Ravi ki duniya

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Thursday, May 22, 2025

व्यंग्य: एम.ए. इन पूजा सामग्री


 

हमारे स्कूल के जमाने में 'धर्म' नामक एक विषय होता थाl इसमें हमें विश्व के प्रमुख धर्मों, उनके संस्थापक, पवित्र पुस्तक और टीचिंग्स का मोटा-मोटा विवरण पढ़ाया जाता था। एक तरह से बेसिक नाॅलिज दी जाती थी। बिना किसी 'बायस' के। तब से गंगा में बहुत पानी (कैमिकल युक्त और गंदे नालों का) बह गया। लेटेस्ट है एक यूनिवर्सिटी ने अपना ही एक 'सेंटर फॉर हिन्दू स्टडीज़' खोल मारा है। और तो और इसमें प्रवेश की औपचारिकताए पूरी कर ली गई है। बहुत सारे पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा कोर्स चलाये जाने की खबर है। हमें तो अभी तक यही पढ़ाया जाता था की हिन्दू कोई धर्म नहीं। ये तो महज़ एक जीने का ढंग (वे ऑफ लाइफ) है। यदि ऐसा है तो ये कोर्स पर कोर्स क्यूँ ? ये बात समझ से परे है।

 

अब इस हिन्दू अध्ययन केंद्र के कोर्स की बानगी देखिये।

एम.ए. इन हिन्दू स्टडीज़, पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा इन टेंपल मेनेजमेंट, (ज़ाहिर बात है अब जबकि गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ छोटे बड़े इतने मंदिर देश भर में खुल गए हैं तो उनका प्रबंधन भी तो प्रोफेशनल ढंग से पढे-लिखे लोगों द्वारा किया जाना चाहिए। एक कोर्स एम.ए. इन कीर्तन शास्त्र भी खोला है। सोचिए कितना कुछ ज्ञान आपकी प्रतीक्षा में हैं। आप तो ले दे कर एक गायत्री मंत्र और एक गणेश पूजा को ही हिन्दू धर्म माने बैठे थे। अब पता लगेगा कितना विस्तृत सागर है ये हिन्दू धर्म। अब उतना विस्तृत या गहरा ना भी हो तो जैसे नाविक आपको डूबी हुई द्वारका की कहानियाँ सुनाता ले जाता है। कभी भयावह कभी कौतुहल से सागर की गहराई और विस्तार बताता जाता है। उसी तरह पुजारी जी, जो मंदिर के महंत हैं उनका अधिकृत काम आपको क्लिष्ट बातें आसान शब्दों में एक्सप्लेन करना होता हैं।

 

सोचो ! जब आप डिप्लोमा इन कीर्तन शास्त्र कर लेंगे तो कितने भजन और उनके अर्थ आपको जुबानी याद हो आएंगे। इसको सरल और रुचिकर बनाने को इन पर आधारित अंताक्षरी खिलाई जाया करेगी। बोले तो प्रैक्टिकल के पीरियड में। शुकर है मुंबई में गाला-गाला, घर-घर, छोटे बड़े मंदिरों की भरमार है अतः इन तालिब-ए-इल्म को इंडस्ट्रियल अटेचमेंट में कोई परेशानी नहीं आएगी। सोच रहा हूँ क्या इनका कोई ड्रेस कोड भी तया होगा ? क्या ये कोर्स सभी वर्णों के लिए खुले होंगे ? लोग योगा सीखते हैं, ज्योतिष सीखते हैं ताकि वे विदेश जा सकें। खा-कमा सकें। सरकार चाहे तो हर एम्बेसी में एक अतैशे ये वाला रख दे। आखिर अशोक ने संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये भेजा ही था।  क्या ये कोर्स विदेशियों के लिए भी खुले रहेंगे ? लोगबाग अपने घरेलू/ ट्रस्ट मंदिरों के लिए बड़ी-बड़ी कैपिटेशन फी दे दे कर एडमिशन करा सकेंगे ? कोई एडमिशन टेस्ट हुआ करेगा, सी.यू.ई.टी. की तरह?  दक्षिणा आई मीन फीस कितनी होगी?  स्टूडेंट लोग तिलक और चोटी रखा करेंगे या उस्तरा फिरवाना पड़ेगा? क्या इसमें पोथी-पत्रा बांचना भी सिखाएँगे ?  हमारे देश में लोग मंदिर जा कर कुछ ना कुछ ज़रूर मांगते हैं। अतः उन पर क्या संकट आने वाला है या उन संकटों का क्या उपाय हैं ये सब सरल भाषा में सिखाया जाया करेगा? टेंपल मेनेजमेंट कोर्स में क्या ये सिखाया जाया करेगा कि कैसे मंदिर में थाली में सामाग्री ले जानी है अथवा बास्केट में ? फूल कौन सा होना चाहिए? मैंने कहीं सुना था हरेक देवता का फूल भी अलग होता है। अतः ये मैच भी बताया जाएगा। उसके साथ ही बताया जाये कि अभीष्ट फूल न मिले तो अन्य कौन सा फूल विकल्प हो सकता है ?

 

एक बात मेरे मन में ये है कि क्या इन कोर्सों में कुछ तुलनात्मक भी पढ़ाया जाया करेगा ? जैसे इस विषय पर जैन धर्म ये कहता है, बुद्धिस्ट त्रिपिटिक ये कहते हैं ? पारसियों का ये मत है और इस्लाम ये कहता है। अथवा लब्बोलुआब ये निकाला जाये कि ये बात और कट्टर तरीके से बिताई जाएगी कि हिन्दू धर्म सबसे श्रेष्ठ है। बाकी धर्म इसी से निकले हैं अथवा इससे कमतर हैं। म्लेक्ष हैं।

 

 

लगे हाथों जो कोर्स मेरे मन में आ रहे हैं:

डिप्लोमा इन पूजा सामाग्री, डिप्लोमा इन मैनेजमेंट ऑफ कमर्शियल एक्टिविटीज (शाॅप्स) एराउंड मंदिर, एम.ए. इन वरशिप, डिप्लोमा इन व्रत, सर्टिफिकेट कोर्स इन नौरात्रे, डिप्लोमा इन पिल्ग्रिमेज, क्राउड मैनेजमेंट ऑफ टेम्पल्स विद स्पेशलाइजेशन ऑन फ़ेस्टिवल्स। सर्टिफिकेट कोर्स इन अपशकुन, डिप्लोमा इन स्वप्न-फल, एक बात और जो मेरे मन में आ रही है इन स्टूडेंट्स का नौकरी के प्लेसमेंट के लिए कैम्पस सलेक्शन हुआ करेगा या इन्हें भी अन्य एम.ए. और पी.एच.डी. की तरह धक्के खाने पड़ेंगे। आई मीन खड़ाऊं फटकारनी होगी  अथवा सरकार इनके लिए कोई अग्निवीर टाइप योजना लाएगी ?

 

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