हम
लोग बचपन से सुन रहे हैं कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। साथ ही साथ देख रहे
हैं कि धर्म को लेकर खूब हाहाकार मचता है। आए दिन दंगे-फसाद आम बात है। लोग बाग, जब दिल करे, लड़ने मरने को तैयार रहते हैं। ये कैसा
धर्म निरपेक्ष राज्य है ? समझ नहीं लगता ! शुरू में इस टर्म को लेकर ही विवाद था कहने वाले
कहते हैं कि धर्म निरपेक्ष बोले तो सेकुलरिज़्म जैसा कोई शब्द ही नहीं होता इंग्लिश
डिक्शनरी में। यह सब मनगढ़ंत्त। खुद का बनाया हुआ है, खुद की सहूलियत के लिए। धर्म निरपेक्ष के
अनेकानेक अर्थ निकल कर आ रहे हैं। सभी धर्मों के लिए समान सम्मान, सभी धर्मों से समान दूरी। राज्य का
अपना कोई धर्म नहीं। वह सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखती है आदि आदि।
अब
बात करते हैं असल में क्या चल रेला है। वास्तव में तो भारत एक शर्म निरपेक्ष राज्य
है। हमें देश हो या विदेश डिपार्टमेंटल स्टोर से चोरी करने में जरा भी झिझक नहीं
होती, शर्म
नहीं आती। हमें एक दूसरे को मारने काटने, प्लास्टिक ड्रम में डालने या पहाड़ी से धक्का
देने, पति
को साँप से कटवाने या ज़हर देने में कोई शर्म नहीं आती। हमें जी भर के लूट खसोट
मचाने में तनिक भी शर्म महसूस नहीं होती। बस एक बार पता भर चल जाये कि अमुक चीज
फ्री है। फिर चाहे वो शराब हो, खाना हो, पार्टी हो, कार हो, मकान हो। हम बिना किसी शर्म ओ लिहाज के उधार मांगते हैं। वैसा उधार
जो कभी देना ही न पड़े। अगला भले दे के न भूले, हम ले कर भूलने के चैम्पियन हैं। हमें तनिक भी
शर्म नहीं लगती। दरअसल शर्म हमें छू कर भी नहीं गयी।
हम
बिना शरमाये झूठ बोल सकते हैं। दिन रात सुबहो शाम झूठ बोल सकते हैं। क्या घर क्या
बाहर। क्या दोस्त यार क्या बीवी बच्चे सभी से आखिर हम शर्म निरपेक्ष राज्य हैं। अब
वक़्त आ गया है कि संविधान में संशोधन कर प्रस्तावना में यह शब्द डाल देना चाहिए कि
भारत एक शर्म निरपेक्ष राज्य है। आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है बस जहां धर्म
निरपेक्ष लिखा है वहाँ ‘ध’ को ‘श’ से रिप्लेस भर करना है। जानते आप भी हो यही
ज्यादा प्रासंगिक है और सही है। दिल पर हाथ रख कर बताएं क्या सही मायनों में हम धर्म निरपेक्ष हैं ? जब नहीं हैं तो उसका ढिंढोरा क्या
पीटना। हम लोगों को इस बात पर दौड़ा-दौड़ा कर जान से मार देते हैं कि वो अमुक धर्म
को मानता है। हम जब दिल करे बस्तियाँ जला देते हैं। सन 1947 से देखें तो हमने अपने रिकार्ड पर
इतने धब्बे लगा लिए हैं कि अब ये काला-काला नज़र आता है। तो मान क्यूँ नहीं लेते कि
हम धर्म निरपेक्ष हैं ही नहीं। दरअसल हम भारतीय ही नहीं हैं। हम हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन पारसी हैं। हम दलित हैं, सवर्ण हैं। हम नॉर्थ इंडियन हैं, हम साउथ इंडियन हैं। हम नॉन रेजीडेंट
इंडियन हैं। कोई गंदे से गंदा काम, कोई किसी की भी सुपारी, कोई कैसी भी बेईमानी, कैसा भी भ्रष्टाचार, कैसी भी लूटपाट को हम सदैव तत्पर रहते
हैं। बस चार पैसे का फायदा हो रहा हो। कई बार तो फायदा न भी हो रहा हो पड़ोसी का या
उस नालायक रिश्तेदार का नुकसान हो रहा है उतना ही बहुत है। हम परिवार के अंदर-
बाहर किसी का भी क़त्ल करने को तैयार हो जाते हैं। हमें ज्यादा उकसावे की ज़रूरत नहीं।
एक अदद अवैध संबंध, एक अदद ज़मीन का टुकड़ा हमारे मोटीवेशन को पर्याप्त है।
हम हर दृष्टि से एक शर्म निरपेक्ष
देश हैं
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