Ravi ki duniya

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Friday, November 1, 2019

व्यंग्य: सफाई दिवस-- मेरे शहर में

                    

                                        ज़िंदगी में कूढ़े का बहुत महत्व है। प्राचीन समय से ही घूरे की पूजा का रिवाज है। कूढ़े से जैविक खाद बनती है। इधर देखता हूँ कूढ़े के चलते बहुतों की राजनीति चल निकली है। जगह-जगह बाल्टी भर-भर कर पहले कूढ़ा लाया जाता है। लंबे हैंडल वाली डिजायनर्स झाड़ू। आजकल इसके भी अनेक नाम हो गए हैं ब्रूम, वाईपर आदि। स्वच्छता दिवस के लिए देसी झाड़ू में अच्छा चिकना सा हैंडल (डंडा) लगा कर एक तरह की ‘हाइब्रिड’ झाड़ू तैयार की जाती है। अब क्यों कि झाड़ू सैलिब्रिटीज के हाथों तक पहुँचने से पहले न जाने कितने और कैसे कैसे ‘डर्टी’ हाथों से गुजरती होगी, इन्फेक्शन का खतरा रहेगा अतः सुंदर, सॉफ्ट महंगे मैचिंग ग्लव्स भी चाहिये होते हैं। सभी सैलीब्रीटीज़ डिज़ाइनर्स पोशाक में आए हैं। कलफ लगी लक-दक कड़क। महिला नेत्रियां तो भाग लेने सीधे ब्यूटी पार्लर से भागते-भागते आ रही हैं। वे सब महंगी महंगी एस॰यू॰वी॰ और लंबी लंबी ए॰सी॰ कारों से पृथ्वी पर एक-एक करके पल्लू संभालते, ड्रेस ठीक-ठाक करते अवतरित हो रही हैं। मंद-मंद सौम्य मुस्कान के साथ। पता नहीं कौन किस एंगल से फोटू खींच रहा हो।

                       सभी आकर मुख्य अतिथि को घेर कर उनके ओर-पास खड़े हो जाते हैं। तभी पहले से नामित एक सफारी सूट धारक सफाईकर्मी कूढे को इस तरह बिखेर देता है कि सबके हिस्से में दो-दो, तीन-तीन टुकड़े आ जाएँ। कूढ़ा क्या, पहले से फाड़े हुए सफ़ेद कागज के टुकड़े हैं। थोड़ा हास्यस्पद दृश्य बन रहा है। कारण कि उनका इतने लंबे-लंबे हैंडल (डंडे) वाले झाड़ू पकड़ने का ज़िंदगी में ये पहला मौका था। उनके कानों में गूंज रहा था “... (ऐ कुर्सी) मैं तेरे प्यार में क्या क्या न बना...” उन्हें पता ही नहीं चल रहा कि डंडे को कैसे कहाँ से पकड़ना है। कनफ्यूज से हैं। वातावरण में बहुत एकसाइटमेंट है। लाउड स्पीकर से देश भक्ति के गाने सुबह से ही बज रहे हैं। आखिर सोने वालों को जगाना भी है। नए नए भक्क सफ़ेद हैंड टॉवल रखे हुए हैं। खुशबू वाले लिक्विड साबुन के स्प्रे रखे हुए हैं। ‘सफाई’ के बाद लाइट रिफ्रेशमेंट का भी इंतजाम है। भुने हुए काजू, ढोकला, टी-कॉफी, महंगी क्रॉकरी से ले कर पेपर प्लेट, कप का इफ़रात में इंतजाम है।
                               जब सब एक पंक्ति में खड़े हो गए और मंद मंद मुस्कराने लगे तभी आवाज आई “लाइट...साउंड...एक्शन...कैमरा” कहते ही सभी अफरातफरी में झाड़ू घुमाने लगे। तभी चीख की आवाज आई, किसी का हैंडल किसी की नाक पर लग गया। शूटिंग रोक देनी पड़ी। वो तो अच्छा हुआ कि फर्स्ट-एड बॉक्स मौजूद था सो फौरन मरहम पट्टी कर दी। डॉक्टर ने जोश-जोश में टिटेनस का इंजेक्शन भी लगा छोड़ा। डॉक्टर साब का बस चलता तो ऑक्सिजन देने और खून चढ़ाने में भी देर न लगाते। दरअसल उनकी मनचाही जगह ट्रांसफर की फाइल मंत्रालय में पेंडिंग है।
                                पुनः एक बार फिर लाईट ... साउंड... एक्शन ...कैमरा और चमचमाती सड़क पर झाड़ू चलने लगी। हाय ! कितना मनमोहक दृश्य था। नेता, नेत्री, सिने तारिका जिस नज़ाकत से कभी फ्रंट पोज, कभी साइड पोज, कभी क्लोज-अप दे रहे थे देखते ही बनता था। दरअसल कागज कम थे और झाड़ू ज्यादा। वो तो अच्छा हुआ दो बाल्टी फाड़े हुए सफ़ेद कागज बैकअप के तौर पर पीछे रखे हुए थे एन मौके पर काम आ गए, उन्हे भी बिखरा दिया गया। कितने वी॰आई॰पी॰ आ जाएँ सोच कर दो दर्जन झाड़ू और चार रिम कागज (ए-4 बंडल) के लाकर रखे हुए थे।
                                     
                                          सबने इतने मोहक-मोहक चित्र खिंचाए। भले झाड़ू थोड़ी आड़ी-तिरछी पकड़ी हुई थी। मगर उस से क्या। नेता जी ने सफाई की महत्ता पर पहले से लिखा गया भाषण पढ़ा। सफाई को दिव्य और नेक्स्ट टू गॉडलीनेस बताया। यद्यपि इसका मतलब उन्हें भी नहीं मालूम था। मगर उस से क्या। जलपान ग्रहण कर पेपर प्लेट और नैपकिन के ढेर को लोकल सफाईकर्मी के लिए छोड़ सब अपनी-अपनी एस॰यू॰वी॰ और लक्जरी कारों में बैठ गए। कई को डस्ट-एलर्जी जो है। काफिला रवाना हो गया अगली शूटिंग के लिए। दोपहर तक सारी की सारी फोटो अखबार के दफ्तर पहुंचानी हैं ताकि कल के अखबार में सुर्खी बन सके। चुनाव नज़दीक है। हाई कमांड की नज़रों में तो रहें। नहीं तो उन्होने हमारा ही सफाया कर देना है।
                                       
                                          सफाई दिवस अत्यंत ही सफल गया। सभी प्रतिभागी खुश थे। सबको फ्री में टी-शर्ट और टोपी (कैप) मिली थी। यह संदेश था टोपी पहनो - पहनाओ। नहीं तो टोपी को उल्टा पढ़ने पर जो बनता है उसके लिए तैयार रहो।

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