जब फूलनदेवी जी ने आत्म समर्पण किया था तो पूरे का पूरा सूबा वहां खड़ा
था. यहाँ तक कि प्रदेश के मुख्य मंत्री भी वहाँ थे. जब से पता चला है कि छोटा राजन
पकड़ा गया...पकड़ाया गया...आत्म समर्पण किया है और वो भी बाली में तब से दिल्ली, मुम्बई में कूद-फाँद
मची है. कौन कौन बाली जायेगा. चलो बुलावा आया है, भाऊ ने बुलाया है.
मैंने भी अर्ज़ी लगा दी है. भाऊ वास्ते खाऊ गल्ली की रगड़ा पैटिस, वडा-पाव, काला खट्टा, दाल भाखरी का ऑर्डर
भी दे छोड़ा है. साथ ले कर जाऊंगा. मला मायत है भाऊ को क्या आवड़ता है क्या नहीं. इतने
दिन से ऊट्पटांग फास्ट फूड खा-खा के सेहत बिगाड़ ली होनी है भाऊ ने. यह लेख लिखे जाने
तक लिस्ट फाइनल नहीं हुइ है कि कौन कौन कितने मानुष बाली जाने की पैकिंग कर रहे हैं.
फक़त मराठी मानुष जाणार या पर- प्रांतियों में से भी किसी का नम्बर लगेगा. ‘मी मुम्बईकर’ (पिछले 15 बरस से) उस
से पहले उत्तर भारतीय अत: दोनों कोटों में अपना चुना जाना नक्की है.
बाली पर्यटन स्थल है. बाली घूमना भी हो जायेगा. अब ये थोड़े है कि भाऊ एयरपोर्ट
की लॉन्ज में होगा...ऑल रैडी बोर्डिंग पास ले कर तैयार. अरे जब बाहर गाँव से बाली आये
हैं तो थोड़ा देखेंगे भालेंगे. स्टडी करेंगे कि बाली में ऐसा क्या है जो छोटा राजन वहाँ
गया और पकड़ा गया. ताकि इंडिया के शहर या राज्य को हू ब हू वैसा ही बनाया जा सके. अपने
राज्य यूँ भी चिल्ल पौं मचाते फिरते हैं... विशेष दर्ज़ा दो ....विशेष दर्ज़ा दो. तो जाओ दिया. विकास पुरुष पंत प्रधान ऐसा विकास करेंगे
ऐसा विकास करेंगे कि भाईयो और बहनों हर राज्य में एक एक बाली स्थापित हो जायेगा. इससे
क्या होगा कि छोटा राजन जैसे देसी छोटे छोटे राजनों को एक आश्रय स्थल मिल जायेगा. फिर
सरकार की मर्ज़ी पकड़े, छोड़े, सरंक्षण दे. ‘छोटा राजन’ को शॉर्ट करो तो बनता है छोरा. प्रात: स्मरणीय
माननीय नेता जी तो पहले ही कह दिये हैं “ लड़का लोग से गलती हो जाया करती है”
विषय से भटक न जायें इसलिये आपको वापिस बाली लिये चलते हैं. वहाँ के समुद्र
तट, वहाँ के नृत्य, नाइट लाइफ. हम बाली से पर्यटन
के क्षेत्र में बहुत कुछ सीख सकते हैं. ऐसे
में छोटा राजन सीखा-सिखाया हमें एक्स्पर्ट मिल रहा है अत: उसके तज़ुर्बे का फायदा उठाना
है. इसे कहते हैं एफ.डी.आई. ( फॉरेन डाइरेक्ट इनवेस्टमेंट) या ये पी.पी.पी. हुआ ?
हमारे यहाँ पहले भी सर चार्ल्स शोभराज उर्फ बिकिनी किलर नामक एक पर्यटन विशेषज्ञ हुए
हैं.
छोटा राजन या छोटा शक़ील से
ये कदापि नहीं समझ लेना चाहिये कि ये किसी भी मामले में ‘छोटे’
हैं. ये छोटा तो एक बड़े के लिये आदरसूचक के तौर पर रखा गया है. ये बेकार का विवाद है
कि छोटा राजन को पकड़ना आसान था. जी नहीं. यदि ऐसा था तो पिछले 20 साल से क्यों नहीं
ये आसान काम सम्पन्न हुआ. ऐसा कहना भाऊ के पुण्य प्रताप को,
भाऊ के साहस, मान-सम्मान कीर्ति को,
क्षमता को कम आँकना है. छोटे लोग, छोटी सोच. बड़ा सोचने का,
बड़ा करने का. अब ये क्या बात हुई कि छोटा राजन को पकड़ना आसान दाऊद को पकड़ना मुश्किल.
ये कम्पैरिजन क्यों. मैं महापुरुषों की ऐसी किसी भी तुलना के खिलाफ हूं. सबका अपना
अपना रोल, अपना अपना क्षेत्र, अपनी अपनी तकनीक और थियेट्रिक्स
होती है. सुल्ताना डाकू की तुलना डाकू मानसिंह से नहीं की जानी चाहिये. पुतली बाई अपनी
जगह थीं फूलनदेवी जी अपनी. जब दाऊद जी इंडिया आ जायेंगे तो आप क्या कहेंगे ये तो आसान
था अब जैक स्पैरो ( पाइरेट्स ऑफ कैरिबियन) को पकड़ के दिखाओ.
मैं भी क्या किस्सा ले कर बैठ
गया. अरे मेरा स्विम वियर कहाँ है .... ?