नीरव भाई को मेरी यानि अपने सगे नानू भाई की जय
श्री किशना ! मैं समझता हूं नीरव भाई ! ये लोग खाली-पीली शोर कर रहे हैं --
भाग गया ! भाग गया ! बैंको का तेरह हज़ार करोड़ रुपया ले कर भाग गया ! आप भाग
गये ! आपको भगा दिया. ये गांडा हैं. जानते ही नहीं कि आपका तो नाम ही नीरव
है, बोले तो शोर रहित. इसमें आपका क्या गुनाह ? जैसा नाम वैसा काम. ये मूरख क्या जानें ? बारीक़ बात है. इनके कूढ़ मगज़ में पड़ने
वाली नहीं. फिर कह रहे हैं कि आपने बैंक से उधार लिया है. अरे तो बैंक होती काय के
लिये है ? मैं सू बोलूं छू आपने तो उल्टे बैंकों की
मदद की है. देखो ना कैसे चोर-उचक्के पूरा का पूरा ए.टी.एम का ए.टी.एम उखाड़ ले जाते
हैं. अब आप पर बैंक का पैसा है ये आप जानते हैं, बैंक
जानती है. आपस की बात है, इसमें लोचा क्या है ?
खाते-कमाते उधार भी चुकता हो जाना है. आप टेंशन न लें. ये कौव्वा लोग का तो
काम ही काँव-काँव करना है.
संत-महात्माओं की भूमि पर यह चार्वाक
दर्शन के खिलाफ जाता है. आप से पहले भी भारत की पावन भूमि पर अनेक महापुरुष
बहुराष्ट्रीय हुए हैं. यहां नाम लेना ठीक नहीं. किसी का छूट गया तो बुरा भी मान
सकता है. मज़े की बात ये है उधार बैंक का लिया है, वो भी
सरकारी बैंक का, न तो बैंक कुछ कह रही है, न सरकार. बस ये विपक्ष को ना जाने क्या पड़ी है, बावेला मचाये है. इन सब को नीरव कर दो आप तो.
इन्हें आप पर गर्व होना चाहिये. आपके तौर-तरीके, बोले
तो ‘मॉडस ऑपरेंडाई’ इन्हें सिलेबस में डाल के प्राइमरी
से लेकर बिजनस स्कूल तक पढ़ाई जानी चाहिये. आजकल वैसे भी चारों ओर सिलेबस रिवाइज़
करने की मुहिम चली हुई है. मैनेजरों की भावी पीढ़ी और उद्यमियों को बताया जाये कि
हमारे एक हिंदू भाई ने कितनी तरक्की की है और कर सकता है. ऐसे कर सकता है कोई अन्य
धर्मावलम्बी ? बस सैकुलर..सैकुलर का गीत गाते रहते हैं. इससे
कुछ होना-जाना नहीं है. बैंक की तो टैग लाइन ही थी ‘दि नेम यू
कैन बैंक अपॉन’ अब आपने बैंक किया तो लगे हो-हल्ला करने. वैसे
जेटली जी ने आपका काफी बचाव किया है, उन्होने जेठा
भाई माल्या का भी बहुत बचाव किया था. “न कॉन्ग्रेस
अनाप-शनाप, अंधाधुंध लोन देती न नीरव को देश छोड़ कर जाता”.
लोग कितने खराब होते हैं देखो ! आपके सारे उपकार, सारे
कॉकटेल, सारे स्टेज शो भूल गये कहते फिर रहे हैं:
“ (नी)रव ने बना दी जोड़ी “
हमें पता है ‘हीरा है सदा के लिये’. आप हीरे के सौदागर हैं, सो आप भी सदा के लिये हैं. शाश्वत हैं, अमर हैं. आपको यह वरदान प्राप्त है. अब आप
देखिये आपने लंदन में शुतुरमुर्ग के पंखों की एक जैकट पहन रखी थी. ये बेवकूफ उसी
को रो रहे हैं कि 80 लाख की थी कि एक करोड़ की थी. अरे भाई ! तो क्या हुआ लंदन में
मुम्बई के फैशन स्ट्रीट के या सरोजिनी नगर के
सस्ते कपड़े पहन कर देश की नाक कटवायें. इतनी छोटी सी बात के लिये मगज़मारी
करते हैं. ये देश की इज़्ज़त, मान-सम्मान का सवाल है. जैसे शुतुरमुर्ग रेत में
मुंह डाल कर निश्चित हो जाता है कि उसे कोई नहीं देख रहा हू ब हू वैसे ही आपकी भी
प्लानिंग ये थी कि शुतुरमुर्ग के पंखों की जैकट पहन आपने भी छिप जाना है. बुरा हो
इन खोजी पत्रकारों और मोबाइल में कैमरा डालने वालों का. इतनी दाढ़ी-मूंछ में भी
आपको पहचान लिये और लगे आपको ‘हरैस’ करने. आपने सही ही इनके मुंह पर तमाचा मारा ये
कह कर कि ‘नो कमेंट्स’. सब हाथ मलते रह
गये. नहीं ये तो सोचे थे दो-चार दिन टी.वी. पर टी.आर.पी. बढ़ाते रहते. कौन जाने कुछ
प्रमोशन कुछ इनाम-इक़राम झटक लेने में क़ामयाब हो जाते.
दरअसल, हमारे देश में कोई किसी को खुश या सफल होते नहीं
देख सकता. उसे सहन ही नहीं है कि अगला कैसे इतनी तरक्की कर गया. लग जाते हैं टाँग
खींचने और मीन-मेख निकालने में. पर वांदा नहीं. ये गिरफ्तारी, ये रैड कॉर्नर नोटिस ये सब नटवर नागर की लीला
है. भूल गये ? मैंने कहा न हीरा है सदा के लिये. आप तो हमारे
कोहनूर हो. लंदन-फंदन क्या होता है जी, आदमी व्यापार की
खातिर आदिकाल से देश-देश नये-नये तटों पर जाता रहा है. इसमें नया क्या है ?
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