Ravi ki duniya

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Tuesday, October 14, 2025

व्यंग्य : नोबल प्राइज़ और मैं

 

 

 

जब से होश सँभाला है तब से जाना है कि प्राइज़ और इन उपाधियों का जीवन में बहुत महत्व है। मुग़लों के दिये ओहदे आज तक लोग अपने सरनेम के जैसे लगा रहे हैं। उसी तरह अंग्रेज़ लोगों को भी हमारी मानसिकता का पता लग गया था। उन्होने भी हमारे लिए विशेष टाइटल और उपाधि निकाल लीं थीं यथा रायबहादुर, खान बहादुर, सरदार बहादुर, और जब बंदा ठीक-ठीक जैसा वे चाहते थे तो उन्हें नाइटहूड (सर की उपाधि) से भी ‘नवाजा’ जाता था। मुग़ल चले गए। अंग्रेज़ चले गए। अब हम क्या करें ? तो हमने अपने निकाल लिए पद्मश्री  पद्म भूषण, पद्म विभूषण और फाईनली भारत रत्न। फिल्म वालों को उनका दे दिया दादासाहब फाल्के। साहित्य ? वो क्या होता है ? उनको कहो अपना खुद ही देख लो। अब सब काम के लिये सरकार का मोहताज नहीं होना चाहिये। वे राज्य की, केंद्र की साहित्य अकादमी से संतोष करें जहां साहित्य कम, पॉलिटिक्स ज्यादा दिखती है। यूं तो फ़ेलोशिप आदि प्रदान की जातीं हैं। राम जी का गुड़ राम जी की चींटी।

 

इस सब रेल-पेल में यह निकल कर आया कि ये सब देसी इनामों को छोड़ो ये अधिकतर केसों में कुछ यूं अनुवादित होते हैं चमचाश्री, चमचा भूषण आदि। अब इस तरह के ईनामी वातावरण में कौन सा ईनाम 'वर्थ' रह गया है? अतः ईनामों का ईनाम, उपाधियों की उपाधि -- नोबल प्राइज़ और उसका फलक पूरा संसार है। जब तक ये एवार्ड मंगल ग्रह और चाँद पर रहने वालों को न दिया जाने लगे तब तक हाईएस्ट यही है। जब सभी ग्रहों से नॉमिनेशन मंगाए जाने लगेंगे तब की तब देखी जाएगी। हो सकता है मंगल ग्रह, नेपच्यून और जुपिटर के अपने अपने ईनामात हों।

 

मैं सोचता हूँ अगर नोबल प्राइज़ की समिति मुझ से मेरा बायो डाटा मांगने लग जाये तो मैं क्या दे पाऊँगा उनको?  मुझे तो कोई पी.आर. एजेंसी या लाॅबिस्ट एंगेज करने पड़ जाएँगे। वही एजेंसी इस खबर को फैलाएगी और वाइरल कराएगी। खुद पिक्चर में आने या खुद मांगने की गलती नहीं करनी है। समझदार लोग अपनी गलतियों से सीखते हैं। और अधिक समझदार लोग दूसरों की गलती से सीखते हैं। अतः मैंने ‘उपलब्ध’ ही नहीं होना है। अपने विषय में एक ‘रहस्य’ बनाए रखना है। अंत तक। किन्तु खबर सब रखनी है, कौन-कौन कहाँ-कहाँ सक्रिय है। कितना काम हो गया। कितना बाकी है। कुछ वाक्य रट लेने हैं। सोते-जागते उठते-बैठते उन्हीं मुद्दों की बात करनी है। माइंड इट ! सिर्फ बात करनी है। उठानी है। जैसे: विश्व शांति, पर्यावरण, गरीबी, जी.डी.पी., उत्पादन बढ़ाना है। कृषि को एक क्रांति की ज़रूरत है, भेदभाव, असमानता। हथियार बंदी, आतंकवाद का खात्मा आदि आदि। धीरे धीर आप देखेंगे एक आंदोलन सा छिड़ जाएगा। आंदोलन छिड़ा नहीं और उधर कितने ही लोग इसमें आ कूदेंगे. भीड़ का एक भभ्भड़ सा जुट जायेगा। तब तक आप कुछ स्टेटिस्टिक्स याद कर लें। उनको यहाँ वहाँ स्वादानुसार/आवश्यकतानुसार छिड़कते रहें। अब से नोबल प्राइज़ की घोषणा तक आपको 'थिंक इन्टरनेशनल' करना है। बात कहीं की हो, आपको उसमें एशिया, अफ्रीका, डेमोक्रेसी, पड़ोसी देश, यू.एन.ओ. का पुनर्गठन, मानवता को आतंकवाद से बचाना है। अणु बम को नष्ट करना है। फर्दर किसी को अणु बम बनाने/टेस्ट करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। चुनाव समय-समय पर होते रहने चाहिए और हाँ, ईमानदारी से वोट गिरने चाहिए। सूखा, बाढ़, अकाल से मानव को बचाना है। बच्चों के बचपन को पूरे वर्ल्ड में सुरक्षित करना है। उन्हें कुपोषण से बचाना है। शिक्षा देनी है और सब को चिकित्सा मिलनी चाहिए। खासकर बच्चों और महिलाओं को। हाँ याद आया महिला अधिकारों की भी बात करनी है। उन्हें बराबरी का दर्जा देना है। हर जगह। चाहे प्रेस काॅन्फरेंस ही क्यों न हो।

                              

                                                     विश मी लक !!

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