Ravi ki duniya

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Friday, December 26, 2025

व्यंग्य : अरावली हटाने के लाभ

 

       

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब पता चला कि सरकार अरावली की पर्वत श्रंखला को हटा रही है। यह हमारे विकास की पराकाष्ठा है। अज्ञानी लोग विरोध कर रहे हैं। असल में जिन लोगों को पूरी समझ नहीं हैं वही प्रतिरोध कर रहे हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि विकास की जल धारा, विकास की नदी कल-कल करती इसी पहाड़ के नीचे से निकलेगी। मसलन, एक बार यह श्रंखला 'लैवल' होते ही आप सोच नहीं सकते कितने लाभ मिलने लग जाएँगे। एक कर्टेन-रेजर/टीज़र/ ट्रेलर प्रस्तुत है:

 

1. वहाँ रेगिस्तान बनते ही अपुन 'दिल्ली डेजर्ट-फेस्टिवल' आयोजित किया करेंगे। सोचो! कितने पर्यटक देसी-विदेशी आएंगे। विदेशी मुद्रा की झड़ी लग जानी है। रोजगार के इतने अवसर खुल जाएँगे। क्या ऊंट की सवारी, क्या लोक नृत्य, क्या लोक गीत, क्या 'बाॅन- फायर'। वाहन, गाइड, होटल, क्यूरिओ, कैब सबको रोजगार मिलेगा।

2. रेगिस्तान की तलहटी पर क्या पता कितना सोना- चांदी, खनिज और तेल के भंडार हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हम मालामाल हो जाएँगे। सोने के भंडार ही भंडार होंगे। भारतीयों के घरों में सोने के बर्तन हुआ करेंगे। जिधर देखो सोना ही सोना होगा। आपने 'मॅकेनाज गोल्ड' फिल्म देखी थी न? बस कुछ वैसे ही। तेल-पेट्रोल तो इतना निकलेगा, इतना निकलेगा कि बारह आने लीटर मिला करेगा। उत्पादन इतना होगा कि हम तेल सम्राट बन जाएँगे। तेल-गुरु यू नो ? निर्यात ही निर्यात।

3. गगनचुंबी इमारतें बनेंगी। सबकी हाउसिंग समस्या दूर हो जानी है। मिनिमम 4 रूम सेट सबको लगभग-लगभग यूं ही मिल जाएँगे।

4. पहले हमारा ये इतिहास रहा है कि मांझी जैसे लोग पर्वत काट-काट कर सड़क बनाते थे। अब उन्हें इस तरह का कोई उपक्रम नहीं करना पड़ेगा। चारों ओर टोल, और छह लेन के एक्स्प्रेस वे बन जाएँगे। चारों ओर फ्लाई ओवर और मेट्रो की बहार होगी।

5. दिल्ली वाले अपना प्रदूषण तो भूल ही जाएँ। एक दम खुली हवा आया करेगी चारों ओर से। टैगोर ने कहा था “मैं नहीं चाहता कि मेरा घर चारों ओर से दीवालों से घिरा/बंद रहे। मैं चाहता हूं कि सभी भूभाग की संस्कृति की बयार निर्बाध रुप से चारों ओर से मेरे घर में बहे"

6. मगर क्यों कि टैगोर साब की बात तब मानी नहीं गयी अतः इस पर्वत श्रंखला को ऐसे ही छोड़ दिया और आज देख लो इसकी वजह से आम दिल्ली वालों को कितना प्रदूषण, कितनी गरीबी का सामना करना पड़ रहा है। अंग्रेज़ लोग कलकत्ता से राजधानी इसीलिए दिल्ली लाये थे कि कलकत्ता में पहाड़ नहीं थे और वो अपने इंग्लैंड के पहाड़ 'मिस' करते थे। अब अंग्रेज़ नहीं रहे तो हम क्यों उनकी नकल करें। हम वो करेंगे जिससे हमारे देश का, हरेक देशवासी का विकास हो सके। हमारी मूलभूत आवश्यकता क्या है? जल,जंगल, ज़मीन बस तो ये तीनों हमें एक ही झटके में मिल जाएँगे। पहाड़ जाते ही ज़मीन ही ज़मीन होगी। जहां तक जल की बात है सभी नदियां, पर्वत माला से ही निकलती हैं। कौन जाने अरावली की गोद से भी कोई एक नदी या अनेक नदियां निकल पड़ें। रही बात जंगल की तो जंगल पेड़-पौधों, झाड़-झाड़ी  का हो या कंक्रीट का बात तो एक ही है ना? जंगल तो जंगल है। जो इसका विरोध कर रहे हैं वो सब वो ही लोग हैं जो आजकल कुकुरमुत्तों की तह चैनल-चैनल, अर्बन इंडिया में घुस गए हैं। ये देश की प्रगति नहीं चाहते। सीधे-सीधे बोले तो देशद्रोह का मामला बनता है।

Tuesday, December 23, 2025

व्यंग्य: रसगुल्ला और शादी

 

 

मेरे भारत महान के एक सूबे में एक शादी में रसगुल्ले खत्म हो जाने पर तगड़ा विवाद हो गया। विवाद भी इस हद तक का कि आपको समझाने के लिए इसकी पूरी ए.बी.सी.डी. समझानी पड़ेगी। यह ‘ए’ से आर्गूमेंट्स से शुरू हुआ बोले तो अबे-तबे करने लगे।  फिर ‘बी’ से  बड़बड़ाने लगे, क्या घराती क्या बराती। ‘सी’ से छीना झपटी शुरू हो गई। छीना-झपटी जल्द ही ‘डी’ से धक्का मुक्की में बदल गयी। बस फिर क्या था, कुछ जोशीले लोग जो शाम के लिए '' से इंगलिश वाइन लाये थे उन्होने टेंशन के मारे दिन में ही खोल ली। पीते जाते और गाली गलौज करते जाते तो ‘एफ’ से फाइट चालू हो गयी। अब घराती तो अपनी होम पिच पर खेल रहे थे वे संख्या में कहीं ज्यादा थे। ये क्या बात हुई कि रसगुल्ले जैसी चीज़ को भी बारातियों को तरसना पड़े। लड़की वाले सोच रहे थे कि यह चूक कहाँ कब कैसे हो गयी।  '' से इंगलिश वाइन, 'एफ' से फाइट शुरू हो गई, 'जी' से गुड बाई कहे बिना शादी बारात वापिस।

 

देखिये हमारे हिंदुस्तान में बारातियों को क्या खाना खिलाया गया। खाना कितना लज़ीज़ या कितना खराब था यह बात सालों याद रखी जाती है और इसका ज़िक्र भी किया जाता है। बारातियों की आवभगत एक औसत शादी का महत्वपूर्ण कम्पोनेंट है। मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जिन्होने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि उनको दहेज नहीं चाहिए उन्हें तो बस अच्छा खाना और बारातियों की फुल- फुल आवभगत चाहिए। उनकी इज्ज़त का सवाल है।

 

अब इस पसेमंजर में आप ये अदने से रसगुल्ले को देखें। भला ये क्या बात हुई कि साब अभी खाना खुला भी नहीं की आपने या आपके लोगों ने  रसगुल्ले मेन कोर्स की तरह और मेन कोर्स से पहले ही खत्म कर दिये। स्वीट डिश खत्म। खत्म तो खत्म। आपके घराती लोग अपनी प्लेट में आठ-आठ, दस-दस रखे घूम रहे हैं और हमें चिढ़ा रहे हैं ये क्या मज़ाक है? हमारी, हमारे गेस्टों की कितनी बेइज्जती हुई आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते। देखिये एक रसगुला कितना हल्लागुल्ला मचा सकता है। इसका नाम भले रसगुल्ला है पर ये अपनी पर आ जाये तो शादी तक तुड़वा सकता है और वो ही हुआ भी। बारात बिन शादी बिन दुल्हन लौट गई।


लड़के वाले जो हिंदुस्तान में अपनी ही ठसक में रहते हैं उनका कहना है कि रसगुल्ला कोई इशू ही नहीं इशू तो ये है कि हमारा अपमान हुआ है। आज ये हाल है कल क्या होगा,? कैसे संस्कार दिये हैं? हो सकता है बहू हमें खाना ही नहीं दे कह दे की खत्म हो गया। जाओ हवा खाओ। भाई अगर रसगुल्ला खत्म हो सकता है तो भोजन क्यों नहीं? यह तो सुघड़ गृहिणी के लक्षण नहीं। इसमें सारा दोष उन लोगों का है जिन्होंने रसगुल्ला को प्रतीक मानते हुए बहुत कुछ कह दिया। ये छीना-झपटी क्या कहती है? क्या बताती है? यह दरअसल पोल खोलती है हमारे समाज की। क्या हम रसगुल्ला के इतने अकाल में रहते हैं। वो रसगुल्ला किस काम का जिसमें रस ही नहीं, जो जीवन में रस ही न भर सके, उल्टा हमारा आपसी साहचर्य और भ्रातृभाव के रस को ही सुखा दे। ये रसगुला हमारा नया दुश्मन है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है (डायबिटीज़ वालों से पूछो बेचारे कैसे धो-धो के, निचोड़- निचोड़ के रसगुला खाने को विवश हैं) किन्तु अब तो यह सामाजिक वैमनस्य का सबब बन गए हैं। यह रसगुल्ले के अपने अस्तित्व के लिए कोई मुफ़ीद बात नहीं। मेरा सुझाव है कि रसगुल्ले का या तो बहिष्कार ही कर दें। यदि यह संभव न हो तो दो-दो रसगुल्ले की डिब्बी बना ली जाएँ और उन पर स्लिप से नाम लिखवा दिये जाएँ कि कौन सा डिब्बा किस गैस्ट को दिया जाना है।

 

यूं देखा जाये तो ये स्वीट डिश है ही ऐसी चीज।  नाम तो इसका स्वीट है पर यह जीवन में, समाज में कड़वाहट घोल रही है। आप चाहें आइस क्रीम ले आओ, उस पर भी लोग टूट पड़ते हैं और पूरे साल का 'कोटा' इसी शादी से पूरी करना चाहते हैं। आप गाजर का हलवा ले आओ उसका भी यही हाल करते हैं। क्या घराती क्या बाराती। एक सुझाव ये भी है कि आप स्वीट डिश का एक कूपन दे दो, भैया घूमते हुए जाना और उनके किसी भी शहर के ऑउटलैट से ले सकते हैं। मुझे तो दूल्हा-दुल्हन पर दया आ रही है। उनका क्या दोष? इस रसगुल्ले ने तो उनके जीवन से जैसे रस ही सोख लिया। ये कैसा रसगुल्ला है जी ?

 

Monday, December 22, 2025

व्यंग्य: एपस्टीन फाइल पर भारतीय नेताओं की प्रतिक्रिया

 

1. ये मैं हूं ही नहीं
2. ये फोटोशॉप है। सिर मेरा मालूम देता ज़रूर है। पर मेरा नहीं और धड़ तो डेफ़िनिटली मेरा नहीं
3. ये विपक्ष की चाल है
4. इस में विदेशी ताकतों का हाथ है। बल्कि हाथ ही क्या? पाँव, पीठ, घुटना सब उन्हीं का है।
5. यह इंडिया को कमजोर और बदनाम करने की साजिश है
6. यह न्यू इंडिया है दूसरे देशों से भारत की तरक्की देखी नहीं जा रही अतः यह उनका प्लान आई मीन षड्यंत्र है
7. मैं तो कभी अमरीका गया ही नहीं
8. मैं अमरीका गया ज़रूर था पर मैं किसी आइलेंड पर नहीं गया।
9. मैं किसी जेफरसन को नहीं जानता सिर्फ एक ही जेफरसन के बारे में मैंने पढ़ा था पर वो तो बहुत दिन हुए मर गया थॉमस जैफरसन
10. यह लोलिता क्या होता है ? ये टेप टेंपर की हुई हैं। मेरी धर्मपत्नी का नाम तो ललिता है।
11. मेरा तो भाईसाब पासपोर्ट तक नहीं बना है
12. यह कांग्रेसियों की चाल है
13. अमरीका से हमारी तरक्की देखी नहीं जा रही है। वह हमसे जलता है
14. मैं कभी कभार एस्पिरिन तो लेता हूँ पर ये एप्सटीन क्या है ? कोई नयी दवा आई है मार्किट में?
15. नो कमेंट्स
16. चुनाव आ रहे हैं अतः यह मेरे प्रतिद्वंदियों की शरारत है मगर देख लेना वे मुंह की खाएँगे
17. साँच को आंच नहीं
18. भगवान राम पर भी दोषारोपण हुआ था मगर उनका बाल बांका भी नहीं हुआ। यह सब आसुरी शक्तियों का मायाजाल है किन्तु हर बार की तरह मैं इस चक्रव्यूह से बेदाग वापिस आऊँगा
19. मेरी न्यायपालिका में पूरी आस्था है
20. हाई कमांड कहेगा तो मैं तुरंत त्यागपत्र दे दूंगा। मुझे कुर्सी का कोई लोभ नहीं। मुझे पार्टी की, देश की इज्ज़त ज्यादा प्यारी है
21. मैं अपनी पार्टी का एक अनुशासित सिपाही हूँ
22. यौनाकर्षण एक स्वाभाविक नैसर्गिक क्रिया है इसको इस तरह से प्रदर्शन की भारत जैसे संस्कारी देश में इजाजत नहीं मिलनी चाहिए
23. हमने सुप्रीम कोर्ट में केस डाला है। क्यों कि केस 'सब-जूडिस' है अतः कोई बयान देना संभव नहीं होगा।
24. यह कोई बॉडी डबल है मैं नहीं
25. मुझे तो इंगलिश आती ही नहीं मैं कैसे हो सकता हूँ
26. मैं उन दिनों में अपने निर्वाचन क्षेत्र में बिज़ी था, मैं एक साथ दो जगह कैसे उपस्थित रह सकता हूँ आप खुद अपने दिमाग से सोचो
27. क्या आप देशद्रोही हैं? क्या आप कोंग्रेसी हैं यदि नहीं तो ऐसे सवाल ही क्यों पूछ रहे हैं। कोई सनातनी भला ऐसी कल्पना भी कैसे कर सकता है
28. मैं अपनी मातृभूमि के लिए कुछ भी करूंगा यह तब की बात है जब चीन का खतरा बढ़ रहा था तब मैं एक बार अमरीका गया था। विश्व को भारत का पर्सपक्टिव बताने मुझे पता था कि मेरी रिकॉर्डिंग हो रही है मगर देश को मैं सर्वोपरि रखता हूँ।
29. बच्चे मन के सच्चे। यह पूरे संसार में अतिथि के स्वागत का तरीका है कि बच्चे बुके देते हैं। स्वागत गान गाते हैं। इसके अलावा अगर कुछ भी है तो वह सब टेक्नाॅलाॅजी का कमाल है आपको तो पता ही है कि अमेरिका टेक्नाॅलाॅजी के मामले में कितना आगे है।
30. मुझे उतनी अच्छी अंग्रेजी नहीं आती। मुझे सिरदर्द था मैंने उनसे एस्पिरिन मांगी थी वो पता नहीं क्यूँ इस आदमी को ले आए जिसका नाम एस्पिरिन से मिलता - जुलता था। मैं समझा वह कोई डॉ. है और कोई थिरैपी शिरैपी कर रहा है।

Saturday, December 20, 2025

व्यंग्य: एपस्टीन फाइल और भारतीय

 


हम भारतीय बड़े भुक्खड़ किस्म के लोग हैं। वो क्या बोलते हैं अँग्रेजी में- स्टार्व्ड टाइप। तो सर जी हम तो 'फॉर एवर स्टार्व्ड' हैं। जनम-जनम के भूखे प्यासे। अकालग्रस्त क्षेत्र के लोग हैं हम। भले हम जनसंख्या में दुनिया में नंबर वन हैं। वो अलग कहानी है। तिस पर हम गोरी चमड़ी पर जानो-तन और अपने खाते खाली कराने से लेकर डिजिटल अरेस्ट तक करा लेते हैं। हनी ट्रैप वालों को हम पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। हम तो खुद तैयार ही बैठे रहते हैं।

 

पिछले एक महीने से यू ट्यूब वालों की गहमागहमी देखते ही बन रही थी। हर नयी रील में वो वात्स्यायन से होड़ लेने लगते। जबर्दस्ती के कयास लगाने लग पड़ते थे। उनकी लार टपक रही थी जैसे एपस्टीन की वो पूरी की पूरी फाइल इन्हीं को मिलने वाली है। न जाने किस किस को गद्दी से उतार रहे थे। बस ऐसा समझो एक भभ्भड़ सा मचा रखा था। हर यू ट्यूबर बताता होता था कि कितने भारतीय इस सूची में हैं किस किस के फोटू निकल कर आएंगे। तब तक बेचारे कभी कहते एक खिलाड़ी है, एक मंत्री है, एक उद्योगपति है आदि आदि अब इनसे कोई पूछे कि अन्यथा क्या आप यूं कहेंगे कि एक एम.टी.एस. है। एक बाबू है जो आठवें वेतन आयोग का इंतज़ार करते करते लोलिता वाली फ्लाइट पकड़ देश छोड़ गया। या परेल  का परचून वाला था और डोंबिवली का पंसारी था। अब इनसे भी भला कोई खबर बनती है। खबर बनाए रखने को तो बड़े बड़े नाम ही दरकार होते हैं। फिर भले आप बस छुआ भर दें कि एक क्रिकेटर है (चलो स्पोर्ट्स कोटा आ ही गया) एक मंत्री है, एक संतरी है।

 

जिनके नाम नहीं आए मुझे तो उनका ताज्जुब हो रहा है।, फिल्म लाइन से निल बटा सन्नाटा। कॉर्पोरेट जगत का क्या हुआ? विपक्ष का क्या सीन है। अब ये न कह देना कि आप या एपस्टीन उन्हें इस लायक ही नहीं समझते। लोग तो कब से सांस रोक कर इंतज़ार कर रहे थे कि बड़े बड़े मंत्री लपेटे में आएगे। बम्पर वेकेन्सी हो जाएंगी। वेकेन्सी ही वेकेन्सी एक बार एपस्टीन के आइलेंड पर दिख भर जाएँ आप।

 

फिर जैसा कि होना था। सब ओर निराशा का वातावरण छा गया। ये क्या ? किसी भारतीय की गंदी क्या अच्छी तस्वीर भी सामने नहीं आई। सब फेल कर गये। फिर वो लगभग खीझते हुए अमेरिका पर ही फोकस कर पृथ्वी पर भूकंप, सियासत में बवंडर लाने की गारंटी देते रहे चौबीस घंटे में वो सुनामी भी थम गई।

 

बस इतना है, अच्छा खासा वक़्त कटा। एक रोमानी से सुरूर में पूरा देश एक महीने से फेंटेसी में जी रहा था। तंद्रा टूट गयी। अभी आप जानते ही नहीं। हमने पनामा पेपर का क्या हाल किया था। उसे वैसे ही मसल दिया था जैसे पनामा सिगरेट पी कर मसल देते हैं। आपने वो मशहूर शेर सुना ही होगा:

 

                   क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के

                   क्या पाएगा तौहीन-ए-जवानी कर के

                  तू आतिश-ए-दोज़ख़ से डराता है उन्हें

                  जो आग को पी जाते हैं पानी कर के

 

 

Thursday, December 11, 2025

बुनती ज़िंदगी

अज़ब डिजाइन का मेरा स्वेटर 

बुनती ज़िंदगी

हरेक सीधे के बाद दो फंदे उल्टे 

बुनती ज़िंदगी

देखती रहती है ! जो कहा नहीं वह 

सुनती ज़िंदगी 

मुझमें खामिया हज़ार मुझे कब इनकार

काश उधेड़ कर मुझे फिर से 

बुनती ज़िंदगी    

Tuesday, December 9, 2025

व्यंग्य: बोल राधा बोल

 

राजकपूर दि ग्रेटेस्ट शो मैन ने एक फिल्म बनाई थी जो सन् 1964 में रिलीज़ हुई थी और एक बेहद सफल फिल्म रही थी। उसमें एक गीत जो राजकपूर महोदय ने खुद पेड़ पर चढ़ कर गाया है: 


तेरे मन की गंगा मेरे मन की जमुना का बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं


यह सीधे सीधे ‘लव जिहाद’ का मामला है। जिस पर हमारी नज़र ही नहीं गई बल्कि हमारी नज़र उधर से जबरन हटाई गई। लेकिन अब उस पर पड़ी धूल हटाई जा रही है। भले इसमें वक़्त लग गया।

 

अब देखिये नायिका जो शुरू में ही स्पष्ट मना कर देती है कि उसकी नायक के प्रस्ताव में तनिक भी रुचि नहीं है। वह ऐलानिया ‘नहीं... नहीं... नहीं ...’ कह उसे दुत्कार देती है। किन्तु यह जिहादी तो एक पूरा अजेंडा बोलो, मिशन बोलो, लेकर निकला है। वह हर हाल में अपने मिशन को सफल करना चाहता है। उसके ‘नहीं .... नहीं ’ कहने से उसका अपना अजेंडा पूरा करने का मंसूबा और मजबूत हो जाता है।  वह जारी रहता है। वह हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब की, परंपरा की याद दिलाता है। वह अपने मिशन को किसी भी हालत में कमजोर होते नहीं देखना चाहता। वह तरह-तरह की उपमा देता है यथा 'तेरे मन की गंगा मेरे मन की जमुना...' क्या आपको अब भी कोई संदेह है कि यह लव जिहाद का मामला नहीं है। अब अगली पंक्ति देखें:


'कितनी सदियाँ बीत गईं हाय तुझे समझाने में‘


 नायक यहाँ सल्तनत काल और मुग़ल काल से चली आ रही जबरन कनवर्जन की ओर संकेत कर रहा है। वह कह रहा है कि मैं जबर्दस्ती करूँ क्यों न उससे पहले ही तुम हाँ कर दो। इस पर पुनः नायिका उसे जा...जा कह भगा देती है। किन्तु नायक बरगलाने से बाज नहीं आता। वह सब्जबाग दिखाता है और उसे झूठे सपने दिखाता है:



क्यों न जहाँ दो दिल मिलते हैं, स्वर्ग वहाँ बस जाता है


 और तरह-तरह के उपक्रम कर नायिका को मजबूर करता है। वह इनडाइरेक्टली धमकाने से भी नहीं चूकता:


'पत्थर पिघले दिल तेरा नम होगा कि नहीं’


वह बता रहा है कि वह हिंसा का हामी नहीं। नहीं तो एसिड अटैक जो पत्थर को पिघला देता है और दिल को एकदम नम कर देगा सुलभ है। और नहीं तो सीधे- सीधे स्टैबिंग की चेतावनी दे रहा है। यह सुन नायिका घबरा जाती है आखिर वह संस्कारी भारतीय नारी है। उसका भयभीत होना व्यावहारिक है। अतः कोई और चारा न देख, न किसी कोने से सहायता आती देख वह मजबूरन:


 'जाओ न क्यूँ सताते हो होगा... होगा... होगा...’


कह चैप्टर बंद कर देती है और इस तरह एक और हिन्दू कन्या लव जिहाद का शिकार हो जाती है। पंगु समाज मूक दर्शक बना देखता रह जाता है। 

अब हम आ गए हैं। हम ऐसा हरगिज़ न होने देंगे। आप तो बस हमें वोट दीजिये फिर देखिये हम कैसे इन सब लव जिहादियों को ऐसा सबक सिखाएँगे कि आप देखना हम 'रिवर्स लव जिहाद' कर इनको ही कन्वर्ट कर लेंगे। याद रखिएगा यह नया भारत है। हम विश्वगुरु हैं। कोई शक़ ?

Monday, December 8, 2025

काला जादू


तुझ से पहले यकीं न था दुनिया में अब भी होता है काला जादू 

लाख संभाला नागिन-जुल्फ कर गई मुझ पर काला जादू

मैं एहतियातन तमाम टोने - टोटके कर मिलने आया हूँ तुझ से 

जानता हूँ नज़र मिलेगी और जीत  जाएगा तेरा काला जादू

भूला खुद को, खुदाई को, याद है तो बस तू और तेरा काला जादू

जुल्फ काली, भवें काली, कजरारी आँखों की पलक काली

खुदबखुद चला आता हूँ ढूँढता मैं अपने हिस्से का काला जादू