Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Tuesday, November 5, 2024

व्यंग्य : अगले जनम मोहे ‘ओरी’ ही कीजो

 

                                     

 

 

        मैंने बहुत सोचा कि यदि मेरी साधना से प्रभावित हो भगवान यकायक प्रकट हो जाएँ और चिर-परिचित अंदाज़ में पूछ बैठें “वत्स ! हम तेरे तप, तेरी साधना से बहुत प्रसन्न हुए मांग क्या मांगता है ?” मैंने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गँवाए कह देना है “भगवन ! मुझे ओरी बना दो”। हो सकता है भगवान अपनी असमर्थता जताएं  "ऐसा तो एक ही पीस था वो हम बना चुके कुछ और मांगो वत्स?" मैंने तो अड़ जाना है कि बनना तो ओरी ही है, मैं अगले जनम तक इंतज़ार कर लूँगा। मुझे मालूम है इस पर भगवान को कोई एतराज़ ना होगा और वो फौरन “तथास्तु” कह देंगे।

 

           मैंने लिस्ट बनानी शुरू कर दी है, मुझे ओरी बनने के लिए क्या-क्या सामग्री दरकार होगी ? एक साइज़ बड़ी ढीली-ढाली पेंट। दो साइज़ बड़ी छींट वाली बुशर्ट। एक अदद दाढ़ी। एक मेंढक के डिजायन वाला मोबाइल फोन एक ‘फंकी’ सी चप्पल। और मैं तैयार हूँ। आओ किस-किस को मेरे साथ सेल्फी लेनी है ? सेल्फी खिंचाते वक़्त हाथ उनके कमर पर नहीं पेट पर रखना है। नाभि से थोड़ा ऊपर। इसे कहते हैं ‘पॉज़िटिव एनर्जी ट्रांसफर’। एक बार ये कार्यक्रम चल निकला तो पीछे देखने का नहीं। सब अपनी-अपनी पार्टी में बुलाएँगे। मगर एक बार के बुलाने से जाने का नहीं। बोलने का है “लेट मी चेक विद माई सेक्रेटरी” फिर अगले दिन फोन आए तो कहने का है “ओह आई वुड हैव लव टू कम बट आई एम इन न्यूयॉर्क ऑन देट डे”। भले आप यहीं नायगाँव में हों।

 

            इंगलिश बोलने की प्रेक्टिस करनी है। उससे कहीं ज्यादा हिन्दी को टेढ़ी-मेढ़ी बोलने की प्रेक्टिस करनी है। सबसे पहले तो स्त्रीलिंग-पुर्लिंग को एक्सचेंज कर देना है। मैं जाएगी...मैं खाएगी, बहुत मज़ा आएगी टाइप। दूसरे वीगन होना है, नो वेज, नो नॉन-वेज ओनली वीगन। नो एरेटिड ड्रिंक्स, नो कोला, नो बॉटल्ड ड्रिंक्स। एक कोई विदेशी परफ्यूम जो मार्किट में सबसे महंगा चल रहा हो उसका नाम याद कर लें। कोई पूछे तो उसका नाम ही बताना है भले आपने क्राफोर्ड मार्किट का सौ रुपये में तीन बोतल वाला लगाया हो।

 

             ध्यान रहे कोई कपड़ा नॉर्मल नहीं होना चाहिए। सब एक-दो साइज़ बड़े और छींट/डिजायन वाले, जिन्हें कोई नहीं खरीदता, होने चाहिए। हो सके तो पर्दे वालों की दुकान से प्रिंट ले आयें। चप्पल भी आजकल बहुत-बहुत फेंसी चल रही हैं। उनसे कहेंगे तो वो आपका नाम चप्पल पर प्रिंट कर देंगे इससे लगेगा कि ‘पर्सनलाइज्ड एक्सेसरीज़’ हैं। अव्वल तो आपको घड़ी पहनने की ज़रूरत है नहीं, पहना चाहें तो वो भी मार्किट में ऐसी-ऐसी डुप्लीकेट मिलती हैं कि अच्छी-अच्छी राडो उसके सामने फेल हैं। कुछ स्टोन लगे हों तो और बेहतर है आप उन्हे हीरे-मोती (रंग अनुसार) बता सकते हैं वहाँ कौन परखने बैठा है। हाँ कार कोई शानदार होनी चाहिए। आजकल इस तरह की कार किराये पर मिल जाती हैं।

 

          आपको प्रेक्टिस करके अपनी कोई भी चीज़ देसी नहीं रखनी है। कुछ ब्रण्ड्स के नाम याद कर लें, ताकि आप बता सकें कि आपका टूथ ब्रश ब्राज़ील का है तो टूथपेस्ट बुडापेस्ट की है। सोप पेरिस का होना चाहिए शेम्पू स्पेन का। आपको हर सबजेक्ट पर अपनी राय बनानी है और राय भी ऐसी जो इंडिया में बस आप ही की हो। कोई पूछे आप सुबह उठ कर क्या करते हैं आपको कहना है आप उबलता हुआ पानी पीते हैं। असल में गुनगुना पानी पीना अब ‘क्लिशे’ बन गया है। चाय ? ओह नो ! आपने अपनी लाइफ में कभी चाय नहीं पी है एक बार को छोड़ कर जब बकिंघम पैलेस में क्वीन ने अपने हाथ से बनाई थी और आप मना नहीं कर सके।

 

           आपके सभी आइकाॅन विदेशी होने चाहिए। क्या हीरो क्या राइटर  सब खालिस विदेशी। नो इंडियन। बल्कि कोई इंडियन नाम ले तो आपको पूछना है “हू इज़ दैट ?” लगे हाथ कोई गाना अपना बता कर पाॅपुलर करा दें। कुछ खबरें प्लांट करा दें जैसे आप गए तो स्टेडियम में भगदड़ मच गई। लड़कियां चीख-चीख कर आपका नाम ले रहीं थीं। 20-25 तो बेहोश हो गईं आदि आदि। आपका अगला कंसर्ट अगले महीने वहाँ की गौरमेंट की डिमांड पर क्रोएशिया में हैं। शुरू में चाहे पैसे देने पड़ें या पार्टी का खर्चा खुद उठाना पड़े आप हर पार्टी में दिखने चाहिए। फोटोग्राफर से पहले से बात कर के रखें ऐसा लगे कि पैपराजी आपको बहुत तंग करते हैं। आपका चलना-फिरना दूभर किया हुआ है जगह-जगह पीछा करते पहुँच जाते हैं। जब एयरपोर्ट पर जाना हो ज़रूरी नहीं कि आप अंदर जाएँ बाहर ही अपना फ़ोटो शूट करा लें। बताएं आपका जापान, साउथ अफ्रीका का टूर बहुत सक्सेस गया। एक बात का विशेष ख्याल रखना है कोई आपकी सेक्सुअल ओरिंट्यिशेन जानने ना पाये, जिस आत्मीयता से करन जौहर से मिलना है उसी तरह सिने तारिकाओं से मिलना है। इसे एक रहस्य ही रखना है। आप तो जानते ही हैं बंद मुट्ठी लाख की।

 

         ये सब तो हो गया अब मेरे दुविधा ये है कि अगर भगवान ने जैसा कि आजकल चलन है मेरा ‘प्लान बी’ पूछ लिया तो ? मैंने सोचा है यदि भगवान ने प्लान बी पूछा तो कह दूंगा फिर मुझे शशि थरूर बना दो। वो किस्सा फिर कभी।

 

                            मेरी अरदास पूरी होगी ज़रूर

                            इट्ज सिंपल ओरी ऑर थरूर

Monday, November 4, 2024

व्यंग्य : काटेंगे तो बांटेंगे

 


 

          आजकल एक नारा बहुत ज़ोर-शोर से चल रेला है। बटेंगे तो कटेंगे। इस नारे के अलग-अलग हल्कों में अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। अब वो नारा ही क्या जिसके मतलब अलग-अलग हों। इसमें खतरा है। लीडर ने जिस आशय को लेकर नारे का आविष्कार किया है वह नारा उसी काम आना चाहिए। अब पाजामे का नारा बोलो, नाड़ा बोलो, पाजामा थामने के काम आता है अब कोई उससे कोई और काम लेने लग पड़े या फिर फांसी लगामे  की कोशिश  करने लगे तो ये तो नारे का मिसयूज ही कहलाएगा। उसी तरह बटेंगे तो कटेंगे के साथ वही हुआ। वो कहते हैं न जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तैसी

 

मुझे सच बताऊँ तो यह टैग लाइन बहुत भाई है -काटेंगे तो बांटेंगे। भाई साब ! आप बर्थडे का केक लाये, जब तक वह कटेगा नहीं तो बंटेगा कैसे ? आप चिकन लाये या फिर किसी समारोह में आपने बकरा-दावत की सोची तो वो जब तक कटेगा नहीं तो पकेगा कैसे ?  जब पकेगा नहीं तो बंटेगा कैसे। अतः बांटने के वास्ते काटना ज़रूरी है। जेबकट जब तक आपकी जेब नहीं काटेगा, डकैत जब तक दीवाल नहीं काटेगा, किवाड़ नहीं काटेगा, चोर जब तक तिजोरी नहीं काटेगा तो अपने गिरोह में बांटेगा कैसे। अतः यह बात गांठ बांध लें कि बांटने के लिए काटना निहायत ज़रूरी है।

 

        हलवाई भी अपनी थाल भरी मिठाई में से बर्फी काटता है। तब न बांटता है किसी को एक किलो, किसी को दो किलो, किसी को आधा किलो। मिठाई पर चांदी का बर्क भी काटने के बाद ही लग पाता है। रास्ते कटते हैं, कभी हम काटते हैं कभी कोई हमारा काटता है जब काटते हैं तब न आप अपनी मंज़िल तक पहुँच पाते हैं। ज़िंदगी में कभी कोई रास्ता सीधा कहीं नहीं जाता है रास्ते कटते-कटाते हैं तब आप कहीं पहुँच पाते हैं। काटता है तब न आप तक इसके लाभ पहुँच पाते हैं चाहे चुनाव का टिकट हो, चेक हो या यात्रा की टिकट।

 

नेता लोग हिन्दू-मुसलमान करते हैं तब न इलैक्शन जीत पाते हैं। यानि वो भी  पहले काटते हैं फिर सत्ता की मलाई अपने परिवार में बांटते हैं उनसे बच जाये  तो पार्टी के और निर्वाचन क्षेत्र के कुछ चुने हुए लोगों में परसाद बंटता है। जहां हिन्दू-मुसलमान में नहीं काट पाते वहाँ वे नॉर्थ-साउथ करते है या फिर ठाकुर-बनिया करते है या फिर दलित-महादलित करते हैं। उसी आधार पर टिकट वितरण किया जाता है।  यूं कहने को वे सदैव कहते हैं कि वे इस भेदभावकारी, विभाजनकारी पॉलिटिक्स के सख्त खिलाफ हैं। यही सत्ता के ताले की चाभी है। सो हुज़ूर कटेगा तभी न बंटेगा ना कि बंटेगा तब कटेगा।

 

Saturday, November 2, 2024

व्यंग्य: चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के

 


 

     

 

   “चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते”

 

      उपरोक्त की सप्रसंग व्याख्या करें ? विस्तार से बताएं इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है ?

 

       उपरोक्त संवाद अभिनेता राजकुमार द्वारा खलनायक रहमान को वक़्त नामक चलचित्र में कहे गए हैं। खलनायक राजकुमार को ब्लैकमेल करने की चेष्टा करते हुए धमकी दे रहा है जो राजकुमार को बहुत नागवार गुजरती है वह तभी के तभी ऑन-दि-स्पॉट इस बात का उपरोक्त पंक्तियों से उत्तर दे देता है।

 

           इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी ब्लैकमेलर का साथ नहीं देना चाहिए तथा पहली बार में ही उसे पूरी दृढ़ता के साथ दो टूक उत्तर दे देना चाहिए ताकि उसकी दोबारा ऐसा करने की हिम्मत ही न पड़े और दोबारा ऐसा करने से पहले वह सौ बार सोचे। इससे समाज में समरसता रहेगी और लोग एक दूसरे को ब्लैकमेल नहीं करेंगे। न ऐसा करने का डर दिखाएंगे। जैसे आजकल फोटो वाइरल करने की धमकी दी जाती है और ए.टी.एम. का पिन आदि ले लिया जाता है अथवा डिजिटल अरेस्ट करा जाता है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए और राजकुमार की भांति तभी के तभी कढ़े स्वर में इसका प्रतिकार कर देना चाहिए। 

 

          दूसरे यदि रहमान की दृष्टि से देखा जाये तो यह जरूरी है कि अपने कर्मचारी की कोई न कोई नस दबा कर रखनी चाहिए ताकि यदि वो ओवर-स्मार्ट बने तो उसे राह पर लाया जा सके। क्यों कि रहमान जो भी टास्क राजकुमार को दे रहे थे वे उसका पूरा 'कमपेंशेशन' ही नहीं बल्कि प्रॉफ़िट-शेयरिंग भी कर रहे थे इसके बावजूद राजकुमार मना कर देता है। इस तरह बॉस द्वारा दिये गए काम को मना करना सीधा-सीधा ‘इनसबऑर्डीनेशन’ में आता है और कोई भी ऑफिस इसे स्वीकार नहीं कर सकता। यदि सब ऐसे मना करेंगे तो कोई भी ‘एन्टरप्राइज़’ कैसे चलेगा। स्टेंड-अप इंडिया, स्टेंड अप होने और ‘स्टार्ट-अप इंडिया’ होने से पहले ही सिट डाउन इंडिया हो जाएगा। जो किसी भी समाज की प्रगति के लिए घातक सिद्ध होगा।

 

           इस संवाद से हमें जहां राजकुमार के चरित्र की एक झलक मिलती है वहीं रहमान की अपने गोल के प्रति प्रतिबद्धता देखने को मिलती है। टीम लीडर की हैसियत से यह उसकी ड्यूटी है, वह अपने ऑर्गनाइज़ेशन को ऊंचाइयों पर ले जाना चाहता है उसके लिए जरूरी है कि वह टास्क को पूरी-पूरी गंभीरता से ले और अपने ऑर्गनाइज़ेशन के सभी सदस्यों से भी यही अपेक्षा करता है। इसमें बुरा क्या है, सभी को अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करना चाहिए ताकि जल्द से जल्द इनका यह उपक्रम ‘नवरत्न’ और 'महारत्न' की श्रेणी में आ जाये।

 

            राजकुमार जैसे लोग सभी दफ्तरों में मिल जाते हैं जो निहायत ही मूडी और कामचोर किस्म के होते हैं और ऐसे मौके के इंतज़ार में रहते हैं ताकि वे अपने लिए एक बेहतर पैकेज ‘निगोशिएट’ कर सकें। हमें ऐसी प्रवृति पर रोक लगानी चाहिए। एक तरफ रहमान है जिसके सामने एक महान कार्य है – महारानी के नेकलेस को हासिल करना। अब इसके लिए जो भी टीम है उसमें से ‘दी बेस्ट’ को चुनना है जो कि काम को सरंजाम दे सके। इसमें ‘इफ एंड बट’ नहीं चलेगा। ऐसे काम को सहर्ष स्वीकार करने के बाजाय राजकुमार ‘ज्ञान’ देना शुरू कर देता है और कहता है कि अब उसने ये काम छोड़ दिये हैं जो कि एक निहायत ही ग़ैर- जिम्मेवारना एप्रोच है। ऐसे लोगों को ऑफिस में रखना ऑफिस के वातवरण के लिए ठीक नहीं है, इसका कुप्रभाव दूसरे कर्मचारियों के आउट पुट पर भी पड़ता है जो ऑफिस की डे-टुडे  वर्किंग के लिए कतई सूटेबल नहीं है। 

Thursday, October 31, 2024

व्यंग्य : पिज्जा को लेकर देवरानी ने की जेठानी हत्या

 


 

 

            यूं भारतीय समाज में जेठानी-देवरानी के आपसी रिश्ते कोई बहुत स्वीट किस्म के नहीं होते हैं। पहले भी उनके मन-मुटाव की खबरें अक्सर आती रहतीं हैं। हिन्दी फिल्मों में भी एक अगर निरुपारॉय है तो दूसरी शशिकला एक तेज तर्रार ललिता पवार है तो दूसरी दीन-हीन  वहीदा रहमान। लगाई-बुझाई इस रिश्ते का सामान्य फीचर है। पर ये तो अति ही हो गई कि देवरानी ने पिज्जा के चलते जेठानी की हत्या ही करवा दी। मैंने एक नेता जी का कभी एक बयान पढ़ा था ये फास्ट फूड, ये चाइनीज़ खाने से और तिस पर मोबाइल के इस्तेमाल से हिंसक प्रवृति पनपती है। अब लगता है नेता जी सही ही कह रहे थे। देखो! एक पिज्जा के चलते ! ऐसा देखा न सुना। कहते हैं किसी भी पिज्जा की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उस पर टॉपिंग किस चीज़ की है, चिकन की है, मशरूम की है, टमाटर की है, चीज़ की है। अब ऐसी भी क्या टॉपिंग रही होगी कि देवरानी ने जेठानी की जान ही ले ली।

 

           सोचो ! पिज्जा खाना कितना खतरनाक है। कितनी हिंसा की प्रवृति इस एक पिज्जा के खाने से आती है। केस हिस्ट्री मैंने देखी नहीं है। हो सकता है जेठानी, देवरानी का पिज्जा अक्सर खा जाती हो या क्या पता टॉपिंग-टॉपिंग उतार लेती हो। और गंजा पिज्जा देवरानी को पकड़ा देती हो। हो सकता है देवरानी ने कभी जेठानी का ऑर्डर किया पिज्जा डिलिवरी बॉय से लेकर खुद ही खा लिया हो। कुछ भी हो सकता है। अब सच तो जेठानी को पता होगा या उस पिज्जा को।

 

          देखिये ये सब तामसिक भोजन है। सात्विक तो तनिक भी नहीं। तामसिक भोजन से राक्षसी प्रवृति आती है। मरने-मारने के विचार मन में आते हैं। कभी आपने सुना कि सरसों के साग के लिए, या भिंडी के लिए या फिर मैसूर पाक के लिए कभी घर में भाई-बहनों में या ननद-भाभी में या देवरानी-जेठानी में लड़ाई हुई हो। अब कोई क्या खा कर इडली-वडा के लिए या ढोकला के लिए लड़ेगा। कोई भला आदमी या भद्र महिला लड़ाई मोल नहीं लेगा। मर्डर-वर्डर तो बहूत दूर की बात है।

 

             मेरे घर में तो लड़ाई इस बात को लेकर होती है कि मुझे पिज्जा खाना नहीं आता। मैं पता नहीं क्यों उसे रोटी की तरह खाता हूँ।  जबकि पिज्जा खाने के कुछ आदाब हुआ करते हैं। छोटी-छोटी पुड़िया जिसे ये लोग ‘सेशे’ कहते हैं में से नमक-मिर्च-मसाला छिड़क कर, अज़ब-अज़ब नाम की सॉस के साथ एक-एक त्रिकोणीय टुकड़ा उठा कर खाया जाता है और साथ में आए टिशू पेपर से होंट-मुंह साफ करते रहना होता है। अब रोटी के लिए ऐसे कोई टेबल-मेनर्स नहीं हैं। आप जितना बड़ा/छोटा जैसा मन चाहे कौर/निवाला बना सकते हैं। सब्जी कम लें या ज्यादा, अपनी-अपनी रुचि है। कोई रोकेगा-टोकेगा नहीं। आप रोटी दूध में मीड़ कर भी खा सकते हैं। चीनी या सब्जी भर कर पीपनी सी बना कर भी खा सकते हैं। जैसा मन करे। मैं एक के घर गया तो उन्होने रोटियों को पहले ही चार-चार टुकड़ों में तोड़-फोड़ कर मुझे परोसा। पिज्जा के साथ आप ऐसी लिबर्टी नहीं ले सकते। ऐसी क्या ? कैसी भी लिबर्टी नहीं ले सकते। अब वक़्त आ गया है कि पिज्जा वाले डिब्बे पर ही चेतावनी लिखने लग जाएँ ‘अपने रिस्क पर ऑर्डर करें/खाएं’

क्या खूब शेर है:

               रोने के भी आदाब हुआ करते हैं फ़ानी 

              ये उसकी गली है तेरा ग़म-खाना नहीं 

Monday, October 28, 2024

व्यंग्य : विमानों को फर्जी धमकी दी तो कड़ी सज़ा

 


 

             विमान में बम होने की एक हफ्ते में सौ फर्जी धमकी मिलने के बाद अथॉरिटी ने यह क्लियर कर दिया है और सार्वजनिक घोषणा कर दी गई है कि यदि कोई फर्जी धमकी देगा तो उसको कड़ी सज़ा दी जाएगी। मेरे समझ में ये नहीं आया कि क्या ऐसा कोई प्रावधान पहले नहीं था ? यदि था और अगर नहीं भी था तो सौ फर्जी धमकियों की ‘वेट’ क्यों की। यह तो कुछ-कुछ इसी तरह हो गया कि कोई आपको मारे जा रहा है और आप कह रहे हो एक बार और मार कर दिखा। अगली बार मार फिर तुझे बताता हूँ। बहरहाल ! बम की बीस पचास नहीं बल्कि सौ फर्जी धमकियों के बाद लगता है अथॉरिटी का सब्र जवाब दे गया और ये ऐलान कर दिया है कि अब फर्जी धमकी वाले बच नहीं पाएंगे और कड़ी सज़ा के हकदार होंगे।

 

      अब सवाल यह पैदा होता है कि ये फर्जी धमकी वाले को पकड़ा कैसे जाएगा। और उसे पकड़ने में कितना वक़्त लगेगा ? क्या ये धमकाने वाले को पकड़ना मुमकिन होगा ?

 

        एक बात और ! चलो ! फर्जी धमकाने वाले को तो आप कड़ी सज़ा देंगे पर अगर भगवान न करे धमकाने वाला असली हो और धमकी असली हो तब क्या ? तब भी कड़ी सज़ा या कुछ और ? बात तो तब होती जब आप इन सौ धमकियों वाले को पकड़ पाते और कड़ी सज़ा दे देते उसके बाद बताते। यह तो ऐसे हो गया कि आपने धमकी का जवाब धमकी से दे दिया। चलो किस्सा खत्म। कितनी बार ऐसा भी पहले होता था कि कोई लेट हो गया तो किसी से फोन करवा दिया फ्लाइट में बम है, लोग-बाग बम ढूँढने में लग गए फ्लाइट लेट हो गई और आपने पकड़ ली। फिर पुलिस ने लेट आने वालों को पकड़ना शुरू कर दिया तब कहीं जाकर ये बंद हुआ।

 

             पर धमकी का जवाब धमकी होता है क्या ? धमकी झूठी है या सच्ची उस पर फुल-फुल एक्शन होना चाहिए। अब सौ धमकियों का उद्देश्य क्या रहा होगा? इससे क्या हासिल हुआ धमकी वाले को ? बाई दि वे, ये धमकियाँ अलग-अलग एयरलाइंस को दी गई है। बोले तो सभी एयरलाइंस शामिल थीं। अब न हवाई अड्डे आपके, न एयरलाइंस आपकी। आसमान खुदा का। कहते हैं न ख़ल्क़ ख़ुदा का हुकुम बादशाह का...आप पर फिर धमकी देने के अलावा बचा ही क्या। जैसे स्कूल में बच्चे कहते हैं न “बाहर निकल ! फिर बताता हूँ तुझे...” यह ट्रेंड रोका नहीं गया, धमकी देने वाले पकड़े नहीं गए तो कल यही बात रेल, बस और ओला-ऊबर के लिए कही जाने लगेगी। फिर क्या  हम पैदल चलने लगेंगे या घर बैठेंगे।  ये जो इतने फाइव जी, सिक्स जी चले हैं इसका क्या फायदा अगर धमकी देने वाला पकड़ना तो दूर ट्रेस भी न किया जा सके। मैं कहता हूँ उस पर पेगासस लगाया जाये। 

 

            धमकी दरअसल एक कायरता वाला कदम है। जिनको करना होता है वो कर गुजरते हैं। वो ये धमकी-शमकी नहीं देते। इससे ये और प्रूव होता है कि आपके पास अभी तक इतना सब तकनीकी ज्ञान और लवाजमा नहीं है कि आप धमकी देने वाले को पकड़ पाएँ। वो तो वोही कहते फिरते हैं और जिम्मेवारी लेते हैं तब तो हमें पता चलता है। मुझे याद है कॉलेज में जब बस आदि पर हमला होता था तो कॉलेज वाले पहुंच जाते थे कि हमला हमारे कॉलेज ने किया और ये क्या आपने हमारे कॉलेज का नाम ही नहीं लिखा। ऐसे हमले का क्या फायदा ?

 

               दूसरे ये सब बातें पब्लिक क्यों की जाती हैं। इससे क्या लाभ अथवा क्या इससे धमकी देने वाले को पकड़ने में मदद मिलनी है ? ये तो छीछालेदर वाली बात हो गई। एक एक दिन में साठ-साठ धमकी आखिर ये चल क्या रहा है। कहीं ऐसा न हो कि आगे आने वाले समय में एयरलाइंस लिखने लगें कि विमान में बम भी हो सकता है अतः सवारी अपने जोखिम पर यात्रा करे तथा अपने जान-माल की सुरक्षा स्वयं करे।

      

व्यंग्य: भिखारी के चलते हैं तीन ऑटो

 


 

 

      बहुत ही उत्साहवर्धक खबर है खासकर बेरोजगार लोगों के लिए। एक शख्स ट्रेन और स्टेशनों पर गीत गा-गा कर भीख मांगता है। इन सज्जन का कहना है कि इससे उनके आत्मसम्मान में बहुत वृद्धि हुई है, अब उनके परिवार के लोग उनको और उनके इस प्रोफेशन को सम्मान से देखते हैं। वे अपने इस नए आत्मसम्मान का समस्त श्रेय भीख मांगने को देते हैं। इससे जोड़ी गई धन-राशि से आज शहर में उनके एक-दो नहीं बल्कि तीन-तीन ऑटो चल रहे हैं। उन्होने इस बात को ज़ोर देकर कहा है कि उनके इस भीख मांगने ने ही उनको ये संपन्नता दिलाई है। अतः वह ये मुक़द्दस काम, बोले तो भीख मांगना कभी बंद नहीं करेंगे।

 

    भिखारी तो आपने बहुत देखे होंगे और एक से एक अमीर भिखारी देखे होंगे। अब तो भीख मांगने में समुदाय के समुदाय, मुल्क के मुल्क लगे हुए हैं। वे अपने भीख मांगने पर पशेमान नहीं हैं, उल्टा इसमें गर्व महसूस करते हैं।  सही भी है ! आखिर आपको अपने बिजनिस की फुल-फुल इज्ज़त करनी चाहिए। सीधी सी बात है जिस इनकम से आपके घर का चूल्हा जलता हो, जिस आय से आपका और आपके पूरे परिवार का पेट पलता हो उस को पूरा-पूरा सम्मान मिलना ही चाहिए। सम्मान सबसे पहले आप ही को देना होगा तब न बाहर वाले सम्मान की दृष्टि से देखेंगे।

 

    भीख मांगने वाले तरह-तरह के औटपाए करते हैं। भाँति-भांति के स्वांग रचते हैं। बदन पर पट्टी बांधे रहते हैं। कभी टांग छुपा कर, टांग न होने के बहाने लगाते हैं, कभी चेहरे को विकृत कर लेते हैं। कुछ कायदे के कपड़े पहन स्टूडेंट बने घूमते हैं और आपसे फकत फीस देने में मदद चाहते हैं।  कुछ अपने पर्स के खो जाने का बहाना लगाते हैं और आपसे बस घर जाने का किराया मांगते हैं। एक सज्जन तो मुझे दवाई का पर्चा दिखा कर दवाई के पैसे मांग रहे थे। उनको लगा या तो मैं पैसे दे दूंगा या हद से हद केमिस्ट से दवा खरीद कर उनको सौंप दूंगा, जो मेरे मुड़ते ही वो केमिस्ट को वापिस कर देंगे। मैंने कहा “इस पर्चे की एक फोटो कॉपी मुझे दे दो मैं कल अपनी डिस्पेन्सरी से लाकर देता हूँ”। ये सुनते ही वो क्रोध से पर्चा मेरे हाथ से छीन कर ये जा वो जा, भीड़ में गुम हो गया।

 

      मुंबई में ऐसे होटल हैं जहां से आप भोजन के कूपन खरीद कर वहाँ एकत्रित भिखारियों में बाँट सकते हैं और पुण्य कमा सकते हैं। वो बात दीगर है कि आपके मुड़ते ही भिखारी लोग उस कूपन को वापिस होटल वाले को देकर नगद पैसे ले सकते हैं। क्या आप दिल्ली के भैरों मंदिर गए हैं। वहां शराब चढ़ाई जाती है। फिर बाहर गिलास लिए भिखारियों को प्रसाद बांटते हैं। “बड़ा पेग बनाना”, “मुझे पटियाला बनाना” “गिलास भर दो” आप सुन सकते हैं।

 

    मैं दाद देता हूँ इन सज्जन की जो अपने व्यवसाय के प्रति इतनी ईमानदार हैं और गर्व करते हैं। लोगों में अपने व्यवसाय के प्रति इतनी ईमानदारी कम ही देखने को मिलती है। नहीं तो जिससे बात करो वो रोता हुआ, अपने ऑफिस और अपने बॉस को कोसता हुआ ही मिलता है। आप इसी मेहनत से काम करते रहो, गाना गाते रहो, आप के भिक्षा-पात्र में इतनी राशि जल्दी से जल्दी हो जाये कि आप तीन से तीस ऑटो के मालिक हो जाएँ। लोग आपको और आपके ऑटो को देख कर बरबस ही कह उठें सबका मालिक एक 

      

Wednesday, October 23, 2024

व्यंग्य : रायते में कानखजूरा

 


 

 

         रायते को लेकर भले कितने ही मुहावरे चले हों सबसे दिलचस्प ये रहेगा। रायते में कानखजूरा। राम ने श्याम के रायते में कानखजूरा डाल दिया। मेरे रायते में कानखजूरा किसने डाला ? एक लाइफ कोचिंग की किताब आई थी ‘हू मूव्ड माई चीज़’। कुछ इसी तरह का समां रहेगा। आपने पिछले दिनों बहुत सुना होगा कि रेलवे ने अपनी सुविधाओं और रफ्तार को नए सिरे से परिष्कृत किया है। ये कानखजूरा उसी का प्रतीक है। उसी का मेसेंजर है। मेसेज लें। मेसेंजर को मारा नहीं करते।

 

       हुआ कुछ यूं कि रेलवे की वी.आई.पी. लाऊंज में एक यात्री के रायते में ज़िंदा कानखजूरा निकल आया। उसने तुरंत अपने मोबाइल से फोटो ले लिया। अब आप किसे दोष देंगे। रेलवे को ? रायते को, कानखजूरे को ? मोबाइल बनाने वाले को जिसने इसमें कैमरा लगाया ? या फिर उस यात्री को ? दुनियाँ भर का गंद दिन-रात घर पर मंगा-मंगा कर खाते फिरते हो एक कानखजूरा नहीं खा सकते थे। नहीं खाना था, मत खाते, निकाल देते, जैसे बच्चे दूध से मलाई निकाल देते हैं। या कई लोग केक से चेरी हटा देते हैं। ये क्या कि लगे फोटोग्राफी / विडियोग्राफी करने। ये क्या तरीका हुआ? आपको पता नहीं है रेलवे-परिसर में फोटोग्राफी अनाधिकृत है।

 

               आजकल रेलवे नवीन-नवीन प्रयोग कर रेली है। सब किसलिए ? यात्रियों की सुख सुविधा के लिए ही न,  ताकि उनकी यात्रा सुगम और यादगार बन सके। अब देखिये ये कानखजूरे वाले यात्री की यात्रा यादगार बन गई कि नहीं। अपने नाती-पोतों तक को वो ये कहानी सुनाया करेगा। “एक बार की बात है...” कानखजूरे के बारे में पता लगाया जाये यह ज्यादा जहरीला तो नहीं होता। फिर इतना रायता क्यों फैला रहे हो भाई। हमारे स्कूलों में मिड-डे मील देखो। गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ गोलगप्पे वालों को देखो। दीवाली पर नकली खोआ/मावा देखो। केमिकल मिला दूध रोज़ पीते हो और कानखजूरे को लेकर इतना बवाल। हद है हिपोक्रेसी की। मेरी रेलवे से विनती है कि आप इस फ्लेवर को ऐलानिया लाएँ। रायता-कानखजूरिया। और फिर देखें। 

  

       भाई कानखजूरा ज़िंदा था। सोचिए हमारा रायता भी कितना शुद्ध, सात्विक और अलौकिक है कि कानखजूरा जिसके सौ पैर होते हैं वो भी इसे ‘लाइक’ करता है और एक आप हैं।  हैं बस ले-दे कर दो पैर और नखरे देखो। भाई आजकल ‘लाइक’ का ज़माना है। ‘लाइक’ न मिले, कम ‘लाइक’ मिले इस पर तो रूठने-मनाने की और कहीं-कहीं तो फ़ौजदारी की भी नौबत आ जाती है। दूसरे देशों में तो साँप का सूप बड़े चाव से पीते हैं। यह बहुत महंगा बिकता है आपको रायते के दाम में कानखजूरे का एक तरह से सूप पीने को मिल गया। आपको शुक्रगुजार होना चाहिए। हो सकता है ये कोई सैंपल-सर्वे चल रहा हो कि यात्रियों की क्या प्रतिक्रिया होती है। तत्पश्चात इसे नियमित तौर पर ‘इंटरोड्यूस’  किया जाये। रेलवे यदा-कदा ऐसे सर्वे, ऐसे प्रयोग करती रहती है। अब हो सकता है यह प्रयोग न हो, मात्र संयोग हो। जैसे पीछे ए.सी से साँप महाराज लटकते मिले थे। वह किस्सा फिर कभी।