Ravi ki duniya

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Saturday, October 18, 2014

व्यंग्य : मेरा स्विस खाता



मैं भगवान से मना रहा हूं कि हे भगवान ! कैसे भी एक अदद खाता मेरा भी स्विस बैंक में खुलवा दे. वैसे आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि मेरा खाता किसी ग्रामीण सहकारी बैंक में भी नहीं है. मगर स्विस बैंक में खाते के नाम से ही बदन में फुरफुरी सी आ जाती है. पुराने वक़्त में 5 रुपये में खाता खुल जाता था. पता नहीं स्विस बैंक वाले कितने रुपये में खोलेंगे ? चलो मैं कोई न कोई बहाना करके पी.एफ. से पैसे उधार लेकर खाता खुलवा ही लूंगा.


खाता खुलते ही आप क्या सोच रहे हो मैं आपसे बात करूंगा ? कतई नहीं. मेरा लैवल ही अलग होगा. मेरी चिंतायें, मेरे सरोकार कुछ हट के होंगे. मैं इंडिया और जर्मनी के बीच हुई ट्रीटी का कट्टर समर्थक हो जाऊंगा. राईट टू प्राइवेसी की बात करूंगा. इंडिया के पॉलिटीकल सिस्टम को कोसूंगा. और तो और खुद स्विट्जरर्लैंड में सैटल होने की बात उठते-बैठते करूंगा. भले लोग मुझे झक्की समझने लगें. मगर मैं जानता हूं कितने ही ऐसे होंगे और मैं उन पर डिपेंड भी कर रहा हूं, वो इधर-उधर नाते-रिश्तेदारी में शहर–शहर लोगों को शेखी मारते हुए बोलेंगे “ अरे हमारे मामा का भी स्विस बैंक में खाता निकला है ” ज्यादातर यार दोस्त और रिश्तेदार यह भी कहते फिरेंगे “देखो कैसा चुप्पा था ! बिल्कुल घुन्ना था घुन्ना. मैं तो पहले से ही जानता था देखने में कैसा झल्ला सा लगता था ? खूब पैसा बनाये हैं रिश्वत लेता था फुल फुल” 

अचानक मैं जेटली साब का समर्थक हो जाऊंगा. भई ऐसे थोड़े होता है स्विस बैंक है ये कोई खाला जी का घर नहीं है कि इंडिया से कोई भी बाबा, बाबू, या मंत्री-संतरी जाकर खाताधारियों के नाम ले आयें. ( मन ही मन मनाऊंगा कि कैसे भी मेरा नाम ‘लीक’हो जाये) ये तो मैंने सोच लिया है जो भी मिनिमम रकम मैं जमा करवाऊंगा उसमें ‘मिलियन’ जोड़ दूंगा. जैसे 500 रुपये से खाता खुला तो किसी को बताऊंगा भी कि 500 रुपये हैं तो अगलों ने यक़ीन तो वैसे भी नहीं करना है. सो क्यों न एक ‘रिस्पैक्टेबल’ फिगर रहे 500 मिलियन.
सोचो उसके बाद मेरे मोहल्ले में कैसे लोग मुझे डरी डरी नज़रों से कभी भय से कभी ईर्ष्या से देखेंगे. चैनल वालों ने अलग आ आ कर तंग करना है. “ आपको कैसा लग रहा है ?” मैंने तो अभी से जवाब भी सोच लिया है. सभी से एक ही जुमला कहना है “ नो कमेंट्स “ इसका मतलब है बताने को बहुत कुछ है पर अभी नहीं. मेरी रिश्तेदारों में अलग धाक जम जायेगी. वो अलग अपने दफ्तर अपने पड़ोस में बताते फिरेंगे. “हमारे सिकंदराबाद वाले चाचा जी का खाता भी निकला है स्विस बैंक में”. बहुत बिज़ी सी लाईफ हो जायेगी. इंटरव्यू. लाईव शो, बायोग्राफी, सेमीनार, की-नोट एड्रेस, हाऊ टू ओपन स्विस बैंक एकाऊंट, डूज़ एंड डोंट्स.

फिर मुझे अपने बच्चों के लिये रिश्ते ढूंढने जाने की दरकार नहीं रहेगी. वैसे ही लाईन लगी रहेगी. रिश्ते ही रिश्ते एक बार स्विस बैंक में खाता खुलवा तो लें. तुम बच्चों की बात करते हो बहुत मुमक़िन है मेरे खुद के लिये भी रिश्ते आने लगें. क्यों कि मैंने सुना है ‘ आदमी बूढ़ा होता है पैसा नहीं ‘

“...स्विस बैंक में मेरा खाता खुलवा दे
फिर मेरी चाल देख ले ..”

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