कई बार लगता है कि अमुक कोर्स बहुत आवश्यक है
इसको इतना टाइम क्यों लग गया लाने में। मैं तो कहूँगा कि वक़्त आ गया है ये सब
स्कूल के सिलेबस से चालू कर दिया जाये। किशोर और किशोरियों के ऊपर ही छोड़ देने से
समस्या हल नहीं होती बल्कि जिसे अंग्रेज़ी में कहते हैं ना “यू लर्न हार्ड वे” अतः
अब जबकि ये साबित हो चुका है कि बच्चों को 'को-एड' में पढ़ाना चाहिए ना की बाॅयज ओनली अथवा गर्ल्स
ओनली में। इससे वे कुंठाओं के साथ, मिथक के साथ बड़े होते हैं। तरह-तरह की
भ्रांतियों में जीते हैं। 'फाॅर एवर क्युरियस' रहते हैं।
क्या फायदा है इन सब बातों का जब आप कभी
मोबाइल फोन को कभी इंटर नेट को, कभी सिनेमा को, कभी टी.वी. को, कभी क्राइम पेट्रोल को दोष देने बैठ जाओ। अंधेरे की शिकायत करो इससे
बेहतर है कि आप एक मोमबत्ती जलाओ। ये कोर्स मोमबत्ती की तरह ही शुरू किए जा रहे
हैं। आपको पता नहीं हैं आजकल के निब्बा-निब्बी किन-किन समस्याओं से गुजर रहे हैं।
इनके साथ कितने बवंडर, कितने तूफान चल रहे होते हैं। छाती में उमड़-घुमड़ रहे होते हैं। इन सब
की ही परिणिति ही मर्डर, सुपारी, नीले ड्रम, ड्रग्स, शराब और लिव इन, ख़ुदकुशी में हो रही है। इमोशन को मैनेज करना आज की सबसे बड़े समस्या
हो गया है।
अब ये कोर्स में आपको कुछ बेसिक बातें
सिखाई जाएंगी। जिससे आपके कुछ बादल छंट सकें जो कि आपकी निगाहों और दिलो-दिमाग पर
छाए होते हैं। हाँ ऐसे कोर्स की डिजाइन करना सिलेबस में क्या रखना है, क्या नहीं और कब कितना ज्ञान देना है
ये बहुत दुष्कर काम है। कम से कम निब्बा-निब्बी को ये तो पता हो कि क्या ? क्या ! है। आपने देखा होगा अभी कल ही
तो लव मैरिज हुई थी और कुछ ही हफ्तों में एक दूसरे से इतनी नफरत करने लग जाते हैं
कि एक दूसरे के साथ विश्वासघात करने और हत्या तक कराने में नहीं हिचक रहे हैं। अतः
यह सही समय है कि आप जानें कम से कम थियोरी का ज्ञान तो रहे। अभी सब गड्डमड्ड है।
पप्पी लव है, इन्फेचुएशन
है। प्रैक्टिकल लाइफ क्या होती है। दाल रोटी कमाना क्या होता है। घर चलाना क्या
होता है? शादी
क्या होती है? और
उससे बड़ी बात, शादी
क्या नहीं होती है?
डिप्लोमा कोर्स चलाओ, सर्टिफिकेट कोर्स चलाओ, भले डिग्री कोर्स चलाओ। भारतीय मर्द
बहुत पजेसिव होता है। किस सीमा तक पजेसिव होना हैल्दी है और कब ये खतरनाक हो जाता
है। मैं तो कहूँगा कुछ शॉर्ट टर्म कोर्स तो कंप्लसरी कर देने चाहिए ताकि सुखी
विवाहित जीवन बिता सकें। उन्हें प्यार, मुहब्बत, इश्क़, दिल लगाना, दिल का टूटना ना जाने ऐसे कितने ही टाॅपिक हैं
जो अभी तक अंधेरे में हैं और आपको ही कह दिया जाता है कि अपना रास्ता खुद ढूंढो।
बुद्ध का एक महान वाक्य है
‘अप्पो दीपो भव'
इस प्यार, मुहब्बत, इश्क़ के मामले में वक़्त आ गया है कि दिल दा मामला साफ-साफ सिंपल
शब्दों में ठीक-ठीक यूजर फ्रेंडली एनवाइरमेंट में समझाया जा सके। आखिर इस सबका
उद्देश्य यही है ना की मनुष्य खुश रहे, सुखी रहे। अब आप पेड़ पर लटकाते रहेंगे या अपने
ही बच्चों को जान से मारते रहेंगे, और मार ही रहे हैं, पेड़ पर लटका ही रहे हैं । मगर इससे
समस्या हल तो नहीं हुई।
मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की
निब्बा निब्बी को समझाया जाये “प्रेम
गली अति साँकरी जा में दो न समाय”। 'शादी' का पर्यायवाची 'समझौता' है। अब घरवाला-घरवाली जैसे टर्म पुराने पड़ गए
हैं। वो अब प्रासंगिक नहीं हैं। वे साथ आने का डिसाइड करते हैं ताकि आपकी खुशी
दुगनी हो सके ना कि अपनी और साथी की
ज़िंदगी तबाह करनी है।
ऐसे कोर्सों का दिल से स्वागत है।