Ravi ki duniya

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Friday, August 8, 2025

व्यंग्य मेरी एडवोकेट बीवी


     

    अगर बीवी एडवोकेट हो तो समझिए एक तो करेला दूसरा नीम चढ़ा। बीवियाँ जन्मजात एडवोकेट ही हुआ करती हैं। उनके लिए ये डिग्री विगरी तो बस नाम की है। जैसे डॉ. की फैमिली में डॉ. की डिग्री। क्लीनिक और मरीज तो बंधे बँधाये पीढ़ी दर पीढ़ी वही रहते हैं। तो जब शादी हुई तो यह ज़ोर दे कर कहा गया कि वह अपने काले गाउन में ही मंडप में आएगी सबको अपने गणवेश (यूनिफ़ाॅर्म) पर गर्व करने का अधिकार है। फिर पता चला कि उसका कोई केस लगा हुआ है अतः फेरों के फौरन बाद उसे कोर्ट के लिए निकलना है। केस ओवर लुक होने की टेंशन नहीं थी कारण कि पेशकार भी शादी में ही आया हुआ था।  

       


           अभी हफ्ता भी न हुआ था कि पत्नी जी ने अपनी एल. एल. बी. मुझ पर ही उंडेलना शुरु कर दिया। वह बात बात में अपनी अदालत की बातें और किस्से मुझे ऐसे सुनाती कि मुझे उससे डर लगने पड़ा था। मैं चुप करवट लिए बैड पर पड़ा रहता। पता नहीं वह क्या रिएक्शन दे। वह तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख वाले अंदाज़ में पूरा हिसाब रखती थी। कब हमने प्यार किया कब नहीं किया। मुझे लगता जैसे वह किसी वारदात के लिए अथवा भविष्य के लिए कोई साक्ष्य जुटा रही है। 


      वह कोर्ट में कोई केस हार कर आती तो मेरी शामत आ जाती। जो आर्गुमेंट्स कोर्ट में रह गए, वो उन्हें मुझ पर बरसा देती। कोई केस जीत कर आती तो उस दिन तो वो मुझ से कहती "मेरा मूड बहुत अच्छा है अब इसे ऑफ मत करो"। मतलब वह केस जीते या हारे, मैं हरदम हारता ही। वह ऐसे-ऐसे लीगल नाम लेकर मुझे डराने का प्रयास करती मसलन मैंने हैबियस कॉर्पस लगा दी। मैंने 391 का केस ठोक दिया मैंने 166 में पकड़वा दिया। मैंने 240 में बच्चू की जमानत भी नहीं होने देनी। मुझे तो वो खुद एक क्रिमिनल सी लगने लगी थी। मुझे पता नहीं बाकी पतियों की उनके घर में क्या गति होती है। घर में ही अदालत का सेशन लगता है या घर ही एक्स्टेंडड कोर्ट लगने लगता है। वह ऐसे ऐसे आर्गुमेंट छोटी छोटी बात को लेकर करती मुझे लगता कि मैं ही अपराधी हूँ। 


         शादी के एक साल पूरा होते होते मेरे पास न जाने कितने हैबियस कॉर्पस, प्रोहिब्शन, कैवियट और शो काॅज नोटिस इकट्ठे हो गए थे। वह स्लिप या नोट नहीं सीधे सीधे लीगल नोटिस भेजती। हर एक रुक्का कहता "....नाॅट विदस्टेंडिंग ...."  "...आई रिजर्व माई राइट ..." कभी सी. पी. सी. में कभी सी. आर. पी. सी. में। जब मैंने यह बात अपनी ससुराल में बताई तो वो रोने लगे कि इस लड़की ने ससुराल में किसी को नहीं छोड़ा। भाई बहन हों, पड़ोसी हों यहाँ तक की पिताजी को भी लीगल नोटिस दे कर फांस रखा है। उन्होंने शादी के बाद चैन की सांस ली। जैसे कि वे उम्र क़ैद से छूटे हों। मेरे यार दोस्त, मेरे रिश्तेदार, मेरे पड़ोसी भी अब मुझ से कन्नी काटने लगे  कि  ये लफड़े वाला आदमी है। इसकी बीवी न जाने कहाँ हम लोग को फंसा दे। मैं अकेला पड़ गया था। जैसे साॅलिटरी कन्फाइनमेंट होता है। अंडा न खाने वाला अब 'अंडा सेल' में जीवन भर रहने को अभिशप्त।  

 

मुझे लगने लगा है कि  मैं कोई सजायफ्ता क़ैदी हूँ, जो पैदा ही सज़ा काटने को हुआ है।  मेरे केस की सुनवाई रोज होती है। एक तरह के 'फास्ट ट्रैक कोर्ट' में मेरा केस लगा हुआ है। और मेरे खिलाफ  कभी न खत्म होने वाले अनगिनत ऑफ़ेन्स हैं।


 

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