यह किसी अंग्रेज़ी की फिल्म के प्लॉट सा लगता
है। अब तक आपने मेडिकल ग़फलत के अनेक किस्से सुने हैं। दोनों किस्म के आई मीन वाकई
गलती वाले और दूसरे जानबूझ कर मरीज़ की और उसके तन-मन-धन की ऐसी तैसी करने वाले।
अब लेटैस्ट यह है कि मरीज़ तो बेटा था। ऑपरेशन तो बेटे का होना था। सुबह-सुबह उसे
ऑपरेशन थियेटर ले भी गए। ग़रीब पिता बाहर इंतज़ार कर रहा था। तभी अंदर से पुकार लगी
"जगदीश कौन है"? अब क्योंकि पिता का नाम जगदीश था वह बोला "हाँ जी मैं
हूँ"। वो उसे अंदर ले गए। अब जगदीश सोच रहा है मुझे बेटे ने बुलाया है या फिर
डॉक्टर ने कुछ उसे बताना हो। तभी एक अटेंडेंट ने उसको आकर कहा "ये कपड़े बदल
लो" और उसे हरे रंग का गाउन पहना
दिया। ये सोच कर कि अस्पताल में चप्पल-जूते उतारने की तमाम किस्म की हिदायतें
होतीं हैं। ये भी उनमें से एक होगी ताकि ऑपरेशन थियेटर मे इन्फेक्शन ना आए।
अभी उसने गाउन पहना ही था कि अटेंडेंट
ने आव देखा ना ताव उसे टेबल पर लिटा दिया और बेहोश कर दिया। वो कुछ कहता इससे पहले
उसे बेसुध कर दिया वो गाना है ना:
दिखाई दिये यूं कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले
जब बुजुर्गवार को होश आया तब तक उनका
ऑपरेशन सफलतापूर्वक हो चुका था। लोग उनके स्ट्रेचर पर झुके हुए उन्हें बधाई
दे रहे थे। वह किंकर्तव्पविमुण सा सबको देख रहा था और किसी फिल्मी दृश्य की भांति
लोगों से पूछ रहा था, नहीं...नहीं ये नहीं कि "मैं कौन हूँ" ? वो तो बस ये जानना चाहता था कि
"मैं कहा हूँ" ? जब उसकी बांह देखी गई तो वहाँ कट था और टांके भी लगे हुए थे। सोचने
वाली बात ये है कि जब वह पिता एकदम स्वस्थ्य था तो बांह में कट किस बात का लगाया ? ऑपरेशन किस चीज़ का किया गया ? और टांके भी लगा दिये। जब पता चला तो
हड़बड़ी मची। तब डॉक्टर ने कहा आप चिंता मत करो हमने ये जिम्मेवारी ली है कि दोनों
बाप बेटे को पूर्णतः स्वस्थ्य कर के ही घर भेजेंगे। बस आप इस बात का किसी से ज़िक्र न करना।
कुछ भी बोलिए मैं इस बात को अस्पताल और डॉ की
प्रो-एक्टिव एप्रोच मानता हूँ। डॉ को कैसे भी तो ये पता है कि ये बीमारी आज बेटे
में हैं तो कल बाप में भी निकलेगी ही निकलेगी इसीलिए पहले ही प्रेवेंटिव ऑपरेशन कर
छोड़ा है। ताकि हो ही ना। पनपे ही ना। बहुत से लोग 'ट्रिगर हैपी' होते हैं। जासूसी फिल्मों की तरह बात बात में
ठांए ठांए करने की आदत सी हो जाती है उसी तरह हो सकता है कुछ डॉ 'नाइफ हैपी' होते हों। जहां मरीज़ या मरीज़ सा
दिखने वाला व्यक्ति दिखा नहीं कि तुरंत ऑपरेशन टेबल पर लिटाओ और बॉडी चीर के रख
दो। किसी ना किसी चीज़ का ऑपरेशन तो कर ही डालेंगे नहीं तो रेडियो टी.वी. की तरह
खोलने बंद करने का सर्विस चार्ज लिया जा सकता है। जैसे मकैनिक लोग करते हैं। ऐसी-
फ्रिज खोलने का एक चार्ज होता है अगर कुछ खराबी हुई तो उसका चार्ज अलग। मैं सोच
रहा हूँ जिस भगवान को पता था कि आदमी ऐसे नहीं मानेगा और ऐनक का आविष्कार कर ही
लेगा अतः पैदा करने से पहले ही उसके दायें-बाएँ दो कान लगा दिये ताकि ऐनक उस पर
टिका सके, उसी
भगवान ने डॉक्टरों की ऐसी जमात देख कर पूरे ज़िस्म पर ज़िप क्यों नहीं लगा दी ?
जरा ज़िप खोली देख ली तस्वीर-ए-यार
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