Ravi ki duniya

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Thursday, September 18, 2025

व्यंग्य : कुत्ता साब हमारा ज्ञापन स्वीकार करें

                                                                


                                             

 

भारत अनेक विविधिताओं वाला देश है। रंग-रंगीला। एक सूबे में जब किसान लोग अपना आंदोलन लेकर कलेक्टर साब के दफ्तर पहुंचे तो कलेक्टर साब ऑफिस में थे ही नहीं। अब भई कलेक्टर के पास और बहुत काम होते हैं। वो कहाँ इस इंतज़ार में बैठा रहेगा या बैठी रहेगी कि किसान भाई आंदोलन करते अपना ज्ञापन लेकर आते होंगे। बहरहाल! जब आंदोलनकारी किसानों ने कलेक्टर को नदारद पाया तो वे बिफर गये। कलेक्टर की ये मजाल कि ‘जानते-बूझते’ गायब हो जाये। महज़ इसलिए कि वे विपक्ष के नेतृत्व में आए हैं। किसानों ने आव देखा न ताव और वहाँ प्रांगण में घूम रहे एक कुत्ते के गले में अपना ज्ञापन बांध दिया। और उसके साथ फोटो सेशन भी करा लिया।

 

किसानों में इस बात को लेकर रोष था और वे कह रहे थे कि कलेक्टर को पता था हम आने वाले हैं। यह सुन वह पतली गली से ‘फील्ड’ में निकल गए। यह भी खूब रही। जब फील्ड वाले उनसे मिलने आयें तो वे यूं ही खिसक लेते हैं। अब हम क्या करें। इससे लोगों को आइडिया आया। क्यों न ऑफिस और बंगले में कुत्ता, बिल्ली, लंगूर, हिरण, गिलहरी पाल लिए जाएँ। उनमें विभागो का बंटवारा किया जा सकता है यथा कोई महिला मोर्चा आयेगा तो उनका ज्ञापन गिलहरी रिसीव करेगी। कोई स्पोर्ट्समैन का दल आया तो एतद् द्वारा सूचिता किया जाता है कि आज से हिरण को यह पाॅवर डेलीगेट की जाती है वह ज्ञापन रिसीव करेगा। इसी तरह अन्य जीव-जंतुओं को यह पाॅवर डेलीगेट की जा सकती है। एतद् द्वारा कुत्ता, बिल्ली, नील गाय, मोर इसके लिए प्राधिकृत किए जाते हैं कि वे कलेक्टर के लिए आए ज्ञापनों को रिसीव करेंगे। एक अभिनेता सांसद ने बाकायदा एक पत्र जारी किया कि उनकी अनुपस्थिति मे झण्डा सिंह उनकी तरफ से एक्ट करेंगे। अब झण्डा सिंह की तो बल्ले बल्ले हो गयी। अभिनेता को कहाँ टाइम था कि वह फिल्म में एक्टिंग करे या निर्वाचन क्षेत्र में। झण्डा सिंह यह ऑथिरिटी लैटर पा अपने को असल सांसद ही समझने लग पड़ा। उसने इस खत को तमाम सोशल मीडिया में पोस्ट कर दिया। वो गाना है न

 

                                      तेरा खत लेकर सनम

                                     पाँव कहीं रखते हैं हम

                                     कहीं पड़ते हैं कदम

 

 

 

जब बहुत बावेला मचा तो सांसद अभिनेता ने वह पत्र विदड्रा कर लिया। हालांकि वह फिल्मी दुनिया में ही रहते हैं। अतः बेचारे वोटर झण्डा सिंह से भी गए। वो कहावत है न:

 

                                   ना मामा से काना मामा अच्छा’

 

अब काने मामा से भी गए। अगले चुनाव की अगले चुनाव में देखी जाएगी।

 

ये जीव जन्तु संविदा पर रखे जाएँगे। रेगुलर नहीं। एक सेट ऑफिस में दूसरा सेट आधिकारिक आवास बोले तो कैंप ऑफिस मे रहा करेगा। अब कुछ तोते और कौव्वों को ट्रेन किया जा रहा है कि वे फोन अटेण्ड कर सकें और कुछ स्टैंडर्ड जवाब दे सकें। जैसे "साब बाथरूम में हैं। साब मीटिंग में हैं। साब बाहर गए हैं। साब फील्ड में हैं।" जानकार लोग बताते हैं इसके बहुत लाभ होंगे और दूरगामी परिणाम मिलेंगे। आदमी के साथ डर ही लगा रहता है। कौन क्या बात बनाने लग जाये, पैसे खा ले, जीव जंतुओं के साथ ये अच्छा है कि उनको कैश में कोई दिलचस्पी नहीं। दाना-दुनका, केवल केला, एक कटोरी दूध, हरी मिर्च, हरी घास, हड्डी बस उतना भर काफी है। वो भी जब भूख लगी हो। आदमी के विपरीत उनमें कोई संग्रह की प्रवृति नहीं होती। वही उनकी ईमानदारी का राज़ है।

                               

                               पेड़ प्यारा, पेड़ का पत्ता प्यारा

                              कलेक्टर तू प्यारा तेरा कुत्ता प्यारा

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