           गंगा साफ कराते कराते न जाने कितने नेता साफ हो गए।  तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ गए। मगर गंगा जस की तस बल्कि लोग कहते हैं और अधिक प्रदूषित हो गई है। गंगा ने ना जाने कितनी फिल्में और कितने गीतों को प्रेरणा दी है। वो कहते हैं ना गुरु गुड़ ही रह गए और चेला शक्कर हो गया । गंगा के नाम पर लोग बन गए, गंगा वहीं की वहीं। आप देखो तो गंगा का काम ही लोगों को तारने का है। सो तारे जा रही है। लोग मचल रहे हैं गंगा हमें भी बुला ले।  काश: हमें भी गोद ले ले तो वारे न्यारे हो जाएँ। पर इतना आसान नहीं है। गोद लेने की प्रक्रिया बहुत क्लिष्ट होती है। नदियों पर खूब बड़े बड़े थीसिस लिखे गये हैं।  समय आ गया है कि गंगा पर भी लिखा जाये कि कैसे गंगा लोगों को तारती आ रही है। लोग गंगा स्नान करके कहाँ से कहाँ पहुँच गए। अब कोई पी.एम. नहाना ही नहीं चाहे तो उसे कौन नहला सकता है।  बचपन में माँ-बाप मुझे बाथरूम भेजते थे तो मैं बस नल चला देता था और थोड़े छींटें मारके  तौलिया से बदन पोंछता हुआ बाहर निकलता था।  सब समझते थे मैं नहा लिया। ऐसे ही ये पी.एम. महोदय जो बाहर-गाँव से आए थे उन्होने कुछ  किया होगा। मेरी जिज्ञासा और किस्म की है: ये आगंतुक पी.एम. 2013 के बाद नहाये भी हैं या नहीं ?