आज सुबह सुबह हवा में बहुत ताजगी थी. आप पॉल्यूशन की बात कर रहे हो जबकि हवा ऐसी ताज़ा ताज़ा थी कि लगता था किसी गाँव की फिंज़ा में सांस ले रहे हैं. कोई धुआँ नहीं. सड़क साफ सुथरी...न कोई ट्रैफिक जाम न कोई और ट्रैफिक प्रॉब्लम. गाड़ियों की भरमार की बात कर रहे हो आप, वहाँ इक्का दुक्का कोई कोई कार दिख जाये तो दिख जाये नहीं तो दूर दूर तलक गाड़ियों का कोई नामोनिशान नहीं था. सब जगह ग्रामीण परिवेश नज़र आ रहा था. आप मॉल, ऑफिस और क्लब की बात कर रहे हो वहाँ पूछा तो सब बता रहे थे नहीं नहीं ये सब यहाँ नहीं चलता. यहाँ मंदिर है. माता का मंदिर है. शिवजी का मंदिर है. हनुमान मंदिर भी है. मगर ये होटल क्लब संस्कृति यहां देखने को भी नहीं मिलेगी अब.
आप साप्ताहिक हाट की बात करो तो वो तो है. शाम होते ही लोग-बाग घरों में घुस जाते हैं. पूजा पाठ में समय बिताते हैं. चारों ओर से कीर्तन और सत्संग की आवाजें घंटों और आरती की ध्वनियां ही सुनाई देती हैं.
लोग बाग बहुत ही धार्मिक किस्म के हो गये हैं. सब ओर ग्रामीण वस्त्रों में ही दिखाई देते हैं. बेहद ईमानदार हो गये हैं. पानी पीने को माँगो तो लस्सी देते हैं दूध माँगो तो खीर देते हैं. सब दिन भर खेत पर खटते हैं. या पशु चराने दूध दुहने में अपना अपना समय बिताते हैं. सब जगह खुशहाली ही खुशहाली है. कोई आपा धापी नहीं है. ज़िंदगी 35 किलो मीटर की रफ्तार से चल रही है. जब से मिला संतोष धन सब धन धूल समान हो गये हैं.
आप क्राइम की बात कर रहे हो यहाँ थानों को बंद करने की नौबत आ गयी है. कोई क्राइम नहीं, कोई चोरी चकारी, डकैती, नहीं. बलात्कार ? बलात्कार ? वे के होवै सै ? बावला हो रहे कै ?. यहाँ छोरियों की तरफ देखैं भी न हैं लोग. यहाँ कोई किसी को छेड़ै भी न हैं. अब तो नौबत ये आन पहुंची है कि छोरा छोरियां को छेड़ने छिड़ाने को दिल्ली जाणा पड़ै है.
मैंने पूछा ये सब चमत्कार कैसे हो गया ? उन्होंने बताया आप अखबार टी.वी न देखते दीखै ..... अरे बावड़ी बूच ! इब ये गुड़ग़ाँवा कोई न रह गया इब ये गुरू ग्राम हो गया सै...आई बात समझ मैं या बजाऊँ लठ्ठ दो ?