स्पोर्ट्स के मामले में रेलवे की महत्ती
भूमिका रही है। इसके लिए स्पोर्ट्स परसन्स की विशेष भर्ती की जाती है। सामान्यतः
यह भर्ती नेशनल वालों की ग्रुप डी में और अंतर्राष्ट्रीय वालों की ग्रुप सी में की
जाती है। वे रौल पर रहते हैं, वेतन लेते हैं, क्वार्टर आदि सुविधाएं मिलती हैं। उनका काम अपने खेल को परिष्कृत करना तथा
चैम्पियनशिप में रेलवे/भारत का प्रतिनिधित्व करना होता है। लगभग सभी खेलों के कोच
रेलवे के पास उपलब्ध रहते हैं। किसी भी विशेष ट्रेनिंग के लिए भी रेलवे उन्हें
देश-विदेश में स्पाॅन्सर करती है। आप ढूँढने निकलेंगे तो एक से बड़े एक स्पोर्ट्स
परसन रेलवे ने भारत को दिये हैं। वह भी लगभग सभी खेलों में।
कालांतर में इन्ही स्पोर्ट्स पर्सन में से
कोच बनते हैं। वे कोच का विशेष कोर्स पटियाला की स्पोर्ट्स अकेडमी से करके आते
हैं। कोच के बाद उनका आगे का मार्ग स्पोर्ट्स ऑफिसर बनने का होता है। किसी एक
रेलवे में दो से चार स्पोर्ट्स ऑफिसर होते हैं। वरिष्ठतम को इंचार्ज बनाया जाता
है।
मुंबई में सभी अधिकारियों की सूची मुख्यालय
में फ्लोरवाइज़ लगी होती थी ताकि आगंतुकों को पता रहे फलां अफसर कहाँ बैठता/बैठती
है। फर्ज़ करो लिखा है: राम लाल, स्पोर्ट्स ऑफिसर, अब कहते हैं न राजभाषा वाले भी 52 हफ्ते में से 51 हफ्ते काम ढूंढते हैं। एक हफ्ता तो
उनका राजभाषा सप्ताह होता ही है। सबसे आसान यही है कि पदनाम द्विभाषी लिखो “...
एज़ पर धारा 3(3)...” आदि आदि। अब किसी ने आव देखा न ताव,
स्पोर्ट्स ऑफिसर की हिन्दी कर दी : खेल-कूद अधिकारी। मैंने सुझाया
यह कुछ जम नहीं रहा, असल में यह क्रीड़ा अधिकारी होना चाहिए।
वे बोले पहले क्रीड़ा अधिकारी ही रखा था पर लोग पदनाम (डेज़िंगनेशन) बिगाड़ कर
‘कीड़ा’ अधिकारी कर देते थे। फिर वह बोला ये स्पोर्ट्स वाले जितना हो हल्ला मचाते
हैं, पॉलिटिक्स करते हैं इनके पदनाम की हिन्दी होनी चाहिए ‘उछल-कूद अधिकारी’
यह पदनाम बिगाड़ने वाली बात को बल इससे और
मिला जब मुझे बताया गया कि ए.पी.ओ. की फुल फ़ॉर्म असिस्टेंट पर्सेनल ऑफिसर को बिगाड़
कर ‘आधा पागल ऑफिसर’ कर रखा है। इसी श्रंखला में सी.पी.ओ. (वरिष्ठतम) चीफ पर्सेनल
ऑफिसर को ‘कम्पलीट पागल ऑफिसर’ कहा जाता है।
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