ऐ जी... ओ जी...लो जी..सुनो जी ! हमारा देश सार्स मुक्त हो गया जी. अखबार में बड़ी बड़ी हेड लाईन्स छपी हैं. देश में सार्स का एक भी मरीज नहीं. पढ़ कर तबियत खुश हो गयी. दिल बल्लियों उछलने लगा. ये चीन, हॉंगकॉंग सिंगापुर वाले बडा अपने आप को समझते थे. हम फ्री पोर्ट हैं, हम अमीर हैं, प्रति व्यक्ति आय जबरदस्त है. नाइट लाइफ है. पर्यटन का केद्र है. देख लिया नतीजा. एक सार्स ने सबको चारों खाने चित्त कर दिया. मुझे तो ऐसा लग रहा है मैं नाचूं गाऊं पार्टी दूं. हमारा देश सार्स मुक्त हो गया. तुमने क्या समझा था हिंदुस्तान को. ठीक है हम गरीब हैं, हमारी हर राज्य-सरकार उधार ले कर घी पी रही है. हम कामचोर हैं.हम भ्रष्ट हैं. रिश्वत लेते हैं. मगर इस से क्या ? सार्स से तो मुक्त हैं.
हम में हज़ारों ऐब सही, तुम से तो बेहतर हैं. तुम्हारे देश में लोग सार्स से लदर-पदर मर रहे हैं. मेरे देश में कोई मरा ? जो भी मरा वो या तो भुखमरी से मरा या पेड़ से लटका कर मुहब्बत करने की सज़ा बतौर समाज के ठेकेदारों ने मारा या फिर आतंकवादियों की गोली का शिकार हुआ.
माना कि मेरे भारत महान में लोग भूख से मरते हैं. भूख से भी कहाँ वे तो कुपोषण के चलते मरते हैं. अब बेलेंस डाइट लेते नहीं हैं अतः कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और इन मीडिया वालों को तो बस मौका मिलना चाहिये. दरअसल ये सब मीडिया की चाल है. पिछ्ले दिनों माननीया मुख्यमंत्री जी ने कहा ही था “ ये अखबार वाले ना जाने क्या क्या मनगढ़ंत छपते रह्ते हैं. इतना भव्य सचिवालय है, राजधानी में हर चौराहे पर म्युजिक बजाते रंगीन फुव्वारे हैं. कारें, सड़्कें, बार-डिस्को हैं, पर इन्हें कुछ नहीं दिखता सिवाय भुखमरी के. कितना गलत और ‘बायस्ड’ आकलन करते हैं.
देश सार्स मुक्त हो गया है. मैं चाहता हूँ इसी खुशी में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया जाये. सार्स मुक्ति दिवस. जब देश में तरह तरह के दिवस मनते हैं तो एक ये भी सही. आप क्या सोचते हो. इस से हमारी उत्पादकता कम हो जायेगी. आप हमारी अन्य किसी भी क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं मगर उत्पादकता पर नहीं. हमारा लेटेस्ट स्कोर ये लेख लिखे जाने तक एक सौ दो करोड़ सत्तर लाख पंद्रह हज़ार दो सौ सेनतालीस नॉट आउट है. मेरा दिल कर रहा है कि मैं अमिताभ की तरह सबको कहूं “ चलो हो जाओ बे शुरु “ और “..शाबा.. शाबा “ कह के नाचने लगूं.
सरकार को चाहिये कि ऐसे मैं मध्यविधि चुनाव घोषित कर दे. सार्स के चलते बहुमत से जीतेगी. मेरा दावा है. “ गरीबी हटाओ” ने एक चुनाव जिताया ही था. आपको याद होगा वह भी मध्यविधि चुनाव ही था. एक चुनाव सार्स मुक्ति के नाम से भी सही. हमने सारे तथाकथित विकसित देशों को ठेंगा दिखा दिया है. बच्चू रोते रहो रोना. हम तो सार्स मुक्त हो गये. दहेज प्रथा, जातिवाद, बे-रोज़गारी, बाल-मज़दूरी इन सब से तो बाद में भी निपट लेंगे. फर्स्ट थिंग फर्स्ट. सार्स को ऐसी पटखनी दी कि सार्स सीमा छोड़ के ये जा वो जा.
मंत्री जी का काफिला कितना मनमोहक लग रहा था. सब नक़ाबपोश वेताल की तरह लग रहे थे.जिस तरह जब वेताल गोली छोड़ता है तो आंखें देख नहीं पातीं (पुरानी जंगली कहावत) सार्स भी वेताल की गोली कि तरह पलक झपकते ही देश छोड गया. कुछ लोग जो हवाई अड्डों और अस्पताल में पडे थे सार्स मुक्त होने से बड़े मायूस हुए. इतने दिनों से टी.वी पर दिख रहे थे. वी. आई.पी. बने हुए थे. अब कोई कौडियों के मोल भी नहीं पूछ रहा है. यही बाज़ारवाद है. अब वे खबर नहीं. खबर ये है कि देश सार्स मुक्त हो गया.
मुझे इंतजार है उस दिन का जब अखबार की हेड लाईंस कहेंगी देश आतंकवाद से मुक्त हो गया, देश साम्प्र्दायिकतावाद से मुक्त हो गया. राम जन्म भूमि विवाद से मुक्त हो गया. भुखमरी-बेरोज़गारी से मुक्त हो गया. बाल मज़दूरी से मुक्त हो गया.
जब अखबार वाला इन हेड लाईंस का अखबार मेरे घर डाल के जायेगा वो सुबह कब आयेगी ?
हम में हज़ारों ऐब सही, तुम से तो बेहतर हैं. तुम्हारे देश में लोग सार्स से लदर-पदर मर रहे हैं. मेरे देश में कोई मरा ? जो भी मरा वो या तो भुखमरी से मरा या पेड़ से लटका कर मुहब्बत करने की सज़ा बतौर समाज के ठेकेदारों ने मारा या फिर आतंकवादियों की गोली का शिकार हुआ.
माना कि मेरे भारत महान में लोग भूख से मरते हैं. भूख से भी कहाँ वे तो कुपोषण के चलते मरते हैं. अब बेलेंस डाइट लेते नहीं हैं अतः कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और इन मीडिया वालों को तो बस मौका मिलना चाहिये. दरअसल ये सब मीडिया की चाल है. पिछ्ले दिनों माननीया मुख्यमंत्री जी ने कहा ही था “ ये अखबार वाले ना जाने क्या क्या मनगढ़ंत छपते रह्ते हैं. इतना भव्य सचिवालय है, राजधानी में हर चौराहे पर म्युजिक बजाते रंगीन फुव्वारे हैं. कारें, सड़्कें, बार-डिस्को हैं, पर इन्हें कुछ नहीं दिखता सिवाय भुखमरी के. कितना गलत और ‘बायस्ड’ आकलन करते हैं.
देश सार्स मुक्त हो गया है. मैं चाहता हूँ इसी खुशी में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया जाये. सार्स मुक्ति दिवस. जब देश में तरह तरह के दिवस मनते हैं तो एक ये भी सही. आप क्या सोचते हो. इस से हमारी उत्पादकता कम हो जायेगी. आप हमारी अन्य किसी भी क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं मगर उत्पादकता पर नहीं. हमारा लेटेस्ट स्कोर ये लेख लिखे जाने तक एक सौ दो करोड़ सत्तर लाख पंद्रह हज़ार दो सौ सेनतालीस नॉट आउट है. मेरा दिल कर रहा है कि मैं अमिताभ की तरह सबको कहूं “ चलो हो जाओ बे शुरु “ और “..शाबा.. शाबा “ कह के नाचने लगूं.
सरकार को चाहिये कि ऐसे मैं मध्यविधि चुनाव घोषित कर दे. सार्स के चलते बहुमत से जीतेगी. मेरा दावा है. “ गरीबी हटाओ” ने एक चुनाव जिताया ही था. आपको याद होगा वह भी मध्यविधि चुनाव ही था. एक चुनाव सार्स मुक्ति के नाम से भी सही. हमने सारे तथाकथित विकसित देशों को ठेंगा दिखा दिया है. बच्चू रोते रहो रोना. हम तो सार्स मुक्त हो गये. दहेज प्रथा, जातिवाद, बे-रोज़गारी, बाल-मज़दूरी इन सब से तो बाद में भी निपट लेंगे. फर्स्ट थिंग फर्स्ट. सार्स को ऐसी पटखनी दी कि सार्स सीमा छोड़ के ये जा वो जा.
मंत्री जी का काफिला कितना मनमोहक लग रहा था. सब नक़ाबपोश वेताल की तरह लग रहे थे.जिस तरह जब वेताल गोली छोड़ता है तो आंखें देख नहीं पातीं (पुरानी जंगली कहावत) सार्स भी वेताल की गोली कि तरह पलक झपकते ही देश छोड गया. कुछ लोग जो हवाई अड्डों और अस्पताल में पडे थे सार्स मुक्त होने से बड़े मायूस हुए. इतने दिनों से टी.वी पर दिख रहे थे. वी. आई.पी. बने हुए थे. अब कोई कौडियों के मोल भी नहीं पूछ रहा है. यही बाज़ारवाद है. अब वे खबर नहीं. खबर ये है कि देश सार्स मुक्त हो गया.
मुझे इंतजार है उस दिन का जब अखबार की हेड लाईंस कहेंगी देश आतंकवाद से मुक्त हो गया, देश साम्प्र्दायिकतावाद से मुक्त हो गया. राम जन्म भूमि विवाद से मुक्त हो गया. भुखमरी-बेरोज़गारी से मुक्त हो गया. बाल मज़दूरी से मुक्त हो गया.
जब अखबार वाला इन हेड लाईंस का अखबार मेरे घर डाल के जायेगा वो सुबह कब आयेगी ?