आज शाम में चौकी रखी है। अगले शुक्रवार जगराता है। माता
रानी ने आखिर सुन ही ली मेरी और मुझे भी वी. आई. पी. बना के ही मानी । जय शेरावाली
की। मैंने ‘मन्नत’ मांगी थी (शाहरुख खान वाला बंगला नहीं) माता ! अपने इस नालायक
बेटे को भी कैसे-तैसे वी. आई. पी. बनवा दो। सो भाईयो बहनो ! पेगासस में अपुन का भी
नाम आ गया है। मेरे फोन की भी टैपिंग हो रेली है। सोचो जिसे अपनी कॉलोनी में भी
कोई नहीं जानता था, जानता था तो भाव
नहीं देता था वह रातों रात अखिल भारतीय स्तर का वी. आई. पी. बन गया है। बड्डे
बड्डे मिनिस्टरों और पत्रकारों के साथ मेरा भी नाम बस यूं सोचो चल पड़ा है। अब तो
‘स्काई इज़ दी लिमिट’
सोच रहा हूँ जिसने भी मेरा नाम डाला है क्या सोच के डाला
होगा। क्या मैं सत्ता के लिए इतने मायने रखता हूँ ? यूं तो मैं अपने को विपक्ष लिए भी किसी मतलब का
नहीं मानता। वो क्या कहावत है गाँव-खेड़े में
‘बिल्ली का .. न लीपने का न पोतने का’ फिर सोचता हूँ इधर रिटायरमेंट के बाद
मैं ज़्यादातर अपनी कोठरी में सोता ही रहता हूँ अतः कहीं टैपिंग करने वालों ने हो न
हो मुझे ‘स्लीपर सेल’ वाला समझ लिया होगा।
अब से मैंने जितनी भी अंग्रेजी फिल्म देखी हैं उनके
लटके-झटके ‘बापरने’ हैं :-कॉपी देट, रोजर देट, हिट इट मैन, वाट दी फ.., कम विद मी इफ यू वांट टू लिव, आई विल बी बैक’ टाइप। अब दूध वाला भी आता तो मै
कहता “वी गॉट कंपनी” अब मै दोस्तों के पते या फोन नंबर नहीं उनके ‘कोर्डिनेट्स’
पूछने लग पड़ा हूँ और कितने बजे आ रहे हो ? नहीं पूछता, बल्कि कहता हूँ “टैल मी योअर ई. टी. ए. ?” बड़ा मज़ा आता है जब वो
“एँ....? ए ?” करते हैं। इधर कॉलोनी में
ये खबर आग की तरह फैल गई है कि मै कुछ लफड़े वाला आदमी हूँ। अब लोग मुझे देख सहम से
जाते हैं या तो रास्ता बदल लेते हैं या सलाम करते हैं। मै यद्यपि पूर्ववर्त ही
दिखने का असफल प्रयास करता हूँ। कुछ लोग दबे स्वर में कहते हैं “देखो कैसा लगता है, मगर पूरा चैप्टर है
चैप्टर”
रिश्तेदार यूं तो पहले से ही मुझसे कन्नी काटते थे मगर अब
तो कन्नी ही नहीं काटते खौफ भी खाते हैं। मै एक उम्र से चाहता भी ये ही था। भगवान
जब देता है यूं समझो पेगासस जब देता है मोबाइल फाड़ के देता है। जब तलक ये पता चले
कि वो आर. के. कोई और है तब तक तो ये वी. आई. पी. वाली फीलिंग रहने दो आई लाइक इट
!
थैंक यू पेगासस ! इस पगलैट खच्चर को भी पेगासस बना दिया।
पेगासस पैरीपैना !