क्या आबादी बढ़ जाती है तो यह प्रकृति कराती है
या कि यह 'मैन-मेड' हादसे हैं जिनमें बेहिसाब जान जातीं हैं और कोई श्रेय
लेने को तैयार नहीं होता है। ना कोई जांच, ना कोई पोस्ट-माॅर्टम, ना कोई भविष्य के लिए एहतियात। आप नज़र
दौड़ाइए तो आप देखेंगे बेचारे लोग इस अमृत काल में कहीं भी, कैसे भी मर रहे हैं। शायद साइत ही ऐसा
निकला हुआ है कि जो भी इस अमृत काल में मरेगा वह डाइरेक्ट स्वर्ग में जाएगा। एक दम
टोल फ्री। समझो ! उसके माथे पर 'फास्ट टैग' लग गया है।
लोग 'लोकल' से गिरकर मर रहे हैं। लोग झूले से, पुल से, यहाँ तक कि घर में बैठे-बैठे या फिर शादी में
नाचते-नाचते अथवा जिम में कसरत करते- करते स्वर्गारोहण कर रहे हैं। यह सुविधा, विशेषत: अपने नागरिकों के लिए अमृत काल
में लाई गई है। एक बार यह अमृत काल खत्म समझो ये ऑफर भी खत्म। मरते रहिए फिर
एड़ियाँ रगड़-रगड़ कर। यह फास्ट फॉरवर्ड की सुविधा अमृत काल के रहते-रहते ही सुलभ
है। आप क्या समझते हैं फिर मरना इतना आसान
रह जाएगा? हरगिज़
नहीं। अभी तो आप कोरोना से अगर बच भी गए हो तो वान्दा नहीं। अपुन इंतज़ाम किएले
हैं। कोई न कोई रोग अपुन तुम्हारे वास्ते लेकर आएंगे ही। आप पानी से भी मर सकते
हैं। आप आग से भी मर सकते हैं। आप डूब के भी मर सकते हैं। वो शाहरुख खान की किस
फिल्म का संवाद है- जब आप किसी चीज़ को इतनी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात आपको
उसे मिलाने में लग जाएगी। बस आप समझ गए !
पता नहीं यह कौन सा कॉम्बो है या बोलो
तो कॉर्पोरेट प्लान है कि पूरी की पूरी नाव पलट जाती है। लेंड स्लाइड हो जाता है।
और तो और आप नहाने गए ये सोच कर कि चलो कुछ पुण्य कमा लिया जाये। स्वर्ग में इंडियंस के लिए वेकेन्सी चल रही है।
फौरन सब काम छोड़ कर बस आ जाओ। वो गाना है ना "तुम सब को छोड़ कर आ
जाओ"... ट्रेन दुर्घटनाएँ हों या फिर सड़क हादसे या फिर आप कश्मीर घूमने गए ये
सोच कर कि आप पृथ्वी के स्वर्ग में घूम रहे हैं। यकायक देखा आप तो वाकई स्वर्ग में
टहल रहे हैं। यह सुविधा है अमृत काल में। 70 साल में पहली बार ये स्पेशल सुविधा
भारतीयों के लिए विशेष पैकेज के अंतर्गत चलाई गई है। अब ये पुल इस पार से उस पार
जाने भर के लिए नहीं है बल्कि बच्चन जी सीनियर के अनुसार:
इस पार प्रिये तुम हो, मधु है
उस पार न जाने क्या होगा
इस पार मेरे जीने का आधार
प्रिये तुम हो मधु है
उस पार न जाने क्या होगा
अतः आज के पुल इस पार से उस पार नहीं बल्कि इस
भवसागर को ही पार करा देते हैं। वे इस लोक
से परलोक जाने के पुल साबित हो रहे हैं। उसी तरह रेलवे स्टेशन पर रेल ही नहीं
बल्कि प्लेटफॉर्म भी भगदड़ के चलते आपको बैकुंठ ले जाने को तत्पर दिखते हैं। जरा सी
भगदड़, माइक
से जरा सा गलत-सलत एनाउंसमेंट, और लो जी असंभव, संभव बन जाता है।
होनी
को अनहोनी कर दे
अनहोनी
को होनी
एक
जगह जब जमा हों तीनों
झूठ
! गोदी मीडिया! जुमले!
कई बार लगता है कि माॅल्थस और डार्विन से सुपारी लेकर हम जनसंख्या को हर
हाल में कम करने हेतु कटिबद्ध हैं। अतः आपका मरना इतना सुलभ कभी न था। किस लिए महज़
इस लिए कि आप जल्द से जल्द बैकुंठ के, स्वर्ग के जन्नत के नागरिक बन सकें। जीवन के
आवागमन चक्र से मुक्ति इतनी आसान कहां होती है ? हमने भारत में इसी को आसान कर दिया है। हर आदमी
की पहुँच में है बैकुंठ अब, पहली बार 70 साल में आप डिसाइड तो करें, हम हाजिर हैं आपकी सेवा में। बैकुंठ
यात्रा को ऐसे समझो कि हमने एक्सप्रेस सर्विस, शुरू कर रखी है। अपने मित्रों और रिश्तेदारों
के साथ इस ऑफर का लाभ उठाएँ
काल मरे सो आज मर, आज मरे सो अब
अमृत काल बीत जाएगा फेरि मरेगा कब
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