जैसे हनीमून पर जाने वाले ‘जस्ट मैरिड’ कहलाते हैं उसी तरह रिटायर हो कर नौयडा, ग्रेटर नौयडा, गुड़गाँव और ‘मुलुक’ तथा नेटिव प्लेस जाने वाले जस्ट रिटायर्ड कहलाते हैं. ये जस्ट रिटायर्ड वाले एक अज़ीब सी कशमकश से गुजर रहे होते हैं. इनकी हालत कुछ कुछ मिनोपॉज किस्म की होती है. ये जवान हैं या बूढ़े हो गये इन्हें खुद इस बात का महा कन्फ्यूजन सतत रहता है. इनके हॉरमोंस में अलबत्ता कोई चेंज आता नहीं है मगर न जाने क्यूँ इनके बीवी-बच्चे, आस-पास वाले, इनके मित्र, पड़ोसी तथा सबसे ज्यादा इनके ऑफिस वाले इन्हें कुछ इस तरह से ट्रीट करते हैं कि इनमें बहुत तेजी से अपने हॉरमोंस को ले कर शंका होने लग पड़ती है. इस सब की शुरुआत घर से ही होती है बल्कि कहिये कि घरवाली से ही होती है. उसका मानना होता है कि रिटायर तो आप हुए हो मैं नहीं. बस यहीं से कॉन्फ्लिक्ट चालू. तुमने कहाँ जाना है जो बाथरूम सुबह सुबह घेर के बैठ जाते हो. चलो उठो यहाँ से यहाँ पोचा लगना है. कुछ चल फिर लिया करो ये पेट इतना लटक रहा है. इतना बढ़ा रखा है. कभी इसे भी देख लिया करो. कम खाया करो. नॉन वैज छोड़ दो. दवाई ली या नहीं ?
जब आप ऑफिस फोन लगाते
हैं कि कुछ काम की बात हो, कुछ टाइम पास हो. पता लगता है कि आपके अदने से
अदने स्टाफ बिजी चल रहे हैं. बहुत काम अचानक से आ गया है. आप फोन उठाने की
कह रहे हो यहाँ दम भरने की फुरसत नहीं है. नये साहब ने बहुत सारी मीटिंग्स
रख दीं हैं और काम दे दिया है. आप जिस बंदे से ऑफिस में बात करना चाहो वही
या तो लीव पर है, या बीमार है या फिर काम में बिजी है. कल तलक जो कर्मचारी
आपका नाम सुन कर मिलने दौड़े चले आते थे वह गायब हैं. मोबाइल के चलते अब वे
फोन देख कर फोन उठाते ही नहीं हैं. कर लो क्या कर लोगे.
कभी मार्किट या हॉस्पीटल जाने पर कोई पहचान ले तो बड़ी खुशी होती है. और अपने ऊपर विश्वास जमने लगता है. यदा कदा कोई आगे से नमस्ते कर ले तो ऐसा लगता है उसे गले लगा लिया जाये “प्राह ! तू कित्थे सी गा ?” अब आपके पास एक ब्रह्म वाक्य है ‘टाइम ही टाइम एक बार मिल तो लें’ अब आप समाचारपत्र पढ़ते नहीं हैं बल्कि पूरा का पूरा चाट लेते हैं. एक-एक विज्ञापन तक पढ़ डालते हैं. आज शाम को क्या पकेगा ? इस विषय पर अब आप सेमीनार तक कर सकते हैं. कहीं कोई समारोह हो, फंक्शन हो आप सदैव जाने को तत्पर रहते हैं. वो बात दीग़र है कि जबसे पता लगा है आप रिटायर हो गये हैं..इन्वीटेशन आने भी बहुत कम हो गये हैं. कुछ लोग तो पता नहीं जानबूझ कर या इनोसेंटली जुमला कह ही देते हैं “आप तो अभी भी फिट लगते हैं” अब कोई इनसे पूछे कि क्या चाहते हैं वो ? रिटायर तभी माना जायेगा जब अगला व्हीलचेयर या वाकिंग स्टिक ले कर चले.
घर हो या बाहर अब आप धीरे धीरे ड्राइंग रूम से अपनी कोठरी अंग्रेजी में बोले तो बैड रूम की तरफ बढ़ रहे हैं....और फिर न जाने कब एक दिन आप वहीं के डोमीसाइल बन के रह जायेंगे...
कभी मार्किट या हॉस्पीटल जाने पर कोई पहचान ले तो बड़ी खुशी होती है. और अपने ऊपर विश्वास जमने लगता है. यदा कदा कोई आगे से नमस्ते कर ले तो ऐसा लगता है उसे गले लगा लिया जाये “प्राह ! तू कित्थे सी गा ?” अब आपके पास एक ब्रह्म वाक्य है ‘टाइम ही टाइम एक बार मिल तो लें’ अब आप समाचारपत्र पढ़ते नहीं हैं बल्कि पूरा का पूरा चाट लेते हैं. एक-एक विज्ञापन तक पढ़ डालते हैं. आज शाम को क्या पकेगा ? इस विषय पर अब आप सेमीनार तक कर सकते हैं. कहीं कोई समारोह हो, फंक्शन हो आप सदैव जाने को तत्पर रहते हैं. वो बात दीग़र है कि जबसे पता लगा है आप रिटायर हो गये हैं..इन्वीटेशन आने भी बहुत कम हो गये हैं. कुछ लोग तो पता नहीं जानबूझ कर या इनोसेंटली जुमला कह ही देते हैं “आप तो अभी भी फिट लगते हैं” अब कोई इनसे पूछे कि क्या चाहते हैं वो ? रिटायर तभी माना जायेगा जब अगला व्हीलचेयर या वाकिंग स्टिक ले कर चले.
घर हो या बाहर अब आप धीरे धीरे ड्राइंग रूम से अपनी कोठरी अंग्रेजी में बोले तो बैड रूम की तरफ बढ़ रहे हैं....और फिर न जाने कब एक दिन आप वहीं के डोमीसाइल बन के रह जायेंगे...