श्री युत मंत्री जी
राजस्थान सरकार
राजस्थान सरकार
खबर है कि आप टहलते टहलते एक स्कूल में जा घुसे
और 12 वीं के बच्चों की क्लास लेने लगे . राजस्थान में कितने ज़िले हैं ? यह आपका पहला सवाल था. सबने अपने अपने कयास, अंदाज़, गैस और तुक्के लगाये मगर कोई सही जवाब न दे पाया. मजेदार बात यह है कि उनके टीचर
महोदय भी सही जवाब न दे पाये. दूसरा रैपिड फायर प्रश्न था राजस्थान में आने वाले ज़िलों
के नाम बताओ ? भावी नागरिक दिल्ली और अमृतसर भी घसीट कर राजस्थान
में ले गए. तब आपने यह ऐलान कर दिया कि बच्चे टीचरों के भरोसे न रहें और खुद
पढ़ें.
एक बात बताइये मंत्री महोदय आप जल मंत्री हैं न कि एजूकेशन
मिनिस्टर. आपको क्या पड़ी स्कूल में घुसपैठ करने की. अपने काम से काम रखिए. कुआँ, नहर, नदी, नाले देखिये. स्कूल
में कहाँ घुस गए. स्कूल आपका सबजेक्ट नहीं. ये आपके सिलेबस में ही नहीं है. अगर एजूकेशन
मिनिस्टर तालाब-तलैया में घुस कर नुक्स निकालने लगें तो आपको कैसा लगेगा. आप जल मंत्री
हैं तो जल-मल की बातें करिये. अब कोई नाव खेने वाले से प्रश्न पूछने लग जाये नदी में
कितने क्यूसेक पानी है ? कितने क्यूसेक पानी रोज़ छोड़ा जा रहा
है ? कितने पानी का गरमी में और कितने पानी का सर्दी में वाष्पीकरण
होता है ? तब वो क्या जवाब देगा ? मुझे भी बताना. कोई नहर वाले भैया से पूछने लग पड़े इस
पानी में साल्ट और बाकी मिनरल का रेशो-प्रेपोशन क्या है ? इसकी
बायोन्सी कितनी है ? वो आपको ऐसे देखेगा जैसे आप किसी और ग्रह
से यहाँ रास्ता भूल कर आए हैं. बहुत मुमकिन है वो आपके मुँह पर हँस भी पड़े.
मेरा मानना है कि राजस्थान में कितने ज़िले हैं यह सवाल
ही आपने गलत पूछा है. ये क्या नंबर गेम आपने लगा रखा है. रोज़ रोज़ तो आप नए नए ज़िले बनाते
बिगाड़ते रहते हैं. उनके नाम अदला-बदली का खेल खेलते रहते हैं. बच्चे बेचारे क्या क्या
याद रखें. बच्चों की मुसीबत, आपका शगल मेला ठहरा. अब आपसे कोई पूछ
ले भारत में कितने राज्य और कितने केंद्र शाषित प्रदेश हैं ?
आप भी बगलें झाँकने लगेंगे.
बच्चों ने अगर कह भी दिया कि अमृतसर और दिल्ली राजस्थान
में हैं तो इस में इतना बुरा मानने की क्या
बात हो गयी. ये भारतीय बच्चों की नई पीढ़ी की सोच को दिखाता है. इस ग्लोबलाइजेशन के
टाइम में ये मेरा-तेरा क्या लगा रखी है. आपने सुना नहीं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ अमृतसरी हों या देहलवी सब उसी एक रब
दे बंदे हैं. ये तो आप ही अपनी इस संकुचित प्रादेशिक सोच के बल बूते अपनी राजनीति चमका
रहे हो. बच्चे नहीं. इसकी भी अगर तह में जाओगे तो आप जैसे कोई न कोई महान नेता का ही हाथ निकलेगा
जिसकी सिफारिश पर उस टीचर और प्रिंसिपल का सलेकशन और पोस्टिंग हुई होगी. फिर किसे पकड़ोगे
आप.
बहरहाल मैं आपकी एक बात से सोलह आने सहमत हूँ आपने जो
कहा न कि टीचर के भरोसे न रहें खुद पढ़ें. यही मूल मंत्र है. यह विकास का, उन्नति का बीज मंत्र है. इस से उनमें जिज्ञासा बढ़ेगी. स्वावलंबन की भावना
का विकास होगा. साथ ही ट्यूशन और कोचिंग के कुटीर उद्योग की प्रगति होगी. टीचरों को
इन कोचिंग सेंटर में पार्ट टाइम काम मिलेगा. इस से उन्हे बच्चों और उनके माँ- बाप से
अगली क्लास में चढ़ाने के लिए चढ़ावा नहीं लेना पड़ेगा. जिस से टीचर में आत्म सम्मान की
भावना का विकास होगा.
मैं चाहता हूँ यह मूल मंत्र आप बस्ती बस्ती शहर शहर जगाएँ
( मुझे तो बेरा कोई नी कितनेक गाँव और गाँव जैसे शहर हैं राजस्थान में ) हर महकमे को
इस प्रेरणा वाक्य की दरकार है. मसलन आप मरीजों से कह सकते हैं कि आप डॉक्टर के भरोसे
न रहें खुद इलाज़ करें. समझो किसी के घर चोरी डकैती हो गई. वो बिसूरते बिसूरते थाने जाय ( ज़िंदगी में पहली और अंतिम बार) वहाँ उसे यह स्लोगन लिखा मिले ‘चोर डकैतों से अपनी रक्षा स्वयं करें, पुलिस के भरोसे न रहें’ ऐसे ही रेल-बस वाले कहने लगें 'जयपुर से बीकानेर अपनी यात्रा का इंतज़ाम खुद करें'. हमारे
भरोसे मत रहिए. फिर देखिये ऊँट गाड़ी वाले और बैल गाड़ी वाले कैसे
आपका जयकारा लगाते हैं. आपने जाने अनजाने ही कितना बड़ा तरक्की का सूत्र इन बच्चों को
दे दिया है. जीवन में किसी के भरोसे न रहो. अप्पो दीपो भव. अपने दीपक स्वयं बनो. स्वावलम्बी
होना आत्म सम्मान का प्रथम सोपान है. इसी से आप सुखी और समृद्ध बनोगे और खूब धन-धान्य
की बारिश होगी. वो दिन दूर नहीं जब भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा. मुझे खुशी
है कि इसकी शुरूआत राजस्थान से होगी जहाँ किसान बरस भर बारिश के भरोसे रहता है.
एकदम सही!
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