Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Saturday, November 25, 2023

व्यंग्य: पप्पू बनाम पनौती

 


 

           मेरी पत्नी जी मुझे शादी के बहुत साल तक पप्पू समझती रहीं हैं। फिर धीरे-धीरे उन्हें समझ आया ये आदमी आखिर इतना पप्पू भी नहीं। यद्यपि अभी भी मुझे वो अपने से कम, बहुत कम समझदार समझती है। मैं खुश हूँ। इतनी बड़ी उपलब्धि मेरे लिए पर्याप्त है। पर मेरी खुशी शॉर्ट लिव्ड थी अब उनका मेरे बारे में ख्याल यह है कि मेरी ज़ुबान काली है। जिन्हें न पता हो उनकी जनरल नोलीज़ के लिए बता दूँ कि काली ज़ुबान का मतलब है वह आदमी जिसका कहा खासकर निगेटिव बात सच हो जाती हो अर्थात मनहूस बोले तो पनौती। पर न जाने क्या सोच कर वह मुझे पनौती नहीं बुलाती इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ। मेरी  उम्र तक आते-आते हम लोग छोटी-छोटी चीजों में खुशियों ढूंढ लेते हैं। यह क्या कम है कि वह मुझे पनौती नहीं बुलाती। यह क्या कम है कि वह मुझे इन सबके बावजूद दोनों टाइम खाना बना खिलाती है। मेरी फिक्र करती है। मुझे यदा-कदा डांट देती है कि मैं क़ायदे के कपड़े पहनूँ। फीडबैक देती है यह शर्ट मुझे सूट नहीं करती आदि आदि।

 

            यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि पप्पू और पनौती इन दोनों में से कौन सा सम्बोधन बेहतर है। एक तरह से समझो मुझे चॉइस है। अब आप ही बताओ क्या चूज़ किया जाये। देखिये पप्पू हमारे देश में एक प्यार भरा निक-नेम है। ऐतहासिक तौर पर छोटे बच्चे को प्यार से पप्पू कहते रहे हैं। दूसरे शब्दों में यह आज के बेबी का हिंदीकरण है। आजकल दंपति एक दूसरे को बेबी कह कर प्यार दर्शाते हैं। जहां तक सवाल पनौती का है, पनौती देश में, समाज में शुरू से ही निगेटिव टर्म रहा है। इसमें कुछ भी पॉज़िटिव ढूँढना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अतः अगर मुझे चुनना होगा तो मैं चाहूँगा कि मेरी पत्नी जी मुझे पप्पू समझे, कहे, प्रचारित करे कोई वान्दा नहीं। पर पनौती ? प्लईईईईज़ नो ! यू नॉटी !

 

व्यंग्य: एक फोन कॉल और बस

 


 

               एक ज़माना था जब किसी को नर्वस करने के लिए इतना कहना ही काफी होता था “भाई का दुबई से फोन है...” भाई ने पाँच खोखे का कहा है... अतः सब जानते थे भाई बोले तो क्या ? भाई सुनते ही बंदे को अपने भाई-बहन का रोता हुआ चित्र सामने आ जाता था। मोटा मोटा दो ही तो भाई हैं एक दुबई वाले और दूसरे मुंबई वाले अपुन के सलमान भाई। सुना है अब तो उन्होने फिल्म भी बनाई है ‘…किसी का भाई

 

               आजकल आपके फोन पर वांटेड कॉल से कहीं अधिक अनवांटेड कॉल आते हैं। आप उस दृश्य की कल्पना करिए जब रूस और यूक्रेन का भीषण युद्ध चल रहा है। युद्ध क्षेत्र में तोपची ने निशाना साधा हुआ है। तोप में गोला डाला जा चुका है। तोप ज़ोर से घूमी जैसा आपने फिल्मों में देखा होगा। और जैसे ही तोपची ट्रिगर दबाने को था मिलिटरी का वायरलेस ऑपरेटर दौड़ा दौड़ा आया और चिल्लाया वही फिल्मी स्टाइल में “हाल्ट... हाल्ट... ऑपरेशन एबोर्ट ... ऑपरेशन एबोर्ट...  सर दिल्ली से फोन है” ऑपरेटर ने बात की और घिघियाता हुआ सारा टाइम बस यस सर ! यस सर ! ही कहता रहा और तोप से गोला निकाल कर, तोप को त्रिपाल से ढँक कर लंच-ब्रेक पर चला गया। बाद में पता चला कि दिल्ली से नेता जी का फोन था और नेता जी के कहने पर उसने अब युद्ध रोक दिया है। कोई मखौल नहीं है। नेता जी ने स्वयं सीधे-सीधे उस से बात की है वो नेता जी का कहा नहीं टाल सकता। जान का क्या है रहे या न रहे। नेता जी की बात नहीं टाली जा सकती। तो भाइयो बहनों देखी आपने एक फोन कॉल की ताकत। सब इस बात पर निर्भर करता है कि लाइन के दूसरे छोर पर कौन है। 

 

              आजकल दिल्ली की हॉट लाइन किस-किस ने नहीं जुड़ी हुई। चाहे वो अमरीका हो, रूस हो, यूक्रेन हो, फिलिस्तीन हो या इजरायल हो। सब जगह दिल्ली के फोन कॉल का डंका बज रहा है। बस इस फोन में एक ही प्रॉबलम है इसमें केवल आई.एस.डी. सुविधा है। लोकल कॉल नहीं लगते।  

Sunday, November 12, 2023

व्यंग्य: बेटा ! नीचे आओ

 


               बेटा! ये अच्छा नहीं है। बेटा ये तार इसका बिगड़ा हुआ है बेटा! आप नीचे आइये। बेटा ये गरीबी की रेखा है इसके ऊपर कहाँ चढ़े जा रहे हो। बेटा आप नीचे आइये मैंने आपके लिए 5 किलो अनाज का प्रबंध करने का वादा कर दिया है। बेटा ये तार इस सरकार का बिगड़ा हुआ है। आप अगली बार फिर हमें वोट देना हम सब ठीक करा देंगे। बेटा आप नीचे आइये अगली बार जीतने के बाद मैं खुद आपको ऊपर ले कर चलूँगा। बेटा अभी देर है। अभी से गरीबी की रेखा के ऊपर मत चढ़ो। मैं हूँ न। मैं आपको ऊपर ले जाऊंगा। जहां जितने ऊपर आप कहोगे। ये मेरे गारंटी है बेटा। यकीन नहीं तो कोविड में पिछले साल मरने वालों के परिजनों से पूछ लो। मैं उन्हें डाइरेक्ट ऊपर ले गया था कि नहीं।  कुछ तो इतनी जल्दी में थे और इतनी भीड़-भाड़ किए थे कि उन्होने वेट ही नहीं की और रेत और नदी के किनारे ही समाधि ले ली। बेटा आप नीचे आइये। आप इतना ऊपर चढ़ जाएँगे तो मुझे वोट कौन देगा। अच्छा है आप जितना नीचे रहो।  देखो मेरे फोटो वाला बैग शायद आपको मिला नहीं। मैं आपको बैग दिलाऊँगा। आप अपना आधार कार्ड लेकर केंद्र पर आना। बेटा अब नीचे आ जाओ। तुम्हारी और मेरे सेहत के लिए यही अच्छा है कि बेटा आप नीचे ही रहो। आप जितनी नीचे रहोगे उतनी मेरी सरकार मजबूत होगी। आपका ये ऊपर चढ़ना किसी को क्या मुझे ही पसंद नहीं आ रहा है। बेटा! आप नीचे आओ। डेमोक्रेसी में ये ठीक नही कि आप इतने जल्दी इतना ऊपर चढ़ जाओ। बेटा अभी इलेक्शन है अभी आप नीचे ही रहो। आप ऊपर चढ़ गए तो मैं प्रॉमिस क्या करूंगा। गारंटी किस बात की दूंगा। बेटा आप नीचे आइये और नीचे ही रहिए। पाँच किलो अनाज का मेरे मुस्कराती फोटो वाले बैग हर महीने आपको यूं ही मिल जाया करेगा।

 

      बेटा ! नीचे आओ और नीचे ही रहो! मेरे रहते आपको जीवन में ऊपर चढ़ने की सोचना भी नहीं चाहिए।

Saturday, November 11, 2023

व्यंग्य: सत्य से असत्य की ओर

 


         हे भगवान मुझे सत्य से असत्य की ओर ले चलो। जितनी जल्दी हो ले चलो। लोग मुझ से आगे, बहुत आगे निकाल गए हैं। मैं इस सत्य के कारण बहुत पिछड़ गया हूँ। कभी-कभी ऐसा लगता है भगवान मुझे मार्गदर्शक मंडल में डाल कर भूल गए हैं। तभी से मैं तरक्की का 'मार्ग' ढूंढ रहा हूँ। ये सत्य मुझे स्कूल से ही विचलित किये हुए है। मास्साब ने मुझे बहुत पीटा है। जो हुआ सच-सच बता देता और खूब मार खाता, शरारत किस किस ने की  बताता तो डबल पिटाई होती। मास्साब तो संटी मारते ही, वे सहपाठी भी कभी आधी छुट्टी में कभी पूरी छुट्टी के बाद खूब पीटते। सत्य के चलते डबल पिटाई होती।  इसी को संतन ने कहा था:

अब 'रहीम' मुसकिल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम

सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलै न राम


          पर ये रहीम का टाइम नहीं है। अब साँचे से न तो जग मिलता है ना ही राम। आगे आप खुद देख लीजिये समझदार हैं। यही सब न चल रहा है। असत्य से जग, पूरा का पूरा जग आपका है। राम भी अपने समय से सोने के हिरण के पीछे ही हैं। यदि आप हैं तो बुरा क्या? दरअसल असत्य के मार्ग पर चलते हुए सोने के कितने ही छोटे-बड़े हिरण अपने फार्म हाउस के गार्डन में और ड्राइंग रूम में रख सकते हो। 


                नौकरी में भी बॉस को सच-सच बता देना महंगा, बहुत ही महंगा पड़ा है। जहां अन्य स्टाफ कहते "वाह वाह बॉस ! क्या स्कीम है। भूतो न भविष्यति। गजब का दिमाग है सर। ब्रिलियंट आइडिया" कहते।  मेरे बारी आती मुझसे पूछा जाता, मैं सत्य कह देता  “स्कीम भी बेकार है और आप बेवकूफ हैं।“ बस रिपोर्ट खराब।


तुम प्रमोशन की पूछे हो ग़ालिब ?

बंदे को सालों से इंक्रीमेंट नहीं मिले


           ऐसे ही सच बोल-बोल कर मैंने न केवल बॉस लोगों को बल्कि अपने लगभग लगभग सभी सहकर्मियों को भी अपने खिलाफ कर लिया। कोई मेरे साथ कभी कहीं ख़ड़ा नहीं होता। लोग बाग मुझे शक की नज़र से देखते। मुझे बिलकुल भी भरोसे लायक नहीं समझते। कोई मुझे ऑफिस गॉसिप का कुछ नहीं बताता। इस आदमी का क्या भरोसा कहाँ क्या बक दे।


ऐसे ही जीवन के अन्य क्षेत्रों में लोग मुझसे विमुख होते  गए। धीरे धीरे सब नाते रिश्तेदारों ने मुझसे मेल जोल कम कर दिया। इस आदमी का क्या ठिकाना इसे कुछ बताओ कल उसी को बता देता है।  हम में झगड़ा लगवाना ही इसका मेन काम है।


                 रहीम जी ने पहले यह भी कहा था “रहिमन पानी राखिए...पानी बिन न ऊबरे...” तब पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध था अत: लोग 'राख' सकते थे। अब नहीं। अब हम टैंकर, जार और मिनरल वाटर से काम चला रहे हैं वह भी नक़ली है। अब मुझे 'उबरने' की कोई आरज़ू नहीं है। अब तो सर जी ! आकंठ डूब जाना चाहता हूँ असत्य के लहलहाते सागर में मुझे तो चुल्लू भर ही दरकार है।


           रहीम जी ने सच ही कहा “...साँचे से जग नहीं...”  इसलिए हे भगवान मुझे तो आप सत्य से असत्य की ओर वंदे-भारत से भी तेज गति से ले चलो।


         मैं बहुत पीछे रह गया हूँ इस ज़िंदगी की रेस में।

Monday, October 30, 2023

व्यंग्य: स्टार प्रचारक

 जी हाँ मुझे बतौर प्रचारक आगामी चुनाव में  बुलाया नहीं जा रहा. यूं इस बार बड़ों बड़ों का नाम स्टार प्रचारक सूची में नहीं है। वे बड़े लोग हैं।  हिमालय-विमालय जा सकते हैं।  मैं हिमालय तो नहीं जा सकता। अलबत्ता बाल-बच्चों को लेकर ग़म गलत करने पड़ोस के ‘हिमालय-मॉल’ में पिज्जा खाने चला गया। पार्टी में वरिष्ठों (बूढ़े नहीं) की अनदेखी नहीं करनी चाहिये। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मुझे मार्गदर्शन मण्डल में डाल दिया गया हो। यूं मैंने कई बार इत्तिला भिजवाई कि इन दिनों मैं खाली हूं, देश के अन्य नौजवानों की तरह बेरोजगार हूं। पार्टी चाहे तो चुनाव प्रचार के लिये, प्रचार सभाओं में मेरी ओज़मयी वाणी और लटकों-झटकों का इस्तेमाल कर सकती है। दरअसल पहले पार्टी में एक नेता बाकी सब स्वंयसेवक होते थे। अब तो बहुत कैटेगरी होगईं हैं। उसी में से एक है स्टार प्रचारक। सो साब हाई कमांड के  न रेंगनी थी, न रेंगी कान पर जूँ। अब देखना नतीज़ा। मैंने बहुतेरा कहा था मैं पिछली बार की तरह आप की शान में कवितायें सुनाऊंगा. प्रतिद्वंदी की हास्य रस की चुटकियों से ऐसी-तैसी कर छोड़ूंगा, पर नहीं, पता नहीं क्यों किसी को इस बार ये आइडिया भाया नहीं और बात–बात में मेरा ही मखौल उड़ा दिया यह कह-कह कर कि “वाट एन आइडिया ?”

 

                   हमने तो यहाँ तक कह दिया है कि आप को कविता-कहानी का शौक़ नहीं? कोई  बात नहीं! हम ‘विरोधी’ खेमें में जा के अपनी चुनिन्दा कविताएं और जोक्स सुना आता हूं।दोनों में आजकल वैसे भी फर्क कहां रह गया है। जोक को लय में सुना दो हास्य रस की कविता बना दो।  अपने वोट नहीं पड़ते न पड़ते ससुर विरोधियों के वोट तो कटते। वो क्या कहते हैं ‘अटैक इज़ द बेस्ट डिफेंस’. जब हमें पक्का हो गया कि इस बार यहाँ दाल नहीं गलेगी तब हम भी ‘अंडर ग्राऊंड’ हो गये. कनसुआ लेते रहे कि कोई अब आये ! कोई अब पुकारे ! हमें बूझता हुआ आए “चलिये हाई कमांड ने अरजेंट बुलाया है” मगर न जी ! न कोई आना था, ना आया। अब करते रहना चिंतन-शिविर में अपनी हार पर मनन-चिंतन। दाल से याद आया आपने दाल का ये कीया क्या ? दाल को ड्राई फ्रूट बना दिया।

 

       आरक्षण पर आपको कहना चाहिये 100% आरक्षण होगा, आप उल्टा बोल दिये कि इसकी समीक्षा करेंगे। सब जानते हैं  समीक्षा आप बढ़ाने को तो करेंगे नहीं ज़रूर से ज़रूर घटाने को ही करेंगे। आप को कहना चाहिये था 100% का 100% भारतीयों के लिये आरक्षण रहेगा। भारत तो पूरा का पूरा गरीब, पिछड़ा हुआ है. इसमें सब ही तो पिछड़े, दलित और महादलित हैं. अत: अब कोई दलित रहेगा न महा-दलित सब भारतीय हैं. पॉपुलेशन की गिनती दुबारा से कराई जाएगी. तब तक न कोई क्रीमी-लेयर न कोई नॉन-क्रीमी लेयर. सब सपरेटा है.

 

           और अंत में ये गाय-चीता से ऊपर उठिये. ये गाय-बैल में कुछ नहीं रखा है सिवाय फज़ीहत के।  कॉन्ग्रेस क्या पागल है जो अपना चुनाव चिन्ह गाय-बछड़ा से बदल कर ‘हाथ’ रखी। जिनको बीफ खाना है खाएं और जिसे पालना है पाले। ‘नॉन इशू’ को ‘इशू’ बना दिया। आपके जितने छुटभैय्ये नेता लोग ‘लूज़ टॉक’ करते हैं सबको बुलाकर कह दीजिये “खामोश....जली को आग ..बुझी को राख कहते हैं...” वगैरा वगैरा।

 

           आप सहयोगी दल भी तो ऐसे ऐसे रखे हैं कि लोग बाग हँसते हैं। अब क्या बताया जाये। गलती तो आप कर दिये। अपने साथ कुछ पढ़े-लिखे लोग रखिये, जानकार लोग रखिये, समझदार लोग रखिये. अब क्या हमारे मुँह से ही कहलवाएंगे कि हमें रखिये।

 

Sunday, October 29, 2023

ऊंट

 

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ऊंट रे ऊंट तेरी कौन सी कल सीधी, ऊंट के मुंह में जीरा, पूरी ऊंटनी हो रही है, वक़्त खराब हो तो ऊंट पर बैठे आदमी को कुत्ता काट लेता है, ऊंट की चोरी और छुप-छुप के आदि कितने ही मुहावरे और कहावतों से हम सब परिचित हैं। रेगिस्तान के इस जहाज का भारत में आगमन सच में रेगिस्तान से ही हुआ था। ऊंट हिंदुस्तान का मूल निवासी नहीं है। क्या आपको पता है इसकी आँखों में पलकों की तीन परत होती हैं बोले तो तीन पलक होती हैं और पलकों के बालों की परत के भी दो सेट होते हैं। ये सब इसे रेगिस्तान की रेत से बचाता है।
ऊंटनी का दूध स्वास्थ्य के लिए बहुत मुफीद बताया जाता है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट होता है और आपके बॉडी-सेल्स को नुकसान से बचाता है। विटामिन और मिनरल से भरपूर यह बहुत रिच होता है। आधा लीटर 100/- की दर से बिकता है अमूल इसे 100/- लीटर बेचता है.

खाने वालों ने इसे भी नहीं छोड़ा इसका मीट (कबसा) बहुत रिच होता है। अरब देशों मे विशेष अवसरों पर इसको पूरा का पूरा रोस्ट करके मेहमानों की आवभगत की जाती है। यह लो-क्लोस्ट्रल और लौह तत्व से भरपूर होता है। इसकी खाल को सजावट के काम में लिया जाता है। इसकी हड्डी से आभूषण भी बनाए जाते हैं। इसके मूत्र में मेडिसनल क्वालिटी बताई जाती हैं। पुष्कर में (अजमेर के करीब) पशु मेला अक्तूबर-नवंबर में इनका मेला लगता है। इसकी कीमत 75 हज़ार से एक लाख तक होती है। यह 6 से 7 महीने तक बिना पानी पिये रह सकता है। यह एक बार में 200 लीटर पानी पी सकता है, वह भी बस तीन मिनट में। इसका गर्भकाल 12 से 14 महीने तक होता है। जन्म के समय बहुधा यह एकदम सफ़ेद रंग का होता है, अरबी ज़ुबान मे ऊंट के 160 नाम हैं।

हिंदुस्तान में यह एक कूबड़ व दो कूबड़ वाले होते है, पायी जाने वाली ऊंट की कुछ प्रमुख नस्लें हैं मालवी, मारवाड़ी, मेवाड़ी, मेवाती, बीकानेरी, जैसलमेरी, जलोरी, कच्छी, खरारी लगभा एक दर्जन नस्लें हैं मगर प्रमुख चार हैं बीकानेरी, जैसलमेरी, कच्छी और मेवाड़ी। बीकानेरी ऊंट की नस्ल उम्दा मानी जाती है।

हिंदुस्तान के 80% ऊंट राजस्थान में पाये जाते हैं, ये सवारी के काम आते है और सामान इधर से उधर ले जाने में काम आते हैं। ये 500 किलो तक वज़न उठा सकते हैं। यह गुस्सा होने/लड़ाई होने पर जिससे गुस्सा है/ दुश्मन पर बहुत दूर तक थूक सकते हैं। ऊंटनी बहुत ईर्ष्यालु होती हैं। ऊंट मूलतः इमोशनल होता है। इनकी संख्या तेजी से घट रही है अब लगभग ढाई-तीन लाख ऊंट भारत में रह गए हैं। जिसमें अधिकतर राजस्थान में हैं और बाकी गुजरात में। हिंदुस्तान में ऊंट अरब आक्रमणकारियों के काफिले के साथ आए 8वीं सदी में आए थे। ऊंट की औसत आयु 40 से 50 साल होती है। इसकी रफ्तार औसतन 40 किलोमीटर प्रति घंटा होती है यद्यपि यह 65 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकता है। संसार में सोमालिया में 60 लाख से ऊपर ऊंट हैं। दूसरे नंबर पर सूडान आता है जहां 30 लाख से ऊपर ऊंट हैं।

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Monday, October 16, 2023

व्यंग्य पुलिस पुलिस होती है

 


 

          यह आगरा में गत सप्ताह चल रही रामलीला की घटना है। यूं आगरा में क्या कुछ नहीं हो सकता और होता भी है।  वहाँ प्रेम की अमर निशानी ताजमहल है। मुग़लों ने कुछ सोच-समझ कर ही न आगरा को अपनी राजधानी बनाया होगा। अलबत्ता वो अलग बात है कि वहाँ का पागलखाना भी खूब ही मशहूर है। पर अब तो इतने पागल जगह-जगह शहर- शहर हो गए हैं और उनके लिए कोई पागलखाना भी नहीं।   

 

          तो जी रामलीला चल रही थी। रामलीला वालों ने स्थानीय विधायक महोदय को चीफ-गेस्टी में बुला रखा था। अब विधायक हैं उनका यह कर्तव्य है कि अपने निर्वाचन  क्षेत्र के समारोहों की शोभा बढ़ाएँ। और फिर चुनाव भी तो नज़दीक ही हैं। दृश्य सीता के अपहरण का चल रहा था। यकायक बंदोबस्त में लगा एक सिपाही स्टेज पर चढ़ गया और उसने पुलिसिया अंदाज़ में डंडा लहरा के रावण को ललकारा “मैं सीता माता को नहीं ले जाने दूंगा” रावण सिपाही को जानता था। उसे सुन कर पसीने आ गए। वह बेचारा अपने डायलॉग ही भूल गया। इधर हमारे सिपाही महोदय तो डट गए और ज़िद पकड़ ली कि वह हनुमान भक्त है और उसके रहते, उसकी आँखों के सामने कोई सीता माता का अपहरण कर ले जाये ये उसे कतई मंजूर नहीं। “धिक्कार है ऐसी भक्ति पर और ऐसी सिपाहीगिरी पर अगर मैं सीता माता का अपहरण अपनी आंखों के सामने होता हुआ देखता रहूँ”। विधायक महोदय ने उस सिपाही को समझाने की कोशिश की। इस इलाके में उनके अच्छे खासे वोट हैं। लेकिन सिपाही टस से मस न हुआ और मरने-मारने पर उतारू हो गया। ऐसे में रावण ने पतली गली से कट लेने में ही भलाई समझी नहीं तो राम ने तो नाभि में तीर बाद में मारना है  इस पुलिस वाले ने तो यहीं मार-मार के नाभि को पहचानने लायक नहीं छोड़ना। रावण नकली है, पुलिस वाला असली। वो भी खालिस हनुमान भक्त। एक गदा प्रहार और दस के दस सिर स्टेज पर इधर-उधर लुढ़कते डोलेंगे। सिपाही के ऑफिसर को तलब किया गया तो उन्होने भी उसे समझाने की कोशिश की लेकिन सिपाही तो अड़ गया था बोला “साब ! आप हमेशा बोलते हो पुलिस लेट पहुँचती है। आज वारदात से पहले मैं यहाँ घटना स्थल पर ही हूँ, बल्कि पूरी वारदात का चश्मदीद गवाह हूँ तो मैं कैसे ये सब हो जाने दूँ। प्रोमोशन के वक़्त आप कह देते हो हरीशचंद कुछ कर के दिखाओ ! कई बड़ा केस सुलझाओ ! आज इतना बड़ा केस हाथ आया है और आप आ गए भांजि मारने।

         सीता माता का रोल कर रहा लड़का अलग नर्वस था। वह आज कहाँ फंस गया। उसे वैसे ही पुलिस-कचहरी से डर लगता है।

 

        लास्ट रिपोर्ट आने तक सुना है किसी ने पूरी वीडियो बना कर बड़े अफसरों की सेवा में किसी दूत के हाथों वायु-गति से पठा दी। सिपाही महोदय सस्पेंड कर दिये गए हैं पर उन्हें यह परम-संतोष है कि उन्होने सीता माता का अपहरण नहीं होने दिया। पवन-पुत्र कितने प्रसन्न होंगे यह वही जानता है। यह भक्त और भगवान के बीच की बात है।  इसमें नौकरी क्या ? और भला सस्पेंशन क्या ?  ये वही लोग हैं जिनके चलते मीरा हँसते-हँसते विष-प्याला पी गई थी। क्या वह थोड़े दिनों का सस्पेंशन नहीं काट सकता। इस पुलिस की श्रंखला में कोई तो उसके जैसा हनुमान भक्त होगा जो उसकी भक्ति की लाज रखेगा। नहीं तो गिरिवर तो उसे गिरि लंघवा ही देंगे।

        भूत पिशाच निकट नहीं आवे

        महावीर जब नाम सुनावे

        नासे रोग हरे सब पीरा

        जपत निरंतर हनुमत वीरा    

Sunday, October 15, 2023

व्यंग्य: माई एम्बिशन इन लाइफ

 


पहले मैंने सोचा हिन्दी का लेख है तो इंगलिश शीर्षक क्यों? फिर लगा कि स्कूल में भी तो इसी टाइटल से निबंध लिखते थे कारण कि हिन्दी में तो ऐसे किसी निबंध का अभ्यास कराया नहीं गया। वहाँ तो चलता था कर्म किए जा फल की चिंता मत कर या फिर रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पी वो भी घड़े का, फ्रिज/कूलर का नहीं।  ये एम्बीशन हिन्दी वालों के साथ चलता नहीं है।  जहां “संतोष धन” के आगे बकिया धन धूरि समान बताए गए हैं। 

 

     देखिये हम सब की एम्बिशन वक़्त बेवक्त अदलती बदलती रहती है। अब मुझे ही देख लो कभी आइसक्रीम वाला बनाना चाहता था तो कभी इंजन-ड्राईवर, कभी जासूस तो कभी एक्टर। कभी लेखक तो कभी एम.पी.।


एम.पी. बनने के लिए दरकार है कि मेरी इलाके में धाक हो, चार लोग मुझे भली-भांति जानते हों।  वैसा वाला जानते हों जिसमें उन्हे खुद ही पता हो कि मेरा बाप कौन है ? मैं कौन हूँ ?  शरम से या डर से जिधर से निकाल जाऊँ उधर से लोग “भैया जी नमस्ते !, भैया जी प्रणाम, भैया जी पैरी पैना पूरे रूट पर चलता रहे। विधायक बनूँ तो ऐसा कि पक्ष हो या  विपक्ष दोनों के हाई कमान टिकिट लिए पीछू-पीछू फिरें। नित नई उपाधियाँ मिलती रहें, युवा-नेता’, युवा-हृदय सम्राट’, युवकों की आशा आदि आदि। अगर एम.पी. बनूँ तो कैसा बनूँ ? इस पर मैंने बहुत विचारा। सब देख-भाल कर, स्टडी  कर के मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि यदि एम.पी. बनूँ तो रमेश जी जैसा। संसद के अंदर-बाहर दोनों जगह अपनी फुल फुल बकैती चले। किसी को भी गरियाऊँ मेरे मर्ज़ी। हाई- कमान का वरद हस्त मेरे ऊपर सदैव बना रहे। श्री लक्ष्मीजी सदैव सहाय टाइप।  मैं गरियाते-गरियाते नित नई जिम्मेवारी नए-नए ऊंचे-ऊंचे पद से नवाजा जाऊँ।  तुम इंकवारी बिठाओ मैं कहूँ “अभी फुरसत नहीं”। मेरा कोई कुछ भी बिगाड़ न पाये। रातों-रात मेरी पूछ बढ़ जाए। हाई कमान की परीक्षा में मेरी डिसटिंकसन आए। आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाता जाऊँ। एक स्टेज ऐसी आ जाये जहां सिर्फ नाम ही काफी हो और अच्छे-अच्छे दानिश्वर लोग मेरे ताप से रोने लग पड़ जाएँ। रमेश नाम है मेरा ....   

Friday, October 13, 2023

दुनियाँ रंग-रंगीली

 


 

         रेलवे में आने से पहले मैं टूरिज़्म क्षेत्र से जुड़ा हुआ था। तब बहुत खुशी हुई जब पता चला कि रेलवे भी टूरिज़म के क्षेत्र में एक कार्पोरेशन खोलने जा रही है। मैंने इधर-उधर पता लगाया और एक सज्जन जो इस काम को उच्च स्तर पर देख रहे थे उनसे मिला वे बहुत खुश हुए और बहुत आशावादी साउंड कर रहे थे। मोटा-मोटा अखबार से पता चल रहा था कि रेलवे स्टेशनों के ऊपर इतनी जगह हैं वहाँ होटल खोले  जाएँगे। केटरिंग तो रेलवे पहले से कर ही रही है, बस लोकल टूरिज़्म देखना है। और स्टेशन के ऊपर होटल के कमरे बनाने हैं। आखिर रिटायरिंग रूम और गेस्ट हाउस तो रेलवे प्रचुर मात्रा में पहले से ही सुचारू चला रही है।

           जब बहुत दिनों तक  कोई आहट नहीं हुई तो पता चला कि जो सज्जन इस प्रोजेक्ट को देख रहे थे (जिनसे मैं मिला था) वो अपनी एक्सटैन्शन का कार्यक्रम चला रहे थे वो मिली नहीं। सो प्रोजेक्ट जहां था वहीं ठप्प होकर रह गया। मंत्री महोदय ने, सुनने में आया कि यह कह कर प्रेजेंटेशन में ही अपनी अस्वीकृति दे दी  “पहले रेल तो ठीक से चला लो”।

 

              कुछ समय बाद फिर सुगबुगाहट होनी शुरू हुई। एक उच्च अधिकारी से चर्चा हुई वह आँख खोल देने वाली थी। पता चला कि इसमें रेलवे कुछ नहीं करेगी सब काम ठेके पर दे दिया जाएगा।  आप तो बस थानेदार बन कर पैसे उगाही करते रहिए। उस चक्कर में जगह-जगह रेलवे स्टेशन पर फेन्सी रेस्टोरेन्ट खुल गए। रेलवे से हर बड़े स्टेशन पर कोहनी मरोड़ कर मौके की जगह कबाड़ ली गईं। भगवान जाने कौन आबंटन कर रहा था हमें तो पता तब चलता जब किसी रेस्टोरेन्ट के उदघाटन में हमें बुलाया जाता। होटल-वोटल तो क्या खुलने थे। हाँ मगर नई दिल्ली स्टेशन अजमेरी गेट साइड पर एक होटल खुला तो उम्मीद जगी। फिर यकायक पता चला कि वो ठेके पर दे दिया गया और अब रेलवे का उस से कुछ लेना देना नहीं। फिर बारी आई मण्डल और ज़ोन पर चलने वाले रिटायरिंग रूम और गेस्ट हाउस की उन सबको प्राइवेट को दे दिया गया। अब काउंटर पर कोई विनम्र, गंभीर, कायदे की ड्रेस पहने, रेलवे कर्मचारी नहीं बल्कि एक अर्ध-शिक्षित बेरोजगार छोकरा (डेली वेज वाला), पान मसाला खाते हुए आप से मुखातिब होता।

जब इतने से बात नहीं बनी तो टिकिटिंग भी अपने हाथ में ले ली और सॉफ्टवेयर लगा कर बुकिंग हम करेंगे।

 

           अब खुद कुछ करना धरना नहीं है बस नाल खानी है। प्लेटफॉर्म पर स्टाल कबाड़ लिए कि हम आबंटित करेंगे। अब वहाँ भी मल्टी नेशनल और हाई एंड ब्रांड ही दिखते हैं। वो पहले जैसे ठेले पर, खोमचे पर चीजें बेचने वाले नहीं हैं।  जहां हैं भी वो अपने पेरेंट कंपनी की वस्तुएँ घूम-घूम कर बेच रहे हैं। खाने की क्वालिटी और लिनन की बात ना ही करें तो बेहतर है।

 

     एक बार यात्रा में भोजन इतना खराब था कि मैंने कंपलेंट-बुक मांगी तो वो डेली-वेज टाइप लड़का बोला “आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप रेलवे से हैं, मैं ताज़ा बना देता”। गोया कि यह खराब भोजन मेरी अपनी गलती है। इस सारे प्रकरण का पटाक्षेप भी कम रोचक ना था, इंचार्ज़ अधिकारी ने मुझ से सहानुभूति रखते हुए तुरंत एक्शन लेनी की बात कही और लिखित में शिकायत मांगी। मैंने तुरंत भेज दी।

 

         शिकायत का निवारण तो खैर क्या होना था मगर बाद में पता चला कि मेरी शिकायत दिखा-दिखा ठेकेदार को डरा-धमका कर उन्होने महीनों खूब अपनी सेवा कराई। बस यही है सारांश इस सारी केटरिंग और टूरिज़्म बैताल पच्चीसी की कथा का।     

Friday, September 22, 2023

व्यंग्य ‘झकास’ नहीं बोलने का!

 


 

       लो जी ! अब कोर्ट ने ऑर्डर कर दिया है कि झकास बोलने का नहीं। मतलब आपको नहीं बोलने का है अभिनेता महोदय बोल सकते हैं बोले तो फकत वो ही बोल सकते हैं ये नहीं कि मैं तुम बाकी लोग झकास बोलें।

 

          मैं सोच रहा हूँ अब अगर यही चलन चल पड़ा तो सोचो बेटा इधर आपने मुंह खोला नहीं और उधर आप पर किसी न किसी अभिनेता ने  मुकदमा लगाया नहीं। क्यों कि ऐसा कोई न कोई संवाद आपके मुंह से निकल ही जाएगा जिसके लिए आपको कोर्ट-कचहरी करनी पड़ सकती है जिसके लिए आप को मुंह छुपाए-छुपाए घूमना पड़ेगा और मुंह की खानी पड़ेगी। अब इस तरह के शब्द जैसे जिल्ले-इलाही, रिश्ते मैं तो हम तुम्हारे...चिनोय सेठ ! जिनके घर शीशे के बने हों... आपके पाँव देखे इन्हें ज़मीन पर मत उतारना... ऐसे कोई भी वाक्य बोलने से पहले चार बार सोचें। हमारी कोर्ट-कचहरी पर पहले से ही बहुत वर्कलोड है।

 

   सोचो ! अब इसको कोई बोल पाएगा या नहीं ? बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये... मेरे साथ ऐसा सलूक करो जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। मुंह खोलने से पहले बहुत सोचना पड़ेगा!

  

      अब बीवी को या प्रेयसी को आई लव यू कहने से पहले भी पप्पू-पेजर को सोचना पड़ेंगा कुछ करना पड़ेंगा ! आज कोई हम पर भारी पड़ेला है।

     

Wednesday, September 13, 2023

व्यंग्य: अन्सटोपेबल भारतीय

 


            अब मुझे फुल यकीन हो चला है कि हमें सनातनी होने से वो भी वैदिक कालीन भारतीय होने से कोई नहीं रोक सकता। इंडियन भले कभी स्टोपेबल रहे हों, हम अब भारतीय हो गएले हैं और वो भी सनातनी वाली किस्म के सो अब हम सही मायनों मेंअन्सटोपेबल हो गए हैं। हमें रोक सके, हमारी क्रिएटिविटी को रोक सके ये ज़माने में दम नहीं। अबे ! क्या बात करता है ? हम डेमोक्रेसी की मॉम हैं। कहीं कोई माँ से भी बहस करता है। जो करे वो नालायक। बस बहस खत्म।


             एशियन कप हमने कैसे जीता है ये बात अब खुल गई है। ज्योतिष ने हमारे एक-एक खिलाड़ी का पंचांग देख कर चयन किया है। बोले तो ठोक-बजा कर एक-एक मोती ढूंढ कर लाये हैं। यही एक बात है जो हमें राइवल टीम से अलग करती है। प्रतिद्वंदी अब भी वही घिसे-पिटे दक़ियानूसी फार्मूले पर काम कर रहे हैं यथा खिलाड़ी का स्टेमिना, उसकी बुद्धि-कौशल, उसका रेकार्ड, उसकी खेल में दक्षता आदि आदि।

 

          मेरा सरकार से विनम्र निवेदन है, निवेदन क्या आग्रह है कि ये यू.पी.एस.सी, आर.आर.बी, बेंकिंग भर्ती बोर्ड जे..., पी.एम.टी., CUET सब बंद किए जाएँ। बस अभ्यर्थी को अपनी जन्मपत्री सबमिट करनी होगी बाकी हमारा एक पेनल होगा ज्योतिषियों का। वे सब ठीक कर लेंगे। किसके सितारे बुलंद हैंकौन ईमानदार रहेगा, दक्ष रहेगा सब शीशे की तरह साफ। वे एक क्रिस्टल-बॉल ले कर बैठा करेंगे एक अंधेरे से कमरे में।

 

              जहां कठिनाई आएगी वे केंडीडेट के तिल आदि देख लेंगे, हस्त रेखाविशेषज्ञ हाथ की लकीर देख बता देंगे इसके हाथ में कितनी दौलत, शोहरतइज्ज़त लिखी है ये दिन भर में कितनी फाइलें क्लियर कर पाएगा। क्या ये फाइलों पर वक़्त ज़रूरत बैठ सकता है/सो सकता है या फिर इमरजेन्सी आए तो फाइलें जला सकता है। इस पर अग्नि भारी तो नहीं।

 

                     साथ ही पेनल पर फेस-रीडर रखे जाया करेंगे जो आपके माथे की लकीर देख कर पता लगा लेंगे ये जजमान कितने आगे तक जाएगा। ये असेट बनेगा अथवा लायबिलिटी। टैरो वाले भी अपनी-अपनी राय देंगे। उसी तरह न्यूमरोलोजिस्ट अपनी अपनी गणना करेंगे। जन्म तिथि और जन्म के समय से नाम के अक्षरों से। हस्त लिपि वाले अपने-अपने लेंस लेकर आएंगे।

 

                भाई साहब ! इन सबकी एक राय से उन मेधावी प्रतिभाओं की भर्ती होगी कि अव्वल तो उन्हें किसी ट्रेनिंग की ज़रूरत पड़ेगी नहीं और यदि थोड़ी बहुत हुई भी तो मामूली सा एक सेशन इन सब आचार्यों के साथ पर्याप्त है।

 

         आप तो ये सोचो इससे कितने समय और फंड्स की बचत होगी। वैसे तो इस चयन प्रणाली में गलती की कोई गुंजायश है नहीं फिर भी एक फ़ाइनल राउंड में आप शॉर्ट-लिस्टड केंडीडेट्स से उनके घर का नक्शा नत्थी करा सकते है। इसमें मुखर्जी नगर और ओल्ड राजिन्द्र नगर में पी.जी. में रहने वाले बच्चों को डरने की ज़रूरत नहीं क्यों कि नक्शा उनके परमानेंट निवास का मांगा जाएगा। यदि किसी कारणवश वह उपलब्ध नहीं हो तो वो अपने पैतृक निवास का, या माता-पिता से एफ़िडेविट करा सकते हैं कि केंडीडेट मकान के किस कोने में रहता, सोता-जागता था। रसोई किस कोण पर थी और इज्ज़त घर किस दिशा में था। इसका विस्तृत अध्ययन वास्तु के विशारद करेंगे और उसी आधार पर मेरिट बन जाएगी। फिर देखना आप ! भारत को सोने की चिड़िया बनने से दुनियाँ की कोई ताकत रोक नहीं पाएगी। सोने से यहाँ मेरा अर्थ गोल्ड से है न कि नींद से जिसमें डरावने सपने आते हैं।

 

Friday, September 8, 2023

व्यंग्य: चाहिए क्रॉस कंट्री वधू


 

मैं भी सोच रहा हूँ कोई तो बात होगी इन क्रॉस कंट्री दुल्हनों में। काश कोई सीमा हैदर, कोई हनी, पाकिस्तान छोड़, बांग्लादेश छोड़ सीधे हमसे आन मिले। सोचा जाये तो बहुत विन-विन सिचुएशन है जी। न कोई दहेज का टंटा न कोई जात-धर्म का पुंछेला। बस मैं “... मैं आया.. आया....”  गाते मैं एयरपोर्ट/बस-अड्डा/रेलवे स्टेशन अब जिस साधन से भी वो मेरे दिल की मलिका आ रही हैं पहुँच जाता उधर वो “..मैं आई.. आई..” कहती आ जातीं। बस फिर शुरू होता हमारा प्रैस से, चैनल से इंटरव्यू टाइप हनीमून।

 

    लोग छाती पीटते, रोते चिल्लाते रहें खासकर समाज के और देश के सेल्फ-अपोइंटिड ठेकेदार। अपुन तो वी.आई.पी. बने घूमेंगे-फिरेंगे। हम पर रातों-रात कितने मीम बन जाएँगे , कितने लोग तो हमारे बारे में बात कर-कर के ही वायरल हो जाएँगे। फेमस हो जाएँगे।

 

     देखो जी कोई ढंग का रोजगार है नहीं। देश में सब जानते हैं हम जैसे शिक्षित नौजवान मुहब्बत-वीरों की हालत। सो यहाँ तो कोई अपनी लड़की देने से रहा। आखिर कौन माँ-बाप अपनी लड़की को जान बूझ कर कुएं में धकेलेगा।


या अली !  अब तो मुहब्बत तेरा ही आसरा है। सुन रहे हो ! नेपाल..बांग्लादेश..पाकिस्तान..भूटान..श्रीलंका वालो!! या फिर तुम सब इस ग़रीब वीरू को टंकी से कुदा कर ही मानोगे ? देखो मैं सारे सिग्नल तोड़-ताड़ कर टंकी पर चढ़ गया हूँ।  इतने पर तो हेमा मालिनी ने न केवल फिल्म में बल्कि असल ज़िंदगी में भी धर्मेंद्र से शादी कर ली थी। मैं भी दिल की खातिर दिलावर बनने को तत्पर बैठा हूँ, दिलबर नज़र तो आए। 

 

कोटा सुसाइड का

 

         

हम अपने बच्चे को वो नहीं बनने देना चाहते जो वो बनना चाहता है हम बच्चे को वो बनाना चाहते हैं जो हम उसे बनाना चाहते हैं। मैं इंजीनियर नहीं बन पाया तो क्या ? मेरा बेटा/बेटी बनेगी। और दिखा देगी दुनियां को कि शर्मा जी/गुप्ता जी के बच्चे भी किसी से कम नहीं। चाहे उसमें इस लाइन का एप्टीच्यूड है या नहीं उससे क्या?

           भले अपनी ज़मीन खेत गिरवीं रखने पड़े या महाजन से औने पौने  रेट पर कर्ज़ा लेना पड़े। बस कोटा के सुसाइड्स का यही लब्बोलुआब है। बाकी सब सेंसलैस डिफेंस के असफल प्रयास हैं। हम अपनी संतान को इस रेस में पीछे नहीं रहने देंगे। इंजीनियर बना कर ही मानेंगे। एक मोठा पैकेज लेने का ही है उसे।

 

हमारी बेवक़ूफियों का आप अंदाज़ भी नहीं लगा सकते:

1.   सीलिंग पंखा हटा दो उसकी जगह टेबल फैन लगाओ। बच्चू अब लटक के दिखा

2.  पंखे की रॉड इतनी कमजोर बनाओ कि जरा से बोझ से ही टूट जाए और नीचे आ जाए।

3.  पंखे में रॉड की जगह स्प्रिंग लगाओ सो पूरा पंखा ही नीचे आ जायेगा।

 

             जितने भी कोचिंग केंद्र हैं उनकी भी मजबूरी है उनको अपना सेंटर चलाना है अतः भले हर हफ्ते दो टेस्ट लेने पड़े भले बच्चे दिन रात एक कर दें मगर सब कम है। दाखिले की पर्सेंटेज 100 पहुँच चुकी है। और मज़े की बात है कि यूनिवर्सिटी में कई कोर्स में दाखिला 100% पर फुल/बंद हो जाता है। तो ऐसी मार-काट वाली स्थिति में जो न हो थोड़ा है।

जानकार लोग बताते हैं कि कोटा के सुसाइड्स को मोटा-मोटा दो श्रेणी में रख सकते हैं:

 

क.  ग़रीब / निम्न मध्यम वर्ग के लोग अपनी मकान/ज़मीन अपना खेत रहन रख कर हाई रेट पर कोचिंग की मोटी फीस भरते हैं। यह बात बच्चे को पता होती है उस पर अपनी पढ़ाई के अलावा इस बात का भी बहुत दबाव होता है खासकर जब वह वांक्षित अंक वीकली टेस्ट में नहीं ला पाता। यह दबाव बढ़ता ही जाता है। और किस घड़ी ब्रेकिंग पॉइंट पर पहुँच जाता है पता भी नहीं लगता। यहाँ बच्चे की मदद को कोई नहीं। बच्चा डिप्रेसन में चला जाता है।

 

ख. जगह-जगह के स्कूल में/बोर्ड में अंक प्रणाली अलग अलग होती हैं। बच्चा अपनी बैकग्राउंड से कोटा का सामंजस्य नहीं बना पता है। जिस प्रकार की मेहनत वहाँ कराई जाती है वह बहुत निर्दयी किस्म की होती है। टेस्ट पर टेस्ट। कदम कदम पर आपकी परख हो रही होती है। अब पता नहीं आपके बच्चे की रुचि है भी या नहीं। उसकी उतनी क्षमता है भी या नहीं बस औरों की देखा देखी हम अपने बच्चे को झोंक आते हैं। फीस के पैसे देकर हम अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। आप देखते ही हैं न केवल कोचिंग सेंटर में बल्कि कॉलेज जाकर भी सुसाइड का दर सतत बना रहता है। अतः हमने अपने बच्चों को नया दौर फिल्म का घोडा बना दिया है।

 

             वक़्त आ गया है कि आप सोचें आखिर इंजीनीयरिंग ही एकमात्र क्षेत्र नहीं है और भी विषय हैं जिनमें चमकने की उतनी ही या अधिक संभावनाएं हैं। आखिर मात्र पैसा कमाना ही तो जीवन का मुख्य या एकमात्र उद्देश्य नहीं। सफलता को मनाना हमें आता है मगर अपने बच्चे को असफलता से सामंजस्य बिठाना भी सिखाएँ। उसे मशीन न बनने दें। उसे न बताएं कि पड़ोसी का बच्चा या फिर आपकी  रिश्तेदारी में फलां का लड़का या लड़की ने झण्डा लगा दिया है अब उसकी बारी है।

 

          आप अपने बच्चे के दोस्त नहीं बन सकते न बनें पर उसके दुश्मन तो न बनें  

Wednesday, August 9, 2023

व्यंग्य : फ्लाइंग किस

 

‘किस’ कैसी भी हो प्रेम, वात्सल्य और स्नेह की प्रतीक होती है।  वैज्ञानिक मानते हैं कि ‘किस’ की तुलना में हाथ मिलाने से कहीं अधिक जीवाणु ट्रांसफर होते हैं अतः हाथ मिलाना किस की अपेक्षा ज्यादा खतरनाक है। मगर वैज्ञानिकों की बात हम मानते कहाँ हैं। और गाहे-बगाहे किस करते फिरते हैं। शम्मी कपूर जी कि फिल्म का एक गाना है “किस किस किस किस को प्यार करूँ” कहते हैं कभी हिन्दी फिल्मों में ‘किस’ आम बात थी देविका रानी और हिमांशु राय की किस आजतक याद की जाती है। वो और बात है कि देविका-हिमांशु पति-पत्नी थे। किन्तु क्यों कि ये किस पर्दे के पीछे न होकर परदे पर थी अतः मात्र रिकार्ड की ही बात बन कर रह गयी। सुना है विदेशों में लंबी किस की प्रतियोगिताएं होतीं हैं खैर भारत में ऐसी प्रतियोगिताओं का कोई महत्व या  भविष्य नहीं हैं। हमारे यहाँ किस को एक अलग अंदाज़ से देखा जाता है। यदि आपको किस करते हुए किसी पुलिस के सिपाही ने या समाज के स्वघोषित सिपाही ने देख लिया तो आपकी पिटाई तय है। हो सकता है मुकदमा चले और जेल हो जाये। हमारे यहाँ आप खुले में लड़-भिड़ सकते हैं, खून-खराबा कर सकते हैं मर्डर, आगजनी कर सकते हैं मगर किस ? ना बाबा ना। हमारे यहाँ किस ‘किस ऑफ ड्रेगन’ मानी जाती है घातक और जानलेवा। देख लीजिये खजुराहो के देश में हम कहाँ से कहाँ आ गए।

 

         ‘किस’ के भी आदाब हुआ करते हैं ग़ालिब ये नहीं कि बगैर देश-काल का ख्याल आप किस करने लग जाएँ। हमारे यहाँ प्रेम करना एक अपराध है और किस उसी के प्रदर्शन का एक माध्यम है। मुझे लगता नहीं किस का आविष्कार या खोज हुई होगी यह तो एक सहज मानवीय भावना है। अब जीवाणु अपना-अपना देख लें यहीं रहेंगे या पार्टनर के साथ जाएँगे। 

 

         ‘किस’ अनेक तरह की होती होंगी कोई विशेषज्ञ ने इस पर ज़रूर अपनी रिसर्च लिखी होगी भारत में नहीं तो विदेश में। किन्तु इस बात की ज्यादा संभावना है कि इस पर मौलिक काम देश में हुआ होगा कारण हमारे यहाँ इस विषय पर बहुत अंधकार है अतः रिसर्च और नवीन खोज की अपार संभावनाएं हैं।

 

         विदेश में सुपरमैन और स्पाइडरमैन हुए हैं जो फ्लाई करते हैं । हमारे यहाँ फ्लाइंग सिख हुए हैं। फ्लाइंग रानी ट्रेन है। उड़ता पंजाब हुआ है। जितनी भी ‘किस’ होंगी उसमें ‘फ्लाइंग किस’ मैं समझता हूँ सबसे अधिक निरापद है। लेकिन यह किसी को ‘ऑफेंड’ भी कर सकती है। जब किसी से ‘फ्लाइंग किस’ के बारे में विचार पूछे तो उत्तर था “मैं ऐसे निहायत आलसी लोगों से सख्त नफरत करता हूँ।“  आहा ! नफरत ! नफरत हमारी राष्ट्रीय हॉबी है। हम किस-किस से नफरत करते हैं इस पर हर भारतीय ‘माई हॉबी’ टाइप एक निबंध लिख सकता है। टीचर, पड़ोसी, ऑफिस का कुलीग, बॉस, रिश्तेदार आपका लोकल नेता।  कहाँ तक गिनाऊँ।