Ravi ki duniya

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Thursday, July 9, 2015

व्यंग्य : ‘हेमा’ को नहीं कोऊ दोस गुसाईं


श्रीमती हेमा मालिनी उर्फ आयशा बी ने सही कहा है कि यह बच्ची के पिता की गलती है वह ट्रैफिक नियमों का पालन नहीं कर रहा था. सच है ! ट्रैफिक का बल्कि यूँ कहिये जीवन का पहला नियम यह है कि जब ड्रीम गर्ल, ड्रीम रन पर हैं तो अगला सडक पर निकला ही क्यों ?. आप पता लगाईये हो न हो ये कोई कॉन्ग्रेसी तो नहीं जो आपकी या बी.जे.पी. की या मोदी जी की छवि धूमिल कर रहा है.

मैं आपसे सहमत हूँ कि जब आपकी मर्सिडीज़ रोड पर थी और सौ से ऊपर की स्पीड में थी तो लडकी के पिता को और उसकी टुच्ची गाड़ी को सडक पर घुसने किसने दिया. बच्ची का पिता शुक्र मनाये कि आपने उसे जीवित छोड़ दिया नहीं तो ‘कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ टाइप होते कितनी देर लगनी थी.
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चक्कर ये है कि आप सांसद हैं...सुंदर हैं... सत्तारूढ़ दल की हैं आपको आपकी पार्टी ने अभी न जाने कितने चुनाव क्षेत्रों में वोट के लिये ले जाना है. आपसे शोले फिल्म के डॉयलॉग बुलवाने हैं. लोगों ने ताली बजानी है. बार बार सुन कर भी ऐसे कि जैसे ज़िंदगी में पहली बार सुन रहे हों. फर्ज़ करो आप सांसद नहीं होतीं, न ही ड्रीम गर्ल होतीं. महज़ एक गर्ल आई मीन देश की करोड़ों नानियों जैसी एक नानी होतीं तो क्या होता आपके साथ ?. आप और आपका ड्राइवर उसका ड्रीम भी नहीं कर सकते. हमारी पुलिस को आप ऐसी वैसी फिल्मी पुलिस न समझें. हमारी पुलिस नानी को भी नानी याद दिला देने का माद्दा रखती है. अब तक तो उन्होंने आपकी रिमांड ले कर आपसे इक़बाल-ए-ज़ुर्म का हलफिया बयान भी ले लिया होता. मर्सिडीज़ ज़ब्त अलग कर ली होती. आगे-पीछे दो-चार केस और ठोक देने थे. आपने सुना नहीं ‘पुलिस आपके लिये... आपके साथ’ . आप शायद इसके गूढ़ अर्थ को नहीं समझीं.
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हाँ तो हेमा को नहीं कोऊ दोस गुसाईं. मैं तो कह रहा हूँ वो बच्ची पैदा ही क्यों की उसके माता-पिता ने. आप उस पर यही एक केस दायर कर दो. फिर बच्चू सब चौकड़ी भूल जायेगा. या कह दो कि वह आपको ऑटोग्राफ के लिये तंग कर रहा था और आपको ढूँढता फिर रहा था जैसे डायना के पीछे फोटोग्राफर लगे थे.
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और ये लूज़ टॉक कौन कर रहा है जी कि आपने सीट बैल्ट नहीं पहनी थी. पागल हैं क्या ये ?. मूर्ख कहीं के. सीट बैल्ट क्या ड्रीम गर्ल के लिए होती है. सीट बैल्ट क्या सांसदों के लिये होती है ? और तो और सीट बैल्ट क्या सत्ताधारी पार्टी के सांसदों के लिये होती है ? लोग-बाग कह रहे हैं कि आप तो एक्सीडेंट साइट से तुरत फुरत ही निकल लीं.अब आप भी क्या करें आपका वो डॉयलॉग किसे याद नहीं “ चल धन्नो ! आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है” और फिर सच तो यह है कि आपने कौन सा दौसा से या राजस्थान से चुनाव लडना है ? आप कृष्ण कन्हैया बंसी वाले की नगरी मथुरा की सांसद हैं. पाल्टी को ज़रूरत होगी तो झक मार के आप को दूसरी सीट, दूसरे राज्य से टिकट देगी. पारक्लाम !! टिकट काट भी देगी तो ..परवाइल्ला...
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वोटरों ने बीकानेर में ‘हीमैन’ देख लिये. मथुरा और दौसा में आप देख लीं. अब इस नश्वर जगत में देखने को और बचा ही क्या है ? पर फिर भी मुझे ऐसा क्यूँ लगता है कि मथुरा में आपकी लीला अब ज्यादा चल नहीं पायेगी. मथुरावाले तो पहले ही माथा पीट पीट कर रो रहे हैं. वे अर्थ ही नहीं समझ पा रहे हैं जब आप उन्हें बताती है कि :
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‘रहिमन कैंट का पानी राखिये...कैंट के पानी बिन सब सून...’
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वैसे यदि राजस्थान में आपकी पार्टी की सरकार नहीं होती तो आप इसे विपक्ष की चाल बता सकतीं थीं. आप इसे रोड की खस्ता हालत बता सकतीं थीं. षडयंत्र कह सकतीं थीं. थोड़ी पढ़ी लिखी होतीं तो इसे ‘विदेशी हाथ’ कह सकतीं थीं. मथुरा में कुछ काम किया होता तो “ माफिया मेरे पीछे पड़ा है ” ये कह सकतीं थीं. मीडिया को गरियाने से तो ये झुंड के झुंड और पीछे पड़ जाते हैं. जरा भी भरोसे लायक नहीं हैं. देवयानी चौबले के ज़माने से ये लोग भी बहुत तरक्की कर गये हैं.
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अगले चुनाव में अभी वक़्त है. तब तक नया चुनाव क्षेत्र..नये मतदाता..नये डॉयलॉग ...और लेटेस्ट तकनीक की नयी...... प्लास्टिक सर्जरी

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