कई बार यह देखने में आता है कि इंसान कोई फैसला कर लेता है, कोई प्रतिज्ञा कर लेता है कि फलां काम वो तभी करेगा जब यह हो जाएगा या वो हो जाएगा या ढिकाना काम हो जाएगा। इसी श्रंखला में एक सूबे के नेताजी ने रहस्य उदघाटन किया है कि किसी एक देश के पी.एम. 2013 में भारत आए थे गंगा स्नान करने, किन्तु गंगा में तब की गंदगी देख कर उन्होने फैसला ले लिया और वे बिन नहाये ही चले गए।
यह बात नेता जी ने मूलतः यह बताने को करी है कि 2013 की तब की गंगा और आज की 2025 की गंगा में बहुत अंतर आ गया है। बोले तो गंगा में बहुत पानी बह गया है। यूं कहने को तो कहा जाता है कि माँ कभी बदलती नहीं है। चूँकि गंगा को लोगबाग माँ कहते हैं और कहना चाहिए कि माँ कहते थकते नहीं है फिर बदलने वाली बात समझ नहीं आई। खैर ! बड़े लोगों की बड़ी बातें। दुनियाँ में सब कुछ कम्परेटिव (तुलनात्मक ) होता है अतः हो सकता है 2013 की तुलना में 2025 की गंगा साफ, बोले तो स्वच्छतर हो गयी हो। कोई भुक्त भोगी जिसने गंगा स्नान 2013 और 2025 दोनों में किया हो, वही इंसान इस बात की तसदीक कर सकता है।
मेरी चिंता दूसरे किस्म की है। क्या जो बाहर के मुल्क के पी. एम. आए थे उन्होने 2013 के बाद स्नान किया कि नहीं। बोले तो अपने घर, अपने देश लौट कर भी स्नान किया अथवा नहाने से उनका मन ही फिर गया । अब उनकी तबीयत स्नान करने की होती ही नहीं। 2013 से तो बहुत साल हो गए वो पी.एम. साब इस बार, बोले तो 2025 में तो गंगा स्नान करने आए ही नहीं। अरे कोई देख कर बताओ वो अब पी.एम. हैं भी या नहीं। मज़े की बात ये है कि गंगा यदि गंदी हो गई है, प्रदूषित हो गई है तो इसकी जवाबदारी भी हमारी ही है। अर्थात गंदी हो या साफ दोनों हम इन्सानों ने ही करना है। मैंने तो जब से होश संभाला है यही सुना है कि गंगा को साफ करना है। तरह तरह की स्कीमें, तरह की योजनाएँ। स्थायी अस्थायी निकाय बनाए गए हैं। बोले तो मंत्री-संतरी सब ही हैं। माँ गंगा के पुण्य प्रताप से गंगा के नाम पर फंड की कोई कमी नहीं। पर फिर भी गंगा है कि सम्पट में नहीं आ रही है।
गंगा साफ कराते कराते न जाने कितने नेता साफ हो गए। तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ गए। मगर गंगा जस की तस बल्कि लोग कहते हैं और अधिक प्रदूषित हो गई है। गंगा ने ना जाने कितनी फिल्में और कितने गीतों को प्रेरणा दी है। वो कहते हैं ना गुरु गुड़ ही रह गए और चेला शक्कर हो गया । गंगा के नाम पर लोग बन गए, गंगा वहीं की वहीं। आप देखो तो गंगा का काम ही लोगों को तारने का है। सो तारे जा रही है। लोग मचल रहे हैं गंगा हमें भी बुला ले। काश: हमें भी गोद ले ले तो वारे न्यारे हो जाएँ। पर इतना आसान नहीं है। गोद लेने की प्रक्रिया बहुत क्लिष्ट होती है। नदियों पर खूब बड़े बड़े थीसिस लिखे गये हैं। समय आ गया है कि गंगा पर भी लिखा जाये कि कैसे गंगा लोगों को तारती आ रही है। लोग गंगा स्नान करके कहाँ से कहाँ पहुँच गए। अब कोई पी.एम. नहाना ही नहीं चाहे तो उसे कौन नहला सकता है। बचपन में माँ-बाप मुझे बाथरूम भेजते थे तो मैं बस नल चला देता था और थोड़े छींटें मारके तौलिया से बदन पोंछता हुआ बाहर निकलता था। सब समझते थे मैं नहा लिया। ऐसे ही ये पी.एम. महोदय जो बाहर-गाँव से आए थे उन्होने कुछ किया होगा। मेरी जिज्ञासा और किस्म की है: ये आगंतुक पी.एम. 2013 के बाद नहाये भी हैं या नहीं ?
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