Ravi ki duniya

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Saturday, November 25, 2023

व्यंग्य: पप्पू बनाम पनौती

 


 

           मेरी पत्नी जी मुझे शादी के बहुत साल तक पप्पू समझती रहीं हैं। फिर धीरे-धीरे उन्हें समझ आया ये आदमी आखिर इतना पप्पू भी नहीं। यद्यपि अभी भी मुझे वो अपने से कम, बहुत कम समझदार समझती है। मैं खुश हूँ। इतनी बड़ी उपलब्धि मेरे लिए पर्याप्त है। पर मेरी खुशी शॉर्ट लिव्ड थी अब उनका मेरे बारे में ख्याल यह है कि मेरी ज़ुबान काली है। जिन्हें न पता हो उनकी जनरल नोलीज़ के लिए बता दूँ कि काली ज़ुबान का मतलब है वह आदमी जिसका कहा खासकर निगेटिव बात सच हो जाती हो अर्थात मनहूस बोले तो पनौती। पर न जाने क्या सोच कर वह मुझे पनौती नहीं बुलाती इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ। मेरी  उम्र तक आते-आते हम लोग छोटी-छोटी चीजों में खुशियों ढूंढ लेते हैं। यह क्या कम है कि वह मुझे पनौती नहीं बुलाती। यह क्या कम है कि वह मुझे इन सबके बावजूद दोनों टाइम खाना बना खिलाती है। मेरी फिक्र करती है। मुझे यदा-कदा डांट देती है कि मैं क़ायदे के कपड़े पहनूँ। फीडबैक देती है यह शर्ट मुझे सूट नहीं करती आदि आदि।

 

            यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि पप्पू और पनौती इन दोनों में से कौन सा सम्बोधन बेहतर है। एक तरह से समझो मुझे चॉइस है। अब आप ही बताओ क्या चूज़ किया जाये। देखिये पप्पू हमारे देश में एक प्यार भरा निक-नेम है। ऐतहासिक तौर पर छोटे बच्चे को प्यार से पप्पू कहते रहे हैं। दूसरे शब्दों में यह आज के बेबी का हिंदीकरण है। आजकल दंपति एक दूसरे को बेबी कह कर प्यार दर्शाते हैं। जहां तक सवाल पनौती का है, पनौती देश में, समाज में शुरू से ही निगेटिव टर्म रहा है। इसमें कुछ भी पॉज़िटिव ढूँढना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अतः अगर मुझे चुनना होगा तो मैं चाहूँगा कि मेरी पत्नी जी मुझे पप्पू समझे, कहे, प्रचारित करे कोई वान्दा नहीं। पर पनौती ? प्लईईईईज़ नो ! यू नॉटी !

 

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