ज़ हो ! नहीं यह ‘जय हो’ फिल्म से प्रेरित नहीं बल्कि मेरे नए आंदोलन का नाम है. आजकल आम आदमी का
ज़माना है सो मैंने, एक आम आदमी ने भी एक आम सा आंदोलन आपके
समर्थन में चलाने की सोची है. इस ‘ज़ हो’ का अर्थ है ज़मीन हड़पो. टू बिगिन विद, हमें सारी
ज़मीन जो भी स्कूल और पार्क के नाम से है, हड़पनी है. हम शुक्रगुजार हैं आप जैसे आदर्श
बिल्डर्स, नेताओं और पत्रकार से नेता बने प्राणियों के. जब
तक मैं खुलासा नहीं करूँगा आपको खबर नहीं लगेगी कि आप लोग सचमुच मानवता की कितनी
सेवा कर रहे हैं. देखिये स्कूल जाकर आजकल के बच्चे क्या सीख रहे हैं ? कुछ भी तो नहीं. और जो सीख भी रहे हैं वो उनके,
आपके,समाज के या देश के किस काम का ?
अकबर इलाहाबादी बहुत पहले कह गए थे :
‘हम उन किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं
जिन्हें पढ़ कर बच्चे बाप को खब्ती समझते हैं’
हमारे देश में पढ़ाई को लेकर ये सोच बहुत प्राचीन है:
तो देखिये आजकल के स्कूल. स्कूल क्या हैं ? स्कूल कम हैं. फ़ैक्टरी ज्यादा हैं और वहाँ से जो उत्पाद निकल रहा है आप
जानते ही हो. स्कूल भी तो अड्डे बन गए हैं. मिड-डे मील का पैसा हड़पने के अड्डे.
मासूमों की मौत के केंद्र. फंड और गबन के केंद्र. डोनेशन लेने और मैनेजमेंट सीट के
बिक्री केंद्र. आप इन भ्रष्टाचार के अड्डों को नेस्तोनाबूद करने में हमारी मदद
करें. यहाँ गगनचुंबी टावर बनायें. जिसके लिए लेबर लगेगी. अब सब टाई लगा कर पढ़ लिख
जाएँगे तो हम लेबर कहाँ से लाएँगे. आजकल कन्स्ट्रकशन इंडस्ट्री की बदौलत हम
बेहिसाब लेबर एक्सपोर्ट कर रहे हैं. इसमें मेसन और कार्पेंटर भी शामिल हैं. तो जो
देश आजतक एक्सपोर्टर का मोस्ट फेवर्ड दर्ज़ा पाये हुए है आप चाहते हैं कि यह
प्रोग्रेस की गाड़ी रिवर्स में चली जाये. और हम एक्सपोर्टर से इंपोर्टर बन जाएँ.
नहीं कदापि नहीं. हिन्दुस्तान में इतने बुद्धिमान बुद्धिजीवी अफसरों और विजनरी
नेताओं के चलते यह कदापि नहीं होगा. फर्ज़ करो ये पढ़-लिख भी जाते हैं तो ही क्या कर
लेना है. किसी कॉल सेंटर में टाई लगा के कुलीगिरी ही करनी है. ‘साइबर कुली’ या फिर लुक्कागिरी. नौकरियां हैं कहाँ ? और नौकरियां नहीं तो क्या करेंगे ? अपराध करेंगे !
अतः आप देश को अपराध से मुक्त करने में अपना जी जान एक किये हुए हैं. इसके लिए आप सबका
एक अलग से सार्वजनिक अभिनन्दन करने की योजना है.
ये पार्क शहर की सुरक्षा, समाज की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. रात-बिरात अपराध,
दिन में चरस-गांजा, असामाजिक तत्व ही इसका प्रयोग करते पाये
गए हैं. शाम ढलते ढलते जरूर कभी कभार
वृद्ध लोग और सास बहू सीरियल की सासें मजमा जमा लेती हैं. सब भूत काल की भूत जैसी
बातें करते हैं. सुबह सुबह बिला वजह नेपथ्य में भूतों की तरह हास्य योग के नाम पर
हँसते हैं. ये सब क्या चल रेला है. कोई काम धाम है या नहीं. भला हो आपका आपने ये
पार्क घेर लिए.
अब मेरे शहर के पार्कों को ही ले लो ! किस पार्क की
हालत अच्छी है ? न घास है, न
बाउंड्री है. ऊसर रेगिस्तान के माफिक पड़े हैं. कहीं झाड़ी पेड़ हैं भी तो उन पेड़ों
के इर्द गिर्द और झाड़ी के पीछे अलग कहानी है. असली पुलिस वाले और नकली पुलिस वाले
दोनों मिल कर प्रेमालाप कर रहे प्रेमीजनों से प्रेमपूर्वक प्रलाप कर उनके पर्स से
जबरन पैसे ले लेते हैं. इस जबरन वसूली का नाम है ‘प्रेम कर’ तू तो प्रेम किए जा. प्रेम कर. मगर हमें भी तो प्रेम ‘कर’ दे नहीं तो हमें तो वसूलना ही पड़ेगा. हमारी
ड्यूटी है कर वसूलना और समाज से अश्लीलता को भगाना. मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण
विश्वास है कि आपने, कल्पनाशील नेताओं और अफसरों ने मिल कर
राजस्व कमाने की कोई न कोई नायाब स्कीम ले आनी है.
सो व्हाट कि पैसा चंद हाथों में रहेगा. अरे हाथ न
देख, हाथ के पीछे कौन है वो देख. वो तेरे ही
किसी भाई का, किसी राजा हिन्दुस्तानी का हाथ है. यहाँ राजा
से अभिप्राय ए. राजा से नहीं है और न ही हाथ से अभिप्राय किसी राजनैतिक पार्टी से
है. हमें देश का विकास करना है. पोलिटिक्स नहीं करनी है. हम गैर राजनैतिक लोग हैं.
अर्थात राजनैतिक पार्टी कोई हो, देश के विकास का हमारा काम
जारी रहता है.
हे महत्वाकांक्षी बिल्डर बंधुओ ! हे सृजनहार अफसरो !
हे युगदृष्टा नेताओ ! आओ और मेरे शहर के तमाम स्कूलों और पार्कों के प्लॉट का
अधिग्रहण कर लो. यू हैव नथिंग टू लूज बट योर शर्म. नैक्स्ट आपको भारत के हर भू भाग
पर ऐसे तमाम स्कूलों के प्लाटों की जगह गगनचुंबी इमारतें बनानी हैं और पार्कों को ‘नो पार्किंग’ करना है. ये आपके कंधों पर बहुत बड़ी
राष्ट्रीय हिस्सेदारी भी है और जिम्मेवारी भी है.
तमसो मा ज्योतिर्गमय !
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