Ravi ki duniya

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Friday, March 22, 2024

व्यंग्य: बंगला लुटियन ज़ोन का

 

दिल्ली से सटी हुई नई दिल्ली है। वैसे ही जैसे हैदराबाद से सिकन्दराबाद सटा हुआ है। जैसे मुंबई से नवी मुंबई जुड़ी हुई है। दिल्ली, पुरानी बहुत पुरानी है। नई दिल्ली आई तो दो दिल्ली हो गईं। नई और पुरानी दिल्ली। यूं आपको पता भी न चलेगा कि कहाँ पुरानी दिल्ली खत्म हुई और कहाँ नई दिल्ली शुरू हो गई। नई दिल्ली बनाते वक़्त लुटियन महोदय ने एक ऐसा इलाका बनाया जहां सांसद, मंत्री, और बड़े-बड़े नौकरशाह रहते हैं। यहां संसद है, राष्ट्रपति भवन है, इंडिया गेट, नेशनल म्यूज़ियम, नेशनल स्टेडियम है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट हैं। प्रगति मैदान है, अगर कोई पुरानी चीज़ यहां है तो वह है- पुराना क़िला।

लुटियन जोन में रहना प्रतिष्ठा का प्रतीक है। साफ सुथरी सड़कें। ट्रैफिक लाइट हैं, पुलिस है। दफ्तर - दर - दफ्तर की कतार पर कतार है। जहां कागज की फसल बोई जाती है। कागज की फसल सींची जाती है। कागज की फसल काटी जाती है। ये फसल, रबी-खरीफ वाले चक्र से नहीं बोई-काटी जाती बल्कि राजनैतिक दल अपनी मन -मर्ज़ी, अपनी सुरक्षा - असुरक्षा, अपना फायदा - नुकसान देख कर बोते-काटते हैं।

यहाँ के बंगलों में कुछ ऐसी सिफ़त है कोई एक बार रह ले तो उसकी ऐसी हालत हो जाती है कि 'बंगला जाये तो जिया नहीं जाय'। अतः जब बंगला खाली करने की नौबत आती है तो लोग पहले एक्स्टेंसन लेते हैं। फिर एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन लेने की जुगाड़ लगाते हैं। भागम-भाग सी लगी रहती है। कभी एक कारण से, कभी कोई और कारण से। कुछ का कहना है कि यह बंगला मेरे लिए ‘लकी’ है। कुछ का कहना है कि ‘मैं बेघर बेचारा अब कहाँ जाऊंगा इस बुढ़ापे में’। जब सामान फेंकने की घड़ी आती है तो उसे अपने-अपने समाज, अपनी जाति के स्वाभिमान से जोड़ने लगते हैं। गोया महोदय के बंगला खाली करने से उनकी पूरी जाति बेघर हो जाएगी। कुछ और बड़े खिलाड़ी होते हैं वे अपने पिता आदि का ‘बस्ट’ लगा लेते है और सरकारी बंगले को ही उनका ‘स्मारक’ घोषित कर देते हैं। इससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं पहुंचता मगर कुछ टाइम (मोहलत) तो मिल ही जाती है।

इस शस्त्रागार में नवीनतम हथियार है दल-बदल। जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे। उसी नेता के दल मे रहेंगे। उसी नेता को अपने दिल में रखेंगे जो हमें बंगले में रखेगा। 'तुम मुझे बंगला दो मैं तुम्हें अपना वोट दूंगा, लाॅयल्टी दूंगा' आप संकेत भर कर देना मैं पब्लिकली यह भी घोषित कर दूंगा कि नेता जी में मुझे अमुक देवी/देवता की छवि दिखने लग पड़ी है। अचानक से ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ है कि मैं चाहता हूं अब बाकी जीवन नेता जी की सेवा में ही बीते, जो मानुष हों तो वही रसखान ! उनके बताए रास्ते पर चल कर मैंने जीवन को धन्य बनाना है। अब यही मेरे जीवन का संकल्प है।

सोचो ! आजकल ‘अंतरात्मा’ का भाव कितना गिर गया है।

लुटियन ज़ोन के एक बंगले की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू !

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