Ravi ki duniya

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Saturday, September 27, 2025

व्यंग्य : बहुत टेंशन है

 

 

 

हमने अपने बचपन में ये टर्म  कभी सुना भी नहीं था। यहाँ तक कि जब कॉलेज पास कर लिया और नौकरी करने लगे तब भी इस शब्द से अनजान थे। टेंशन किस चिड़िया का नाम है हमें कोई क्लू नहीं था। हो सकता है कुछ ऐसा रहा भी हो तो हमारे माता-पिता को रहा होगा। वो इसको हमारे पास तक नहीं आने देते थे। हम पास होंगे या फेल, ये टेंशन अगर रही भी होगी तो हमारे मास्टर साब को रही होगी। हमें कतई नहीं थी। धीरे धीरे पता चला जब एक भाई की पिटाई हो रही हो तब जो फीलिंग बाकी भाइयों में आती थी उसे टेंशन कहते हैं। घर से माता जी की बरनी/मर्तबान से अचार चुराते वक़्त जो फीलिंग आती थी, उसी का नाम टेंशन था। पर हमें ऐसी कोई टेन्शन नहीं थी। मज़े की बात है माता जी की गुल्लक से तार से चवन्नी/अठन्नी चुराते वक़्त भी हमें कोई टेंशन नहीं होती थी। कारण कि माता जी को कौन सा पता लगना है। जब गुल्लक फोड़ी जाएगी तब की तब देखी जाएगी। साफ मुकर जाएँगे।

 

 

इसके विपरीत अब 2025 में मेरे घर के कॉकरोच बोलो, छिपकली बोलो, सब टेंशन में मालूम देते हैं। न केवल घर-बाहर सब टेंशन में मालूम देते हैं। वो साफ-साफ ऐलानिया इस बात को कहते भी फिरते हैं। उनका बस चले तो अपने सी.वी. में एक कॉलम अथवा अपने विजिटिंग कार्ड पर ये लिखवा लें कि वो कितनी टेंशन में रहते हैं। गोया कि टेंशन में रहना अब एक गुण बन गया है। जिसे पर्याप्त टेंशन न हो उसे हिकारत की नज़र से देखा जाता है। इसे तो कोई फिक़र ही नहीं, इसे तो पढ़ाई की परवाह ही नहीं। कितना ही कहते रहो ये तो घर के काम की टेंशन ही नहीं लेता। इसके चलते स्कूल में पढ़ रहे छोटे-छोटे बच्चों को टेंशन होने लग पड़ी है। कॉलेज तक आते-आते फुल-फुल टेंशन की आदत पड़ जाती है। घर वाले इसमें कोई कमी लाने की बजाय पूछ-पूछ कर या गलत कोर्स में दाखिला दिला कर बच्चे की टेंशन में इजाफा ही करते हैं। यकीन नहीं आता तो देख लो कोटा शहर के कोचिंग सेंटर की खबरें। 

 

 

वो फिल्म 'हम दोनों' का एक गाना है न "...जहां में ऐसा कौन है जिसको ग़म मिला नहीं...." बस तो आज इस जहां में ऐसा कौन है जिसे टेंशन नहीं। हमें माँ बाप से छिप कर सिगरेट पीने में भी टेंशन नहीं होती थी। आजकल बच्चे लोग प्रोटीन और कार्ब की टेंशन भी लेते हैं। कहीं नेट स्लो न हो जाये कहीं नेट चला न जाये। कहीं डाटा खत्म न हो जाये। इस बात की भी टेन्शन रहती है। प्रेमी टेंशन में रहता है हरदम। वही हाल प्रेमिका का है। पति टेंशन में है, पत्नी टेंशन में है। भाई टेंशन में है, बहन टेंशन में है। मालिक मकान टेंशन में है, वही हाल किरायेदार का है। मैं बाहर चला जाऊं तो मेरा पालतू कुत्ता टेंशन में आ जाता है। बैठा-बैठा न जाने क्या सोचता रहता है। फिल्म बनाने वाला टेंशन में है, मल्टीप्लेक्स का मालिक टेंशन में है। और तो और जो फिल्म में कलाकार नाचते गाते खुश नज़र आते हैं उन्हें भी भयंकर टेंशन रहती है। अगली फिल्म कब मिलेगी, मिलेगी भी कि नहीं। मिल गयी तो चलेगी कि नहीं। ब्लॉक बस्टर होगी या आजकल की बायोपिक फिल्मों की तरह पहले हफ्ते में बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ देगी। आप भागे भागे डॉक्टर के पास जाते हैं तब से वो खुद टेंशन में बैठा था क्या बात है आज कोई मरीज नहीं आ रहा। वह आपको दर्जन भर टेस्ट और गोलियां देता है, दोनों किस्म की, लाल-पीली भी और मुहावरे वाली भी। आपसे फीस लेकर उसकी टेंशन कुछ देर को कम हो जाती है। तो देखा हुज़ूर आपने इस टेंशन का कमाल। जैसे कि टेंशन अकेले काफी नहीं थी सो अब उसका एक नया संस्करण चल गया है - हाइपर टेंशन। तो भाइयो बहनो ! अब टेंशन में रहने का एक फैशन चल निकला है। आप अगर अपने साइक्लाॅजिस्ट से मिलेंगे तो वह आपको समझाएगा कि थोड़ी टेंशन अच्छी चीज़ होती है ज़िंदगी के लिए। एक मित्र एक बार मेरे रात की ड्राइव को लेकर सलाह दे रहे थे कि एक पेग लगा कर ड्राइव करोगे तो उसकी टेंशन में बेहतर ड्राइव कर पाओगे। खैर ! आप कोई टेंशन न लें।  आप महज़ वोटर हैं, टेंशन लेगा, उम्मीदवार लेगा, बी. एल.ओ. लेगा, नेता लेगा। मुझे कब से टेंशन थी इस लेख को लिखने की। कम्पलीट हो गया है तो अब छपवाने की टेंशन है।

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